कविता
स्वार्थ की सिलवटें
/ by डॉ. सत्यवान सौरभ
चेहरों पर मुस्कानें हैं,पर दिलों में दूरी है।रिश्ते हैं बस नामों के,हर सूरत जरूरी है। हर एक ‘कैसे हो’ के पीछे,छुपा होता है सवाल,“तुमसे क्या हासिल होगा?”,नहीं दिखता कोई हाल। ईमान यहाँ बोली में है,नीलाम हर मज़बूरी है।जो बिक न सका आज तलक,कल उसकी मजबूरी है। धर्म, जात, सियासत सब,अब सौदों की भाषा हैं,बिकते हैं […]
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