संदर्भ- अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन की पाकिस्तान को आतंकी अड्डों को खत्म करने की चेतावनी
प्रमोद भार्गव
एक बार फिर भारत की धरती से पाकिस्तान को आतंकी अड्डे खत्म करने की चेतावनी देकर अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन लौट गए। रेक्स ने पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर की धरती पर चल रहे आतंकियों को सैन्य प्रशिक्षण देने वाले शिविर और बुनियादी सरंचना को तत्काल समाप्त करने की चेतावनी दी है। सब जानते हैं कि पाक इस समय आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बना हुआ है। भारत में कश्मीर से लेकर अफगानिस्तान के समूचे क्षेत्र में पाक से प्रशिक्षित आतंकी ही आतंक का पर्याय बने हुए हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि यदि इन आतंकी समूहों पर ठोस कार्यवाही नहीं होती है तो ये कालांतर में इस्लामाबाद की सरकार को भी गंभीर खतरा बन सकते हैं। लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समेत अमेरिका के अन्य पक्ष व विपक्ष के नेताओं द्वारा फटकार लगाए जाने के बावजूद पाक का राजनैतिक नेतृत्व एवं सैन्य संगठन बेअसर हैं। अब तो चीन की शह के चलते ऐसा अहसास हो रहा है कि पाकिस्तान ने अमेरिका की धमकियों को गीदड़ भभकियां मारना शुरू कर दिया है। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि अमेरिका फटकार तो लगाता है लेकिन न तो पाकिस्तान को आर्थिक मदद देना बंद करता है और न ही आतंकियों के शिविरों पर सैन्य कार्यवाही करने का जोखिम उठाता है। अमेरिका की इसी दुविधा का लाभ उठाकर पाक आतंकियों को सरंक्षण देते हुए उनका इस्तेमाल भारत और अफगानिस्तान के विरुद्ध खुले तौर पर कर रहा है।
भारत यात्रा पूरी करने से पहले रेक्स टिलरसन ने भारतीय विदेश मंत्री सुशमा स्वराज के साथ साझा प्रेस वार्ता भी की। इसमें भी रेक्स ने कहा कि आतंकियों के सुरक्षित ठिकाने बर्दाष्त नहीं किए जाएंगे। ये ठिकाने खत्म होंगे तभी राष्ट्रपति ट्रंप की नई अफगान नीति सफल हो सकती है। रेक्स ने यह भी कहा कि ये आतंकी गुट पाकिस्तानी सरकार की स्थिरता और सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा है। ये आतंकी किसी के भी हित साधक नहीं है। वर्तमान परिवेश में भारत और अमेरिका एक प्राकृतिक संगठन के रूप में पेष आए है, क्योंकि ये दोनों आतंक के खिलाफ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। दूसरी तरफ सुषमा स्वराज ने कहा कि हाल ही में अफगानिस्तान में जो आतंकी हमले हुए है, उनसे साफ हुआ है कि पाकिस्तान की सरजमीं पर आतंकियों के सुरक्षित अड्डे कायम हैं।
बहरहाल अमेरिका आतंकियों को खत्म करने के दावे प्रतिदावे कुछ भी करे हकीकत यह है कि अब उसकी धमकियां पाकिस्तान पर बेअसर साबित हो रही हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि एक तो दक्षिण एशियाई क्षेत्र में अमेरिकी हितों के लिए अमेरिका को पाकिस्तान की जरूरत है। दूसरे, पाकिस्तान ने चीन के साथ इतने गहरे आर्थिक और सामरिक संबंध बना लिए हैं कि पाक की जिन जरूरतों की पूर्ति अमेरिका से होती थी, उन्हें अब चीन करने लगा है। यही वजह है कि आतंकवादियों को पनाह देने के मामले में पाकिस्तान के चेहरे से पूरी तरह आवरण हट जाने के बावजूद भी अमेरिका पाक को फटकार लगाने से आगे नहीं बढ़ पा रहा है। जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सुशमा स्वराज लगातार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों से पाकिस्तान को आतंकी देश घोशित करने की पैरवी कर रहे हैं। इसी वजह से ब्रिक्स देशों के मंच से भी पाकिस्तान को चेतावनी दी गई थी कि वह आतंकी शिविरों और आतंकी शरणागतों को समाप्त करे। भारत के साथ इस आतंकवाद विरोधी आवाज के समर्थन में सऊदी अरब, बांग्लादेश, अरब-अमीरात और अन्य कई इस्लामिक देश भी आ गए हैं। जापान और जर्मनी भी भारत के साथ खड़े हैं। मोदी ने दुनिया में जिस बुलंदी के साथ आतंकवाद के खिलाफ आवाज बुलंद की है, उसी का परिणाम है कि खुद पाकिस्तान में बुद्धिजीवियों का एक तबका यह आवाज उठाने लगा है कि केवल मजहबी जुनून से कोई देश स्थिर नहीं रह सकता है। बल्कि इससे बिखराव और विखंडन की स्थिति ही निर्मित होगी। यही वजह है कि पाकिस्तान में सिंध, बलूच, गिलगिट और बाजीरस्तान में पाक विरोधी स्वर मुखर हो रहे है। अब मुस्लिम बिरादरी की प्रांसगिकता भी लगभग खत्म जैसी है। ऐसा इसलिए संभव हुआ है, क्योंकि अब ज्यादातर इस्लामी देश शिया-सुन्नियों की टकराहट की अंतरकर्लह का सामना कर रहे हैं। यही वजह है कि म्यांमार की सेना द्वारा निर्ममता से रोहिंग्या मुसलमानों को खदेड़ दिए जाने के बावजूद बांग्लादेश को छोड़ अन्य कोई इस्लामिक देश उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया। बांग्लादेश की सरहद पर 6 लाख से भी ज्यादा रोहिंग्या आजीविका के संकट से जूझ रहे हैं।
अमेरिका असमंजस की स्थिति से क्यों गुजर रहा है, यह इसलिए भी समझ से परे है, क्योंकि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप स्वयं अगस्त 2017 में अमेरिकी सेना को संबोधित करते हुए कह चुके हैं कि पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक व सामरिक मदद अमेरिकी हितों के खिलाफ इस्तेमाल नहीं की जा सकती है ? पाकिस्तान किसी भी सूरत में आतंक व आतंकी संगठनों के लिए मददगार साबित नहीं हो सकता है ? भारत को अफगानिस्तान में अधिक निवेश करके उसके साथ उदार साझेदारी निभाने की जरूरत है। लगभग इन्हीं मुद्दों को रेक्स ने बिना किसी परिणाम की उम्मीद के बिना भारत की धरती से दोहराया है। ट्रंप और टिलरसन के इन बयानों के बीच अक्टूबर 2017 में अमेरिका के सुरक्षा सचिव मेटिस ने यह कहकर अमेरिका की दुविधा जता दी थी कि अमेरिका पाकिस्तान पर एक बार फिर विश्वास करते हुए उसके साथ काम करने को इच्छुक है। इस बयान से यही अर्थ निकलता है कि आखिरकार अमेरिका पाकिस्तान के खिलाफ कोई कठोर कार्यवाही करने के पक्ष में नहीं है। गोया, पाकिस्तान के फाटा क्षेत्र में तालिबानी और हक्कानी आतंकी संगठन खुलेआम आतंकी गतिविधियों को अंजाम तक पहुंचा रहे है।
अमेरिका ने भारत के खिलाफ पाकिस्तान द्वारा दी गई परमाणु हमले की धमकियों पर भी कड़ी आपत्ति जताई थी। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के उप प्रवक्ता मार्क टाॅर्नर ने कहा था कि पाकिस्तान को परमाणु सक्षम देश के तौर पर अपनी जिम्मेदारियां समझनी चाहिए। तब पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने लगातार दो बार यह कहा था कि पाक भारत के खिलाफ परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है। यही नहीं पाकिस्तान के विदेश सचिव ऐजाज चौधरी ने भी कहा था कि उनके देश ने भारत के संभावित हमले को रोकने के लिए कम क्षमता के सामरिक परमाणु हथियारों का विकास कर लिया है। यहां यह भी गौरतलब है कि ऐजाज ने यह बात वाशिंगटन में कही थी। ऐसे और भी कई बयान ध्यान में लाए जा सकते हैं। दरअसल परमाणु हथियारों के पक्ष में एक दलिल यह दी जाती है कि ये युद्ध प्रतिरोधक है। यानी यदि किसी देश के पास परमाणु हथियार है तो कोई दूसरा देश उस पर हमला करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा। लेकिन जिस तरह से पाकिस्तान और त्तर कोरिया भारत और अमेरिका को परमाणु हथियारों के प्रयोग की धमकी दे रहे है, उससे तो यह आभास हो रहा है कि ये हथियार युद्ध प्रतिरोधक न होते हुए युद्ध की विनाषक स्थिति का निर्माण करने में सहायक हो रहे हैं। गोया, मौजूदा परिदृश्य में इनकी सुरक्षा ही बड़ी जुम्मेदारी बन गई हैं। पाकिस्तान को लेकर आशंका इसलिए ज्यादा है, क्योंकि वहां निर्वाचित राजनीतिक नेतृत्व कमजोर है। सुरक्षा संबंधी सारे फैसले सेना लेती है। इससे भी इतर पाक की धरती पर ऐसे धार्मिक आतंकी संगठन गतिशील है, कि चाहे-अनचाहे यदि उनके हाथ परमाणु हथियार लग गए तो वे दुनिया के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं ? इसलिए अमेरिका की असमंजस पूर्ण आतंक को खत्म करने की दोरंगी नीति से काम चलने वाला नहीं है। वैसे भी अब पाकिस्तान की अमेरिका पर आर्थिक निर्भरता लगातार घट रही है और चीन पर बढ़ती जा रही है। अमेरिका को पाक द्वारा नजरअंदाज किए जाने का भी यही कारण है।