कविता कुछ देर में ये नज़ारा भी बदल जाएगा November 4, 2019 / November 4, 2019 by सलिल सरोज | Leave a Comment कुछ देर में ये नज़ारा भी बदल जाएगा ये आसमाँ ये सितारा भी बदल जाएगा कितना मोड़ पाओगे दरिया का रास्ता किसी दिन किनारा भी बदल जाएगा दूसरों के भरोसे ही ज़िंदगी गुज़ार दी वक़्त बदलते सहारा भी बदल जाएगा झूठ की उम्र लम्बी नहीं हुआ करती ये ढोल ये नगाड़ा भी बदल जाएगा गिनतियों […] Read more » कुछ देर में ये नज़ारा भी बदल जाएगा
कविता वो इस कदर बरसों से मुतमइन* है November 4, 2019 / November 4, 2019 by सलिल सरोज | Leave a Comment वो इस कदर बरसों से मुतमइन* है जैसे बारिश से बेनूर कोई ज़मीन है साँसें आती हैं, दिल भी धड़कता है सीने में आग दबाए जैसे मशीन है आँखों में आखिरी सफर दिखता है पसीने से तरबतर उसकी ज़बीन* है अपने बदन का खुद किरायेदार है खुदा ही बताए वो कैसा मकीन* है ज़िंदगी मौत […] Read more »
कविता मैंने तुम्हें अभी पढ़ा ही कहाँ है November 3, 2019 / November 3, 2019 by सलिल सरोज | Leave a Comment मैंने तुम्हें अभी पढ़ा ही कहाँ है सिर्फ जिल्द देखकर सारांश तो नहीं लिखा जा सकता अध्याय दर अध्याय,पन्ने दर पन्ने किरदारों की कितनी ही गिरहें खुलनी अभी बाकी हैं उपसंहार से पहले प्रस्तावना और प्रस्तावना से पहले अनुक्रमिका सब कुछ जानना है मेरी नियति की रचना सिर्फ इस बात पर निर्भर करती है कि […] Read more »
कविता साहित्य जंगल की दीवाली November 1, 2019 / November 1, 2019 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment जंगल में मन रही दीवाली, बिना पटाखों बिन बम वाली। शेर सिंह ने दिए जलाए। हाथी हार फूल ले आए। भालू लाई बताशे लाया। चीतल पंचा मृत ले आया। सेई लाई पूजा की थाली। हिरण ढेर फुलझडियां लाए। नेवलों ने लड्डू बंटवाए। गेंडा ढोल बड़ा ले आया। बांध गले में खूब बजाया। ना ची बंदर […] Read more »
कविता भूख लगे तो रोटी की जात नहीं पूछा करते November 1, 2019 / November 1, 2019 by सलिल सरोज | Leave a Comment भूख लगे तो रोटी की जात नहीं पूछा करतेपेट को लगेगी बुरी,ये बात नहीं पूछा करते 1 ये धरती बिछौना ,ये आसमाँ है शामिआनाबेघरों से बारहाँ दिन -रात नहीं पूछा करते 2 मालूम है कि एक भी पूरी नहीं हो पाएगीबेटियों से उनके जज्बात नहीं पूछा करते 3 क्यों बना है बेकसी का ये आलम […] Read more »
कविता साहित्य ये चाक जिगर के सीना भी जरूरी है November 1, 2019 / November 1, 2019 by सलिल सरोज | Leave a Comment ये चाक जिगर के सीना भी जरूरी हैकुछ रोज़ खुद को जीना भी जरूरी है ज़िंदगी रोज़ ही नए कायदे सिखाती हैबेकायदे होके कभी पीना भी जरूरी है सब यूँ ही दरिया पार कर जाएँगे क्यासबक को डूबता सफीना भी जरूरी है जिस्म सिमट के पूरा ठंडा न पड़ जाए साल में जून […] Read more »
कविता ऐसी दिवाली मनायें।। October 31, 2019 / October 31, 2019 by अजय एहसास | Leave a Comment तू दीया मै बाती ,दोनो इक दूजे के साथी दोनो दृढ़ अपनी बातो पे, दोहरा चरित्र न आता दीया सूना बाती बिन ,बाती सूनी कहलाये तू मुझमें मैं तुझमें देखूं, ऐसी दिवाली मनायें।। बाती को दीये का सहारा, दीया को बाती है प्यारा इक दूजे के साथ खड़े हों, प्यार हमेशा रहे हमारा ऐसी प्रीत […] Read more » ऐसी दिवाली मनायें।।
कविता मै भारत का रहने वाला हूँ,भारत की ही बात तुम्हे सुनाता हूँ | October 26, 2019 / October 26, 2019 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment मै भारत का रहने वाला हूँ,भारत की ही बात तुम्हे सुनाता हूँ |यहाँ बुद्ध राम रहीम नानक महावीर जन्मे,उनके उपदेश सुनाता हूँ ||करते थे वे सबका परोपकार, अहिंसा शांति के मार्ग पर चलते थे |दिया नहीं कभी किसी को कष्ट,सबका आदर सत्कार वे करते थे ||दिया सारे विश्व को एक नया सन्देश, वे आज भी […] Read more » भारत
कविता मैं कैसे करूँ गर्व ! October 23, 2019 / October 23, 2019 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment मैं कैसे करूँ गर्व, सर्व उसका जब रहा; दर्पण में रूप लखके कहूँ, मेरा कब रहा ! है कथानक उसी का, चर्म उसका ही रहा; हर मर्म पीछे झाँका वही, कर्त्ता वो रहा ! भरता उमँग औ तरंग, वह-ही तो रहा; हर ताल लय में नृत्य देखे, चाहे वो रहा ! वर्चस्व जो भी बचा […] Read more »
कविता खुलेपन के मायने October 17, 2019 / October 17, 2019 by डा.सतीश कुमार | Leave a Comment खुलेपन के मायने बदल गए हैं, विचारों के खुलेपन को नहीं , शरीर के खुलेपन को , तरजीह मिलने लगी है। हद होती है, हर बात की, शरीर के खुलेपन की, कोई हद नज़र आती नहीं। हर युग की जरूरतें, स्थितियाँ, परिस्थितियां अलग होती हैं। परिवर्तित होती हैं मन:स्थितियाँ, शारीरिक पहनावा, मौसम अनुसार भी। माहौल […] Read more »
कविता खोई कलम को खोज ले October 17, 2019 / October 17, 2019 by डॉ कविता कपूर | Leave a Comment धर्म की छत तले अधर्म का कैक्टस पले, जातिवाद का कहर और जिहाद का ज़हर चखकर आज कबीर की वाणी मुख हो गई, ना जाने कबीर की कलम कहांँ खो गई। ना जाने कबीर की कलम कहांँ खो गई…. नारी निर्मला की दशा निम्न से निम्नतर हो गई निर्मला के आँसू रीते नहीं कि वह […] Read more »
कविता करवाचौथ पर बीबी की फरमाईशे October 17, 2019 / October 17, 2019 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment रखती हूँ व्रत बस तुम्हारी ही ज्यादा उम्र के लिये बस करवांचौथ पर इतनी फरमाईश पूरी कर दीजिये हो गई साड़िया बहुत पुरानी फैशन भी बदल चूका बस एक साडी नये फैशन सुंदर सी दिला दीजिये हो गया सोने का सेट पुराना ऐसा पहनता कोई नहीं बस एक हीरो का हार करवांचौथ पर दिलवा दीजिये […] Read more » करवाचौथ