दोहे सिसके माँ का प्यार December 18, 2014 / December 18, 2014 by हिमकर श्याम | 5 Comments on सिसके माँ का प्यार दर्ज़ हुई इतिहास में, फिर काली तारीख़। मानवता आहत हुई, सुन बच्चों की चीख़।। कब्रगाह में भीड़ है, सिसके माँ का प्यार। सारी दुनिया कह रही, बार-बार धिक्कार।। मंसूबे जाहिर हुए, करतूतें बेपर्द। कैसा ये जेहाद है, बोलो दहशतगर्द।। होता है क्यूँकर भला, बर्बर कत्लेआम। हिंसा औ’ आतंक पर, अब तो लगे […] Read more » bloodbath of students in pesawar पेशावर में छात्रों की हत्या सिसके माँ का प्यार
व्यंग्य चमचे ही चमचे, यहाँ-वहां जहाँ-तहाँ December 17, 2014 by दीपक शर्मा 'आज़ाद' | Leave a Comment मेरे घर के रसोईघर में बर्तनों की भरमार है, होती है सबके घर में होती है| थाली, कटोरी, गिलास, चम्मच और अंत में कप ये न होतो खाना खाने की कल्पना अधूरी सी ही लगती है क्यों सही कहा न| पर इन सबमे भी देखें तो चम्मच सर्वश्रेष्ठ है, वो हर घर में अन्य बर्तनों […] Read more » चमचे ही चमचे
व्यंग्य आलेख : संतन के मन रहत है… December 17, 2014 by विजय कुमार | Leave a Comment पिछले कुछ दिनों से कई साधु और संत विभिन्न कारणों से चर्चा में हैं। मीडिया के बारे में आदमी और कुत्ते की कहावत बहुत पुरानी है। अर्थात कुत्ता किसी आदमी को काट ले, तो यह खबर नहीं होती, क्योंकि यह उसका स्वभाव है; पर यदि आदमी ही कुत्ते को काट ले, तो यह मुखपृष्ठ की […] Read more »
व्यंग्य सामूहिक आत्महत्या December 13, 2014 by विजय कुमार | Leave a Comment आत्महत्या के बारे में मैंने कभी गंभीरता से नहीं सोचा। क्या बताऊं, कभी इसकी नौबत ही नहीं आयी। एक बार मेरा एक मित्र इस समस्या से पीड़ित हुआ, तो मैंने उसे एक बड़े लेखक की विश्व प्रसिद्ध पुस्तक ‘आत्महत्या से कैसे बचें ?’ दे दी। उसे पढ़कर मेरे मित्र ने यह नेक विचार सदा को […] Read more » group suicide सामूहिक आत्महत्या
कविता व्यंग्य हाथी और कुत्ते December 9, 2014 / December 9, 2014 by डॉ. सुधेश | Leave a Comment हाथी चल रहा है अपनी चाल कुत्ते भौंकते हैं पीछे पीछे भौंकते ही भौंकते बस भौंकते हैं कर न सकते कुछ मगर क्यों भौंकते क्या उस से डरते नहीं वे हैं वाग्वीर फिर क्यों भौंकते उन्हें हाथी से घृणा है उस की बेढब शक्ल से उस के तीखे बोल से उस की चाल से […] Read more » कुत्ते हाथी
कविता आदमी बदल रहा है December 8, 2014 by डॉ नन्द लाल भारती | Leave a Comment देखो आदमी बदल रहा है , आज खुद को छल रहा है, अपनो से बेगाना हो रहा है , मतलब को गले लगा रह है , देखो आदमी बदल रहा है ………… औरो के सुख से सुलग रहा है , गैर के आंसू पर हस रहा है, आदमी आदमियत से दूर जा रहा है देखो […] Read more » आदमी बदल रहा है
कविता तुला December 4, 2014 / December 4, 2014 by डॉ नन्द लाल भारती | Leave a Comment नागफनी सरीखे उग आये है कांटे , दूषित माहौल में इच्छाये मर रही है नित चुभन से दुखने लगा है, रोम-रोम। दर्द आदमी का दिया हुआ है चुभन कुव्यवस्थाओं की रिसता जख्म बन गया है अब भीतर-ही-भीतर। सपनो की उड़ान में जी रहा हूँ’ उम्मीद का प्रसून खिल जाए कहीं अपने ही भीतर से। डूबती […] Read more » तुला
कविता तस्वीर December 3, 2014 by डॉ नन्द लाल भारती | Leave a Comment ये कैसी तस्वीर उभर रही है , आँखों का सकून , दिल का चैन छिन रही है . अम्बर घायल हो रहा है अवनि सिसक रही है ये कैसी तस्वीर उभर रही है ………… चहुंओर तरक्की की दौड़ है भ्रष्टाचार,महंगाई , मिलावट का दौर है , पानी बोतल में, कैद हो रहा है , जनता […] Read more » तस्वीर
कविता याद है मुझे आज भी बारिश का दिन सुहाना December 3, 2014 by लक्ष्मी जायसवाल | Leave a Comment याद है मुझे आज भी बारिश का दिन सुहाना वो तुम्हें देखकर मेरा खुद से ही नज़रें चुराना। महफ़िल के बीच छुपकर तुमसे नज़रें मिलाना याद है मुझे आज भी बारिश का दिन सुहाना। याद है मुझे आज भी वहां मेरा वो देर से आना बातें करते-करते तुम्हारी बातों में खो जाना। तुमसे और बात […] Read more » याद है मुझे आज भी बारिश का दिन सुहाना
कविता जो अधूरा छूट गया, वह पूरा करने को आना है November 29, 2014 by नरेश भारतीय | 1 Comment on जो अधूरा छूट गया, वह पूरा करने को आना है ~नरेश भारतीय शान,आन बान से जीया है जी भर बेशक लेकिन क्या अंतत: सिर्फ मर जाने के लिए? संकटों ने मेरा मस्तक नत करने की पूरी कोशिश भी की सीना तान कर हर संकट को हम निपटाते मिटाते रहे अनवरत संघर्षों की धाराएं कहर हम पर ढाती रहीं उनमें भी हम बस मुस्कराते रहे […] Read more »
कहानी प्राण November 27, 2014 by राम सिंह यादव | Leave a Comment दो ऊर्जाओं का संसर्ग और उससे उत्पन्न होता प्राण ,,,, कितनी अद्भुत संरचना है, ब्रह्मांड की !!!!!! मानव परे – रहस्य ,,,, आखिर कैसे मांस और मज्जा का स्थूल आवरण ओढ़ लेता है ???? चल–अचल काया किस तरह दृढ़ रहती है और कैसे इसके विलुप्त होते ही जर्जर होकर,,, आकार ढह जाते हैं??? विलक्षण है प्रकृति !!!! कभी ग्रहों को समेटे अनंत आकाश ,,,, कभी […] Read more » प्राण
गजल दिल का घाव नासूर बना November 27, 2014 / November 27, 2014 by सविता मिश्रा | Leave a Comment उफ़ अपने दिल की बात बतायें कैसे दिल पर हुए आघात जतायें कैसे| दिल का घाव नासूर बना अब मरहम लगायें कैसे कोई अपना बना बेगाना दिल को अब यह समझायें कैसे| कुछ गलतफहमी ऐसी बढ़ी बढ़ते-बढ़ते बढती गयी रिश्तें पर रज जमने सी लगी दिल पर पड़ी रज को हटायें कैसे| उनसे बात हुई […] Read more » दिल का घाव नासूर बना