कविता जगत मिलन June 7, 2014 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment -मिलन सिन्हा- 1.जगत मिलन सख्त चेहरा था उसका पत्थर जैसा झांक कर देखा अंदर बच्चों सा दिल मोम सा पिघलने लगा संकल्प था उसके मन में सपना सबका पूरा करूँगा मिलन का वातावरण होगा हर होंठ पर स्मिति ला दूंगा शालीन बनकर साथ रहूँगा। 2.सार्थक कोशिश सागर तट पर अकेले बैठे दूर तक लहरों को […] Read more » अंतः मन जगत मिलन सार्थक कोशिश हिन्दी कविता
कविता मौत जीवन की सहेली June 7, 2014 by श्यामल सुमन | Leave a Comment -श्यामल सुमन- दूसरों की शर्त पे, जीने की आदत है नहीं टूट जाए दिल किसी का ऐसी फितरत है नहीं जाने अनजाने सभी को प्यार होना लाजिमी प्यार मिलते ही सिसकते ये हकीकत है नहीं आते ही घर, पूछ ले बस, हाल कैसा आपका क्यों बुजुर्गों ने कहा अब ऐसी किस्मत है नहीं आज बच्चों […] Read more » मौत मौत पर कविता हिन्दी कविता
कविता विलासिता की चाह ने किया प्रकृति से दूर June 5, 2014 by हिमकर श्याम | Leave a Comment -हिमकर श्याम- -पर्यावरणीय दोहे- वायु, जल और यह धरा, प्रदूषण से ग्रस्त। जीना दूभर हो गया, हर प्राणी है त्रस्त।। नष्ट हो रही संपदा, दोहन है भरपूर। विलासिता की चाह ने, किया प्रकृति से दूर।। जहर उगलती मोटरें, कोलाहल चहुंओर। हरपल पीछा कर रहे, हल्ला गुल्ला शोर।। आंगन की तुलसी कहां, दिखे नहीं अब नीम। […] Read more » पर्यावरण दोहे प्रकृति विलासिता की चाह ने किया प्रकृति से दूर
कविता सीने में जलती आग June 4, 2014 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment -मिलन सिन्हा- हर मौसम में, देखता हूँ उन्हें, मौसम बारिश का हो, या चुनाव का, रेल पटरियों से सटे, उनके टाट -फूस के, घर भी हैं सटे-सटे, चुनाव से पूर्व उन्हें, एक सपना दिखाई देता है, बारिश से पहले, अपने एक पक्के घर का, लेकिन चुनाव के बाद, बारिश शुरू होते ही, एक दुःस्वप्न दिखाई […] Read more » कविता सीने में जलती आग हिन्दी कविता
कविता शपथ ग्रहण की वानगी May 30, 2014 / May 30, 2014 by श्रीराम तिवारी | Leave a Comment शपथ ग्रहण की वानगी ,देख हुआ जग दंग। भले स्वजन रूठे रहें , या मजबूरन संग।। रूठी दिखी वसुंधरा , आडवाणी बैचेन। मुरली मनोहर की व्यथा,आंसू ढरते नैन ।। शपथग्रहण शामिल हुए , नेता सब दक्षेश। भारत-पाक मिल-बैठकर ,दूर करेंगे द्वेष ।। ममता -माया -मुलायम ,नीतीश -जया -नवीन। इनके बिना भी बज रही ,’नमो ‘नाम […] Read more » शपथ ग्रहण की वानगी
कविता बहनों के लिये शिविर में गाए जाने वाला गीत May 27, 2014 by विमलेश बंसल 'आर्या' | 1 Comment on बहनों के लिये शिविर में गाए जाने वाला गीत -विमलेश बंसल- सुनते आये रोज़ कहानी शौर्य, त्याग, बलिदान की। आओ बहनों बनें वाहिनी आर्य राष्ट्र निर्माण की॥ वंदे मातरम्-4 1. हम हैं शिक्षित हम हैं दीक्षित हाथों में अखबार लिये। हम हैं दुर्गा हम हैं काली कांधों पर हथियार लिये। असुरों को हम मार गिराएं परवाह न कर जान की॥ आओ बहनों… २. हम […] Read more » बहन बहन गीत
कविता अजनबी से मुलाकात May 24, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -लक्ष्मी जयसवाल- अजनबी से मुलाकात, जाने क्या हुआ उस दिन कि, राहों में देखकर कर उनको, दिल ठहर सा गया। जाने वो अजनबी मुझ पर, क्या जादू कर गया। जुबां तो ख़ामोश थी पर, आंखें हाल-ए-दिल उसका, मुझसे बयां कर गया। जाने क्या था उन आंखों में, कि उनकी गहराई में, दिल मेरा उतर गया। […] Read more » अजनबी से मुलाकात कविता हिन्दी कविता
कविता ना जाने क्यों May 24, 2014 by रवि कुमार छवि | Leave a Comment -रवि कुमार छवि- ना जाने क्यों आज-कल खोया-खोया सा रहता हूं, खुद से खफा रहता हूं, बिना हवा के चलने से पेड़ों को हिलते हुए देखता हूं, बिन बारिश के बादलों में इंद्रधनुष को देखता हूं, तो कभी, लहरों की बूंदों को गिनने की कोशिश करता हूं, ना जाने क्यों आज-कल खोया-खोया सा रहता हूं, […] Read more » कविता ना जाने क्यों हिन्दी कविता
कविता क्रोध May 23, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- क्रोध क्या है? फट जाये तो ज्वालामुखी, दब जाये तो भूकंप! गल जाये वो बर्तन, जिसमें उसे रख दो, तेज़ाब की तरह! क्रोध इतना हो कि, वो जोश दिलादे! क्रोध इतना हो कि, न होश उड़ा दे! जो प्रेरणा बन जाये, उतना क्रोध ही भला। इसलिये, क्रोध की जड़ों को, पकड़ के, थोड़ा […] Read more » क्रोध क्रोध कविता क्रोध पर कविता
कविता हम नदी के दो किनारे May 22, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- नदी के दो किनारों की तरह, मै और तुम साथ साथ हैं। हमारे बीच ये नदी तो, प्रवाह है, जीवन और विश्वास है। हमारे बीच इसका होना, हमें साथ रखता है, जोड़ता है, न कि दूर रखता है। मानो कि ये नदी हो ही नहीं, तो क्या किनारे होंगे! नदी पहाड़ पर हो […] Read more » कविता जीवन कविता
कविता कमल May 21, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- कमल कुंज सरोवर में जब, ज्योतिपुंज रवि ने लहराया, शीतल समीर ने जल को छूकर, लहरों का इक जाल बिछाया। प्रातः की नौका विहार का, दृष्य ये अनुपम देखके हमने, नौका को कुछ तेज़ चलाया, दूर कमल के फूल खिले थे, उन तक हम न पहुंच सकते थे, दूर से देख कमलों पुष्पों […] Read more » lotus कमल कमल पर कविता
कविता धर्म क्या है? May 15, 2014 / May 15, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- धर्म क्या है? केवल संस्कृति! या फिर एक नज़रिया! या फिर जीने की कला! जो है जन्म से मिला। धर्म जो बांट दे, धर्म जो असहिष्णु हो, तो क्या होगा किसी का भला! व्रत उपवास ना करूं, मंदिरों में ना फिरूं, या पूजा पाठ ना करूं, तो क्या मैं हिंदू नहीं? रोज़ा नमाज़ […] Read more » धर्म धर्म कहता है धर्म पर कविता