पर्यावरण लेख जल प्रलय के सन्देश ? September 2, 2025 / September 2, 2025 by तनवीर जाफरी | Leave a Comment तनवीर जाफ़रीभारत के पंजाब राज्य को सबसे उपजाऊ धरती के राज्यों में सर्वोपरि गिना जाता है। इसका मुख्य कारण यही है कि यह राज्य खेती के लिये सबसे ज़रूरी समझे जाने वाले कारक यानी पानी के लिये सबसे धनी राज्य है। सिंधु नदी की पांच सहायक नदियाँ सतलुज, ब्यास, रावी, चिनाब और झेलम इसी पंजाब […] Read more » जल प्रलय के सन्देश
पर्यावरण लेख पर्यावरण कानून और उत्तर प्रदेश राज्य: एक समग्र दृष्टिकोण August 27, 2025 / August 27, 2025 by पवन शुक्ला | Leave a Comment “प्रकृति स्वयं धर्म है, उसका संरक्षण ही हमारा कर्तव्य है।” यह कथन आधुनिक समाज के लिए अत्यंत प्रासंगिक है, जहाँ विकास की परिभाषा केवल आर्थिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं रह गई, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन और संसाधनों के सतत उपयोग के साथ जुड़ गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत की लगभग 77% जनसंख्या […] Read more » Environmental Law and the State of Uttar Pradesh: A Holistic Approach पर्यावरण कानून पर्यावरण कानून और उत्तर प्रदेश राज्य
पर्यावरण राजनीति धराली की घटना के निहित – अर्थ August 13, 2025 / August 13, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment उत्तराखंड के धराली में ऊपर पहाड़ियों पर बादल फटा और उसके साथ जिस प्रकार बड़ा भारी मलबा पहाड़ से नीचे की ओर आया तो उसने धराली गांव को अतीत बना दिया। हम सबके लिए यह घटना बहुत दुखद रही है। परंतु यह घटना हमें बहुत कुछ सिखा कर भी गई है। इसने बताया है कि […] Read more » The implicit meaning of the Dharali incident धराली की घटना
पर्यावरण लेख प्रकृति से खिलवाड़ की चेतावनी August 12, 2025 / August 12, 2025 by प्रमोद भार्गव | Leave a Comment संदर्भः उत्तराखंड में बादल फटने से हुई ताबाहीप्रमोद भार्गवभारतीय दर्शन के अनुसार मानव सभ्यता का विकास हिमालय और उसकी नदी-घाटियों से माना जाता है। ऋषि -कश्यप और उनकी दिति-अदिति नाम की पत्नियों से मनुष्य की उत्पत्ति हुई और सभ्यता के क्रम की शुरूआत हुई। एक बड़ी आबादी को शुद्ध और पौश्टिक पानी देने के लिए […] Read more » Warning against messing with nature प्रकृति से खिलवाड़
पर्यावरण राजनीति उत्तरकाशी के धराली गांव में आई प्राकृतिक आपदा से धधकते सवाल? August 8, 2025 / August 8, 2025 by कमलेश पांडेय | Leave a Comment कमलेश पांडेय भारत वर्ष में विज्ञान और अध्यात्म का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। बावजूद इसके ब्रेक के बाद यहां आने वाली प्राकृतिक आपदाओं के बारे में सटीक अनुमान लगा पाना अब भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। एआई के अप्रत्याशित विकास के बावजूद शोधकर्ताओं की उदासीनता और लापरवाही से विषयगत सफलता अभी तक हासिल नहीं की जा सकी है। इसलिए सरकार, निजी उद्यमियों और शोधार्थियों को इस ओर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। खासकर मौसम विज्ञान और पर्यावरण ज्योतिष के अनुसंधान कर्ताओं को इस ओर ज्यादा फोकस करने की जरूरत है। इससे समय रहते ही हमें सटीक भविष्यवाणी करने में मदद मिलेगी और ऐसी आपदाओं के बाद होने वाली भारी धन-जन की हानि भी रोकने में मदद मिलेगी और यदि ऐसा संभव हुआ तो यह भारत के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि भी होगी। बताते चलें कि उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जनपद के धराली गांव में आई अकस्मात बादल फटने जैसी आपदा प्रकृति और आये दिन बिगड़ते पारिस्थितिकी संतुलन की एक और गंभीर चेतावनी है। पर्वतीय प्रदेशों में ऐसी चेतावनियों की एक लंबी श्रृंखला है जो हमें चीख चीख कर यह बताती है कि पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन साधने की कितनी जरूरत है? खासकर, देश के पहाड़ी राज्यों, यथा उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश आदि पर्वतीय प्रदेशों को लेकर ऐसी नीति बननी चाहिए जिससे पहाड़ और इंसानों के बीच चिरस्थायी संतुलन बना रहे। इसलिए यह सवाल उठता है कि आखिरकार कुदरत की चेतावनी को हमलोग कब समझेंगे? और सिर्फ समझेंगे ही नहीं बल्कि उनके अनुरूप ही अपना अग्रगामी व्यवहार भी बदलेंगे। यह ठीक है कि तकनीकी क्रांति और सूचना क्रांति से विकास में अप्रत्याशित गति आई है लेकिन विकास के भौगोलिक मानदंडों की उपेक्षा की जो सार्वजनिक और व्यक्तिगत कीमत सम्बन्धित लोगों को चुकानी पड़ रही है, वह नीतिगत व प्रशासनिक लापरवाही नहीं तो क्या है? यह यक्ष प्रश्न बन चुका है। जानकारों का कहना है कि उत्तरकाशी के धराली गांव में खीरगंगा नदी के ऊपरी क्षेत्र में जो बादल फटा, उंससे आये फ्लैश फ्लड ने रास्ते में आने वाली हर चीज को अपनी चपेट में ले लिया। इससे प्रभावित इलाके से आ रहे विडियो दिल दहलाने वाले हैं। चूंकि अभी चारधाम यात्रा का सीजन चल रहा है और यह गांव गंगोत्री वाले रास्ते पर ही पड़ता है जो श्रद्धालुओं के रुकने का एक अहम पड़ाव भी है। ऐसे में जानमाल की बड़े पैमाने पर हानि होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। चूंकि उत्तरकाशी जैसे उत्तराखंड के जनपदों में ब्रेक के बाद प्राकृतिक आपदा आती रहती है। इसलिए यहाँ पर निरंतर/ लगातार आफत आते रहने से शोधकर्ताओं को और भी अधिक ध्यान देने की जरूरत है। ऐसा इसलिए कि हाल के बरसों में उत्तराखंड इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं के केंद्र में रहा है। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2021 में चमोली जनपद में, नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान के पास एक ग्लेशियर टूटकर गिर गया था। इसकी वजह से धौलीगंगा नदी में अचानक बाढ़ आ गई और तपोवन विष्णुगाड पनबिजली परियोजना में काम करने वाले कई श्रमिकों को जान गंवानी पड़ी। इसी तरह, साल 2023 की शुरुआत में एक और धार्मिक पर्यटन स्थल जोशीमठ में भूस्खलन ने एक बड़ी आबादी को विस्थापित कर दिया। वहीं, साल 2013 में केदार घाटी में मची भयानक तबाही से लेकर अभी तक, छोटी-बड़ी ऐसी कई प्राकृतिक आपदाएं आ चुकी हैं। इसलिए पुनः सुलगता हुआ सवाल यहां आकर ही ठहर जाती है कि आखिर पहाड़ से छेड़छाड़ कब रुकेगी क्योंकि आरोप है कि उत्तराखंड में चल रहे बेशुमार पावर प्रॉजेक्ट्स ने पहाड़ों को खोखला कर दिया है। वहीं, इस दौरान क्षेत्र में बढ़ती आबादी, लाखों पर्यटकों के बोझ, अनियंत्रित निर्माण और घटती हरियाली को मिला दीजिए तो स्थिति विस्फोटक बन जाती है। इसलिए पर्यावरण प्रेमी पहाड़ अनुकूल विकास करने की मांग हमेशा उठाते रहते हैं। इस बात में कोई दो राय नहीं कि बादल फटना एक प्राकृतिक घटना है जिस पर इंसानों का कोई जोर नहीं लेकिन, यह भी एक उद्वेलित करने वाला तथ्य है कि जब पानी के निकलने के रास्तों, नालों-गदेरों के मुहानों पर कंक्रीट के बड़े-बड़े स्ट्रक्चर खड़े हो चुके हैं तो फिर उन तमाम जगहों पर, जिन रास्तों से पानी को बहना था, आखिर वह कैसे निकलेगा क्योंकि उन रास्तों पर तो प्रकृति प्रेमी इंसान बस चुका है। स्पष्ट है कि यह जानबूझकर आफत बुलाने जैसा है। इसी के चक्कर में भारी धन-जन की हानि झेलनी पड़ती है और आपदा आने के बाद प्रशासन का जो सिर दर्द बढ़ता है, वह अलग बात है। इसलिए समकालीन स्थिति-परिस्थितियों को बदलने की जरूरत है। इंसान को संभलने की जरूरत है। सच कहूं तो उत्तराखंड को लेकर यह जारी बहस तकरीबन 5 दशक पुरानी है कि विकास किस कीमत पर होना चाहिए? साल 1976 में, गढ़वाल के तत्कालीन कमिश्नर एमसी मिश्रा की अध्यक्षता में गठित एकं कमिटी ने जोशीमठ को बचाने के लिए फौरन कुछ कदम उठाने की सिफारिश की थी- इनमें संवेदनशील जोन में नए निर्माण पर रोक और हरियाली बढ़ाना प्रमुख था लेकिन 49 साल बाद आज वह रिपोर्ट पूरे पहाड़ के लिए प्रासंगिक हो चुकी है। इसलिए केंद्रीय व राज्य सत्ता प्रतिष्ठान को चाहिए कि वे दूरदर्शिता भरा कदम उठाएं और पर्वतीय प्रदेशों की रमणीकता के दृष्टिगत उन पर फिदा होने वालों को बसने से रोके। भारतीय सनातन संस्कृति भी पहाड़ों को साधना स्थली बताती है जबकि मैदानी भूभाग जनजीवन के बसने हेतु श्रेष्ठ हैं। पर्वतीय घाटियों में भी रहा जा सकते है लेकिन मैदानों के सूखा या बाढ़ की तरह वहां भी ऐसा ही कुछ होते रहने की संभावना बनी रहती है। कमलेश पांडेय Read more »
पर्यावरण राजनीति उत्तराखंड की आपदा: जब हिमालय ने चुप्पी तोड़ी, और हमारे तैयार न होने की कीमत चुकाई गई August 7, 2025 / August 7, 2025 by निशान्त | Leave a Comment दोपहर का वक्त था। बादल घिरे थे, पर कोई डर नहीं था। यह तो पहाड़ों का रोज़ का मिज़ाज है। लेकिन अचानक, जैसे किसी ने आसमान के दरवाज़े को खोल दिया हो।एक गगनचुंबी जलधारा सीधी पहाड़ से उतरती हुई धाराली की गलियों में घुस गई। जो सामने आया, उसे बहा ले गई। घर, दुकान, पुल, […] Read more » उत्तराखंड की आपदा
पर्यावरण लेख वायु प्रदूषण से स्मृति-लोप का बढ़ता खतरा July 30, 2025 / July 30, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment ललित गर्ग पर्यावरण की उपेक्षा एवं बढ़ता वायु प्रदूषण मनुष्य स्वास्थ्य के लिये न केवल घातक हो रहा है, बल्कि एक बीमार समाज के निर्माण का कारण भी बन रहा है। हाल ही में हुए एक मेटा-अध्ययन ने वायु प्रदूषण और बिगड़ती स्मृति के बीच एक खतरनाक संबंध का खुलासा किया है। हवा […] Read more » Air pollution increases the risk of memory loss वायु प्रदूषण से स्मृति-लोप वायु प्रदूषण से स्मृति-लोप का बढ़ता खतरा
कला-संस्कृति पर्यावरण वेदों में पर्यावरण के महत्व और प्रकृति सुरक्षा चक्र को हमने ध्वस्त किया ! July 24, 2025 / July 24, 2025 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment आत्माराम यादव पीव पृथ्वी को ईश्वर का रूप मानने वाले भारत के मनीषियों ने हजारों वर्ष पूर्व मानव जीवन के कल्याणार्थ सृष्टि के पर्यावरण का महत्व और उसकी रक्षा को समझा और प्रकृति से सांनिध्य, संवेदनशीलता कायम रखते हुए मानवीय रोगों के उपचार तथा स्वास्थ्य-सम्बन्धी अनेक उपयोगी तत्वों का सृष्टि के योगदान से जोड़ते हुए उसका […] Read more » वेदों में पर्यावरण
खेत-खलिहान पर्यावरण लेख स्वच्छता एवं नशामुक्ति के क्षेत्र में अतुलनीय कार्य करते सामाजिक संगठन July 24, 2025 / July 24, 2025 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment इस धरा पर जन्म लेने वाले प्रत्येक जीव के लिए प्रकृति ने पर्याप्त खाद्य पदार्थ दिए हैं परंतु अति लालच के चलते मानव ने प्रकृति का शोषण करना शुरू कर दिया है। इसमें कोई अब कोई संदेह नहीं रह गया है कि मानव ने अपनी जिंदगी को आसान बनाने के लिए पर्यावरण का अत्यधिक नुक्सान किया है और इसका परिणाम आज उसे ही भुगतना भी पड़ रहा है। कई देशों में तो भयंकर गर्मी में वहां के जंगलों में आग लगने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं जिनसे जान और माल की भारी हानि हो रही है। हम पर्यावरण के सम्बंध में बढ़ चढ़ कर चर्चाएं तो करते हैं परंतु आज हमारे गावों में खेत, प्लाटों में परिवर्तित हो गए हैं। हमारे खेतों पर शोपिंग काम्प्लेक्स एवं माॅल खड़े हो गए हैं जिससे हरियाली लगातार कम होती जा रही है। बीते कुछ वर्षों में कंकरीट की इमारतों में अत्यधिक वृद्धि एवं भूमि प्रयोग में बदलाव के चलते भारत में भी तापमान लगातार बढ़ रहा है। देश के महानगर अर्बन हीट आइलैंड बन रहे हैं। अर्बन हीट आइलैंड वह क्षेत्र होता है जहां अगल-बगल के इलाकों से अधिक तापमान रहता है। कई स्थानों पर अत्यधिक गर्मी के पीछे अपर्याप्त हरियाली, अधिक आबादी, घने बसे घर और इंसानी गतिविधियां जैसे गाडियों और गैजेट से निकलने वाली हीट आदि कारण जिम्मेदार हो सकते हैं। कार्बन डाईआक्साइड और मेथेन जैसी ग्रीन हाउस गैसों एवं कूड़ा जलाने से भी गर्मी बढ़ती है। राजधानी दिल्ली का उदाहरण हमारे सामने है। जहां चारों दिशाओं में बने डंपिंग यार्डों में आग लगी ही रहती है और लोगों का सांस लेना भी अब दूभर हो रहा है। भारत ने वर्ष 2070 तक नेट जीरो यानी कार्बन उत्सर्जन रहित अर्थव्यवस्था का लक्ष्य तय किया हुआ है। यद्यपि पर्यावरण रक्षा में भारत के प्रयास बहुआयामी रहे हैं लेकिन यह प्रयास तब तक सफल नहीं हो सकते जब तक देशवासी प्राकृतिक संसाधनों का अनावश्यक अत्यधिक शोषण करना बंद नहीं करते। शहरों के बढ़ते तापमान की रोकथाम हेतु जरूरी है कि मौसम और वायु प्रवाह का ठीक तरह से नियोजन किया जाए। हरियाली का विस्तार, जल स्रोतों की सुरक्षा, वर्षा जल संचय, वाहनों एवं एयर कंडीशंस की संख्या की कमी से ही हम प्रचंड गर्मी को कम कर सकते हैं। पृथ्वी का तापमान घटेगा तभी मानव सुरक्षित रह पाएगा। उक्त संदर्भ में यह हम सभी भारतीयों के लिए हर्ष का विषय होना चाहिए कि हमारे देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठन मौजूद हैं जो सदैव ही सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं सेवा कार्य करने वाले संगठनों को साथ लेकर, देश पर आने वाली किसी भी विपत्ति में आगे आकर, सेवा कार्य करना प्रारम्भ कर देते हैं। भारत के पर्यावरण में सुधार लाने की दृष्टि से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने तो बाकायदा एक नई पर्यावरण गतिविधि को ही प्रारम्भ कर दिया है। जिसके अंतर्गत समाज में विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाले संगठनों को साथ लेकर संघ द्वारा देश में प्लास्टिक का उपयोग बिल्कुल नहीं करने का अभियान प्रारम्भ किया गया है और देश में अधिक से अधिक पेड़ लगाने की मुहिम प्रारम्भ की गई है। साथ ही, विभिन्न शहरों को स्वच्छ एवं नशामुक्त बनाने हेतु भी विशेष अभियान प्रारम्भ किए हैं। उदाहरण के तौर पर ग्वालियर को स्वच्छ, नशामुक्त एवं प्लास्टिक मुक्त शहर बनाने का बीड़ा उठाया गया है। इसी संदर्भ में ग्वालियर महानगर में विविध संगठनों के दायित्ववान कार्यकर्ताओं का दो दिवसीय शिविर आयोजित किया गया था। इस शिविर के एक विशेष सत्र में इस बात पर विचार किया गया कि ग्वालियर महानगर को स्वच्छ एवं नशामुक्त बनाया जाना चाहिए। उक्त शिविर के समापन के पश्चात उक्त समस्याओं के हल हेतु विविध संगठनों के दायित्ववान कार्यकर्ताओं की तीन बैठकें आयोजित की गईं। इन बैठकों में विस्तार से विचार करने के उपरांत यह निर्णय लिया गया कि कुछ चिन्हित कार्यकर्ताओं को विभिन्न मठ, मंदिरों, स्कूलों, संस्थानों आदि में विषय प्रस्तुत करने हेतु भेजा जाए ताकि उक्त समस्याओं के हल में समाज की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। इस संदर्भ में चुने गए 60 कार्यकर्ताओं के लिए एक वक्ता कार्यशाला का आयोजन भी किया गया। इन चिन्हित कार्यकर्ताओं को विभिन संस्थानों में विषय प्रस्तुत करने हेतु भेजा गया था ताकि उक्त समस्याओं के हल करने हेतु समाज को भी साथ में लेकर कार्य को सम्पन्न किया जा सके। साथ ही, ग्वालियर को प्रदूषण मुक्त सुंदर नगर बनाए जाने के अभियान को स्थानीय जनता के बीच ले जाने हेतु, माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्म दिवस के शुभ अवसर पर दिनांक 25 दिसम्बर 2024 को, ग्वालियर के चुने हुए 29 चौराहों पर मानव शृंखलाएं बनाई गई थी, लगभग 8,000 नागरिकों ने इस मानव शृंखला में भागीदारी की थी। इसी प्रकार, ग्वालियर को व्यसन मुक्त नगर बनाए जाने के अभियान को स्थानीय जनता के बीच ले जाने हेतु, स्वामी विवेकानंद जी के जन्म दिवस एवं अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस के शुभ अवसर पर, दिनांक 12 जनवरी 2025 को एक विशाल मेराथन दौड़ का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम के आयोजन में स्थानीय प्रशासन का भरपूर सहयोग प्राप्त हुआ एवं लगभग 6,000 नागरिकों ने इस मेराथन दौड़ में भाग लिया था। संघ के ग्वालियर विभाग द्वारा ग्वालियर महानगर में अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाने की मुहिम प्रारम्भ की गई। जिसके अंतर्गत ग्वालियर के कई विद्यालयों में वहां के शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को साथ लेकर स्वयंसेवकों द्वारा नगर में भारी मात्रा में पौधारोपण किया गया। ग्वालियर की पहाड़ियों पर भी इस मानसून के मौसम के दौरान हजारों की संख्या में नए पौधे रोपे गए हैं। गजराराजा स्कूल, केआरजी महाविद्यालय एवं गुप्तेश्वर मंदिर की पहाड़ियों को तो पूर्णत: हरा भरा बना दिया गया है। नगर के प्रबुद्ध नागरिकों द्वारा नगर के विद्यालयों, महाविद्यालयों, सामाजिक संगठनों, व्यावसायिक संगठनों, धार्मिक संगठनों, एवं नगर के विभिन्न चौराहों पर नागरिकों को शपथ दिलाई जा रही है कि “मैं ग्वालियर नगर को प्लास्टिक मुक्त बनाने हेतु, आज से प्लास्टिक का उपयोग बिल्कुल नहीं करूंगा”। अभी तक एक लाख से अधिक नागरिकों को यह शपथ दिलाई जा चुकी है। कई स्कूल, कई मंदिर एवं कई महाविद्यालय (लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शिक्षण संस्थान – एलएनआईपीई सहित) पोलिथिन मुक्त हो चुके हैं। इसी प्रकार, ट्रिपल आईटीएम प्रबंधन के प्रयास से संस्थान के आसपास दुकानदारों द्वारा मादक पदार्थों के बिक्री करना बंद कर दिया गया है। साथ ही, ग्वालियर महानगर में एक लाख से अधिक नागरिक, नशा नहीं करने का संकल्प ले चुके हैं। विभिन्न मठ, मंदिरों एवं गुरुद्वारों में भंडारों का आयोजन किया जाता है। इन भंडारों में अब प्रसादी को दोनों, पत्तलों में परोसा जाने लगा है एवं प्लास्टिक का उपयोग लगभग बंद कर दिया गया है। साथ ही, इन मंदिरों के आसपास प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों द्वारा डस्टबिन रखवाये गए हैं, ताकि कचरे को यहां वहां न फैला कर इन डस्टबीन में डाला जा सके। इससे, मठ, मंदिरों एवं गुरुद्वारों के आसपास के इलाके स्वच्छ रहने लगे हैं। ग्वालियर महानगर के जनप्रतिनिधि विभिन्न मैरिज गार्डन में जाकर इनके मालिकों से लगातार चर्चा कर रहे हैं कि इन मैरिज गार्डन में अमानक पॉलीथिन का उपयोग बिलकुल नहीं होना चाहिए। इसका असर यह हुआ है कि अब मैरिज गार्डन में होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों में प्लास्टिक का उपयोग धीरे धीरे कम होता हुआ दिखाई दे रहा है। नागरिकों को कपड़े से बने थैले भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं, ताकि बाजारों से सामान खरीदते समय इन कपड़े के थैलों का इस्तेमाल किया जा सके और प्लास्टिक के उपयोग को तिलांजलि दी जा सके। प्लास्टिक के उपयोग को खत्म करने के उद्देश्य से गणेशोत्सव के पावन पर्व पर नगर में विभिन्न गणेश पांडालों में बच्चों द्वारा नाटक भी खेले गए। साथ ही, संघ ने अपने स्वयंसेवकों को आग्रह किया है कि संघ द्वारा आयोजित किए जाने वाले किसी भी कार्यक्रम में प्लास्टिक का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं किया जाना चाहिए। और, अब संघ के कार्यक्रमों में इस बात का ध्यान रखा जाने लगा है कि प्लास्टिक का उपयोग बिल्कुल नहीं किया जाय। ग्वालियर के नागरिकों, विविध संगठनों, सामाजिक संस्थानों एवं प्रशासन द्वारा लगातार किए गए प्रयासों के चलते ग्वालियर महानगर को स्वच्छ सर्वेक्षण 2024 के अंतर्गत राज्य स्तरीय मिनिस्ट्रीयल अवार्ड के लिए चुना गया है। यह पुरस्कार 17 जुलाई 2025 को दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू द्वारा प्रदान किया जाएगा। इसी प्रकार, सिविल अस्पताल, हजीरा, जिला ग्वालियर को स्थानीय नागरिकों को उच्च स्तर की गुणवत्ता पूर्ण संक्रमण रहित स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने हेतु राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, मध्य प्रदेश से प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ है। जब पूरे देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठन आगे आकर समाज के अन्य संगठनों को साथ लेकर देश के पर्यावरण में सुधार लाने हेतु कार्य प्रारम्भ करेंगे तो भारत के पर्यावरण में निश्चित ही सुधार दृष्टिगोचर होने लगेगा। प्रहलाद सबनानी Read more » स्वच्छता एवं नशामुक्ति
पर्यावरण लेख बारिश का कहरः प्रकृति का विक्षोभ या विकास की विफलता? July 7, 2025 / July 7, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment ललित गर्ग बीते कुछ वर्षों में पहाड़ों में बारिश एवं बादल फटना अब डर, कहर और तबाही का पर्याय बन गई है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, और पूर्वाेत्तर के अन्य पहाड़ी राज्यों में हर वर्ष मानसून के साथ भयावह भूस्खलन, बादल फटना, पुल बहना और सड़कें टूटना एक आम दृश्य बन गया है। यह केवल […] Read more » बारिश का कहर
पर्यावरण वन महोत्सव, वृक्षारोपण का ढोंग और कटते पेड़ June 30, 2025 / June 30, 2025 by डा. विनोद बब्बर | Leave a Comment डा. विनोद बब्बर प्रथम जुलाई को पूरी दुनिया के साथ भारत भी वन महोत्सव मनाया जाता है। लगभग सभी विभागों, संस्थानों और स्वयंसेवी संगठनों की ओर से वृक्षारोपण की धूम दिखाई देती है। हर वर्ष वन महोत्सव के अवसर पर एक ही दिन में करोड़ पौधे लगाए जाने के समाचार होते हैं लेकिन उसके बावजूद पर्यावरण लगातार […] Read more » वन महोत्सव वृक्षारोपण का ढोंग और कटते पेड़
पर्यावरण लेख जल की बूंद-बूंद पर संकट: नीतियों के बावजूद क्यों प्यासी है भारत की धरती? June 30, 2025 / June 30, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment भारत दुनिया की 18% आबादी और मात्र 4% ताजे जल संसाधनों के साथ गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। भूजल का अत्यधिक दोहन, प्रदूषण, असंतुलित खेती, और जलवायु परिवर्तन इसके प्रमुख कारण हैं। सरकारी योजनाओं और नीतियों के बावजूद कार्यान्वयन और जनभागीदारी की कमी से हालात बिगड़ते जा रहे हैं। जल संरक्षण […] Read more » जल की बूंद-बूंद पर संकट