कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म वर्त-त्यौहार धरती के माथे का तिलक गोवर्धन, जहाँ ईश्वर ने विनम्रता सिखाई October 21, 2025 / October 21, 2025 by उमेश कुमार साहू | Leave a Comment भारतीय संस्कृति में पर्व केवल तिथियों के अनुसार मनाए जाने वाले उत्सव नहीं, बल्कि जीवन और प्रकृति के संतुलन को समझाने वाले अध्याय हैं। ऐसा ही एक दिव्य पर्व है – गोवर्धन पूजा, जिसे अन्नकूट भी कहा जाता है। यह दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है, जब सम्पूर्ण व्रज भूमि में श्रद्धा, भक्ति और उत्साह का अद्भुत संगम दिखाई देता है। परंतु इस पर्व का रहस्य केवल पूजा या परंपरा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानव-जीवन के अहंकार, विनम्रता, प्रकृति और भगवान के साथ सामंजस्य का गूढ़ संदेश देता है। अहंकार के गर्व को तोड़ने वाली लीला प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, जब इंद्र के मन में अपनी देवत्व-शक्ति का अहंकार अत्यधिक बढ़ गया, तो उन्होंने वर्षा के नियंत्रण को अपनी व्यक्तिगत सत्ता समझ लिया। वे भूल गए कि वर्षा भी उसी परम ब्रह्म की व्यवस्था का एक अंश है। उसी समय बालरूप श्रीकृष्ण ने व्रजवासियों को समझाया कि “हम सबका पोषण इंद्र नहीं, प्रकृति करती है – यह गोवर्धन पर्वत, यह गायें, यह वन-भूमि।” इंद्र-यज्ञ को रोककर उन्होंने व्रजवासियों से कहा कि वे इस पर्वत का पूजन करें, क्योंकि यह हमारी अन्नदात्री धरती का प्रतीक है। जब इंद्र को यह बात अहंकारजन्य लगी, तो उन्होंने प्रलयकारी वर्षा से गोकुल को डुबाने का प्रयास किया। परंतु वही बालक श्रीकृष्ण सात दिनों तक अपनी कनिष्ठा अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाए खड़े रहे, और समस्त व्रज की रक्षा की। यह केवल चमत्कार नहीं था, बल्कि एक प्रतीकात्मक शिक्षा थी – जिसके भीतर श्रद्धा और करुणा का बल हो, उसके लिए प्रकृति भी सहायक बन जाती है। गोवर्धन की दिव्यता और प्रतीकात्मकता गोवर्धन केवल एक पर्वत नहीं, बल्कि जीवित चेतना का प्रतीक माना गया है। यह पर्वत धरती, जल, वायु और जीवन के संरक्षण का साक्षात् प्रतीक है। पुराणों में कहा गया है कि श्रीकृष्ण ने स्वयं को गोवर्धन के रूप में प्रकट कर यह दर्शाया कि ईश्वर प्रकृति में ही बसते हैं। गोवर्धन पूजा का अर्थ केवल पहाड़ की आराधना नहीं है, बल्कि प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना है। यह पर्व हमें यह स्मरण कराता है कि मनुष्य का अस्तित्व पृथ्वी और पर्यावरण के संरक्षण से ही संभव है। जब हम गोवर्धन की पूजा करते हैं, तो वस्तुतः हम अपने अन्न, जल, पशु, वनस्पति और पर्यावरण का सम्मान करते हैं। अन्नकूट का दार्शनिक अर्थ गोवर्धन पूजा के दिन व्रजवासी तरह-तरह के अन्न और पकवान बनाकर उन्हें पर्वत के प्रतीक रूप में सजाते हैं, इसे अन्नकूट कहा जाता है। यह केवल भोग नहीं, बल्कि “अन्न ही ब्रह्म है” की वेदवाणी का प्रत्यक्ष प्रदर्शन है। इस दिन मनुष्य अपने श्रम और प्रकृति की देन के प्रति आभार प्रकट करता है। अन्नकूट यह सिखाता है कि समृद्धि तब तक अर्थहीन है जब तक उसमें बाँटने की भावना न हो। श्रीकृष्ण ने जब सबके साथ बैठकर अन्न का सेवन किया, तो यह सामाजिक समरसता और समानता का अद्भुत उदाहरण बना। विनम्रता का पाठ इंद्र का अहंकार तब शांत हुआ जब उन्होंने देखा कि जिस ‘बालक’ को वे साधारण मानव समझते थे, वही परमात्मा स्वयं हैं। वे पश्चाताप से भर उठे और श्रीकृष्ण के चरणों में नतमस्तक हो गए। इस क्षण में देवता से भी बड़ा दर्शन छिपा है – जिस क्षण अहंकार मिटता है, वहीं सच्चा देवत्व प्रकट होता है। आज जब मानव अपने विज्ञान, सत्ता और संपत्ति के बल पर स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानने लगा है, तब गोवर्धन लीला यह याद दिलाती है कि अहंकार चाहे देवों में भी क्यों न हो, उसका पतन निश्चित है। गोवर्धन और आधुनिक संदर्भ यदि हम इस पर्व को आधुनिक दृष्टि से देखें, तो यह पर्यावरण चेतना का सबसे प्राचीन संदेश देता है। गोवर्धन पूजा बताती है कि मानव को केवल उपभोग नहीं, बल्कि संरक्षण का भाव रखना चाहिए। आज जब धरती जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और अंधाधुंध उपभोग से कराह रही है, तब श्रीकृष्ण की यह लीला हमें पुनः सिखाती है कि — “धरती की पूजा करना ही सबसे श्रेष्ठ धर्म है।” गोवर्धन पूजा में गायों की सेवा, अन्न का दान, वृक्षों का पूजन और पशुधन की रक्षा, ये सब प्रतीक हैं संतुलित जीवन के। गोप और गोकुल की आत्मा गोवर्धन पूजा केवल धर्म का पालन नहीं, बल्कि प्रेम और समुदाय की अभिव्यक्ति भी है। जिस प्रकार सभी व्रजवासी बच्चे, वृद्ध, नारी, पुरुष एक साथ खड़े होकर संकट का सामना करते हैं, वही समाज की एकता का सबसे सुंदर उदाहरण है। आज जब समाज में विभाजन और स्वार्थ की दीवारें ऊँची हो रही हैं, तब गोवर्धन पर्व यह संदेश देता है कि “एकता और सहयोग से ही ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है।” गिरिराज की पावन स्मृति व्रजभूमि में आज भी गोवर्धन पर्वत के परिक्रमा-पथ पर लाखों श्रद्धालु जाते हैं। कहा जाता है कि जहाँ-जहाँ श्रीकृष्ण का चरण पड़ा, वहाँ की मिट्टी भी तिलक बन जाती है। गिरिराज के चरणों में झुकना, वास्तव में स्वयं के अहंकार को मिटाना है। गोवर्धन का प्रत्येक कंकड़ हमें यह सिखाता है कि जो झुकता है, वही ऊँचा उठता है। गोवर्धन का शाश्वत संदेश गोवर्धन पूजा केवल पौराणिक कथा नहीं, बल्कि आत्मबोध का उत्सव है। यह हमें सिखाता है – · अहंकार का अंत ही दिव्यता की शुरुआत है। · प्रकृति का सम्मान ही सच्ची पूजा है। · समरसता और सहयोग ही जीवन का आधार हैं। जब-जब मानव अपने सीमित अस्तित्व को ईश्वर से बड़ा समझने लगेगा, तब-तब कोई न कोई श्रीकृष्ण उसे उसकी मर्यादा का स्मरण कराएगा। गोवर्धन पर्व इस बात का प्रतीक है कि ईश्वर हमारे बाहर नहीं, हमारे भीतर की विनम्रता और प्रेम में निवास करते हैं। और शायद यही कारण है कि यह पर्व दीपोत्सव के अगले दिन आता है, क्योंकि अहंकार के अंधकार के बाद ही भक्ति का प्रकाश फैलता है। उमेश कुमार साहू Read more » गोवर्धन पूजा
धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार अन्नकूट पर्व के दिन गौपूजा का है विशेष महत्व October 21, 2025 / October 21, 2025 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment गोवर्धन पूजा / अन्नकूट पर्व (22 अक्तूबर) पर विशेष– योगेश कुमार गोयलहिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल प्रतिपदा को अर्थात् दीवाली के अगले दिन ‘अन्नकूट पर्व’ मनाया जाता है, जिसे ‘गोवर्धन पूजा’ के नाम से भी जाना जाता है। पांचदिवसीय दीवाली पर्व की शुरूआत धनतेरस से होती है और चौथे दिन कार्तिक माह […] Read more » गौपूजा
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार भाई-बहन को समर्पित अनूठा, ऐतिहासिक एवं संवेदनात्मक त्यौहार October 21, 2025 / October 21, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment भाई दूज- 23 अक्टूूबर, 2025-ललित गर्ग-भ्रातृ द्वितीया (भाई दूज) कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक पर्व है जिसे यम द्वितीया भी कहते हैं। यह दीपावली के दो दिन बाद आने वाला ऐसा पर्व है, जो भाई के प्रति बहन के स्नेह को […] Read more » भाई दूज
धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार दीपावली : सभ्यता की स्मृति में जलता हुआ ज्ञानदीप October 19, 2025 / October 19, 2025 by उमेश कुमार साहू | Leave a Comment उमेश कुमार साहू भारत की संस्कृति में पर्व केवल तिथियाँ नहीं होते, वे जीवन के सूत्र हैं, जो समय की धारा में मनुष्य की चेतना को प्रकाशित करते हैं। इन्हीं में दीपावली, वह अनोखा पर्व है जो प्रकाश से अधिक ‘अर्थ’ का उत्सव है। यह केवल दीप जलाने का नहीं, ‘अंधकार से संवाद’ करने का […] Read more » दीपावली
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार लक्ष्मी संग गणेश-सरस्वती पूजन का अर्थ October 19, 2025 / October 19, 2025 by डा. विनोद बब्बर | Leave a Comment डा. विनोद बब्बर प्रकाश पर्व है पर न जाने कब से लक्ष्मी, गणेश, सरस्वती की पूजा का प्रचलन है। हम सभी ने हजारों बार उस चित्र को देखा होगा जिसके बीच में लक्ष्मी है तो एक ओर गणेश जी तो दूसरी ओर सरस्वती। क्या कभी यह सोचने का समय मिला कि आखिर प्रकाश पर्व पर […] Read more » Meaning of worshipping Ganesha-Saraswati along with Lakshmi
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म वर्त-त्यौहार लक्ष्मी के रूप में समाई प्रकृति October 19, 2025 / October 19, 2025 by प्रमोद भार्गव | Leave a Comment प्रमोद भार्गवसमुद्र-मंथन के दौरान जिस स्थल से कल्पवृक्ष और अप्सराएं मिलीं, उसी के निकट से महालक्ष्मी मिलीं। ये लक्ष्मी अनुपम सुंदरी थीं, इसलिए इन्हें भगवती लक्ष्मी कहा गया है। श्रीमद् भागवत में लिखा है कि ‘अनिंद्य सुंदरी लक्ष्मी ने अपने सौंदर्य, औदार्य, यौवन, रंग, रूप और महिमा से सबका चित्त अपनी ओर खींच लिया।‘ देव-असुर सभी ने गुहार लगाई कि लक्ष्मी हमें मिलें। […] Read more » Nature in the form of Lakshmi लक्ष्मी के रूप में समाई प्रकृति
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार समृद्ध राष्ट्र की कहानी कहते भारत के लक्ष्मी मंदिर October 19, 2025 / October 19, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment भारत के विभिन्न कोनों में फैले ये मंदिर, दक्षिण से उत्तर तक, द्रविड़, नागर और चालुक्य शैलियों का प्रदर्शन करते हैं। इनकी स्थापना प्राचीन काल से चली आ रही है, जहां राजाओं, संतों और भक्तों ने इन्हें समृद्ध किया। दिवाली और नवरात्रि जैसे त्योहारों पर ये मंदिर भक्तों से पट जाते हैं, जहां प्रार्थना और उत्सव एक साथ फलते-फूलते हैं। Read more » अष्टलक्ष्मी गजलक्ष्मी पद्मावती भारत के लक्ष्मी मंदिर महालक्ष्मी
धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार भगवान धन्वंतरि की महिमा और आयुर्वेद का अमृत पर्व धनतेरस October 17, 2025 / October 17, 2025 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment धनतेरस (18 अक्तूबर) पर विशेषधनतेरस: अमृत कलश से आरंभ होता दीपोत्सव Read more » भगवान धन्वंतरि
धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार धनतेरस: समृद्धि का नहीं, संवेदना का उत्सव October 17, 2025 / October 17, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment (आभूषणों से ज़्यादा मन का सौंदर्य जरूरी, मन की गरीबी है सबसे बड़ी दरिद्रता।) धनतेरस का अर्थ केवल ‘धन’ नहीं बल्कि ‘ध्यान’ भी है — ध्यान उस पर जो हमारे जीवन को सार्थक बनाता है। यह त्योहार हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि समृद्धि का असली अर्थ क्या है। अगर घर में प्रेम […] Read more » Dhanteras: A celebration of compassion धनतेरस
धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार भारत में पहली दीपावली कब और कैसे मनाई गई ? October 17, 2025 / October 17, 2025 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment आत्माराम यादव पीव वरिष्ठ पत्रकार दीपोत्सव पर्व प्रथम बार कब,कैसे और कंहा प्रारम्भ हुआ ? इसका उल्लेख किसी पुराण या शास्त्र में अधिकारिता के साथ अभिव्यक्त नहीं किया गया है, किन्तु प्रथम दीपावली दैत्यराज हिरण्याक्ष के अत्याचार, रक्तपात, लूटमार आदि से पीड़ित प्रजा को शूकररूपधारी विष्णु के वराह अवतार द्वारा दिलाई […] Read more » When and how was the first Diwali celebrated in India भारत में पहली दीपावली कब
धर्म-अध्यात्म वर्त-त्यौहार धनतेरस धन के भौतिक एवं आध्यात्मिक समन्वय का पर्व October 17, 2025 / October 17, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment धनतेरस- 18 अक्टूबर, 2025-ललित गर्ग-धनतेरस का पर्व पंच दिवसीय दीपोत्सव की पवित्र श्रृंखला का आरंभिक द्वार है। यह केवल सोना-चांदी, वस्त्र या बर्तन खरीदने का शुभ दिन नहीं, बल्कि धन के प्रति हमारी सोच को पुनर्संतुलित करने का अवसर है। भारतीय संस्कृति में धन को सदैव देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है, परंतु यह […] Read more »
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म रंगोली बिना सुनी है हर घर की दीपावली October 17, 2025 / October 17, 2025 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment आत्माराम यादव पीव दीपावली पर रंगोली के बिना घर आँगन सुना समझा जाता है। जब रंगोली सज जाती है तब उस रंगोली के बीच तेल- घी का दीपक अंधकार को मिटाता एक संदेश देता है वही आज रंगोली के बीच पटाखे छोडने को लोग शुभ मानते है । पौराणिक या प्राचीन इतिहास मे मनुष्य ने लोक […] Read more »