चिंतन धर्म-अध्यात्म ईश्वर और जीवात्मा का परस्पर सम्बन्ध July 4, 2016 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment मनमोहन कुमार आर्य हम अनुभव करते हैं कि यह विषय मनुष्यों के विचार करने व जानने हेतु उत्तम विषय है। यह तो हम जानते ही हैं कि ईश्वर इस सृष्टि का कर्ता व रचयिता है व इसका तथा प्राणी जगत का पालन करता है। यह भी जानते हैं कि जब इस सृष्टि की अवधि पूरी […] Read more » ईश्वर और जीवात्मा ईश्वर और जीवात्मा का परस्पर सम्बन्ध
धर्म-अध्यात्म जन्म से पूर्व अतीत व भविष्य से अनभिज्ञ मनुष्य को केवल ईश्वर का ही आधार July 2, 2016 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment मनमोहन कुमार आर्य संसार में दो प्रकार की सत्तायें हैं, एक चेतन व दूसरी जड़। यह समस्त सृष्टि जिसमें हमारा सौर्य मण्डल सहित असंख्य ग्रह, उपग्रह, नक्षत्र व आकाश गंगायें आदि रचनायें विद्यमान हैं, वह सभी जड़ सत्ता ‘प्रकृति’ के विकार से बनी है। सृष्टिगत सभी जड़ पदार्थ त्रिगुणात्मक सत्व, रज व तम गुणों वाली […] Read more » ईश्वर
धर्म-अध्यात्म संस्कार विधि में ऋषि दयानन्द के कुछ मन्तव्यों पर पं. युधिष्ठिर मीमांसक जी के विचार July 1, 2016 / July 1, 2016 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment मनमोहन कुमार आर्य ऋषि दयानन्द सरस्वती ने आर्यसमाज की स्थापना 10 अप्रैल, सन् 1875 को मुम्बई में की थी। 41 वर्ष पूर्व दिसम्बर, सन् 1975 में आर्यसमाज की स्थापना शताब्दी दिल्ली के रामलीला मैदान में एक भव्य समारोह आयोजित कर मनाई गई थी जिसमें हमने भी अपने युवा मित्रों एवं स्थानीय समाज के लोगों के […] Read more » संस्कार विधि संस्कार विधि में ऋषि दयानन्द के कुछ मन्तव्य
धर्म-अध्यात्म महत्वपूर्ण लेख तुलसी का पौराणिक व औषधि जनित महत्व June 28, 2016 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | Leave a Comment डा. राधेश्याम द्विवेदी धार्मिक महत्व:- तुलसी के ऊपर एक पृथक पुराण लिखा जा सकता है, संक्षेप में तुलसी का धार्मिक सांस्कृतिक व औषधि जनित महत्व बताने की कोशिश कर रहा हूँ । विष्णु पुराण, ब्रह्म-पुराण, स्कन्द-पुराण, देवी भागवत पुराण के अनुसार तुलसी की उत्पति की अनेक कथाएँ हैं, पर एक कथा के अनुसार- समुन्द्र-मंथन करते […] Read more » Featured medicinal importance of tulsi तुलसी तुलसी का औषधि जनित महत्व तुलसी का पौराणिक
धर्म-अध्यात्म जनवरी, 1877 का अंग्रेजों का दिल्ली दरबार और महर्षि दयानन्द June 27, 2016 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment -मनमोहन कुमार आर्य महर्षि दयानन्द के जीवन में दिल्ली दरबार की घटना का विशेष महत्व है। इस दिल्ली दरबार के अवसर पर महर्षि दयानन्द ने वहां अपना एक शिविर लगाया था और दरबार में पधारे कुछ विशेष व्यक्तियों को पत्र लिखकर अपने शिविर में आमंत्रित किया था जिससे देश व मनुष्योन्नति की योजना पर विचार […] Read more » अंग्रेजों का दिल्ली दरबार महर्षि दयानन्द
धर्म-अध्यात्म अपवित्र जीवात्मा पवित्र ईश्वर का साक्षात्कार नहीं कर पाती June 22, 2016 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment मनमोहन कुमार आर्य ईश्वर व जीवात्मा दो पृथक पृथक चेतन सत्तायें हैं। दोनों ही अनादि, नित्य, अनुत्पन्न, अविनाशी, अमर, ज्ञान व कर्म करने की शक्ति से युक्त सत्तायें हैं। दोनों के स्वरूप में कुछ समानतायें और कुछ भिन्नतायें भी है। ईश्वर आकाश के समान सर्वव्यापक है तो जीवात्मा एकदेशी है। ईश्वर और जीवात्मा का व्याप्य-व्यापक […] Read more » अपवित्र जीवात्मा ईश्वर ईश्वर का साक्षात्कार पवित्र ईश्वर साक्षात्कार
धर्म-अध्यात्म मृत्यु के समय मनुष्य का अन्तिम वेदोक्त का कर्तव्य June 19, 2016 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment मनमोहन कुमार आर्य यजुर्वेद मन्त्र संख्या 40/15 और ऋषि दयानन्द भक्त स्वामी अच्युतानन्द सरस्वती कृत इस मन्त्र के पदों का अर्थः वायुरनिलममृतमथेदं भस्मान्तंशरीरम्। ओ३म् क्रतो स्मर क्लिबे स्मर कृतंस्मर।। मन्त्र का पदार्थः- हे (क्रतो) कर्म कर्ता जीव ! शरीर छूटते समय तू (ओ३म्) इस मुख्य नाम वाले परमेश्वर का (स्मर) स्मरण कर। (क्लिबे) सामर्थ्य के […] Read more » मनुष्य का अन्तिम वेदोक्त का कर्तव्य
धर्म-अध्यात्म मांसाहार और मनुस्मृति June 16, 2016 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment मनमोहन कुमार आर्य प्राचीन काल में भारत में मांसाहार नहीं होता था। महाभारतकाल तक भारत की व्यवस्था ऋषि मुनियों की सम्मति से वेद निर्दिष्ट नियमों से राजा की नियुक्ति होकर चली जिसमें मांसाहार सर्वथा वर्जित था। महाभारतकाल के बाद स्थिति में परिवर्तन आया। ऋषि तुल्य ज्ञानी मनुष्य होना समाप्त हो गये। ऋषि जैमिनी पर आकर […] Read more » मनुस्मृति मांसाहार
धर्म-अध्यात्म सार्वभौम मानव धर्म का स्वरूप June 16, 2016 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment मनमोहन कुमार आर्य संसार में कुछ सहस्र वर्ष पूर्व कई महापुरुषों द्वारा चलाये गये अनेक मत, पन्थ व सम्प्रदाय अस्तित्व में हैं जो अपने आपको धर्म की संज्ञा देते हैं। क्या कोई मनुष्य व महापुरुष बिना किसी पूर्व धर्म व मत की सहायता के कोई नया मत व पन्थ चला सकता है? इसका उत्तर न […] Read more » मानव धर्म सार्वभौम
धर्म-अध्यात्म आर्यसमाज के यशस्वी विद्वान एवं उपदेशक पण्डित धर्मपाल शास्त्री June 2, 2016 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment मनमोहन कुमार आर्य देहरादून के एक गुरुकुल श्रीमद् दयानन्द आर्ष ज्योतिमठ गुरुकुल के वार्षिकोत्सव के अवसर पर 31 मई, 2015 को अपने पुराने परिचित आर्य विद्वान श्री धर्मपाल शास्त्री जी से हमारी भेंट हुई। 84 वर्षीय श्री धर्मपाल जी वर्षों पूर्व देहरादून में आर्यसमाज के पुरोहित रहे हैं। यद्यपि सन् 1970 में इन पंक्तियों क […] Read more » आर्यसमाज उपदेशक पण्डित धर्मपाल शास्त्री यशस्वी
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म प्राचीन कालीन शैव अर्थात पाशुपत सम्प्रदाय May 29, 2016 by अशोक “प्रवृद्ध” | Leave a Comment (जीव पशु एवं शिव हैं पति) -अशोक “प्रवृद्ध” प्राचीन काल में मूल शैव सम्प्रदाय पाशुपत सम्प्रदाय कहलाता था। वे शिव को ही कर्ता- धर्ता समझते थे। इस मत के मानने वाले शिव को पति मानते थे और जीव को पशु। शिवजी पशुओं के पति हैं ऐसा उनको विश्वास है। शिवजी ही उन्हें इस संसार के […] Read more » पाशुपत सम्प्रदाय शैव
धर्म-अध्यात्म विष्णुलाल शर्मा द्वारा ऋषि दयानन्द के दर्शन का वृतान्त May 28, 2016 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment . पं. विष्णुलाल शर्मा उत्तर प्रदेश में अवकाश प्राप्त सब जज रहे। स्वामी दयानन्द जब बरेली आये तब वहां 11 वर्ष की अवस्था में पं. विष्णुलाल शर्मा जी ने उनके दर्शन किए थे। उन्होंने इसका जो प्रमाणित विवरण स्वस्मृति से लेखबद्ध किया उसका वर्णन कर रहे हैं। वह लिखते हैं कि श्री स्वामी दयानन्द जी […] Read more » ऋषि दयानन्द विष्णुलाल शर्मा