पर्यावरण लेख वॉशिंगटन में दुनिया के भविष्य पर मंथन: कर्ज़, क्लाइमेट और राजनीति एक मेज़ पर October 13, 2025 / October 13, 2025 by निशान्त | Leave a Comment वॉशिंगटन डी.सी. में इस हफ्ते (13 से 18 अक्टूबर) कुछ बड़े फैसले होने वाले हैं। यह वो जगह है जहाँ हर साल दुनिया की अर्थव्यवस्था का रास्ता तय होता है-World Bank और IMF की सालाना बैठकें। लेकिन इस बार माहौल कुछ और है। Read more » क्लाइमेट और राजनीति एक मेज़ पर
पर्यावरण सार्थक पहल पर्यावरण के लिए समर्पित राजस्थान का नाथवाना गांव September 27, 2025 / September 27, 2025 by चरखा फिचर्स | Leave a Comment माया लूणकरणसर, राजस्थान राजस्थान का बीकानेर जिला अपने शुष्क और रेगिस्तानी भूभाग के लिए जाना जाता है। यहां की कठिन जलवायु, कम बारिश और घटते भूजल स्तर के बीच जीवन को संभालना आसान नहीं है। लूणकरणसर ब्लॉक का नाथवाना गांव इन सब चुनौतियों के बीच एक अनोखी पहचान बना रहा है। यह गांव पर्यावरण संरक्षण […] Read more » Nathwana village in Rajasthan dedicated to the environment राजस्थान का नाथवाना गांव
पर्यावरण लेख जीवनधारा नदियों के लुप्त होने का खतरा: संरक्षण का संकल्प September 26, 2025 / September 26, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment विश्व नदी दिवस – 28 सितम्बर, 2025– ललित गर्ग – नदियां मात्र जलधाराएं नहीं हैं, वे जीवन की धमनियां हैं, सभ्यता की जननी हैं और प्रकृति का शाश्वत उपहार हैं। मानव सभ्यता का इतिहास गवाह है कि हर संस्कृति और हर महान नगरी का उदय नदियों के तट पर हुआ। गंगा, सिंधु, नील, अमेज़न, यांग्त्सी जैसी […] Read more » world river day विश्व नदी दिवस - 28 सितम्बर
पर्यावरण लेख कहकशां नहीं, कहर है बारिश का: प्रकृति का उग्र चेहरा September 17, 2025 / September 17, 2025 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment मानव की इच्छाओं का कोई अंत नहीं है और आज मानव अपनी इच्छाओं, लालच और सुविधाओं की अंधी दौड़ में प्रकृति के संतुलन को लगातार बिगाड़ता चला जा रहा है और इसका परिणाम मानव को किसी न किसी रूप में भुगतना पड़ रहा है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, अनियंत्रित विकास कार्य, खनिजों व जल का […] Read more » कहर है बारिश का
पर्यावरण जीवन की आधारशिला है ओजोन परत की उपस्थिति September 16, 2025 / September 16, 2025 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment विश्व ओजोन दिवस (16 सितम्बर) पर विशेषओजोन परत के बिना असंभव है पृथ्वी का अस्तित्व – योगेश कुमार गोयल 16 सितम्बर 1987 को मॉन्ट्रियल में ओजोन परत के क्षय को रोकने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता हुआ था, जिसमें उन रसायनों के प्रयोग को रोकने से संबंधित एक बेहद महत्वपूर्ण समझौता किया गया था, जो ओजोन […] Read more » The presence of ozone layer is the foundation of life ओजोन परत की उपस्थिति
पर्यावरण लेख ओजोन परतः जीवन की ढाल और उसके संरक्षण का संकल्प September 15, 2025 / September 15, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment विश्व ओजोन दिवस- 16 सितम्बर, 2025– ललित गर्ग – ओजोन परत पृथ्वी पर मानव जीवन की ढाल है, क्योंकि यह समताप मंडलीय परत पृथ्वी को सूर्य की अधिकांश हानिकारक पराबैंगनी विकिरण से बचाती है। सूर्य के प्रकाश के बिना मानव, प्रकृति एवं जीव-जंतुओं का जीवन को संभव नहीं है, लेकिन सूर्य की सीधी किरणें मानव […] Read more » ओजोन परत विश्व ओजोन दिवस-16 सितम्बर
पर्यावरण सिर्फ “दुनिया की फैक्ट्री” नहीं, बल्कि “दुनिया की ग्रीन फैक्ट्री” बन रहा है चीन September 12, 2025 / September 15, 2025 by निशान्त | Leave a Comment चीन अब सिर्फ “दुनिया की फैक्ट्री” नहीं, बल्कि “दुनिया की ग्रीन फैक्ट्री” भी बनता जा रहा है। ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि चीनी कंपनियों ने विदेशों में क्लीन-टेक्नोलॉजी यानी बैटरी, सोलर, विंड टर्बाइन और इलेक्ट्रिक व्हीकल बनाने वाली फैक्ट्रियों में 227 अरब डॉलर से ज़्यादा का निवेश कर दिया है। अगर ऊपरी अनुमान देखें तो ये रकम 250 अरब डॉलर तक पहुँचती […] Read more » दुनिया की ग्रीन फैक्ट्री
पर्यावरण आइस को बचाने के जुगाड़ नहीं, असली इलाज चाहिए: नई स्टडी में चेतावनी September 12, 2025 / September 12, 2025 by निशान्त | Leave a Comment दुनिया भर में आर्कटिक और अंटार्कटिक की बर्फ़ तेज़ी से पिघल रही है। इस संकट को रोकने के लिए कई “जुगाड़ू आइडिया” सामने आए हैं—कहीं समुद्र के नीचे पर्दे (sea curtains) लगाने की बात हो रही है ताकि गर्म पानी बर्फ़ तक न पहुँचे, कहीं बर्फ़ मोटी करने के लिए समुद्र का पानी पंप करने […] Read more » आर्कटिक और अंटार्कटिक की बर्फ़
पर्यावरण लेख प्रकृति ने हमें चेताया है, उसे सुनें और अपनी दिशा बदलें September 10, 2025 / September 10, 2025 by राजेश जैन | Leave a Comment राजेश जैन उत्तर भारत इन दिनों एक गहरी त्रासदी से गुजर रहा है। यहां हो रही भीषण बारिश के कारण आम जनजीवन अस्त-व्यस्त है। मौसम विभाग के अनुसार 22 अगस्त से 4 सितंबर के बीच क्षेत्र में सामान्य से तीन गुना अधिक बारिश दर्ज हुई है। यह पिछले 14 वर्षों में सबसे अधिक और 1988 के बाद सबसे बरसात वाला मानसून है। भारी बारिश, बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं ने कई राज्यों को बुरी तरह प्रभावित किया है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब और दिल्ली बाढ़ और भूस्खलन से जूझ रहे हैं। अब तक सौ से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। अकेले पंजाब में इस दशक की सबसे भीषण बाढ़ ने 50 से अधिक लोगों की जान ले ली है और लाखों लोग बेघर हो गए हैं। गांव डूब गए, सड़कें और पुल बह गए, खेत बर्बाद हो गए और शहरों का जीवन ठप हो गया है। त्रासदी का गहरा असर जब बाढ़ का पानी उतर जाएगा तो कैमरे और प्रशासन वहां से लौट आएंगे लेकिन प्रभावित लोगों की पीड़ा बरसों तक बनी रहेगी। गिरे हुए मकान, डूबे खेत, कर्ज में दबे किसान और पढ़ाई से वंचित बच्चे हमें लगातार याद दिलाएंगे कि यह महज मौसम की सामान्य घटना नहीं बल्कि एक चेतावनी है। जलवायु परिवर्तन अब भविष्य की चिंता नहीं बल्कि वर्तमान की कठोर सच्चाई है। सवाल यह है कि क्या हम इसे गंभीरता से लेकर रोकथाम की राह पकड़ेंगे या हर साल राहत और मुआवजे की रस्म अदायगी दोहराते रहेंगे। क्यों बदल रहा है मानसून का पैटर्न दरअसल, मानसून अब पहले जैसा नहीं रहा। कहीं बेहद कम बारिश होती है तो कहीं अचानक बादल फट जाते हैं और कुछ घंटों में महीनों का पानी बरस जाता है। हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे नदियों में जलप्रवाह अचानक बढ़ जाता है। वैज्ञानिक बार-बार चेतावनी दे चुके हैं कि हिमालयी क्षेत्र जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा शिकार बनेगा और वर्तमान घटनाएं आने वाले भयावह समय की झलक मात्र हैं। मानवीय त्रासदी और प्रशासनिक विफलता इस आपदा का असर केवल भूगोल तक सीमित नहीं है बल्कि लाखों लोगों के जीवन पर पड़ा है। अपनों को खो चुके परिवारों के लिए यह आंकड़े नहीं बल्कि अधूरी कहानियां हैं। लाखों लोग राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों के किसानों की खड़ी फसलें डूब गईं। स्कूल बंद हैं, अस्पतालों में दवाओं की कमी है और महामारी का खतरा मंडरा रहा है। लेकिन यह त्रासदी जितनी भीषण है, उससे भी बड़ा सवाल है कि हमारी नीति और तैयारी बार-बार क्यों विफल हो जाती है। हर साल बाढ़ आती है और हर साल वही दृश्य दोहराए जाते हैं। दिल्ली में यमुना बार-बार खतरे के निशान से ऊपर चली जाती है क्योंकि नालों और जलनिकासी तंत्र पर अतिक्रमण हो चुका है। हिमालयी राज्यों में अंधाधुंध सड़कें, होटल और बांध बनने से पहाड़ और असुरक्षित हो गए हैं। सरकारें राहत और मुआवजे पर तो जोर देती हैं लेकिन दीर्घकालिक रोकथाम और जल प्रबंधन पर कम ध्यान देती हैं। सही है कि यह समस्या केवल भारत की नहीं है। जलवायु संकट वैश्विक है लेकिन भारत जैसे देशों पर इसका असर कहीं ज्यादा है। हम वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में तीसरे स्थान पर हैं। उद्योग और शहरी उपभोग मॉडल प्रदूषण और उत्सर्जन को बढ़ा रहे हैं लेकिन सबसे अधिक पीड़ा गरीब और कमजोर वर्ग झेल रहा है। पहाड़ी इलाकों के छोटे किसान, मजदूर और आदिवासी इसकी सबसे बड़ी कीमत चुका रहे हैं। समाधान की राह समाधान असंभव नहीं है पर इसके लिए दृष्टिकोण बदलना होगा। हिमालयी राज्यों में संवेदनशील इलाकों की पहचान कर निर्माण पर रोक लगानी होगी। नदियों के किनारे फ्लड ज़ोन मैपिंग जरूरी है ताकि वहां नई आबादी बसाने से बचा जा सके। शहरी क्षेत्रों में ड्रेनेज और वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को अनिवार्य करना होगा। मौसम पूर्वानुमान को और सटीक बनाने के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग जरूरी है। आपदा प्रबंधन में स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी ताकि राहत और बचाव केवल सरकारी मशीनरी पर निर्भर न रहे। साथ ही विकसित देशों को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण वही हैं। अब समय है कि वे कार्बन उत्सर्जन में कटौती करें और विकासशील देशों को जलवायु फंडिंग उपलब्ध कराएं। भारत को भी नवीकरणीय ऊर्जा की ओर और तेजी से बढ़ना होगा और विकास मॉडल को प्रकृति के अनुकूल बनाना होगा। उत्तर भारत की यह बाढ़ हमें आईना दिखाती है कि यदि हमने अब भी सबक नहीं सीखा तो आने वाले वर्षों में आपदाओं का यह सिलसिला और विकराल रूप लेगा। जब तक नीतियों और विकास की दिशा को बदलकर प्रकृति के साथ संतुलन नहीं साधा जाएगा, तब तक त्रासदियां हमारे जीवन का हिस्सा बनी रहेंगी। प्रकृति ने हमें चेताया है, अब जिम्मेदारी हमारी है कि हम उसे सुनें और अपनी दिशा बदलें। राजेश जैन Read more » listen to it and change your direction Nature has warned us भीषण बारिश
पर्यावरण लेख अरब सागर और हिन्द महासागर के बादलों की भिड़ंत September 9, 2025 / September 9, 2025 by जयसिंह रावत | Leave a Comment जयसिंह रावतजलवायु परिवर्तन और ऋतुचक्र में गड़बड़ी के कितने भयावह परिणाम निकल सकते हैं, इसका उदाहरण इस साल का मानसून है जो सितम्बर में भी डरा रहा है। पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र—हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख—में रिकार्ड तोड़ वर्षा, बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं ने भारी तबाही मचाई। अगस्त में लद्दाख में सामान्य […] Read more » Clash of clouds of Arabian Sea and Indian Ocean बादलों की भिड़ंत
पर्यावरण लेख पंजाब जल प्रलय : दुनिया के मददगारों को आज मदद की दरकार September 8, 2025 / September 8, 2025 by तनवीर जाफरी | Leave a Comment तनवीर जाफ़री भारत का “अन्न भंडार” कहा जाने वाला देश की खाद्य आपूर्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण राज्य पंजाब इन दिनों जल प्रलय जैसे अति गंभीर संकट […] Read more » पंजाब जल प्रलय
पर्यावरण राजनीति प्रकृति की नाराजगी को नहीं समझा तो मानव अस्तित्व खतरे में September 8, 2025 / September 8, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment – ललित गर्ग –प्रकृति अपनी उदारता में जितनी समृद्ध है, अपनी प्रतिशोधी प्रवृत्ति में उतनी ही कठोर है। जब तक मनुष्य उसके साथ तालमेल में रहता है, तब तक वह जीवन को वरदान देती है, जल, जंगल और जमीन के रूप में। लेकिन जैसे ही मनुष्य अपनी स्वार्थपूर्ण महत्वाकांक्षाओं और तथाकथित आधुनिक विकास की अंधी […] Read more » प्रकृति की नाराजगी प्रकृति की नाराजगी को नहीं समझा तो मानव अस्तित्व खतरे में मानव अस्तित्व खतरे में