गजल ग़ज़ले-ये आजमा के देख लिया इस जहान में December 20, 2011 / December 20, 2011 by शादाब जाफर 'शादाब' | Leave a Comment शादाब जफर ‘‘शादाब’’ ग़ज़ले ये आजमा के देख लिया इस जहान में रूसवाइ्रयो का डर है फक्त झूठी शान में में गुनहागार हूँ मेरी बख्शिश को ऐ खुदा हाफिज कुरान भेज मेरे खानदान में खुशबू लबो की उस के ना बरसो बरस गई जिसने करी है गुफतुगू ऊर्द्व जबान मे छोटे तुम्हे […] Read more » gazals by shadab zafar ग़ज़ले- शादाब जफर ‘‘शादाब’’
गजल गजल:मौसम कभी मुक़द्दर को मनाने में लगे हैं December 15, 2011 / December 15, 2011 by सत्येन्द्र गुप्ता | 1 Comment on गजल:मौसम कभी मुक़द्दर को मनाने में लगे हैं मौसम कभी मुक़द्दर को मनाने में लगे हैं मुद्दत से हम खुद को बचाने में लगे हैं। कुँए का पानी रास आया नहीं जिनको वो गाँव छोड़ के शहर जाने में लगे हैं। हमें दोस्ती निभाते सदियाँ गुज़र गई वो दोस्ती के दुखड़े सुनाने में लगे हैं। बात का खुलासा होता भी तो कैसे सब […] Read more » gazal Satyendra Gupta गजल सत्येंद्र गुप्ता
गजल लेकिन किसी के दिल को दुखाना भी नहीं है….. November 30, 2011 / November 29, 2011 by इक़बाल हिंदुस्तानी | Leave a Comment इक़बाल हिंदुस्तानी बच्चे की ज़िद है महंगी बहाना भी नहीं है, मिट्टी के खिलौनों का ज़माना भी नहीं है। दुश्मन से डरके हाथ मिलाना भी नहीं है, मेरे सिवा तो कोई निशाना भी नहीं है। चाहता नहीं उसे मैं, छिपाना भी नहीं है, उस शख़्स को इस ग़म में रुलाना भी नहीं है। जीना है […] Read more » Gazals
गजल गली गली मैख़ाने हो गये November 29, 2011 / December 4, 2011 by सत्येन्द्र गुप्ता | 1 Comment on गली गली मैख़ाने हो गये गली गली मैख़ाने हो गये कितने लोग दीवाने हो गये। महक गई न दूध की मूंह से बच्चे जल्दी सयाने हो गये। हम प्याला हो गये वो जबसे रिश्ते सभी बेगाने हो गये। जाम से जाम टकराने के हर पल नये बहाने हो गये। हर ख़ुशी ग़म के मौके पर छलकते अब पैमाने हो गये। […] Read more » Gazals
गजल पड़ौसी पड़ोसी है हिंदू न मुस्लिम……. November 3, 2011 / December 5, 2011 by इक़बाल हिंदुस्तानी | 1 Comment on पड़ौसी पड़ोसी है हिंदू न मुस्लिम……. इक़बाल हिंदुस्तानी हरेक तश्नालब की हिमायत करूंगा, समंदर मिला तो शिकायत करूंगा। अगर आंच आई किसी जिंदगी पर, हो अपना पराया हिफ़ाज़त करूंगा। अभी तो ग़रीबों में मसरूफ हूँ मैं, मिलेगी जो फुर्सत इबादत करूंगा। तरक्की की ख़ातिर वो यूं कह रहा था, मैं जिस्मों की खुलकर तिजारत करूंगा। ज़मीर अपना बेचंू जो दौलत कमाउ, […] Read more » hindu India muslims pakistan पड़ौसी पड़ौसी है हिंदू न मुस्लिम
गजल ऐसी महंगाई में क्या करे आदमी October 9, 2011 / December 5, 2011 by शादाब जाफर 'शादाब' | Leave a Comment शादाब जफर “शादाब’’ ऐसी महगॉई मै क्या करे आदमी पेट बच्चो का कैसे भरे आदमी खू पसीना बहा कर भी रोटी नही कैसे अपना गुजारा करे आदमी बिक चुके सारे नेता मेरे देश के कैसे सरहद पे जाकर लडे आदमी चन्द सिक्को मै कानून बिकने लगा किस से फरियाद अपनी कहे आदमी […] Read more » Inflation महंगाई
गजल पेड़ गिरा तो उसने दिवार ढहा दी October 1, 2011 / October 1, 2011 by सत्येन्द्र गुप्ता | Leave a Comment पेड़ गिरा तो उसने दिवार ढहा दी फिर एक मुश्किल और बढ़ा दी। पहले ही मसअले क्या कम थे उन्होंने एक नई कहानी सुना दी। फूल कहीं थे सेज कहीं बिछी थी मिलन की कैसी यह रात सजा दी। क्या खूब है जमाने का दस्तूर भी जितना क़द बढ़ा बातें उतनी बढ़ा दी। चीखते फिर […] Read more »
गजल गजलें September 28, 2011 / December 6, 2011 by शादाब जाफर 'शादाब' | Leave a Comment आदमी के खून का ही आदमी प्यासा मिला गॉव से पहुंचा बाहर तो हर तरफ धोखा मिला सेठ के बच्चे खिला कर घर जो पहुंची राम दीन अपना बच्चा सुबह से भूखा उसे रोता मिला दे दिया नारा चलो स्कूल इस सरकार ने टाट, शिक्षक, श्याम पट स्कूल मे कुछ ना मिला […] Read more » ghazals गजले
गजल बह रही इस मुल्क में कैसी बयार देखिए…. September 28, 2011 / December 6, 2011 by हिमकर श्याम | Leave a Comment हिमकर श्याम कल के रहजन बन गये शहरयार, देखिए वैशाखियों पे चल रही ये सरकार, देखिए तारीकियाँ, मायूसियाँ, तबाहियाँ और बलाएँ बह रही इस मुल्क में कैसी बयार देखिए दुकान सजाये बैठे हैं सदाक़तो ईमान बेचने रिश्वतों पे चल रहा सारा कारोबार, देखिए किस मुक़ाम पे जा पहुँची तर्जे सियासत यहाँ हुकूमतों […] Read more »
गजल दौरे-उल्फत की हर बात याद है मुझे August 6, 2011 / January 4, 2012 by सत्येन्द्र गुप्ता | 1 Comment on दौरे-उल्फत की हर बात याद है मुझे दौरे-उल्फत की हर बात याद है मुझे तुझसे हुई वह मुलाकात याद है मुझे। बरसते पानी में हुस्न का धुल जाना दहकी हुई वह बरसात याद है मुझे। तेरा संवरना उसपे ढलका आंचल संवरी बिखरी सी हयात याद है मुझे। सर्द कमरे में गर्म साँसों की महक हसीं लम्हों की सौगात याद है मुझे। दिल […] Read more »
गजल हाथों में रची मेहँदी और झूले पड़े हैं July 27, 2011 / December 8, 2011 by सत्येन्द्र गुप्ता | Leave a Comment हाथों में रची मेहँदी और झूले पड़े हैं पिया क्यों शहर में मुझे भूले पड़े हैं। आजाओ जल्दी से अब रहा नहीं जाता कि अमिया की ड़ाल पर झूले पड़े हैं। सावन का महीना है मौका तीज का पहने आज हाथों में मैंने नए कड़े हैं। समां क्या होगा जब आकर कहोगे गोरी अब तो […] Read more » Mehandi हाथों में रची मेहँदी
गजल जिंदगी पाँव में घुँघरू बंधा देती है June 7, 2011 / December 11, 2011 by सत्येन्द्र गुप्ता | Leave a Comment जिंदगी पाँव में घुँघरू बंधा देती है जब चाहे जैसे चाहे नचा देती है। सुबह और होती है शाम कुछ और गम कभी ख़ुशी के नगमें गवा देती है। कहती नहीं कुछ सुनती नहीं कुछ कभी कोई भी सजा दिला देती है। चादर ओढ़ लेती है आशनाई की हंसता हुआ चेहरा बुझा देती है। चलते […] Read more » life घुँघरू जिंदगी