कविता
खुलेपन के मायने
/ by डा.सतीश कुमार
खुलेपन के मायने बदल गए हैं, विचारों के खुलेपन को नहीं , शरीर के खुलेपन को , तरजीह मिलने लगी है। हद होती है, हर बात की, शरीर के खुलेपन की, कोई हद नज़र आती नहीं। हर युग की जरूरतें, स्थितियाँ, परिस्थितियां अलग होती हैं। परिवर्तित होती हैं मन:स्थितियाँ, शारीरिक पहनावा, मौसम अनुसार भी। माहौल […]
Read more »