कविता क्यों हुये डाक्टर लुटेरा एक समान January 2, 2020 / January 2, 2020 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment ओ नाच जमूरे छमा-छम, सुना बात पते की एकदम हाथपैर में हड़कन होती है, सर में गोले फूटे धमा-धम आं छी जुकाम हुआ या सीने में दर्द करे धड़ाधड़क, छींकें गरजे तोपों सी या खून नसों में फुदकें फुदकफुदक मेरा जमूरा बतायेगा, क्यों डाक्टर लूटेरा नहीं किसी से कम सुन मेरे प्यारे सुकुमार जमूरे तेरी […] Read more » doctors have become looters क्यों हुये डाक्टर लुटेरा एक समान डाक्टर लुटेरा एक समान
व्यंग्य ब्रज नही बचो कान्हा के समय जैसों January 2, 2020 / January 2, 2020 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment (ब्रजदर्शन के बाद ) जे वृन्दावन धाम नहीं है वैसो, कान्हा के समय रहो थो जैसो समय बदलते सब बदले हाल वृन्दावन हुओ अब बेहाल। कान्हा ग्वालो संग गईया चराई, वो जंगल अब रहो नही भाई निधि वन सेवाकुंज बचो है, राधाकृष्ण ने जहाॅ रास रचो है। खो गयी गलियाॅ खो गये द्वारे, नन्दगाॅव की […] Read more » कान्हा
कविता काल व्यूह से लड़ना होगा ! December 31, 2019 / December 31, 2019 by आलोक पाण्डेय | Leave a Comment यह पुण्य भूमि है ऋषियों की,जहां अभूतपूर्व वीरता त्याग की धारखंडित भारत आज खंड खंड ,दे रही चुनौती कर सहर्ष स्वीकार !दग्ध ज्वाल विकराल फैला,कर विस्तीर्ण विराट दिगंत पुकार,पुण्य भूमि से नीले वितान तकशत्रु दल में हो हा-हाकार !सभ्यता-संस्कृति प्रशस्त बिन्दु खातिर ,हर क्षण धधकती हो असिधार ,दृढ़ बलवती स्नायु भुजदंड अभय हो ,हाथों में […] Read more » काल व्यूह से लड़ना होगा !
कविता कब होगी सुख की भोर December 31, 2019 / December 31, 2019 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment कह रहे है माता-पिता अब जीवन कितना बाकी है कब तक धड़केगा यह दिल और कितनी साॅसें बाकी है। बेटा बहू पोता नहीं आते ममता से धड़के छाती है। बेटे से बतियाना कब होगा मुश्किल से कटती दिन-राती है। पोते को कंठ लगाने की यह प्यास अभी तक बाकी है। घर अपने बहू क्यों नहीं […] Read more » कब होगी सुख की भोर
कविता ये पत्रकार बड़े है December 31, 2019 / December 31, 2019 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment शहर में इनकी खूब चर्चा है अतिक्रमण हटाने वाली टीम के अधिकारियों से चलता खर्चा है। ये शौकीनमिजाज है सभी जगह खबू चरते-फिरते है सांडों को इनपर नाज है। ये सरकारों से बड़े है इनका नाम खूब चलता है ये सरदार बड़े है। ये जो तंबूओं से तने बने है नौकर इनके पढ़े लिखे है […] Read more » ये पत्रकार बड़े है
कविता हम जो छले, छलते ही गये December 30, 2019 / December 30, 2019 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment 15 अगस्त की वह सुबह तो आयी थी जब विदेशी आंक्रान्ताओं से हमें शेष भारत की बागड़ोर मिली हम गुलाम थे, आजाद हुये आजादी के समय भी हम छले गये थे आज भी हम अपनों के हाथों छले जा रहे है। भले आज हम आजादी में साॅसे ले रहे है पर यह कैसी आधी अधूरी […] Read more » छलते ही गये हम जो छले
लेख संजीवनी की तलाश में दिख रही भारतीय रेल! December 30, 2019 / December 30, 2019 by लिमटी खरे | Leave a Comment लिमटी खरे सरकारी व्यवस्थाओं का निजिकरण करना हुक्मरानों के लिए बहुत ही आसान काम है। इससे अपने किसी चहेते को लाभ पहुंचाने के मार्ग आसानी से प्रशस्त किए जा सकते हैं। यक्ष प्रश्न यही है कि सरकारों के द्वारा जिन विभागों में निजिकरण की बयार बहाई जा रही है वहां के जिम्मेदार अफसरान की गलत […] Read more » Indian Railways Indian Railways is looking for Sanjeevani भारतीय रेल
व्यंग्य डर दा मामला है December 30, 2019 / December 30, 2019 by दिलीप कुमार सिंह | Leave a Comment “सबसे विकट आत्मविश्वास मूर्खता का होता है ,हमें एक उम्र से मालूम है –हरिशंकर परसाई”। फिल्मों की “द फैक्ट्री “चलाने वाले निर्देशक राम गोपाल वर्मा महोदय ने डर के लेकर दिलचस्प प्रयोग किये।वो अपनी किसी फेम फिल्म में डर फेम शाहरुख़ खान को तो नहीं ला पाये ,लेकिन डर को लेकर उन्होंने विभिन्न प्रयोग किये […] Read more » डर दा मामला है
कविता संघातों में सदा अविचल होना ! December 30, 2019 / December 30, 2019 by आलोक पाण्डेय | Leave a Comment तुम वीरता के दृढ़ प्रतिमान , कभी नहीं धीरज खोना ! कंटक राहें हों दुर्निवार , न भयभीत कहीं रुकना-झुकना ! तुम वीर प्रहरी पुण्यभूमि के , अनंत शक्ति संवाहक होना ; तूफान मिले विस्फोट मिले , अडिग अटल अविचल होना । तुम सभ्यता के पुरातन दृढ़ स्तम्भ , अनन्त संस्कृतियों के ,चिर-संवाहक होना ; […] Read more » संघातों में सदा अविचल होना
कविता विनय December 30, 2019 / December 30, 2019 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment ईश्वर ! तुमने हमे दिया है सुंदर सा एक शरीर स्वस्थ सभी अंग दिए है ये अपनी जागीर हमको दो आँखे दी तुमने देख-भाल कर बढ़े चले कान दिए हैं सुने मधुर हम अच्छाई को सुने-गुने दो है हाथ दिए हमको हम, काम हजारो कर लेंगे दो पैरो के बल चलकर हम नए-नए पथ खोलेगे […] Read more » विनय
व्यंग्य खुदाई मेरा राष्ट्रीय दायित्व है ! December 29, 2019 by प्रभुनाथ शुक्ल | Leave a Comment प्रभुनाथ शुक्ल खुदाई हमारी संस्कार में रची बसी है। हमारे पुरखों की यह विरासत रही है। खुदाई की वजह से हमने ऐतिहासिक सभ्यताएं हासिल की हैं, जिनका महत्व हमारी इतिहास की मोटी-मोटी किताबों मंे दर्ज है। खुदाई से निकली ऐसी सभ्यताओं पर […] Read more » Digging is my national responsibility
बच्चों का पन्ना लेख समाज गुम होते बचपन और बाल सुलभ हरकतों पर भी हो विचार December 26, 2019 / December 26, 2019 by लिमटी खरे | Leave a Comment लिमटी खरे आज दौड़ती भागती जिंदगी में मनुष्य रोज ही न जाने कितनी जद्दो जहद से रूबरू होता है। संचार क्रांति के इस युग में बच्चों पर ध्यान देने की फुर्सत शायद ही माता पिता को रह गई है। पैसा कमाने की अंधी होड़ में बच्चों का बचपन गुम हो रहा है। बच्चों की बाल […] Read more » lost childhood गुम होते बचपन