गजल साहित्य
अन्जान
/ by डा.राज सक्सेना
एक डर अन्जान सा, हर शख़्स के मन में बसा है | चीख़ने पर भी, सज़ा-ए-मौत से बढ कर सज़ा है | चुप रहो, सुनते रहो, चुपचाप सब सहते रहो, देखना और बोलना, एक हुक्म से कुछ दिन मना है | हर ‘दुखद घटना’ पे दुख, होता है इस नेतृत्व को, भूल जाना दो दिनों […]
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