कविता ये गली June 30, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -रवि श्रीवास्तव- ये गली आख़िर कहां जाती है, हर दो कदम पर मुड़ जाती है। मुझे तलाश है उसकी, जिसे देखा था इस गली में, चल रहा हूं कब ये अरमान लिए दिल में। शायद इत्तेफ़ाक ले मुलाकात हो जाए, हर मोड़ पर सोचता हू मंजिल मिल जाए। सकरे रास्ते और ये दलदल, चीखकर कहते […] Read more » कविता ये गली हिन्दी कविता
कविता ग्यारह हाइकू June 27, 2014 / October 8, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- 1. पंछी अकेला प्रतीक्षा करे साथी आई न पाती। 2. आकाश सूना बादल आये जाये धरा न भीगे। 3 मन उदास तन की है थकान नींद न आये। 4. भीगी चुनरी घनी रे बदरिया ओ संवरिया। 5. घर का चूल्हा ठन्डा पड़ा हुआ है अतिथि आये! 6. ना मैं जानू हूं तुम क्यों […] Read more » कविता हिन्दी कविता
गजल जब उनसे मोहब्बत थी June 27, 2014 by रंजीत रंजन सिंह | 2 Comments on जब उनसे मोहब्बत थी -रंजीत रंजन सिंह- चिट्ठियों का जमाना था जब उनसे मोहब्बद थी, मेरा दिल भी आशिकाना था जब उनसे मोहब्बद थी। रातें गुजर जाती थीं, उनकी चिट्ठियों को पढ़ने में, मैं भी लहू से खत लिखता था जब उनसे मोहब्बत थी। आंख के आंसू सूख गए उनके खतों को जलाने में, कभी समंदर जैसा गहरा था […] Read more » जब उनसे मोहब्बत थी मोहब्बत गजल हिन्दी गजल
कविता इंसान हूं नादान हूं… June 27, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -नेहा राजोरा- इंसान हूं नादान हूं… बेसब्र हूं क्योंकि फिक्रमंद हूं… अपनी दुआओं पर है मुझको ऐतबार, तेरे रहमों करम पर भी है मुझको इख्तियार, तू सोचता होगा है, तुझ पर यकीन, फिर भी क्यों अंजान हूं… कहा न इंसान हूँ नादान हूं… बेसब्र हूं क्योंकि फिक्रमंद हूं… Read more » इंसान कविता इंसान हूं नादान हूं कविता हिन्दी कविता
कविता दंगा बना देश का नासूर June 25, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -रवि श्रीवास्तव- क्यों होता है दंगा फसाद, कौन है इसका ज़िम्मेदार ? छोटी-छोटी हर बातों पर, निकल आते हैं क्यों हथियार। आक्रोश की आंधी में, लोग बहक जाते हैं क्यों ? एक दूसरे के आखिर हम, दुश्मन बन जाते हैं क्यों ? लड़कर एक दूसरे से देखो, करते हैं हम खुद का नुकसान। दंगा भड़काने […] Read more » एकता कविता दंगा दंगा बना देश का नासूर
कविता कैसी पलटी है समय की धार June 25, 2014 / June 25, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- कैसी पलटी है समय की धार। हमसे रूठी हमारी ही सरकार। उतर चुका सब चुनावी बुखार। नहीं अब कोई जन सरोकार। अनसुनी है अब सबकी पुकार। बहरा हो गया हमारा करतार। दमक रहा है बस शाही दरबार। झोपड़ों में पसरा और अंधकार। सुन लो अब भी एक अर्ज़ हमार। आपकी पालकी के हमीं […] Read more » कविता कैसी पलटी है समय की धार समय की धार हिन्दी कविता
गजल क्या करूं की तू मेरा हो जाये June 24, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -नेहा राजोरा- क्या करूं की तू मेरा हो जाये, काश एक दिन ऐसा भी आये, रोऊं तो मैं तब भी पर आंसू तुझे पाने की खुशी के हो, क्या करूं की तू मेरा हो जाये, काश एक दिन ऐसा भी आये, झूठ तो मुझसे तब भी बोलेगा, फितरत मुझे पता है तेरी, पर वो झूठ […] Read more » क्या करूं की तू मेरा हो जाये गजल जीवन ग़ज़ल हिन्दी
कविता मेहनत किसान की June 23, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -रवि श्रीवास्तव- आखिर हम कैसे भूल गये, मेहनत किसान की, दिन हो या रात उसने, परिश्रम तमाम की। जाड़े की मौसम वो ठंड से बड़े, तब जाके भरते, देश में फसल के घड़े। गर्मी की तेज धूप से, पैर उसका जले, मेहनत से उनकी देश में, भुखमरी टले। बरसात के मौसम में, न है भीगने […] Read more » मेहनत किसान की हिन्दी कविता
कविता पूछ परख के चक्कर में घनचक्कर हुआ लोकतंत्र June 23, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- मर गए अनगिनत गरीब देखते सियासी तंत्र मंत्र महंगाई की ज्वाला से घिरा व्याकुल सारा प्रजातंत्र कहीं बलात्कार तो कहीं हत्या, जंगल बना जनतंत्र पूंजीधीश के गले लगते भजते विकास का महामंत्र हवा पानी तक हजम कर गए जिनके उन्नत सयंत्र अच्छा है यदि जपें न्याय सम्मत जनहित का जंत्र लोकहित के नारों […] Read more » लोकतंत्र लोकतंत्र कविता हिन्दी कविता
कविता युग देखा है June 21, 2014 by बीनू भटनागर | 2 Comments on युग देखा है -बीनू भटनागर- एक ही जीवन में हमने, एक युग पूरा देखा है। बड़े बड़े आंगन चौबारों को, फ्लैटों मे सिमटते देखा है। घर के बग़ीचे सिमट गये हैं, बाल्कनी में अब तो, हमने तो पौधों को अब, छत पर उगते भी देखा है। खुले आंगन और छत पर, मूंज की खाटों पे बिस्तर, पलंग निवाड़ […] Read more » कविता जीवन कविता युग देखा है हिन्दी कविता
कविता दीप June 20, 2014 / June 21, 2014 by बीनू भटनागर | 1 Comment on दीप -बीनू भटनागर- वायु बिन वो जल न पाये, वायु से ही बुझ जाये है। दीप तेरी ये कहानी तो, कुछ भी समझ न आये है। तू जला जो मंदिरों में, पवित्र ज्योति कहलाये है। आंधियों में ठहरा रहा तो, संकल्प बन जाये है। मृत्यु शैया पर जले तो, पीर अपनो की बन जाये है। आरती […] Read more » दीप दीप कविता हिन्दी कविता
कविता प्रेम June 19, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- प्रेम इतना भी न करो किसी से, कि दम उसका ही घुटने लगे, फ़ासले तो हों कभी, जो मन मिलन को मचलने लगे। भले ही उपहार न दो, प्रेम को बंधन भी न दो, एक खुला आकाश दे दो, ऊंची उड़ान भरने का, सौभाग्य दे दो… लौट के आयेगा तुम्हारे पास ही, ये […] Read more » प्रेम प्रेम कविता हिन्दी कविता