कविता नारी शक्ति भारती October 1, 2013 by बीनू भटनागर | 3 Comments on नारी शक्ति भारती लावण्य रूप मोहती, उत्कृषठ बुद्धि धारती, अपार शक्ति व्यापती, नारी शक्ति भारती। स्त्री विमर्श त्यागती, स्वयं को पहचानती, आरक्षण नहीं मांगती, संरक्षण नहीं चाहती। स्नेह आदर स्वीकारती, दासता धिक्कारती, कर्तव्य सब निर्वाहती, स्नेह से दुलारती। Read more » नारी शक्ति भारती
कविता कविता : जंजीर September 26, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment – मिलन सिन्हा […] Read more » कविता : जंजीर
कविता कविता-ठण्डी ठण्डी बौछारें September 24, 2013 / September 24, 2013 by जगमोहन ठाकन | Leave a Comment जग मोहन ठाकन भादों की तपती उमस में , सावन का एहसास दिलायें । फुहार बरसती बौछारें, ये ठण्डी ठण्डी बोछारें ।। उदास हुए ये गुवार के पत्ते मूंह लटकाये बाजर सिरटी । बौछारों की इक छुअन से खिल खिल जाये खेत की मिटटी। ऐसा सहलायें बौछारे , ये ठण्डी ठण्डी बौछारें ।। रातों भेजे […] Read more » ठण्डी ठण्डी बौछारें
कविता व्यंग्य खाने में कैसा शर्म September 18, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा कसमें वादे निभायेंगे न हम मिलकर खायेंगे जनम जनम जनता ने चुनकर भेजा है चुन- चुनकर खायेंगे पांच साल बाद खाने का कारण विस्तार से उन्हें बतायेंगे कसमें वादे निभायेंगे न हम मिलकर खायेंगे जनम जनम हीरा-मोती, सोना-चांदी तो है ही बस थोड़ा और रुक जाइये जंगल,जमीन के साथ साथ […] Read more » खाने में कैसा शर्म
कविता मै फिर भी कविता लिखती हूँ September 17, 2013 / September 17, 2013 by बीनू भटनागर | Leave a Comment मै फिर भी कविता लिखती हूँ मैने नहीं लिखे इश्क के अफ़साने, मैने नहीं बुने प्यार के ताने-बाने, मै फिर भी कविता लिखती हूँ। मैने नहीं किया किसी का इंतज़ार, मैन नहीं काटी कोई आँखों मे रात, मै फिर भी कविता लिखती हूँ। मेरे अतीत मे कुछ ऐसा है ही नहीं, मुडकर जो देखूँ लिखूं […] Read more » मै फिर भी कविता लिखती हूँ
कविता कविता – कितना अच्छा होता September 13, 2013 / September 13, 2013 by मोतीलाल | 1 Comment on कविता – कितना अच्छा होता कितना अच्छा होता कि हवा अपनी ही दुनिया में बहती न वह आँधी का रुप लेती न ही कोई घर बेघर हो पाता । कितना अच्छा होता कि नदी अपने में शांत बहती न बाढ़ का रुप धरती न किसी को अनाथ होना होता । कितना अच्छा होता कि धरती अपने में मस्त […] Read more » कविता - कितना अच्छा होता
कविता उत्तराखण्ड महान है | September 12, 2013 / September 12, 2013 by डा.राज सक्सेना | 1 Comment on उत्तराखण्ड महान है | डा. राज सक्सेना पग-पग पर पावन नवगंगा, कण – कण देव समान है | हरित हिमालय से संपूरित , उत्तराखण्ड महान है | गौरवमय गिरिराज, गोमुखी- गंगा का श्री-द्वार है | शिवसमसुन्दर,श्रेष्टसुसज्जित, कनखलमय , हरिद्वार है | सांध्यआरती गंगा-तट की, पुलकित, पुण्य प्रमाण है | हरितहिमालय […] Read more » उत्तराखण्ड महान है |
कविता कौन हो तुम September 12, 2013 by रवि कुमार छवि | Leave a Comment अकेला रहता हूं तो तुम दौड़कर कसकर अपनी बाहों में भर लेती हो रोमांच के इस पड़ाव पर पहुंचाकर कुछ ही पलों में रुखसत हो जाती हो क्यों आती ? क्यों जाती हो इस सवाल का जवाब नहीं हैं तुम्हारा अतीत में ले जाना अतीत से वापस लाकर फिर से उसी हालत में पटक […] Read more » कौन हो तुम
कविता आओ खेलें नया एक खेल, सेक्युलर-कम्यूनल वाला खेल! September 8, 2013 / September 8, 2013 by भारत भूषण | Leave a Comment आओ खेलें नया एक खेल, सेक्युलर-कम्यूनल वाला खेल! है यह बहुत निराला खेल, नेताओं का प्यारा खेल !! भगवा रंग को कम्यूनल कहना, हरे रंग का सेक्युलर रहना ! होगा बहुत रंगीला खेल, सेक्युलर-कम्यूनल वाला खेल!! नेताओं का प्यारा खेल, है यह बहुत निराला खेल!! तुम मुस्लिम हित की बात है करना, हमेशा ही सेक्युलर […] Read more » भारत भूषण
कविता इश्किया शायरी- फेसबुक पर September 5, 2013 / September 5, 2013 by बीनू भटनागर | Leave a Comment फेसबुक पर लगा है इश्क का बाज़ार, दो रुपये मे ढ़ाई किलो आज का है भाव, कवि मित्र लिख रहे हैं मधुमास के गीत, कवियत्रियों को भी किसी का इंतज़ार है। इश्क के बाज़ार मे माल बहुत पड़ा है, कविता ग़ज़ल शायरी सबकी भरमार है, लूटलो कंमैंट बेशुमार भरलो झोलीयाँ , लाइक की बात क्या, […] Read more » इश्किया शायरी- फेसबुक पर
कविता कविता : अच्छा लगता है September 3, 2013 by मिलन सिन्हा | 2 Comments on कविता : अच्छा लगता है मिलन सिन्हा कभी कभी खुद पर हंसना भी अच्छा लगता है कभी कभी दूसरों पर रोना भी अच्छा लगता है। हर चीज आसानी से मिल जाये सो भी ठीक नहीं कभी कभी कुछ खोजना भी अच्छा लगता है। भीड़ से घिरा रहता हूँ आजकल हर घड़ी कभी कभी तन्हा रहना भी अच्छा लगता […] Read more » अच्छा लगता है
कविता बहिष्कार September 2, 2013 / September 2, 2013 by बीनू भटनागर | Leave a Comment निर्मल बाबा हो या आसाराम, या कोई भी और संत महान, धन और सत्ता के मतवाले, शिष्यों को भरमाने वाले, उनका लाभ उठाने वाले, तिज़ोरी अपनी भरने वाले, धर्म […] Read more » बहिष्कार