धर्म-अध्यात्म ‘महर्षि दयानंद एवं गुरुकुल शिक्षा प्रणाली’ August 6, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment महर्षि दयानन्द सरस्वती (1825-1883) ने प्रज्ञाचक्षु दण्डी गुरू स्वामी विरजानन्द सरस्वती, मथुरा से वैदिक आर्ष व्याकरण एवं वैदिक शास्त्रों का अध्ययन कर देश व संसार से अविद्या हटाने के लिए ईश्वरीय ज्ञान वेदों का प्रचार किया। उनके वेद प्रचार आन्दोलन का देश और समाज पर ही नहीं अपितु विश्व पर व्यापक प्रभाव पड़ा। वह […] Read more » ‘महर्षि दयानंद .गुरुकुल शिक्षा प्रणाली’
धर्म-अध्यात्म झारखण्ड के रामगढ़ का टूटी झरना शिवमंदिर August 6, 2015 by अशोक “प्रवृद्ध” | 1 Comment on झारखण्ड के रामगढ़ का टूटी झरना शिवमंदिर शिव की शक्ति और गंगा की भक्ति की अनूठी तस्वीर प्रस्तुत करता झारखण्ड के रामगढ़ का टूटी झरना शिवमंदिर -अशोक “प्रवृद्ध” भारतीय पौराणिक इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण कथा गंगावतरण, जिसके द्वारा भारतवर्ष की धरती पवित्र हुई, में इक्ष्वाकु वंशीय दिलीप के पुत्र भगीरथ की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने गंगा की धारा […] Read more » झारखण्ड के रामगढ़ का टूटी झरना शिवमंदिर
धर्म-अध्यात्म विविधा दक्षिण भारत के संत (14) सन्त कुलशेखर अलवार August 6, 2015 by बी एन गोयल | Leave a Comment बी एन गोयल “हे भगवन मैं कब आप के दिव्य दर्शन कर सकूँगा। हे प्रभु राम, मैं अशांत हूँ । मुझे कब आप का अनुग्रह मिलेगा। मेरा मन भटकता रहता है। मैं कब इसे आप के चरण कमलों में लगा सकूँगा। मेरे मन में कब आप के प्रति निष्ठा जागेगी । मुझे कब आप […] Read more » दक्षिण भारत के संत सन्त कुलशेखर अलवार
धर्म-अध्यात्म जप व ध्यान से जीवात्मा के भीतर ही ईश्वर का प्रत्यक्ष होता है। August 5, 2015 by मनमोहन आर्य | 1 Comment on जप व ध्यान से जीवात्मा के भीतर ही ईश्वर का प्रत्यक्ष होता है। ईश्वर को जानना व प्राप्त करना दो अलग-अलग बातें हैं। वेदों व वैदिक सहित्य में ईश्वर का ज्ञान व उसकी प्राप्ति के साधन बताये गये हैं। पहले ईश्वर के स्वरूप को जान लेते हैं और उसके बाद उपासना आदि साधनों पर चर्चा करेंगे। वेदों का स्वाध्याय साधारण अशिक्षित व अल्पशिक्षित मनुष्यों के लिए कुछ […] Read more » ईश्वर का प्रत्यक्ष होता है। जप व ध्यान से जीवात्मा के भीतर
धर्म-अध्यात्म वैदिक धर्म व संस्कृति का उद्धारक, रक्षक व प्रचारक सत्यार्थ प्रकाश August 4, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment संसार में समस्त धार्मिक ग्रन्थों में वेद के बाद सत्यार्थप्रकाश का प्रमुख स्थान है। इसका कारण इन दोनों ग्रन्थों का मनुष्य जीवन के लिए सर्वोपरि महत्व है। वेद ईश्वर प्रदत्त अध्यात्म व सांसारिक ज्ञान है। यह बताना आवश्यक है कि सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, निराकार, सर्वान्तर्यामी ईश्वर ने सृष्टि के आरम्भ में अमैथुनी सृष्टि कर […] Read more » रक्षक व प्रचारक सत्यार्थ प्रकाश वैदिक धर्म व संस्कृति का उद्धारक
धर्म-अध्यात्म सर्वव्यापक व सदा अवतरित होने से ईश्वर का अवतार नहीं होता August 3, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment मनमोहन कुमार आर्य भारत में मूर्तिपूजा का प्रचलन बौद्ध व जैन मत से आरम्भ हुआ है। बौद्ध मत के बढ़ते प्रभाव व वैदिक धर्म में ऋषियों व आप्त पुरूषों की कमी व अभाव के कारण अज्ञानता के कारण मूर्तिपूजा प्रचलन में आई है। रामायण एवं महाभारत काल में भारत में मूर्तिपूजा का प्रचलन नहीं था। […] Read more » ईश्वर का अवतार
धर्म-अध्यात्म ‘सब सत्य विद्याओं का दाता व अपौरूषेय पदार्थों का रचयिता परमेश्वर है’ August 3, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment जीवन में जानने योग्य कुछ प्रमुख सूत्रों की यदि चर्चा करें तो इनमें प्रथम ‘सब सत्य विद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं, उनका सब का आदि मूल परमेश्वर है’ सिद्धान्त को सम्मलित किया जा सकता है। इस सिद्धान्त का संसार में जितना प्रचार अपेक्षित है, उतना नहीं हुआ। यह सूत्र महर्षि […] Read more » ‘सब सत्य विद्याओं का दाता अपौरूषेय पदार्थों का रचयिता परमेश्वर है’
धर्म-अध्यात्म त्रिकालदर्शी हमारा प्राण प्रिय ईश्वर August 1, 2015 by मनमोहन आर्य | 2 Comments on त्रिकालदर्शी हमारा प्राण प्रिय ईश्वर हम अल्पज्ञ जीवात्मा हैं इस कारण हमारा ज्ञान अल्प होता है। ईश्वर जिसने इस सृष्टि को बनाया व इसका संचालन कर रहा है, वह हमारी तरह अल्पज्ञ नहीं अपितु सर्वज्ञ है। सर्वज्ञ का अर्थ होता है कि जिसे सब प्रकार का पूर्ण ज्ञान हो। जो अतीत के बारे में भी जानता हो, वर्तमान के बारे […] Read more »
धर्म-अध्यात्म शख्सियत समाज दक्षिण भारत के संत (13) सन्त माधवाचार्य (द्वैत सम्प्रदाय) July 31, 2015 by बी एन गोयल | 5 Comments on दक्षिण भारत के संत (13) सन्त माधवाचार्य (द्वैत सम्प्रदाय) बी एन गोयल राम मंत्र निज कर्ण सुनावा । परंपरा पुनि तत्व लखावा संप्रदाय विधि मूल प्रधाना । अधिकारी तहां महं हनुमाना । मध्य रूप सोई अवतरिया । मत अभेद जिन खंडन करिया॥ (नृत्य राघव मिलन – पृ0 45, रामसखे) ये पंक्तियाँ भक्त राम सखे की कृति ‘नृत्य राघव मिलन’ से हैं। भगवान […] Read more » दक्षिण भारत के संत द्वैत सम्प्रदाय सन्त माधवाचार्य
धर्म-अध्यात्म मैं ब्रह्म नहीं अपितु एक जीवात्मा हूं July 29, 2015 by मनमोहन आर्य | 4 Comments on मैं ब्रह्म नहीं अपितु एक जीवात्मा हूं मैं कौन हूं? यह प्रश्न कभी न कभी हम सबके जीवन में उत्पन्न होता है। कुछ उत्तर न सूझने के कारण व अन्य विषयों में मन के व्यस्त हो जाने के कारण हम इसकी उपेक्षा कर विस्मृत कर देते हैं। हमें विद्यालयों में जो कुछ पढ़ाया जाता है, उसमें भी यह विषय व इससे […] Read more » जीवात्मा हूं मैं ब्रह्म नहीं
धर्म-अध्यात्म समाज महर्षि दयानन्द का वर्णव्यवस्था पर ऐतिहासिक उपेदश July 29, 2015 by मनमोहन आर्य | 2 Comments on महर्षि दयानन्द का वर्णव्यवस्था पर ऐतिहासिक उपेदश आज से लगभग 140 वर्ष पूर्व हमारा समाज अज्ञान व अन्धकार से आवृत्त तथा रूढि़वादी परम्पराओं में जकड़ा हुआ था। सामाजिक विषमता अपने जटिलतम रूप में व्याप्त थी। ऐसे समय में महर्षि दयानन्द ने वेद एवं वैदिक साहित्य से समाज सुधार के क्रान्तिकारी विचारों व मान्यताओं को प्रस्तुत किया था। यह भी तथ्य है कि […] Read more » महर्षि दयानन्द वर्णव्यवस्था
धर्म-अध्यात्म योगेश्वर श्री कृष्ण, गीता एवं वेद July 27, 2015 by मनमोहन आर्य | 2 Comments on योगेश्वर श्री कृष्ण, गीता एवं वेद श्री कृष्ण योगेश्वर थे, महात्मा थे, महावीर, धर्मात्मा व सुदर्शनचक्रधारी थे। वह वेदभक्त, ईश्वरभक्त, देशभक्त, ऋषियो व योगियों के अनुगामी थे। पूज्यों की पूजा व अपूज्यों की अवहेलना व उपेक्षा के साथ उनको दण्डित करते थे। अन्यायकारियों के लिए वह साक्षात काल थे। उन्होंने अपना सारा जीवन वेद धर्म का पालन करके व्यतीत किया। […] Read more » गीता एवं वेद योगेश्वर श्री कृष्ण