गजल मतलब ना हो तो अपने भी पहचानते नहीं…. April 1, 2013 / April 1, 2013 by इक़बाल हिंदुस्तानी | Leave a Comment -इक़बाल हिंदुस्तानी जब ज़िंदगी हमारी परेशान हो गयी, अपने पराये की हमें पहचान हो गयी। सोने की चिड़िया उड़ गयी मुर्दार रह गये, दंगों से बस्ती देश की शमशान हो गयी। मतलब ना हो तो अपने भी पहचानते नहीं, रिश्तों की जड़ भी फ़ायदा नुकसान हो गयी। […] Read more »
गजल अदना इंसां से भी रिश्ते को बनाकर रखना…. March 18, 2013 / March 18, 2013 by इक़बाल हिंदुस्तानी | Leave a Comment इक़बाल हिंदुस्तानी क़हर आलोद निगाहों से बचाकर रखना, अपने महबूब को आंखों में बसाकर रखना। आपके सारे ग़मों को भी मैं अपना लूंगा, आप होंटो पे तबस्सुम को सजाकर रखना। हर तरफ खूनी फ़सादों के भयानक मंज़र, नाता अफ़ज़ल है पड़ौसी से निभाकर रखना। बनके मशहूर ना मग़रूर बनाना खुद को, अदना […] Read more » अदना इंसां से भी रिश्ते को बनाकर रखना....
गजल मुहोब्बत की भला इससे बड़ी March 16, 2013 by मनोज नौटियाल | 1 Comment on मुहोब्बत की भला इससे बड़ी मुहोब्बत की भला इससे बड़ी सौगात क्या होगी जला कर घर खड़ा हूँ मै यहाँ अब रात क्या होगी || गुनाहों में गिना जाने लगा दीदार करना अब हसीनो के लिए इससे बड़ी खैरात क्या होगी || सुबह से शाम तक देखे कई पतझड़ दरीचे में गरजते बादलों की रात है बरसात क्या […] Read more »
गजल “हुई पहली फुहार भरी बारिश तो तेरी याद आई” March 15, 2013 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment हुई पहली फुहार भरी बारिश तो तेरी याद आई निंदिया से पहले सपनों की बारात और साथ में कुछ हलके-हौले से बीत जानें की बोझिल सी बात भी आई. हर बूँद के साथ बरसा जो वो सिर्फ पानी न था. तेरे यहीं कहीं होने का अहसास भी था उसमें और तेरी बातों के चलते रहनें […] Read more » “हुई पहली फुहार भरी बारिश तो तेरी याद आई”
गजल जहां ग़रीब है सबका शिकार क्या होगा…. March 11, 2013 / March 11, 2013 by इक़बाल हिंदुस्तानी | Leave a Comment इक़बाल हिंदुस्तानी जहां के रहनुमा करते हैं वार क्या होगा, जहां ग़रीब है सबका शिकार क्या होगा। जो आगे आयेगा वो दौर और मुश्किल है, यहां गुलों में है चुभन तो ख़ार क्या होगा। नई नस्ल की तरक़्क़ी की सोच को बदलो, समझ रहे हैं बुज़ुर्गों को भार क्या होगा। जो आग […] Read more »
गजल सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं March 8, 2013 / March 8, 2013 by मनोज नौटियाल | Leave a Comment मनोज नौटियाल सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं नहीं है तू मगर अब भी तेरी परछाईयाँ क्यूँ हैं || नहीं है तू कहीं भी अब मेरी कल की तमन्ना में जूनून -ए – इश्क की अब भी मगर अंगड़ाइयां क्यूँ हैं ? मिटा डाले सभी नगमे मुहोबत्त के तराने […] Read more » सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं
गजल फिर गांव को शहर में बदलने की सोचना…. March 3, 2013 by इक़बाल हिंदुस्तानी | Leave a Comment इक़बाल हिंदुस्तानी नफ़रत से दूसरों को ना नीचे दिखाइये, गर हो सके तो खुद को ही ऊंचा उठाइये। औरों को चोट देने में घायल ना आप हों, पागल के हाथ में ना यूं पत्थर थमाइये। फिर गांव को शहर में बदलने की सोचना, पहले शहर को प्यार से जीना सिखाइये […] Read more »
गजल आजकल ज़िंदगी का भरोसा नहीं…. February 25, 2013 by इक़बाल हिंदुस्तानी | Leave a Comment इक़बाल हिंदुस्तानी उसको शिकवा है उसको समझा नहीं, उसके बारे में मैंने तो सोचा नहीं। क़र्ज़ के वास्ते देश भी बेच दो, तुमने तारीख़ से कुछ भी सीखा नहीं। आईना तोड़कर आप धोखे में हैं, अपने चेहरे के दाग़ों को देखा नहीं। ज़िंदगी तल्खि़यों से बचा लीजिये, आजकल ज़िंदगी का भरोसा नहीं। […] Read more »
गजल जो भी बेटियां बहूं बनी जल रही हैं रोज़ आजकल…. February 17, 2013 / February 17, 2013 by इक़बाल हिंदुस्तानी | Leave a Comment इक़बाल हिंदुस्तानी उम्र नौकरी की चल बसी अर्ज़ियोें का क्या करें जनाब, सबकी सब जला के आ गये डिग्रियों का क्या करें जनाब। पार आके फिर ना जायेंगे उसने ये क़सम दिलाई है, कश्तियां जला रहे हैं हम कश्तियों का क्या करें जनाब। डस रहे हैं दौलतो के नाग दानिशो ज़हीन को यहां, […] Read more »
गजल अहसास ए दर्द वो करे गर चोट खायें हम…. February 10, 2013 / February 10, 2013 by इक़बाल हिंदुस्तानी | Leave a Comment इक़बाल हिंदुस्तानी नामो निशां भी जुल्म का जिसमें ना पायें हम, ऐसा निज़ाम देश में लाकर दिखायें हम। अब ऐसे आदमी को मसीहा बनाइये, अहसासे दर्द वो करे गर चोट खायें हम। ग़ल्ती करेंगे खायेंगे ठोकर बुरा नहीं, संभलें अगर तो कुछ ना कुछ सीख जायेें हम। जीना तो दूर रहना भी […] Read more » अहसास ए दर्द वो करे गर चोट खायें हम....
गजल वक्त है प्यार से ज़हनों में उतर जाने का…. February 5, 2013 / February 6, 2013 by इक़बाल हिंदुस्तानी | Leave a Comment ज़िंदगी नाम है ख़तरों से उभर आने का, खुदकशी नाम है डर डर के भी मर जाने का। चुप ना बैठो कि अब हालात से लड़ना सीखो, है तरीक़ा यही हालात संवर जाने का। घर तुम्हारा भी तो उस आग में जल सकता है, शौक़ जिसका है तुम्हें औरों पे बरसाने का। तुम […] Read more » वक्त है प्यार से ज़हनों में उतर जाने का....
गजल गजल- सत्येन्द्र गुप्ता February 2, 2013 by सत्येन्द्र गुप्ता | Leave a Comment मन लगा यार फ़कीरी में क्या रखा दुनियादारी में ! धूल उड़ाता ही गुज़र गया तो क्या रखा फनकारी में ! वो गुलाब बख्शिश में देते हैं जब भी मिलते हैं बीमारी में ! फिर हिसाब फूलों का लेते हैं वो ज़ख्मों की गुलकारी में ! किस किस को समझाओगे कुछ नहीं रखा लाचारी में […] Read more »