कविता खुलेपन के मायने October 17, 2019 / October 17, 2019 | Leave a Comment खुलेपन के मायने बदल गए हैं, विचारों के खुलेपन को नहीं , शरीर के खुलेपन को , तरजीह मिलने लगी है। हद होती है, हर बात की, शरीर के खुलेपन की, कोई हद नज़र आती नहीं। हर युग की जरूरतें, स्थितियाँ, परिस्थितियां अलग होती हैं। परिवर्तित होती हैं मन:स्थितियाँ, शारीरिक पहनावा, मौसम अनुसार भी। माहौल […] Read more »
कविता दिल और दिमाग October 16, 2019 / October 16, 2019 | Leave a Comment जिंदगी के मसलों के लिए सिर्फ दिल से लिए गए फैसले अच्छे नहीं होते । सिर्फ दिमाग से लिए गए फैसले भी अच्छे नहीं होते । दिल और दिमाग की कसौटी पर कसे गए फैसले अच्छे होते हैं । फिर भी जिंदगी के अनेक फैसले दिल से ही लिए जाते हैं , इनके परिणाम भी […] Read more »
कविता फैसले October 14, 2019 / October 14, 2019 | Leave a Comment जिंदगी के मसलों के लिए सिर्फ दिल से लिए गए फैसले अच्छे नहीं होते । सिर्फ दिमाग से लिए गए फैसले भी अच्छे नहीं होते । दिल और दिमाग की कसौटी पर कसे गए फैसले अच्छे होते हैं । फिर भी जिंदगी के अनेक फैसले दिल से ही लिए जाते हैं , इनके परिणाम भी […] Read more » फैसले
कविता दशहरा October 10, 2019 / October 14, 2019 | Leave a Comment अधर्म पर धर्म की , असत्य पर सत्य की , बुराई पर अच्छाई की , पाप पर पुण्य की , अज्ञान पर ज्ञान की, अत्याचार पर सदाचार की, क्रोध पर क्षमा की, पराएपन पर अपनेपन की , दूरियों पर नज़दीकियों की , नफरत पर प्रेम की, बेशर्मी पर शर्म की , अनादर पर आदर की, […] Read more » दशहरा
कविता साहित्य तेरे मेरे दरम्यां ।। October 4, 2019 / October 4, 2019 | Leave a Comment नहीं चाहिए मुझे, बड़े-बड़े उपहार , मोतियों के हार , बड़ी-बड़ी बातें , गर्मियों में कश्मीर जाना, सर्दियों में दक्षिण भारत घूमना। चाहिए मुझे तो बस, तेरा प्यार से घण्टों, एकटक मुझे निहारना। मेरे हाथों को अपने हाथों में ले, बात बेबात हंसना, मुस्कुराना घंटों मेरे साथ बैठे रहना। मेरे बालों में धीरे -धीरे, तेरा […] Read more »
कविता यही ज़िन्दगी है September 30, 2019 / September 30, 2019 | Leave a Comment कभी लगता है , मुट्ठी में है दुनिया, कभी जिंदगी रेत-सी, मुट्ठी से फिसल जाती है। कभी जीत जाते हैं, सब कुछ हार कर भी , कभी जीत कर भी, सब कुछ हार जाते हैं। यह जिंदगी है दोस्तों , यह कभी, सीधी रेखा में नहीं चलती। टेढ़े -मेढ़े ,उल्टे- सीधे, घुमावदार ,सांंस जोड़ते,उखाड़ते हैं […] Read more »
कविता आसान नहीं होता।। September 30, 2019 / September 30, 2019 | Leave a Comment खुद जहर पी कर भी, दूसरों को अमृत पिलाना , आसान नहीं होता। खुद घुट -घुट कर रोना , दूसरों के चेहरे पर , मुस्कुराहट लाना , आसान नहीं होता । खुद पत्थर खाकर भी, दूसरों को फल देना, आसान नहीं होता। हमेशा हां ही करना , कभी किसी भी काम को, मना नहीं करना, […] Read more » आसान नहीं होता।।
कविता अच्छी बात नहीं। August 26, 2019 / August 26, 2019 | Leave a Comment औरों के घर में हो अंधेरा, तुम्हारे घर में हो उजाला, यह तो अच्छी बात नहीं। हमारे हो महल दुमहले, और तरसे झोपड़े को भी, यह तो अच्छी बात नहीं। जो चाहा हमने वह हमें मिले औरों को जो मिला, वह भी हम छीन लें, यह तो अच्छी बात नहीं। मेरी हर बात सच्ची बात, […] Read more » not a good thing
कविता आधे-अधूरे हम August 18, 2019 / August 18, 2019 | Leave a Comment एक वे हैं जो केवल , अधिकारों की हमेशा करते हैं मांग। अधिकारों के शोर में, भूल जाते है कर्तव्यों को । एक वे हैं, जिनका कर्तव्य पर ही , सदैव रहता ध्यान। अधिकार तो मिल ही जाएंगे, यदि हम, मनसा-वाचा-कर्मणा, अपने कर्तव्य को निभाएंगे। किसी के लेने -देने से, कुछ नहीं मिलता कभी। अगर […] Read more » hindi poem
कविता मर्द August 16, 2019 / August 17, 2019 | Leave a Comment मर्द हो मर्द बनो । कुछ खा लो , कुछ पी लो , दो चार कश भी लगा लो, अरे क्या बिगड़ता है, थोड़े में , यार ! चख कर तो देखो। अरे !तुम तो अभी बच्चे हो? मां बाप की आज्ञाएं, ही ढोते रहते हो । तुम्हारा जीवन अपना है। अपने निर्णय खुद लो […] Read more » be a man Man
कविता साहित्य निराशा के गर्त में July 15, 2019 / July 15, 2019 | Leave a Comment डॉ. सतीश कुमार निराशा के गर्त में , डूबे हुए को , आशा की संजीवनी से सींच नवजीवन देना। नाउम्मीदी में डूबी, उनींदी, पथराई आंखों में, आशा की , गिद्ध की आंखों की-सी, चमक पैदा कर देना। हताश, अवाक्, अंधकारपूर्ण भविष्य से, आंखों में आई ढी़ढ़, वाले इंसान को, सुबह की नयी किरण से, उत्साहपूर्ण […] Read more » Disappointment life-poem motivation poem poetry on disappointment
कविता ये बंधन क्यों? July 11, 2019 / July 11, 2019 | Leave a Comment डॉ. सतीश कुमार मैं प्रश्न क्यों ना करूँ मैं बहस क्यों ना करूँ प्रश्न करना, बहस करना जरूरी है जानने के लिए समझने के लिए गूंगी गुड़िया से बोलने वाली गुड़िया बनने तक का सफर असहनीय दर्द कांटों भरा रहा। यूँ ही स्वीकार नहीं किया, दुनिया ने मेरा यह रूप बहुत सहा बस अब और […] Read more » Hindi Poem poem of asking poetry restrictions society norms