पर्यावरण लेख एनसीईआरटी द्वारा पर्यावरण पाठ्यक्रम में बदलाव कितना सही? July 7, 2022 / July 7, 2022 by निशान्त | Leave a Comment संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों पर नज़र डालें पता चलता है कि दुनिया भर में करीब 100 करोड़ बच्चों पर जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के बढ़ते प्रभावों का खतरा है। इस आंकड़ें में भारत की भी योगदान है और भारत समेत 33 देशों के बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा पर यह जलवायु संकट मंडरा रहा है। […] Read more » Changes in Environment Curriculum by NCERT: How Right एनसीईआरटी द्वारा पर्यावरण पाठ्यक्रम में बदलाव
लेख सिर्फ़ सर्दियों में नहीं, गर्मियों में भी वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या July 7, 2022 / July 7, 2022 by निशान्त | Leave a Comment जहां आमतौर पर यह माना जाता है कि वायु प्रदूषण सर्दियों के दौरान होने वाली समस्या है, वहीं 10 शहरों के गर्मियों के दौरान जुटाये गए सरकारी डाटा पर नज़र डालें तो पता चलता है कि गर्मियों के महीनों में पीएम2.5 और पीएम10 के प्रति माह स्तर इन ज्यादातर महीनों में क्रमशः 40 माइक्रोग्राम प्रति […] Read more » Air pollution is a big problem not only in winter but also in summer गर्मियों में भी वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या
लेख असम की बाढ़ : कारण और निवारण के बीच फंसे लोग July 6, 2022 / July 6, 2022 by अरुण तिवारी | Leave a Comment अरुण तिवारी असम में बाढ़ कोई नई घटना नहीं है . किन्तु मानसून के पहले ही चरण में बाढ़ का इतना ज्यादा टिक जाना और इसके लिए सरकार के मुखिया द्वारा लोगों पर दोषारोपण असम के लिए नई घटना है।गौर फरमाइए कि असम के मुख्यमंत्री ने सिल्चर नगर की बाढ़ के लिए बराक नदी के […] Read more » Assam floods
खेल जगत बच्चों का पन्ना मनोरंजन लेख अत्यधिक ऑनलाइन गेमिंग बच्चों की शिक्षा और सोच पर डाल रही हानिकारक प्रभाव। July 5, 2022 / July 5, 2022 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment -सत्यवान ‘सौरभ’ हाल ही में सरकार ने ऑनलाइन गेमिंग को विनियमित करने और उसकी देखरेख के लिए एक मंत्रालय की पहचान करने के लिए एक समिति के गठन की घोषणा की है। बदलते तकनीकी दौर में आज अधिक से अधिक राज्य ऑनलाइन गेमिंग क्षेत्र में कुछ आदेश लाने के लिए कानून ला रहे हैं। हाल […] Read more » Excessive online gaming is having a detrimental effect on children's learning and thinking.
प्रवक्ता न्यूज़ लेख शिंदे के बहाने महाराष्ट्र में ठाकरे युग अवसान की ओर! July 4, 2022 / July 4, 2022 by लिमटी खरे | Leave a Comment भाजपा की गुगली के आगे चारों खाने चित्त होंगे उद्ध्व! अरब सागर का पानी कभी कभी जमकर हिलोरें मारता है। अरब सागर के मुहाने पर बसे मुंबई को इन लहरों से रोज ही दो चार होना पड़ता है। मुंबई में एक प्रसिद्ध सड़क है जिसका नाम है मरीन ड्राईव। इस मरीन ड्राईव पर ही सहयाद्रि […] Read more » ठाकरे युग अवसान की ओर
लेख शख्सियत समाज स्वातन्त्र्य आन्दोलन के प्रेरणापुञ्ज : स्वामी विवेकानंद July 4, 2022 / July 4, 2022 by कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल | Leave a Comment ~कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल अमेरिका के शिकागो में सन् १८९३ में सम्पन्न हुई ‘विश्वधर्म महासभा’ ने विवेकानन्द के रुप में जिस सांस्कृतिक सूर्य को समूचे विश्व के समक्ष अवतरित किया। वस्तुतः वह भारत एवं हिन्दुत्व के नवयुग का अवतरण था। भारत एवं हिन्दुओं को पतित,अज्ञानी,मूर्ख समझने वाले आत्मश्लाघा में डूबे हुए पाश्चात्य जगत का जब विवेकानन्द […] Read more » Inspiration of freedom movement: Swami Vivekananda
आर्थिकी लेख भारत के आर्थिक विकास में बढ़ रहा है मातृशक्ति का योगदान July 2, 2022 / July 2, 2022 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment भारत की 50 प्रतिशत आबादी मातृशक्ति के रूप में विद्यमान है। देश के आर्थिक विकास को यदि पंख लगाने हैं तो इस आधी आबादी को सशक्त कर उन्हें उत्पादक कार्यों में लगाना अनिवार्य है। विशेष रूप से वर्ष 2014 में केंद्र में श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के आने के बाद से भारत में मातृशक्ति […] Read more » The contribution of mother power is increasing in the economic development of India.
लेख सुविधा से ज्यादा जरूरी है सुरक्षा की सड़कें July 2, 2022 / July 2, 2022 by ललित गर्ग | Leave a Comment – ललित गर्ग- भारत का सड़क यातायात तमाम विकास की उपलब्धियों एवं प्रयत्नों के असुरक्षित एवं जानलेवा बना हुआ है, सुविधा की खूनी एवं हादसे की सड़कें नित-नयी त्रासदियों की गवाह बन रही है। दुनिया की जानी-मानी पत्रिका ‘द लांसेट’ में इस मसले पर केंद्रित एक अध्ययन में बताया गया है कि भारत में सड़क […] Read more » Roads of safety are more important than convenience जरूरी है सुरक्षा की सड़कें
लेख विधि-कानून देश में हिंसक होते युवा आंदोलन July 1, 2022 / July 1, 2022 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment -सत्यवान ‘सौरभ’ गोल्डस्टोन ने लिखा है, “युवाओं ने पूरे इतिहास में राजनीतिक हिंसा में एक प्रमुख भूमिका निभाई है,” और एक युवा उभार कुल वयस्क आबादी के सापेक्ष 15 से 24 युवाओं का असामान्य रूप से राजनीतिक संकट से ऐतिहासिक रूप से जुड़ा हुआ है। पिछले कुछ वर्षों में, युवा हिंसा के कारण जान-माल […] Read more » Violent youth movement in the country
धर्म-अध्यात्म लेख महर्षि दयानन्द की प्रमुख देन चार वेद और उनके प्रचार का उपदेश July 1, 2022 / July 1, 2022 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment –मनमोहन कुमार आर्य महर्षि दयानन्द ने वेद प्रचार का मार्ग क्यों चुना? इसका उत्तर है कि उनके समय में देश व संसार के लोग असत्य व अज्ञान के मार्ग पर चल रहे थे। उन्हें यथार्थ सत्य का ज्ञान नहीं था जिससे वह जीवन के सुखों सहित मोक्ष के सुख से भी सर्वथा अपरिचित व वंचति थे। महर्षि दयानन्द शारीरिक बल और पूर्ण विद्या से सम्पन्न पुरुष थे। उन्होंने देखा कि सभी मनुष्य अज्ञान के महारोग से ग्रस्त है। उनमें सत्य व असत्य को जानने व समझने की योग्यता नहीं है। अतः अविद्या व अज्ञान का नाश करने के लिए उन्होंने असत्य, अज्ञान व अन्धविश्वासों के खण्डन और सत्य, ज्ञान के प्रचार सहित सामाजिक उत्थान के कार्यों का मण्डन किया। सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ उनकी इस प्रवृत्ति व स्वभाव की पुष्टि करता है। सत्यार्थप्रकाश के पहले 10 समुल्लास सत्य से युक्त ज्ञान का मण्डन करते हैं तथा शेष चार समुल्लास असत्य, अज्ञान व अन्धविश्वासों का खण्डन करते हैं। महर्षि दयानन्द धर्मात्मा थे, दयालु थे, ईश्वर का यथार्थ ज्ञान रखने वाले ईश्वर भक्त थे तथा वह जीवात्मा का यथार्थ ज्ञान भी रखते थे। योग व ध्यान के द्वारा उन्होंने ईश्वर व जीवात्मा आदि पदार्थों का प्रत्यक्ष किया था। ऐसा विवेकशील धर्मात्मा सत्पुरुष किसी भी मनुष्य को दुःखी नहीं देख सकता। दुखियों को देख कर वह स्वयं दुखी होते थे। वह सबको अपने समान ईश्वर व आत्मा आदि का ज्ञान प्रदान कर सुखी व आनन्दित करना चाहते थे। इसी कारण उन्होंने सत्य व यथार्थ ज्ञान का प्रचार करने के लिए ईश्वर से प्राप्त ज्ञान चार वेदों के प्रचार करने का निर्णय किया। यदि वह ऐसा न करते तो उनको चैन वा सुख-शान्ति न मिलती। यदि एक सच्चे डाक्टर के पास किसी रोगी को ले जाया जाये तो वह डाक्टर क्या करेगा? क्या उस रोगी को मरने के लिए छोड़ देगा व उसकी चिकित्सा कर उसे स्वस्थ करेगा? सभी जानते हैं कि सच्चा डाक्टर रोगी को स्वस्थ करने के उपाय करेगा। इसी प्रकार से एक अध्यापक जो ज्ञानी है, वह अपने व अपने लोगों का अज्ञान दूर करेगा। ज्ञानी होने का यही अर्थ होता है कि वह ज्ञान का प्रसार करे और अज्ञान को नष्ट करे। हम यह भी देखते हैं कि जब कोई अन्याय से पीड़ित होता है तो वह किसी शक्तिशाली मनुष्य की शरण में जाता है और उससे अपनी रक्षा की विनती करता है। धर्मात्मा व ज्ञानी शक्तिशाली मनुष्य अन्याय से पीड़ित व्यक्ति की रक्षा करना अपना धर्म वा कर्तव्य समझते हैं। यह सब गुण महर्षि दयानन्द जी में थे अतः उन्होंने सभी असहाय व अज्ञान के रोग से पीड़ित लोगों को वेदों का ज्ञान देकर उन्हें ज्ञानी व शक्ति से सम्पन्न बनाया। हम व अन्य सहस्रों मनुष्य भी उनके ज्ञान से उनकी मृत्यु के 139 वर्षों बाद भी लाभान्वित हो रहे हैं। उनका यह कार्य ही उनको विश्व में आज भी जीवित व अमर रखे हुए है। यदि वह ऐसा न करते तो आज हम व अन्य करोड़ों लोग उनका नाम भी न जानते, उनके प्रति श्रद्धा व आदर रखने का तो तब प्रश्न ही नहीं था। इस स्थिति में हम वेद, ईश्वर, आत्मा व मोक्ष प्राप्ति आदि के उपायों को भी न जान पाते। अतः महर्षि दयानन्द ने अज्ञान रोग से पीड़ित अपने देशवासी बन्धुओं किंवा विश्वभर के सभी मनुष्यों के अज्ञान व अन्धविश्वासों को दूर करने के लिए वेद प्रचार का मार्ग चुना और उसे अपूर्व रीति से सम्पन्न किया। यदि हम सूर्य पर दृष्टि डालें तो पाते हैं कि सूर्य में प्रकाश व दाहक शक्ति अर्थात् गर्मी व ऊर्जा है। सूर्य में आकर्षण शक्ति भी है। अपने इन गुणों का सूर्य अपने लिए प्रयोग नहीं करता अपितु वह इससे संसार व प्राणी मात्र को लाभान्वित करता है। यदि सूर्य न होता तो मनुष्य का सशरीर अस्तित्व भी न होता। इसी प्रकार से वायु पर विचार करने पर ज्ञात होता है कि वायु पदार्थों को जलाने में सहायक व समर्थ होने सहित मनुष्यों को प्राणों के द्वारा जीवित रखने में भी सहायक है। वायु का प्रयोजन अपने लिए कुछ भी नहीं है। इसी प्रकार से जल, पृथिवी व समस्त प्राणी-जगत है जो स्वयं के लिए कुछ नहीं करते अपितु मनुष्यों व अन्यों के लिए ही अपने जीवन व अस्तित्व को समर्पित करते हैं। यदि सारा संसार व इसके सभी पदार्थ परोपकार कर रहे हैं तो क्या मनुष्य का यह कर्तव्य नहीं है कि उसमें ईश्वर ने जिन गुणों व शक्तियों को दिया है, उससे वह भी अन्य सभी मनुष्यों व प्राणियों का उपकार करें। यह अवश्य करणीय है और परोपकार करना ही मनुष्य का धर्म सिद्ध होता है। मत व धर्म शब्दों में कुछ भिन्नता है। मत का कुछ भाग धर्म को एक अंग के रूप में अपने भीतर लिए हुए होता है लेकिन वेदमत जो कि ईश्वर प्रदत्त मत है, उसे छोड़ कर कोई भी मत सर्वांश में पूर्णतः धर्म नही होता। यदि मतों में से अविद्या व उनके सभी प्रकार के पूर्वाग्रहों को हटा दिया जाये और उन्हें वेदानुकूल बनाया जाये, तब ही उन्हें धर्म के निकट लाया जा सकता है। महर्षि दयानन्द पौराणिक मत में जन्मे थे। शिवरात्रि की घटना से उन्हें लगा कि ईश्वर की पूजा की यह रीति उपासना की सही रीति नहीं है। अतः उन्होंने उसका त्याग कर दिया और सत्य की खोज की। सत्य की खोज करते हुए उन्हें ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना का सर्वोत्तम साधन योग प्राप्त हुआ। इसका अभ्यास कर उन्होंने ईश्वर का साक्षात्कार व उसका प्रत्यक्ष भी किया जिसे उनके जीवन व कार्यों से जाना जा सकता है। अपनी विद्या प्राप्ति की तीव्र इच्छा को पूरी करने के लिए वह योग्य गुरुओं की तलाश करते रहे जो उन्हें 35 वर्ष की अवस्था में मथुरा के गुरु विरजानन्द जी के रुप में प्राप्त हुई और उनके सान्निध्य में तीन वर्ष रहकर उन्होंने प्राचीन वैदिक संस्कृत भाषा के व्याकरण अष्टाध्यायी-महाभाष्य पद्धति पर पूर्ण अधिकार प्राप्त किया। वैदिक साहित्य का कुछ अध्ययन वह पहले कर चुके थे और इस ज्ञानवृद्धि के प्रकाश में उन सभी ग्रन्थों के सत्यार्थ को जानकर वेदों के ज्ञान को भी उन्होंने प्राप्त किया। हमारे अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि महर्षि दयानन्द ने अध्यात्म के क्षेत्र में विद्या व योगाभ्यास से ईश्वरोपासना की शीर्ष स्थिति असम्प्रज्ञान समाधि को प्राप्त किया था। यह सब प्राप्त कर उनके जीवन का उद्देश्य व प्रयोजन पूरा हो गया था। अब अपने ज्ञान रूपी अक्षय धन को दान करने का अवसर था जिसे गुरु वा ईश्वर की प्रेरणा से प्राप्त कर उन्होंने देश-देशान्तर में पूरी उदारता व निष्पक्ष भाव से वितरित वा प्रचारित किया। महर्षि दयानन्द ने जो ज्ञान प्राप्त किया था उसे हम ज्ञान की पराकाष्ठा की स्थिति समझते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि ‘ज्ञान से बढ़कर पवित्र व मूल्यवान संसार में कुछ भी नहीं है।’ ज्ञान का दान सब दानों में प्रमुख व महत्वपूर्ण है। जो कार्य ज्ञान से हो सकता है वह धन से कदापि नहीं हो सकता। धन से किसी को बुद्धिमान, बलवान, निरोग, वेदज्ञ, सत्पुरुष, धर्मात्मा नहीं बनाया जा सकता। इन व ऐसे सभी कार्यो के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है। ज्ञान से ही अपनी आत्मा को जानने के साथ ईश्वर व संसार को भी जाना जा सकता है। ज्ञान से ही मनुष्य अभ्युदय व मोक्ष को प्राप्त होता है। ज्ञान मनुष्य की मृत्यु के बाद भी आत्मा के साथ जाता है जबकि सारे जीवन में अनेक कष्ट उठाकर कमाया गया धन यहीं छूट जाता है। धन मनुष्य में अहंकार व अनेक दोषों को उत्पन्न करता है। धन की तीन गति हैं। दान, भोग व नाश। धन को यदि सदाचारपूर्वक न कमाया जाये और दान न किया जाये तो वह इस जन्म व परजन्म में अवनति व दुःखों का कारण बनता है, इस मान्यता पर हमारे सभी ऋषि-मुनि व शास्त्र एक मत हैं। अतः जीवन की उन्नति के लिए परा व अपरा अर्थात् आध्यात्मिक और सांसारिक दोनों प्रकार का ज्ञान मनुष्य को होना चाहिये। यही सन्देश वेद प्रचार के द्वारा महर्षि दयानन्द ने अपने जीवन में दिया था जो आज भी पूर्व की तरह सर्वाधिक महत्वपवूर्ण एवं उपयोगी होने सहित प्रासंगिक भी है। हम वर्तमान समय में देश की जो भौतिक उन्नति देख रहे हैं उसमें महर्षि दयानन्द का पुरुषार्थ सर्वाधिक महत्वूपर्ण प्रतीत होता है। उन्होंने संसार के लोगों को विस्मृत सत्य वेद ज्ञान से परिचित कराने के अतिरिक्त सभी अन्धविश्वासों, कुरीतियों जिनमें मूर्तिपूजा, फलित–ज्योतिष, मृतक श्राद्ध, मन्दिरों व नदियों रूपी तीर्थ स्थान, सामाजिक असमानता, अशिक्षा आदि का खण्डन किया और निराकार ईश्वर की योग व ध्यान विधि से उपासना, अन्धविश्वासों से सर्वथा दूर रहने, अविद्या का नाश व विद्या की वृद्धि करने, नारी सम्मान, समानता, देशप्रेम, न्याय सहित सुपात्रों को ज्ञान व धन आदि के दान की प्रेरणा दी थी। उनका सन्देश है कि वेद ही सब सत्य विद्याओं, परा व अपरा, के स्रोत वा ग्रन्थ हैं। इनका पढ़ना-पढ़ाना, सुनना-सुनाना व सर्वत्र प्रचार करना ही मनुष्य का परम धर्म है। जिन बातों से असमानता, पक्षपात, अन्याय, दूसरों का अपकार व हिंसा आदि हो, वह कभी भी किसी मनुष्य व समाज का धर्म नहीं हो सकतीं। ईश्वर की उपासना के लिए पवित्र जीवन व शुद्ध स्थान चाहिये। उपासना व ईश्वर के ध्यान के लिए बड़े-बड़े भवनों व मन्दिरों की आवश्यकता नहीं है। यदि महर्षि दयनन्द की इन शिक्षाओं को जीवन में स्थान दिया जाये तो इससे विश्व का कल्याण हो सकता है। उनकी बातों को न मानने के कारण ही आज विश्व में सर्वत्र अशान्ति व स्वार्थ से प्रेरित कार्य सर्वत्र होते दृष्टिगोचर हो रहे हैं जो वर्तमान व भविष्य में अनिष्ट का सूचक है। अतः अपने जीवन को शुभकर्मों से युक्त व श्रेष्ठ एवं आदर्श बनाने के लिए हमें महर्षि दयानन्द के जीवन से प्रेरणा लेकर वेदों के स्वाध्याय सहित समस्त वैदिक साहित्य जिसमें सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका आदि ऋषि दयानन्द के सभी ग्रन्थ भी सम्मिलित हैं, उनका अध्ययन करना एवं उनके प्रचार का व्रत लेना चाहिये। इससे देश व संसार की उन्नति होने सहित मनुष्य का यह जन्म व परजन्म उन्नत होकर जीवन के लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति में सफल होगा। Read more » Major contribution of Maharishi Dayanand preaching of four Vedas and their propagation चार वेद और उनके प्रचार का उपदेश
खेत-खलिहान लेख महंगी होती खाद से खेती करना मुश्किल June 29, 2022 / June 29, 2022 by प्रियंका सौरभ | Leave a Comment -प्रियंका ‘सौरभ’ उत्पादन बढ़ाने के लिए उर्वरक खेतों की उर्वरता बनाए रखने में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। भारत अपनी उर्वरक आवश्यकताओं के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है। भारत में उर्वरकों की वर्तमान लागत एक खनिज संसाधन-गरीब देश के लिए वहन करने के लिए बहुत अधिक है। 2021-22 में, मूल्य के संदर्भ […] Read more » It is difficult to do farming with expensive fertilizer
पर्यावरण लेख वन्य जीवों और पेड़ों के लिए अपनी जान पर खेलता बिश्नोई समाज June 29, 2022 / June 29, 2022 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment -सत्यवान ‘सौरभ’ बिश्नोई आंदोलन पर्यावरण संरक्षण, वन्यजीव संरक्षण और हरित जीवन के पहले संगठित समर्थकों में से एक है। बिश्नोइयों को भारत का पहला पर्यावरणविद माना जाता है। ये जन्मजात प्रकृति प्रेमी होते हैं। पर्यावरण आंदोलनों के इतिहास में, यह वह आंदोलन था जिसने पहली बार पेड़ों को अपनी सुरक्षा के लिए गले लगाने और […] Read more »