आर्थिकी राजनीति विदेशी पूंजी निवेश और संसदीय गरिमा ? October 9, 2012 by प्रमोद भार्गव | 1 Comment on विदेशी पूंजी निवेश और संसदीय गरिमा ? प्रमोद भार्गव खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष पूंजी निवेश के विरोध की परवाह न करते हुए केंद्र सरकार ने आर्थिक सुधारों के बहाने निवेश के नए दरवाजे भी पूंजीपतियों के लिए खोल दिए। कैबिनेट द्वारा लिए नए फैसलों के तहत बीमा क्षेत्र में एफडीआर्इ की सीमा बढ़ाकर 49 प्रतिशत कर दी गर्इ और पेंशन के क्षेत्र […] Read more » FDI
आर्थिकी माटी-मानुष के लिए एफडीआई का विरोध October 5, 2012 / October 5, 2012 by राजीव गुप्ता | 1 Comment on माटी-मानुष के लिए एफडीआई का विरोध राजीव गुप्ता तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी का वर्तमान केंद्र सरकार से समर्थन वापसी का निर्णय अपने आप में न केवल एक अभूतपूर्ण निर्णय था अपितु 1 अक्टूबर को दिल्ली की जंतर-मंतर पर उनके द्वारा की गयी रैली में उमड़ी भीड़ को देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है आज भी उनके लिए माटी-मानुष कितना […] Read more » एफडीआई का विरोध
आर्थिकी विधि-कानून भारत के हर ‘संसाधन’ पर हक है मेरा! October 5, 2012 / October 5, 2012 by संजय द्विवेदी | Leave a Comment अदालती फैसले को सही संदर्भ में समझने की जरूरत संजय द्विवेदी राष्ट्रपति की ओर से भेजे गए संदर्भ पत्र पर उच्चतम न्यायालय की राय को केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी अपनी विजय के रूप में प्रचारित करने में लगी है। जबकि यह मामले को आधा समझना है। ऐसी आधी-अधूरी समझ से ही संकट खड़े होते हैं। […] Read more » भारत के हर ‘संसाधन’ पर हक
आर्थिकी जनता क्लेश में, नेता विदेश में October 3, 2012 / October 3, 2012 by डॉ0 आशीष वशिष्ठ | Leave a Comment डॉ. आशीष वशिष्ठ गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेश दौरों पर जनता की गाढ़ी कमाई के 1880 करोड़ रुपए खर्च होने का आरोप लगाकर देश की राजनीति को गरमा दिया है। असलियत चाहे जो भी हो लेकिन सोनिया पर फिजूलखर्ची का आरोप लगाकर नेताओं द्वारा जनता के पैसे […] Read more »
आर्थिकी संवैधानिक संस्थाओं पर हमलावार होती सरकार October 2, 2012 by डॉ0 आशीष वशिष्ठ | Leave a Comment डॉ. आशीष वशिष्ठ संवैधानिक संस्थाओं पर कांग्रेस नीत संप्रग सरकार का लगातार हमलावार होना और उसकी कार्यप्रणाली पर उंगली उठाना सरकार की नीति और नीयत को दर्शाता है। सरकार की उसकी दृष्टि में संविधान और संवैधानिक संस्थाओं के प्रति कितना सम्मान है। टू जी स्पेक्ट्रम से कोल ब्लाक आवंटन तक कैग की रिपोर्ट को सिरे […] Read more » कैग
आर्थिकी आर्थिक-सुधारों की राजनीती और बदहाल जन September 27, 2012 / September 27, 2012 by पियूष द्विवेदी 'भारत' | Leave a Comment पियुष द्विवेदी ‘भारत’ ममता बनर्जी द्वारा किराने में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नीतिगत मतभेद के चलते यूपीए-२ को नमस्कार करने के बाद, आर्थिक-सुधारों के निहितार्थ लिए गए अपने कुछ कड़े फैसलों पर जनविश्वास बहाली की प्रत्याशा में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा देश की जनता के प्रति जो बयान दिया गया, उससे सरकार को क्या नफा-नुकसान […] Read more » आर्थिक-सुधारों की राजनीती
आर्थिकी जब वरिष्ठ कांग्रेसी सांसद ने खुदरा में एफडीआई को राष्ट्र-विरोधी माना September 26, 2012 by लालकृष्ण आडवाणी | Leave a Comment लालकृष्ण आडवाणी एनडीए सरकार के समय एक बार खुदरा में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के (एफडीआई) मुद्दे पर भाजपा और कांग्रेस में तीखा वाद-विवाद हुआ। यह 16 दिसम्बर, 2002 की बात है। कांग्रेस के एक प्रमुख सांसद श्री प्रिय रंजन दासमुंशी ने इकनॉमिक्स टाइम्स में प्रकाशित खुदरा में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश सम्बन्धी एक लेख जिसमें कहा […] Read more »
आर्थिकी राजनीति आखिर क्या हैं पैसे पेड़ पर नहीं उगते के निहितार्थ ? September 24, 2012 / September 24, 2012 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment प्रवीण गुगनानी * अभावपूर्ण मध्यमवर्ग के लिए मनमोहनसिंह का उच्चवर्गीय, निर्मम व भावहीन भाषण * खाद के मूल्य, गरीबी, महंगाई, भ्रष्टाचार जैसे अनेक विषय क्यों दूर रहे मनमोहन सिंह के भाषण से!!! घोर, घनघोर भौतिकता की ओर तेजी से बढती इस दुनिया में भारत ही उन बचे देशों में प्रमुख है जहां भौतिकतावाद के स्थान […] Read more » adress of Manmohan singh to india
आर्थिकी पैसे तो पेड़ पर उगते नहीं है September 22, 2012 / September 22, 2012 by राजीव गुप्ता | 2 Comments on पैसे तो पेड़ पर उगते नहीं है प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सरकार पर हो रहे चौतरफा हमलो का जबाब देने के लिए अब खुद एक अर्थशास्त्री के रूप में कमान सम्हाल ली है. परन्तु यह भी एक कड़वा सच है कि यूपीए – 2 इस समय अपने कार्यकाल के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. जनता की नजर में सरकार की […] Read more » प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
आर्थिकी मनमोहन जी आपके संबोधन में कोई ठोस तर्क तो है ही नहीं! September 22, 2012 / September 22, 2012 by इक़बाल हिंदुस्तानी | 1 Comment on मनमोहन जी आपके संबोधन में कोई ठोस तर्क तो है ही नहीं! इक़बाल हिंदुस्तानी राइट टू रिकॉल कानून के बिना सरकार मनमानी से कैसे रूके ? प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राष्ट्र के नाम संदेश में जो कुछ कहा उसमें दावे ही दावे हैं कोई ठोस तर्क तो है ही नहीं। भारत बंद और विरोधी दलों के ज़बरदस्त विरोध के बावजूद यूपीए की मनमोहन सरकार रिटेल एफडीआई से […] Read more » Manmohan Singh
आर्थिकी एक था लोकतंत्र और एक थी कांग्रेस ! September 21, 2012 / September 21, 2012 by संजय द्विवेदी | 3 Comments on एक था लोकतंत्र और एक थी कांग्रेस ! एफडीआई के अजगर से कैसै बच पाएगा भारत ? संजय द्विवेदी एक था लोकतंत्र और एक थी कांग्रेस। इस कांग्रेस ने अंग्रेजों द्वारा बनाए गए एक ‘अलीट क्लब’ (याद कीजिए एक अंग्रेज ए.ओ.ह्यूम ने कांग्रेस की स्थापना की थी) को जनांदोलन में बदल दिया और विदेशी पराधीनता की बेड़ियों से देश को मुक्त कराया। किंतु […] Read more » एफडीआई खुदरा बाजार में विदेशी निवेश
आर्थिकी सरकारी जरूरत को मजबूरी में सहता आम आदमी September 20, 2012 / September 20, 2012 by विनायक शर्मा | Leave a Comment विनायक शर्मा क्या यूपीए-२ की सरकार के अंत की शुरुवात हो चुकी है ? कभी कांग्रेस की सदस्य रही फायरब्रांड नेता के नाम से प्रसिद्द और वर्तमान में तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्षा व बंगाल की मुख्यमंत्री ममताबनर्जी ने फूँक-फूँक कर कदम उठाते हुए यूपीए की सरकार से नाता तोड़ने का निर्णय लेकर केंद्र की सरकार […] Read more » Inflation raising prices of diesel and lpg