कविता कविताएं-सौरभ राय ‘भगीरथ’ January 26, 2013 / January 27, 2013 by सौरभ राय 'भगीरथ' | Leave a Comment संतुलन मेरे नगर में मर रहे हैं पूर्वज ख़त्म हो रही हैं स्मृतियाँ अदृश्य सम्वाद ! किसी की नहीं याद – हम ग़ुलाम अच्छे थे या आज़ाद ? बहुत ऊँचाई से गिरो और लगातार गिरते रहो तो उड़ने जैसा लगता है एक अजीब सा समन्वय है डायनमिक इक्वीलिब्रियम ! अपने उत्त्थान की चमक […] Read more »
कविता संदेश January 26, 2013 by श्यामल सुमन | Leave a Comment संदेश भारत है वीरों की धरती, अगणित हुए नरेश। मीरा, तुलसी, सूर, कबीरा, योगी और दरवेश। एक हमारी राष्ट्र की भाषा, एक रहेगा देश। कागा! ले जा यह संदेश, घर-घर दे जा यह संदेश।। सोच की धरती भले अलग हों, राष्ट्र की धारा एक। जैसे गंगा में मिल नदियाँ, हो जातीं हैं नेक। रीति-नीति […] Read more »
कविता कविता – गर्म होता समय और हम January 22, 2013 / January 22, 2013 by मोतीलाल | Leave a Comment अभी समय के भंडार में ब्लैकहोल होने की बात सुगबुगाहट तक सिमित नहीं है और ना ही बची है कोई ओजोन समय के गर्भ मेँ । आज समय का नाप-तौल मापने की सारी शक्ति उदारवाद के चमकते फर्श पर सिसकने को विवश है और कामना के हर कदम पर बिछने को आतुर वे सारी […] Read more »
कविता उत्तर-आधुनिकयुगीन युवाओं की स्थिति पर -दोहे. January 21, 2013 by श्रीराम तिवारी | Leave a Comment Name: Shriram Tiwari नव-युग के तरुणी -तरुण ,शिक्षित-सभ्य-जहीन। सिस्टम के पुर्जे बने, हो गए महज़ मशीन।। अधुनातन साइंस का, भौतिक महाप्रयाण। नवयुग के नव मनुज का, हो न सका निर्माण।। उन्नत-प्रगत-प्रौद्दोगिकी, शासक जन विद्द्वान। शोषित -पीड़ित दमित का,कर न सके कल्याण।। भ्रष्ट स्वार्थी तंत्र में, जिन के जुड़े हैं […] Read more »
कविता चार राग January 21, 2013 / January 21, 2013 by बीनू भटनागर | Leave a Comment भोर मे भैरवी के स्वर छिड़े हैं, इन्ही के साथ हम प्रभु से जुड़े हैं, संगीत साधना बनी आराधना , फिर कंहीं क्यों और करूँ प्रार्थना । स्वर ताल मे बंदिशों को बाँधकर , साज़ों मे संगीत लहरी ढालकर, तक धिं तक ता तारानों मे डालकर , गा भैरव कोमल रिषभ संभालकर । […] Read more »
कविता मै और तुम January 20, 2013 / January 20, 2013 by बीनू भटनागर | Leave a Comment मै और तुम और ये साथ, संजोये चल रहे हैं साथ साथ, अन्तर का ये अंतहीन सिलसिला, पर कोई जोड़ नहीं है बिन सिला। मै अधीर तुम धीरज, मै बहाव तुम ठहराव, मै नदी तुम झील, संजोये चल रहे हैं ये साथ, बिना बिखराव। तुम मौन मै वाचाल मै धरा तुम आकाश, शान्त सागर तुम […] Read more » poem by binu bhatnagar
कविता मौन में पलने दो January 19, 2013 by विजय निकोर | Leave a Comment तुम मेरे संतृप्त स्नेह की शिल्पकार जैसे भी चाहो तराशो इसको, नाम दो, आकार दो, ….. पर शब्द न दो, कि शब्दों में छिपे होते हैं भ्रम अनेक, छंटता है इनसे अनिष्ट छलावा, शब्द छोड़ जाते हैं छलनी मुझको, प्रिय, मैं अब स्नेह से नहीं स्नेहमय शब्दों से डरता हूँ । आओ, बैठो पास, और पास मेरे, कहो […] Read more » मौन में पलने दो
कविता सच बतलाना January 16, 2013 / January 16, 2013 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment नहीं कहानी भूतों वाली कहना अम्मा, ना ही परियों वाला कोई गीत सुनाना| क्या सचमुच ही चंदा पर रहती है बुढ़िया, इस बारे में मुझको बिल्कुल सच बतलाना| कहते हैं सब चंदा पर अब , इंसानों के पैर पड़ चुके| वायुयान ले धरती वाले, चंदा पर दो बार चढ़ चुके| चंद्र ग्रहण पर उसको […] Read more »
कविता चाहत-ऋषभ कुमार January 16, 2013 / March 5, 2013 by ऋषभ कुमार सारण | Leave a Comment भूमिका: कविता “चाहत” के माध्यम से पाठक का ध्यान उसकी अपनी “चाहत” (जीवन का लक्ष्य) की और आकर्षित करने का प्रयास किया गया है, जिसके लिए उसका अंतर्मन अप्रत्यक्ष रूप से हमेशा उद्वेलित रहता है। ‘यार’ उपमा के द्वारा उस व्यक्ति को सांकेतिक तरीके से संबद्ध किया गया है, जो अपने जीवन में कुछ महान […] Read more »
कविता अबकी बार सिंहासन को ठोस फैसला करना होगा ….!! January 16, 2013 / January 16, 2013 by हितेश शुक्ला | Leave a Comment {शहीदों को समर्पित – हितेश शुक्ल } रोज रोज का झंझट अब यह ख़त्म हमे करना होगा ! अबकी बार सिंहासन को ठोस फैसला करना होगा !! कब तक बांध हाथ रोएंगे हम अपने शेरो की कुर्बानी पर ! बेहद शर्मिंदा है भारत माँ दिल्ली की कायरता पर !! वीर शिवा और भगत सिंह का […] Read more » poem dedicated to martyrs
कविता वियोग – विजय निकोर January 13, 2013 / January 13, 2013 by विजय निकोर | Leave a Comment सोचता हूँ, चबूतरे पर बैठी अभी भी क्रोशिए से तुम कोई नाम बुनती हो क्या ? ….इसका मतलब ? तो, “क्या” नाम बुनती होगी ? या, कोई नाम नहीं, रिक्तता, बस रिक्तता बुनती चली जाती होगी स्वयं तुम्हारे सुकोमल हाथों से । तुम्हारी विपन्न वेदना, बस बहती चली आती होगी, तुम्हारे व्योम-मंडल से … […] Read more » poem by vijay nikor
कविता पराकाष्ठा January 6, 2013 / January 6, 2013 by विजय निकोर | 2 Comments on पराकाष्ठा विजय निकोर आज जब दूर क्षितिज पर मेघों की परतें देखीं लगा मुझको कि कई जन्म-जन्मान्तर से तुम मेरे जीवन की दिव्य आद्यन्त “खोज” रही हो, अथवा, शायद तुमको भी लगता हो कि अपनी सांसों के तारों में कहीं, तुम्हीं मुझको खोज रही हो। कि जैसे कोई विशाल महासागर के तट पर बिता […] Read more » poem by vijay nikor