राजनीति अपने विनाश से बचने के लिए नेपाल को समझना होगा कि चीन ने तिब्बत को कैसे हड़पा था ? September 2, 2020 / September 2, 2020 | Leave a Comment चीन ने तिब्बत को अपने आप नहीं हड़पा था बल्कि तिब्बत ने ही चीन को अपनी मदद के लिए बुलाया था । बाद में उसके लिए चीन का अपनी सरजमीं पर आना महंगा पड़ा । यही बात आज नेपाल को भी समझ लेनी चाहिए । वह भी भारत के तथाकथित भय के कारण जिस प्रकार […] Read more » Nepal must understand how China annexed Tibet चीन ने तिब्बत को कैसे हड़पा नेपाल को समझना होगा कि चीन ने तिब्बत को कैसे हड़पा था
कविता साहित्य आओ खेलें वैदिक होली March 8, 2017 | Leave a Comment विमलेश बंसल ‘आर्या’ होली को पावन त्यौहार आज कछु ऐसे मनाऊँगी। लगाकर सबके चंदन माथे, सौम्य हो जाऊंगी। बड़ों को करके ॐ नमस्ते, छोटों को हृदय लगाऊंगी। नवान्न आटे की गुजिया बना, प्रसाद बनाऊंगी। वृहद यज्ञ सामूहिक कर के नौत खिलाऊंगी। उंच नीच का भेद भुलाकर, प्रीति निभाऊंगी उत्तम पेय पिला ठंडाई, फाग गवाऊँगी। पूरे […] Read more »
कविता साहित्य आओ वैदिक दीप जलाएं October 11, 2016 | Leave a Comment गोवर्धन, संरक्षण, पोषण, गौ की सेवा, गौ का पालन| गौ माता के प्राण बचाएं|| Read more » आओ वैदिक दीप जलाएं
शख्सियत समाज कलियुग के अग्रदूत – महाराजा अग्रसेन September 29, 2016 / September 29, 2016 | Leave a Comment महाराजा अग्रसेन एक इतिहास पुरुष थे, वह पिता बल्लभसेन के एक सच्चे अग्र आर्य पुत्र थे। महाभारत काल के दौरान हुई हिंसा में समाप्त हो रही आर्य अग्र वैश्य जाति की दयनीय स्थिति को देख विचलित हो उठे, क्योंकि महाभारत के युद्ध में लगे पैसे से व्यापारी वर्ग प्रायः समाप्त हो चला था। चारों ओर पैसे के अभाव में गरीबी, भुखमरी, लड़ाई-झगड़े, अशांति का माहौल पैर पसार रहा था। इस बात को उन्होंने विचारा और संकल्प किया कि पुनः इस खोयी हुई गरिमा को वापिस लाकर ही दम लूँगा। पिता बल्लभसेन तो पांडवों के साथ लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गए थे| Read more » Featured महाराजा अग्रसेन
कविता साहित्य योग करो भई योग करो June 17, 2016 / June 17, 2016 | Leave a Comment -विमलेश बंसल ‘आर्या’ यदि चाहो कल्याण विश्व का, योग करो सब योग करो| यदि चाहो नित खुशियाँ पाना|| योग करो भई योग करो|| योग ही सत है , योग ही ऋत है, योग ही रस, अमृत, मधु, घृत है | योग प्रेम है, योग क्षेम है, योग ही संबल प्रभु श्रुति पथ है॥ यदि चाहो […] Read more » योग करो भई योग करो
कविता साहित्य नव संवत्सर पर इड़ा, मही, सरस्वती को नमन March 29, 2016 | Leave a Comment विमलेश बंसल ‘आर्या’ नमन तुम्हें हे नव संवत्सर, नमन तुम्हें हे आर्य समाज। नमन तुम्हें हे भारत माता, नमन तुम्हें हे प्रिय ऋषिराज।। नव संवत् की चैत्र पंचमी, आर्य समाज बनाया था। गहन नींद से जगाकर ॠषि ने, सत्य का बोध कराया था।। पीकर विष पत्थर खा खाकर, पुनः किया हमको आगाज़॥ नमन तुम्हें […] Read more » नव संवत्सर नव संवत्सर पर इड़ा सरस्वती को नमन
कविता साहित्य एक हो जावें – पर्व होली का मनावें March 14, 2016 / March 14, 2016 | Leave a Comment एक हो जावें, पर्व होली का मनावें, कुहुक रही हैं कोयल डालियाँ। फ़ाग गवावें, कृपा ईश्वर की पावें, झूम रही हैं जौ की बालियाँ।। एक हो जावें….. मासों में अंतिम मास फाल्गुन विदाई का। देने संदेशा आया, प्रेम और भलाई का। जगें जगावें, भेद हर दिल के मिटावें, पावन बनावें हृदय प्यालियाँ।। एक हो जावें […] Read more » Holi festival Poem on Holi होली होली पर्व
कविता आ गया मधुमास प्यारा, January 30, 2016 | Leave a Comment ओढ़कर नव वसन न्यारा॥ प्रकृति का यौवन निराला, गा रहा स्वर तान प्यारा॥ नमन हे ईश्वर तुम्हारा, नमन हे ईश्वर तुम्हारा॥ कूप झरने नदी सागर। मधुर रस में तृप्त गागर॥ झूमते सब पेड़ पौधे। नृत्य करते मोर मोहते॥ कुहुक कोयल की निराली। मगन पुष्पम् डाली डाली॥ पृथ्वी माता हरित आंचल। हरित चुन्नी हरित हर […] Read more » आ गया मधुमास प्यारा
कविता साहित्य पितृयज्ञ September 28, 2015 / September 29, 2015 | 1 Comment on पितृयज्ञ पितृयज्ञ हर घर में होवे, चरण आचरण सायं प्रात| सेवा शुश्रूषा कर श्रद्धा, पायें उनका आशीर्वाद|| 1. चले गए जो इस दुनियाँ से, वंशावली वट वृक्ष बनायें| उनके सुन्दर कार्यों से, बच्चों को अवगत करें सिखायें| पूर्ण करें उनके कामों को, बच्चों को लेकर के साथ|| सेवा शुश्रूषा …….. 2. पूर्णिमा से अमावस्या तक, कोई […] Read more »
धर्म-अध्यात्म श्रद्धा की हो काँवड़ August 12, 2015 | 1 Comment on श्रद्धा की हो काँवड़ विमलेश बंसल क्या आप जानते हो श्रावण मास में काँवड़ का क्या महत्व है? यह कांवड़ गंगोत्तरी से जल लाकर महादेव पर चढ़ाई जाती है आइये जानें – वर्षा ऋतु के 4 महीने चातुर्मास्य कहलाते हैं श्रावण मास मैं घनघोर बारिश के चलते आवाजाही ठप्प रहती है चारों और तालाब और गड्ढे पानी से […] Read more » काँवड़
कविता योग की महिमा July 1, 2015 | Leave a Comment -विमलेश बंसल ‘आर्या’ योग ऋत है , सत् है, अमृत है। योग बिना जीवन मृत है।। 1. योग जोड़ है, वेदों का निचोड़ है। योग में ही व्याप्त सूर्य नमस्कार बेजोड़ है।। 2. योग से मिटती हैं आधियाँ व्याधियाँ। योग से मिटती हैं त्वचा की कोढ़ आदि विकृतियां।। 3. योग जीवन को जीने की जडी […] Read more » योग की महिमा
कविता हम सब मिल शीश झुकायेंगे January 31, 2015 | Leave a Comment हम सब मिल शीश झुकायेंगे, गुरु देव दयानंद दानी को। उस वैदिक वीर पुरोधा की, गायेंगे अमर कहानी को॥ 1.अट्ठारह सौ इक्यासी की, फ़ाल्गुन कृष्णा दशमी तिथि को, गुजरात प्रांत टंकारा में, था जन्म लिया मूलक मिति को। शंकर से शंकर मूल मिला, कर्षन जी धन्य भवानी को॥ 2.लो सुनो सुनाऊँ तुम्हें कथा, उस वीर […] Read more » हम सब मिल शीश झुकायेंगे