भ्रष्टाचार की जंग ही है सरकार की सफलता

0
120

ललित गर्ग

भ्रष्टाचार का खात्मा नरेन्द्र मोदी सरकार का एक घोषित लक्ष्य है और यह प्रशंसनीय भी है। तीन वर्ष की सम्पन्नता पर यही एकमात्र ऐसी ऐतिहासिक स्थिति है जो उन्हें पूर्व की अन्य सरकारों से अलग स्थान देती है। भ्रष्टाचार, काला धन, आतंकवाद और नकली नोटों से लड़ने के लिए उनके ऐतिहासिक फैसलों ने जनता में एक विश्वास जगाया है, एक नयी शुरुआत हुई है-यही इस सरकार की तीन साल की सफलता भी कही जा सकती है। भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ छिड़ी जंग में आम नागरिकों का हौसला बढ़ाने के लिए इस सरकार ने जो ऐतिहासिक कदम उठाये हैं और पिछले तीन साल के कार्यकाल में 1 लाख 25 हजार करोड़ का काला धन उजागर किया- एक शुभ घटना कही जा सकती है। किंतु साथ ही साथ कुछ विरोधाभास भी देखने को मिल रहे हैं। भाजपा शासित राज्यों से आते गंभीर आरोपों की अनदेखी कर केवल विपक्ष पर ही भ्रष्टाचार की जंग केंद्रित करना विडम्बनापूर्ण है। संक्षेप में, सत्ता के तीन साल पूरे करने के अवसर पर भाजपा के लिए आत्मावलोकन हेतु बहुत कुछ है। इस देश के कई लोगों के मन में एक सवाल है कि क्या यह मौका जश्न के काबिल भी है?
मोदी का भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़ना इतना आसान नहीं था, पर उन्होंने यह जंग लड़ी और पूरे मन से लड़ी, जैसे-जैसे यह जंग सफलता की ओर बढ़ी, वैसे-वैसे मेरे मन में एक शंका जोर पकड़ती गयी कि एक शुभ शुरुआत का अंत कहीं बेअसर न हो जाए? मेरी यह शंका बेवजह भी नहीं है, क्योंकि यह जंग उन भ्रष्टाचारियों से हैं जो एक बड़ी ताकत बन चुके हैं। असल में भ्रष्टाचार से लड़ना एक बड़ी चुनौती है और मोदी ने उसके विरुद्ध जन-समर्थन तैयार किया है, सभी गैर-राजनीतिक एवं राजनीतिक शक्तियों से जितना सहयोग अपेक्षित है, उतना मिल नहीं पा रहा है। सबसे अधिक चुनौती तो प्रशासन से ही मिल रही है, स्वयं के लोगों से मिल रही है। नोटबंदी के कारण एक नया भ्रष्टाचार और पनपा, जिसमें बैंकें शामिल हो गयी और सी.ए. लोगों ने रातोंरात चांदी की। जबकि असल में यह लड़ाई केवल मोदी की नहीं, एक अरब तीस करोड़ जनता के हितों की लड़ाई है, जिसे हर व्यक्ति को लड़ना होगा। ‘वही हारा जो लड़ा नहीं’- अब अगर हम नहीं लड़े तो भ्रष्टाचार की आग हर घर को स्वाहा कर देगी।
नेहरू से मोदी तक की सत्ता-पालकी की यात्रा, लोहिया से मल्लिकार्जुन खडगे तक का विपक्षी किरदार, पटेल से राजनाथ सिंह तक ही गृह स्थिति, हरिदास से हसन अली तक के घोटालों की साईज। बैलगाड़ी से मारुति, धोती से जीन्स, देसी घी से पाम-आॅयल, लस्सी से पेप्सी और वंदे मातरम् से शीला-मुन्नी तक होना हमारी संस्कृति का अवमूल्यन- ये सब भारत हैं। हमारी कहानी अपनी जुबानी कह रहे हैं। लेकिन रास्ता भी इन्हीं विपरीत स्थितियों में से निकालना होगा।
देश के विकास को केवल राजनीतिज्ञों के भरोसे छोड़ देने का नतीजा है भ्रष्टाचार एवं विकास का अवरुद्ध होेना। जबकि हमारे साथ या बाद में आजाद हुए देशों की प्रगति अनेक क्षेत्रों में हमसे अधिक बेहतर है, बावजूद इसके कि संसाधनों व दिमागों की हमारे पास कमी नहीं है। आज भी ऐसे लोग हैं जो न विधायक हैं, न सांसद, न मंत्री, पर वे तटस्थ व न्यायोचित दृष्टिकोणों से अपनी प्रबुद्धता व चरित्र के बल पर राष्ट्र के व्यापक हित में अपनी राय व्यक्त करते हैं। आवश्यकता भी है कि ऐसे साफ दिमागी, साफ गिरेबान के लोगों का समूह आगे आए और इन रंग चढ़े हुए राजनीतिज्ञों एवं भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे नौकरशाहों एवं सत्ताधारियों के लिए आईना बने। अपने चेहरे की झुर्रियां, रोज-रोज चेहरे पर फिरने वाले हाथों को महसूस नहीं होती, पर आईना उन्हें दिखा देता है। भ्रष्टाचार के खात्मे के लिये कोई हांगकांग आदर्श उदाहरण प्रस्तुत कर सकता है या कोई श्रीधरण मेट्रो का जाल बिछा सकता है तो कोई नेतृत्व या शक्ति क्यों नहीं भ्रष्टाचार का सफाया करने के लिये खड़ी की जा सकती है। लेकिन इसके लिये जरूरी है भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एक नयी राजनीतिक शक्ति को संगठित करने की।
हर राष्ट्र के सामने चाहे वह कितना ही समद्ध हो, विकसित हो, कोई न कोई चुनौती रहती है। चुनौतियों का सामना करना ही किसी राष्ट्र की जीवन्तता का परिचायक है। चुनौती नहीं तो राष्ट्र सो जायेगा। नेतृत्व निष्क्रिय हो जायेगा। चुनौतियां अगर हमारी नियति है, तो उसे स्वीकारना और मुकाबला करना हमें सीखना ही होगा और इसके लिये हर व्यक्ति को मोदी बनना होगा।
हमारे राष्ट्र के सामने अनैतिकता, महंगाई, बढ़ती जनसंख्या, प्रदूषण, आर्थिक अपराध आदि बहुत सी बड़ी चुनौतियां पहले से ही हैं, उनके साथ भ्रष्टाचार सबसे बड़ी चुनौती बनकर आयी है। राष्ट्र के लोगों के मन में भय, आशंका एवं असुरक्षा की भावना घर कर गयी है। कोई भी व्यक्ति, प्रसंग, अवसर अगर राष्ट्र को एक दिन के लिए ही आशावान बना देते हैं तो वह महत्वपूर्ण हैं। इस दृष्टि से मोदी के निर्णय एवं मंशा में कहीं कोई खोट नजर नहीं आती। क्योंकि निराशा और भय की लम्बी रात की काली छाया के बाद एक उजली सुबह देने का उन्होंने प्रयास किया है। वैसे मनमोहन सिंह पारदर्शी एवं वित्त विशेषज्ञ ही नहीं बल्कि कुशल राजनेता बन गये थे। वे ‘जैसा चलता है, वैसे चलता रहे’ में विश्वास रखते थे, इसी कारण भ्रष्टाचार का अंधेरा सर्वत्र व्याप्त हो गया। उन्हें इस बात को समझना चाहिए था कि वे देश के प्रधानमंत्री है, राष्ट्र के हितों की रक्षा उनका पहला दायित्व है। उन्होंने टू-जी स्पैक्ट्रम घोटाले पर शुरू में लीपापोती की, थामस की सीवीसी पद पर नियुक्ति का जमकर बचाव किया, खेलों में भ्रष्टाचार को नजरअंदाज किया। ऐसा बहुत कुछ कहा जिससे साबित हुआ कि वह काजल की कोठरी में रहते हुए खुद अपने को और अपनी सरकार के कपड़ों को पूरी तरह धवल दिखाना चाहते हैं और ऐसा करते हुए वे देश की आत्मा को तार-तार करते रहे। देश की अस्मिता एवं अस्तित्व को दागदार बनाते रहे। बर्फ की शिला खुद तो पिघल जाती है पर नदी के प्रवाह को रोक देती है। बाढ़ और विनाश का कारण बन जाती है। इन श्रीहीन स्थितियों पर नियंत्रण के लिये मोदी सरकार ने जो प्रयत्न किये है, उनकी तारीफ होनी ही चाहिए। क्योंकि उनके प्रयत्नों से आज हमारा राष्ट्र नैतिक, आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक सभी क्षेत्रों में सुदृढ़ बन रहा है। और हमारा नेतृत्व गौरवशाली परम्परा, विकास और हर भ्रष्टाचारमूलक खतरों से मुकाबला करने में सक्षम साबित हो रहा है। भले ही उनके सामने अनेक चुनौतियां खड़ी है।
नदी में गिरी बर्फ की शिला को गलना है, ठीक उसी प्रकार उन बाधक तत्वों को भी एक न एक दिन हटना है। यह स्वीकृत सत्य है कि जब कल नहीं रहा तो आज भी नहीं रहेगा। उजाला नहीं रहा तो अंधेरा भी नहीं रहेगा। कभी गांधी लड़ा तो कभी जयप्रकाश नारायण ने मोर्चा संभाला, अब यह चुनौती मोदी ने झेली है तो उसे अंजाम तक पहुंचाएं और इसकी पहली शर्त है वे गांधी बने। वह गांधी जिसे कोई राजनीतिक ताप सेक न सका, कोई पुरस्कार उसका मूल्यांकन न कर सका, कोई स्वार्थ डिगा न सका, कोई लोभ भ्रष्ट न कर सका।
भ्रष्टाचार आयात भी होता है और निर्यात भी होता है। पर इससे मुकाबला करने का मनोबल हृदय से उपजता है। आज आवश्यकता केवल एक होने की ही नहीं है, आवश्यकता केवल चुनौतियों को समझने की ही नहीं है, आवश्यकता है कि हमारा मनोबल दृढ़ हो, चुनौतियों का सामना करने के लिए हम ईमानदार हों और अपने स्वार्थ को नहीं परार्थ और राष्ट्रहित को अधिमान दें। अन्यथा कमजोर और घायल राष्ट्र को खतरे सदैव घेरे रहेंगे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,025 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress