दोहे पृथ्वी दिवस April 24, 2020 / April 24, 2020 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment धरती है माँ हमारी,जो करती सबका ध्यान |उससे से बडा कोई नहीं,करे उसका सम्मान || धरती माँ करती रहती,सबका है उपकार |इसको बचाने के लिये हम भी करे उपचार || धरती माँ भले एक है,उसके नाम है अनेक |भू,धरा,धरणी वसुधा पृथ्वी उनमे से एक || धरती माँ सबको पालती,इसके बड़े प्रमाण |वह सब कुछ दे […] Read more » पृथ्वी दिवस
दोहे तर कभी कृष्ण की कृपा जाते ! March 2, 2020 / March 2, 2020 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment तर कभी कृष्ण की कृपा जाते, वर कभी बोध व्यथा से पाते; पाण्डव धीरे धीरे जग पाते, सुषुप्ति युगों की रहे होते! स्वार्थ में सने घुने जो होते, उन्हें पहचान कहाँ वे पाते; सात्विकी सहजता समाए वे, पातकी पात्र कहाँ लख पाते ! भाव जड़ता को कहाँ तर पाते, कहाँ गाण्डीव उठा लड़ पाते; विराट […] Read more » तर कभी कृष्ण की कृपा जाते
दोहे प्रकोपों के हर प्रकम्पन ! March 2, 2020 / March 2, 2020 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment प्रकोपों के हर प्रकम्पन, रहा वह प्रहरी सजग; प्रहर हर प्रश्वास दुर्लभ, दिया था वो चित चमन! चुभाया जब शूल कोई, निकाला वे ही किए; जान ना पाए कभी हम, क्यों थे वे ऐसा किए ! उनके तीरों से ही उनका, बध कराए वे रहे; साधना हमको बिठा कर, ध्यान तैराया किए ! हर तलैया […] Read more » प्रकोपों के हर प्रकम्पन
दोहे चर अचर कबहु चिन्मय संग ! March 2, 2020 / March 2, 2020 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment चर अचर कबहु चिन्मय संग, रागन डोली; खेलन चहत हैं होली, हिया वरवश खोली ! खिल जात कला पात, अखिल अपने पुकारे; पुचकार भुवन देत रहत, हियहिं विचारे ! आवाज़ वे ही देत, वे ही याद करावत; सुनि जात नेह करत, वे ही भाव जगावत! भव की तमाम वादियन में, वे ही घुमावत; घूर्णन की […] Read more » चर अचर कबहु चिन्मय संग
दोहे आज कुछ आभास उनका ! March 2, 2020 / March 2, 2020 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment आज कुछ आभास उनका, आत्म उर में हो गया; विश्व के इन चराचर बिच, उन्हीं का नाटक हुआ ! रूप रंग आए सजे सब, रंग मंचों पर चढ़े; अड़े ठहरे खड़े ठिठुरे, ठिठोली होली किए ! रहा दिग्दर्शन उन्हीं का, प्रणेता वे ही रहे; काल की हर एक झाँकी के, रचयिता वे रहे ! चित्र […] Read more » आज कुछ आभास उनका !
दोहे पीली सरसों चन्द्रमुखी संग ! February 16, 2020 / February 16, 2020 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment पीली सरसों चन्द्रमुखी संग, मन बगिया में खिलती देखी; अद्भुत सुन्दर मन मोहक छवि, स्वप्न खेत बिच भायी नीकी! आए चले संग पगडंडी, वाहन किसी अजब बहुरंगी; स्वैटर पहन बान्द्री निकली, जंगल ओर गई वो टहली ! अभिनव दुर्लभ शोभा लख कर, अति आनन्द रहा मन छाई; खींचन चाहा चित्र फ़ोन से, तभी गई निद्रा […] Read more » पीली सरसों पीली सरसों चन्द्रमुखी संग !
दोहे काल चक्र घूमता है February 14, 2020 / February 14, 2020 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment काल चक्र घूमता है, केन्द्र शिव को देखलो;भाव लहरी व्याप्त अगणित, परम धाम परख लो! कितने आए कितने गए, राज कितने कर गए;इस धरा की धूल में हैं, बह के धधके दह गए ! सत्यनिष्ठ जो नहीं हैं, स्वार्थ लिप्त जो मही;ताण्डवों की चाप सहके, ध्वस्त होते शीघ्र ही ! पार्थ सूक्ष्म पथ हैं चलते, […] Read more » काल चक्र घूमता है
दोहे ब्रहत हो स्वत्व ब्रह्म गति धाता ! February 11, 2020 / February 11, 2020 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment ब्रहत हो स्वत्व ब्रह्म गति धाता, परम सत्ता का स्वाद चख पाता; अहं को फिर कहाँ है भा पाता, सृष्टि को अपनी समझ रस लेता ! दोष दूजों में तब न लख पाता, समझ हर अपना द्वैत ना रहता; किए सहयोग तब चला होता, योग की हर कड़ी मगन रहता ! घड़ी हर घट में […] Read more » ब्रहत हो स्वत्व ब्रह्म गति धाता !
दोहे हिम आच्छादित धरती रहते ! February 7, 2020 / February 7, 2020 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment हिम आच्छादित धरती रहते, हिय वसंत हम कितने देखे ! भावों से भास्वर जगती पै, आयामों के पहरे निरखे ! सिमटे मिटे समाये कितने, अटके खटके चटके कितने; चोट खसोटों कितने रोये, आहट पाए कितने सोये ! खुल कर खिल कितने ना पाए, रूप दिखा ना कितने पाए; मन की खोह खोज ना पाए, तन […] Read more » हिम आच्छादित धरती रहते !
दोहे रच कौन क्या गया है सृष्टि ! February 3, 2020 / February 4, 2020 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment रच कौन क्या गया है सृष्टि, कौन देखता; कितना अनन्त उसके शून्य, वही झाँकता; गुणवत्ता आँकता है वही, सत्ता परखता; अलवत्ता उसे कोई कभी, ही है समझता ! संज्ञान उसका लेता जो भी, वो है थिरकता; अणु अपना अहं करके वही, उसमें सिमटता ! अपना विराट रूप वही, जगती में पाता; हर प्राण परश उर […] Read more » रच कौन क्या गया है सृष्टि !
दोहे स्वर्गलोक-भूलोक हो एकीभूत February 3, 2020 / February 3, 2020 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment जो गिरा हुआ है, उसे गिरने का क्या डर होगा जो नतमस्तक है, उसे घमण्ड ने क्या छुआ होगा। खुद मालिक उसे राह दिखायेे,जो नम्र हुआ होगा। जिसने जीत लिया मन को,वह संतोशी रहा होगा। जो शरण प्रभु की पा जाये,समर्पित वह रहा होगा।। जो दिल का बोझ उठाये, वासनाओं में घिरा होगा।। जो सत्य […] Read more » स्वर्गलोक-भूलोक हो एकीभूत
दोहे उर अश्रु लिए भस्म रमा ! February 3, 2020 / February 3, 2020 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment उर अश्रु लिए भस्म रमा, कौन विचरता; शिव सरिस ललित ताण्डव कर, व्याप्ति सिहरता ! आलोक अलोकी का दिखा, जाग्रत करता; कर चित्त-शुद्धि चक्रन वरि, वरण वो करता ! आयाम अनेकों में रमा, प्राणायाम सुर; गुरु चक्र प्रणय लीला किए, प्रणवित करता ! यम नियम सुद्रढ़ शोध करा, स्वास्थ्य सुधाता; अध्यात्म रस में रास करा, […] Read more » उर अश्रु लिए भस्म रमा !