कविता सुदर्शन ‘प्रियदर्शिनी’ की पांच कविताएं January 16, 2010 / January 16, 2010 by सुदर्शन प्रियदर्शनी | Leave a Comment औल कल मेरी औल कट जायेगी इतने बरसों बाद। जब मिट्टी से टूटता है कोई तो औल कटती है बार बार। कल मै बनूँगी नागरिक इस देश की जिस को पाया मैने सायास पर खोया है सब कुछ आज अनायास़। कल मेरी औल कटेगी भटकन इतना मायावी तांत्रिक जाल इतना भक भक उजाला इतना भास्कर […] Read more » कविताएँ प्रियदर्शनी सुदर्शन
कविता नज़्म/ मेरे महबूब January 2, 2010 / January 2, 2010 by फ़िरदौस ख़ान | 2 Comments on नज़्म/ मेरे महबूब मेरे महबूब ! उम्र की तपती दोपहरी में घने दरख्त की छांव हो तुम सुलगती हुई शब की तन्हाई में दूधिया चांदनी की ठंडक हो तुम ज़िन्दगी के बंजर सहरा में आबे-ज़मज़म का बहता दरिया हो तुम मैं सदियों की प्यासी धरती हूं बरसता-भीगता सावन हो तुम मुझ जोगन के मन-मंदिर में बसी मूरत हो […] Read more » नज़्म
कविता नववर्ष पर तीन कविताएँ December 30, 2009 / December 25, 2011 by सतीश सिंह | 3 Comments on नववर्ष पर तीन कविताएँ नववर्ष से तुम एक बार फिर वैसे ही आ गए और मैं एक बार फिर वैसे ही तुम्हारे सामने हूँ हमेशा की तरह अपने साथ आशाओं के दीप ले आये हो तुम हौले-हौले मेरे पास अपने भीतर की तमाम उर्जा इकठ्ठा कर पुन: चल दूँगा मैं भी तुम्हारे साथ 2 नववर्ष में मैं हर नववर्ष […] Read more » New Year नव वर्ष
कविता पाँच प्रेम कविताएँ December 26, 2009 / December 25, 2011 by सतीश सिंह | 9 Comments on पाँच प्रेम कविताएँ 1 इंतजार मैं तो भेजता रहूँगा हमेशा उसको ‘ढाई आखर’ से पगे खत अपने पीड़ादायक क्षणों से कुछ पल चुराकर उन्हें कलमबद्ध करता ही रहूँगा कविताओं और कहानियों में मैं सहेज कर रखूँगा सर्वदा उन पलों को जब आखिरी बार उसने अपने पूरेपन से समेट लिया था अपने में मुझे और दूर कहीं हमारे मिलन […] Read more » Love poem प्रेम कविता
कविता कविता / मेरा मन December 13, 2009 / December 25, 2011 by सतीश सिंह | 3 Comments on कविता / मेरा मन ई मेल के जमाने में पता नहीं क्यों आज भी मेरा मन ख़त लिखने को करता है। मेरा मन आज भी ई टिकट की जगह लाईन में लग कर रेल का आरक्षण करवाने को करता है। पर्व-त्योहारों के संक्रमण के दौर में मेरा मन बच्चों की तरह गोल-गप्पे खाने को करता है। फोन से तो […] Read more » poem कविता
कविता सतीश सिंह की पाँच प्रेम कविताएं December 5, 2009 / December 25, 2011 by सतीश सिंह | 3 Comments on सतीश सिंह की पाँच प्रेम कविताएं 1- चुपके से मैं तो चाहता था सदा शिशु बना रहना इसीलिए मैंने कभी नहीं बुलाया जवानी को फिर भी वह चली आई चुपके से जैसे चला आता है प्रेम हमारे जीवन में अनजाने ही चुपके से। ———— 2. याद वैशाख के दोपहर में इस तरह कभी छांह नहीं आती प्यासी धरती की प्यास बुझाने […] Read more » Love Poems प्रेम कविताएं
कविता सतीश सिंह की कविताएं November 30, 2009 / December 25, 2011 by सतीश सिंह | Leave a Comment आम आदमी राहु और केतु के पाश में जकड़ा रहता है हमेशा कभी नहीं मिल पाता अपनी मंज़िल से भीड़ में भी रहता है नितांत अकेला भूल से भी साहस नहीं कर पाता है ख्वाब देखने की संगीत की सुरीली लहरियां लगती है उसे बेसूरी हर रास्ते में ढूंढता […] Read more » Satish Singh poem सतीश सिंह
कविता भष्ट्राचार की कहानी : कविता – सतीश सिंह November 10, 2009 / December 25, 2011 by सतीश सिंह | 1 Comment on भष्ट्राचार की कहानी : कविता – सतीश सिंह भष्ट्राचार की कहानी लिख दो इतिहास के पन्नों पर कोड़ा के भष्ट्राचार की कहानी भर दो उसमें गरीबों के खून की स्याही ताकि सदियों तक पढ़ा जा सके आज के इतिहास में मूल्यों से बेवफाई। Read more » Poems Satish Singh कविता भष्ट्राचार भष्ट्राचार की कहानी सतीश सिंह
कविता अवमूल्यन : कविता – सतीश सिंह November 9, 2009 / December 25, 2011 by सतीश सिंह | 2 Comments on अवमूल्यन : कविता – सतीश सिंह पता नहीं कब और कैसे धूल और धुएं से ढक गया आसमान सागर में मिलने से पहले ही एक बेनाम नदी सूख़ गई एक मासूम बच्चे पर छोटी बच्ची के साथ बलात्कार करने का आरोप है स्तब्ध हूँ खून के इल्ज़ाम में गिरफ्तार बच्चे की ख़बर सुनकर इस धुंधली सी फ़िज़ा में सितारों से आगे […] Read more » Poems Satish Singh अवमूल्यन कविता सतीश सिंह
कविता पाती : कविता – सतीश सिंह November 9, 2009 / December 25, 2011 by सतीश सिंह | Leave a Comment पाती मोबाईल और इंटरनेट के ज़माने में भले ही हमें नहीं याद आती है पाती पर आज़ भी विस्तृत फ़लक सहेजे-समेटे है इसका जीवन-संसार इसके जीवन-संसार में हमारा जीवन कभी पहली बारिश के बाद सोंधी-सोंधी मिट्टी की ख़ुशबू की तरह फ़िज़ा में रच-बस जाता है तो कभी नदी के दो किनारों की तरह […] Read more » Poems Satish Singh कविता पाती सतीश सिंह
कविता प्रोफेशनल November 8, 2009 / December 25, 2011 by सतीश सिंह कुछ भी दिल से नहीं लगाते इसलिए हैं अपने काम के प्रति बहुत ही प्रतिबध्द। लक्ष्य प्राप्त करने के लिए किसी भी हद को पार कर सकते हैं। इन्हें गलती से लौटाए ज्यादा पैसे रखने में कोई गुरेज़ नहीं। बेशर्मी से चार लोगों के बीच अकेले चाय पी सकते हैं। मांग सकते हैं दूसरों की […] Read more » Professional Satish Singh कविता प्रोफेशनल सतीश सिंह
कविता सहजीवन November 7, 2009 / November 7, 2009 by सतीश सिंह | 3 Comments on सहजीवन पत्नी नहीं है वह पर स्वेछा से करती है अपना सर्वस्व न्यौछावर एक अपार्टमेन्ट की बीसवीं मंजिल पर है उनका एक छोटा सा आशियाना घर को सुंदर रखने के लिए रहती है वह हर पल संघर्षरत पुरुष मित्र के लिए नदी बन जाती है वह और समेट लेती है अपने अंदर उसके […] Read more » कविता सतीश सिंह सहजीवन