धर्म-अध्यात्म श्रावणी मेला में साकार होता है शिव का विराट स्वरूप July 17, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -कुमार कृष्णन- शिवपुराण में भगवान भोले शंकर के महात्म्य की चर्चा करते हुए उल्लखित है कि जैसे नदियों में गंगा, सम्पूर्ण नदी में शोणभद्र, क्षमा में पृथ्वी, गहराई में समुद्र और समस्त ग्रहों में सूर्यदेव का विशिष्ट स्थान है, उसी प्रकार समस्त देवताओं में भगवान शिव श्रेष्ठ माने गये हैं। प्रत्येक वर्ष श्रावण के पावन […] Read more » भागवान शंकर भोलेनाथ शिव शिव का विराट स्वरूप श्रावणी मेला सावन
चिंतन भाषा की गरीबी: गरीबी उन्मूलन के लिए पहले भाषा की गरीबी हटानी पड़ेगी July 10, 2014 / July 11, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 2 Comments on भाषा की गरीबी: गरीबी उन्मूलन के लिए पहले भाषा की गरीबी हटानी पड़ेगी -विराट दिव्यकीर्ति- नरेंद्र मोदी सरकार ने हाल ही में ‘हिन्दी पहले’ का आग्रह क्या किया एक अच्छी खासी बहस शुरू हो गयी. आधुनकि भारत में भाषा का प्रश्न कई बार उठाया गया है. हिन्दी भाषी बहुसंख्यकों को लगता है कि यह स्वाभाविक है कि हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाना चाहिए. परन्तु भारत बहु-भाषा संपन्न देश […] Read more » गरीबी उन्मूलन भाषा भाषा की गरीबी
धर्म-अध्यात्म प्रासंगिकता हिन्दुत्व की May 30, 2014 / May 30, 2014 by अतुल तारे | Leave a Comment अतुल तारे हिन्दुत्व क्या है? आज के परिप्रेक्ष्य में हिन्दुत्व की प्रासंगिकता क्या है? यह प्रश्न अत्यंत महत्वपूर्ण है। एक सार्थक बहस, एक गंभीर विमर्श एवं सतत् चिंतन आज इस विषय पर समय की मांग है। परन्तु बावजूद इसके इन प्रश्नों को समझे बिना, इनके उत्तर को जानने की कोशिश किए बिना ही फिर एक […] Read more » प्रासंगिकता हिन्दुत्व की
धर्म-अध्यात्म शक्ति संगठन और समरसता के प्रतीक परशुराम जी May 2, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -रमेश शर्मा- भारतीय वाङमय में सबसे दीर्घजीवी चरित्र परशुराम जी का है। सतयुग के समापन से कलयुग के प्रारंभ तक उनका उल्लेख मिलता है। भारतीय इतिहास में इतना दीर्घजीवी चरित्र किसी का नहीं है। वे हमेशा निर्णायक और नियामक शाक्ति रहे। दुष्टों का दमन और सत-पुरूषों को संरक्षण उनके की चरित्र विषेशता है। उनका चरित्र […] Read more » Parshuram परशुराम
चिंतन चुनाव शासन और अनुशासन April 25, 2014 / April 25, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -विजय कुमार- चुनाव के इस दौर में सब ओर शासन की ही चर्चा है। कोई वर्तमान शासन को ‘कुशासन’ बताकर उसे बदलना चाहता है, तो कुछ उसे ‘सुशासन’ कहकर बनाये रखने के पक्षधर हैं। कुछ इस व्यवस्था को ही ‘दुःशासन’ मानकर इसे पूरी तरह बदलना चाहते हैं। यद्यपि इसके बदले वे कौन सी व्यवस्था लाएंगे, […] Read more » administration-and-discipline लोकसभा चुनाव शासन और अनुशासन
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म धर्मयुक्त अर्थोपार्जन से सर्वे भवन्तु सुखिन: April 24, 2014 / April 24, 2014 by कन्हैया झा | Leave a Comment -कन्हैया झा- आज से 5000 वर्ष पूर्व सिन्धु-घाटी सभ्यता के समृद्ध शहरों से मिस्र एवं फारस के शहरों से व्यापार होता था. इन शहरों के व्यापारियों को “पणि” कहा जाता था, जो संभवतः कालांतर में वणिक अथवा व्यापारी शब्द में परिवर्तित हुआ. शायद इन्हीं व्यापारियों के कारण भारत को “सोने की चिड़िया” भी कहा गया […] Read more » धर्मयुक्त अर्थोपार्जन सर्वे भवन्तु सुखिन:
चिंतन विविधा धर्म के नाम पर शोर का ‘अधर्म’ ? April 20, 2014 / April 20, 2014 by निर्मल रानी | 1 Comment on धर्म के नाम पर शोर का ‘अधर्म’ ? -निर्मल रानी- बेशक हम एक आज़ाद देश के आज़ाद नागरिक हैं। इस ‘आज़ादी’ के अंतर्गत हमारे संविधान ने हमें जहां तमाम ऐसे मौलिक अधिकार प्रदान किए हैं जिनसे हमें अपनी संपूर्ण स्वतंत्रता का एहसास हो सके, वहीं इसी आज़ादी के नाम पर तमाम बातें ऐसी भी देखी व सुनी जाती हैं जो हमें व हमारे समाज को […] Read more » 'irreligious' laud on the name of religion धर्म के नाम पर शोर का 'अधर्म' ?
धर्म-अध्यात्म ईश्वर की स्तुति-प्रार्थना-उपासना का आधार April 1, 2014 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment -मनमोहन कुमार आर्य- ईश्वर व जीवात्मा दोनों चेतन तत्व है। ईश्वर के पास आनन्द है। वह सदैव आनन्द से परिपूर्ण रहता है। उसमें कभी आनन्द की कमी नहीं आती। दुःखी होने व दुःख आने की तो कोई बात ही नहीं है। जीवात्मा चेतन तत्व होकर भी आनन्द से रहित है। आनन्द व सुख यह षब्द […] Read more » base of devotion ईश्वर की स्तुति-प्रार्थना-उपासना का आधार
धर्म-अध्यात्म ‘आर्य समाज और वैदिक धर्म’ March 27, 2014 / March 27, 2014 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment वैदिक धर्म की प्रचारक संस्था आर्य समाज की स्थापना दिवस पर -मनमोहन कुमार आर्य- किसी के पूछने पर जब हम स्वयं को आर्य समाजी कहते हैं तो वह हमें प्रचलित अनेक मतों व धर्मोंं में से एक विषिष्ट मत या धर्म का व्यक्ति समझता है। पूछने वाला हमें कहता है कि अच्छा तो आप आर्य […] Read more » ‘आर्य समाज और वैदिक धर्म’ Arya samaj and Ved
धर्म-अध्यात्म अपने ‘राष्ट्रीय-संकल्प’ के लिए प्राणाहुति देने वाला संयमराय March 18, 2014 / March 18, 2014 by राकेश कुमार आर्य | 2 Comments on अपने ‘राष्ट्रीय-संकल्प’ के लिए प्राणाहुति देने वाला संयमराय -राकेश कुमार आर्या- वेद ने राष्ट्र को गौमाता के समान पूजनीय और वंदनीय माना है। वेद का आदेश है कि मैं यह भूमि आर्यों को देता हूं। वेद ऐसा संदेश इसलिए दे रहा है कि वह संपूर्ण भूमंडल को ही आर्य बना देना चाहता है। परंतु संसार को आर्य बनाने से पूर्व वेद की दो […] Read more » Advantage of ved अपने 'राष्ट्रीय-संकल्प' के लिए प्राणाहुति देने वाला संयमराय
चिंतन मुआवजे के बदले अपमान क्यों? जबकि है अपमानकारी मुआवजे का स्थायी समाधान! March 13, 2014 by डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' | Leave a Comment -डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’- बलात्कारित स्त्री और मृतक की विधवा, बेटी या अन्य परिजनों को लोक सेवकों के आगे एक बार नहीं बार-बार न मात्र उपस्थित होना होता है, बल्कि गिड़गिड़ाना पड़ता है और इस दौरान कनिष्ठ लिपिक से लेकर विभागाध्यक्ष तक सबकी ओर से मुआवजा प्राप्त करने के लिये चक्कर काटने वालों से गैर-जरूरी […] Read more » insult in spite of compensation मुआवजे के बदले अपमान क्यों? जबकि है अपमानकारी मुआवजे का स्थायी समाधान!
चिंतन न्यायपालिका के सामाजिक आधार में विस्तार की जरूरत March 13, 2014 by देवेन्द्र कुमार | Leave a Comment -देवेन्द्र कुमार- भारत की सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था में न्यायपालिका को सामाजिक परिवर्तन के एक हथियार के रूप में देखा जाता रहा है और न्यायपालिका ने अपने कई महत्वपूर्ण फैसले के द्वारा सामाज को एक नई दिशा देने की कोशिश भी की है। बाबजूद इसके, न्यायपालिका का जो सामाजिक गठन रहा है, सामाज के जिस हिस्से, तबके […] Read more » judiciary needs social spread न्यायपालिका के सामाजिक आधार में विस्तार की जरूरत