कविता गरमी मई की जून की April 2, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment आई चिपक पसीने वाली, गरमी मई की जून की| चैन नहीं आता है मन को, दिन बेचेनी वाले | सल्लू का मन करता कूलर , खीसे में रखवाले | बातें तो बस उसकी बातें , बातें अफलातून की | दादी कहतीं सत्तू खाने , से जी ठंडा होता | जिसने बचपन से खाया है, तन […] Read more » poem on summer गरमी मई की जून की
चुनाव व्यंग्य चुनावी फसल से खलिहान भरने की चाहत…! April 1, 2014 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment -तारकेश कुमार ओझा- गांव – देहात से थोड़ा भी संबंध रखने वाले भलीभांति जानते हैं कि खेतीबारी कितना झंझट भरा, श्रमसाध्य और जोखिम भरा कार्य है। यदा-कदा गांव जाने पर उन मुर्झाए चेहरों वाले रिश्तेदारों से मुलाकात होती है, जो अपना दुखड़ा सुनाते हुए बताते हैं कि बेटा .. खेतीबारी से गुजारा मुश्किल है। पुश्तैनी […] Read more » satire on current election चुनावी फसल से खलिहान भरने की चाहत...!
चुनाव राजनीति व्यंग्य राजनैतिक आत्महत्या: घूंघट नहीं खोलूंगी सैंया तोरे आगे April 1, 2014 by डा. अरविन्द कुमार सिंह | Leave a Comment -डॉ. अरविन्द कुमार सिंह- बहुत दिनों के बाद आज कुछ लिखने के लिये कलम उठाया हूं। देश चुनावी ताप से तप रहा है। राजनेताओं का कहा हर लफ्ज, कई अर्थों को जन्म दे रहा है। सब अपनी विश्वसनियता को साबित करने हेतु दूसरों पर जमकर आरोप प्रत्यारोप का सहारा ले रहे हैं। मैं समझ नही […] Read more » satire on Arvind Kejrival राजनैतिक आत्महत्या: घूंघट नहीं खोलूंगी सैंया तोरे आगे
कविता आज़ादी के पहले अनगिनत शहीद हुए March 30, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- आज़ादी के पहले अनगिनत शहीद हुए कड़ी राहों से हँसते हुए गुज़रे हम सब के लिए कि हमारे लिए ज़रूरी थी आज़ादी हमारी ! आज़ादी के बाद शहीद हुए हमारे गांधी कि हम नव-आज़ाद लोगों को शायद ज़रूरत न थी उस रहबरी की अब कि वह रोकती मनचाही आज़ादी हमारी ! आज़ादी के […] Read more » Poem on Martyrs आज़ादी के पहले अनगिनत शहीद हुए
गजल चारों तरफ हैं रास्ते, हर रास्ते पे मोड़ है ! March 30, 2014 / September 3, 2018 by भारत भूषण | 3 Comments on चारों तरफ हैं रास्ते, हर रास्ते पे मोड़ है ! चारों तरफ हैं रास्ते, हर रास्ते पे मोड़ है ! तुही बता ये जिन्दगी, जाना तुझे किस ओर है !! हर तरफ़ से आवाजें, कोलाहल और शोर है ! कुछ समझ आता नहीं, मंजिल मेरी किस ओर है !! सब के सब बेकल यहाँ , सबके सपनों का जोड़ है ! किसके सपने […] Read more » gazal ग़जल भारत भूषण
कविता व्यंग्य मिक्सिंग और फिक्सिंग March 27, 2014 by मिलन सिन्हा | 1 Comment on मिक्सिंग और फिक्सिंग -मिलन सिन्हा- उसने पहले ढंग से जाना गेम का सब ट्रिक्स फिर मैच को अच्छे से किया फिक्स जब शोर हुआ तब राजनीति से किया उसे मिक्स पकड़ा गया फिर भी शर्म नहीं किसी बात का कोई गम नहीं क्योंकि उसे मालूम है यहां मैच को करके मिक्स और फिक्स कैसे मारा जाता है सिक्स […] Read more » satire poem on match fixing मिक्सिंग और फिक्सिंग
कविता अहंकार बलिदान बड़ा है, देह के बलिदान से March 27, 2014 by डॉ. मधुसूदन | Leave a Comment -मधुसूदन- मिट्टी में जब, गड़ता दाना, पौधा ऊपर, तब उठता है। पत्थर से पत्थर, जुड़ता जब, नदिया का पानी, मुड़ता है। अहंकार दाना, गाड़ो तो, राष्ट्र बट, ऊपर उठेगा, कंधे से कंधा, जोड़ो तो, इतिहास का स्रोत, मुड़ेगा। अहंकार-बलिदान, बड़ा है, देह के, बलिदान से, इस रहस्य को,जान लो, जीवन सफल, होकर रहेगा इस अनन्त […] Read more » poem on inspiring human being अहंकार बलिदान बड़ा है देह के बलिदान से
साहित्य साहित्य की मुख्य धारा में समकालीन गीत March 25, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -भारतेंदु मिश्र- साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है और वह कई मायने में है भी। अब यदि साहित्य की मुख्यधारा की बात करें तो उसमे गद्य की ही अनेक विधाए आती हैं। यह हमें स्वीकार करना होगा कि यह गद्य का युग है। अब गद्य और पद्य का भेद मिट गया है।अर्थात छन्दहीन नीरस […] Read more » on the base of literatute साहित्य की मुख्य धारा में समकालीन गीत
कविता सूरज का डोला March 24, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment -प्रभुदयाल श्रीवास्तव- चिड़ियों ने जब चूं-चूं बोला, पूरब ने अपना मुंह खोला| उदयाचल अपने कंधे पर, ले आया सूरज का डोला| पीपल पर कोयल चिल्लाई, तब कौओं को भी सुध आई| कांव-कांव कहकर चिल्लाये, उठो सबेरा जागो भाई| फूलों पर भौंरे मंडराये, लगी भूख है रस मिल जाये| जीने का आधार चाहिये, थोड़ा सा ही […] Read more » poem on early morning सूरज का डोला
व्यंग्य व्यंग्य बाण : उफ, ये सादगी March 19, 2014 by विजय कुमार | Leave a Comment छात्र जीवन में मैंने ‘सादा जीवन उच्च विचार’ पर कई बार निबन्ध लिखा है। निबन्ध में यहां-वहां का मसाला, कई उद्धरण और उदाहरण डालकर चार पंक्ति की बात को चार पृष्ठ बनाने में मुझे महारथ प्राप्त थी। मेरे निबन्ध को इसीलिए सर्वाधिक अंक भी मिलते थे। वस्तुतः किसी भी बात के, बिना बात विस्तार को […] Read more » ये सादगी व्यंग्य बाण : उफ
व्यंग्य शिशुपाल और केजरीवाल March 19, 2014 by विपिन किशोर सिन्हा | 9 Comments on शिशुपाल और केजरीवाल दिल्ली का मुख्यमन्त्री बनने के पहले अरविन्द केजरीवाल ने कांग्रेस और भ्रष्टाचार-विरोध का एक मुखौटा लगा रखा था जो समय के साथ-साथ तार-तार हो रहा है। कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छुपते। केजरीवाल की हरकतें इस कहावत की सत्यता सिद्ध करती हैं। शक तो तभी होने लगा था, जब […] Read more » शिशुपाल और केजरीवाल
कविता समझ लेना युवा है… March 18, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 1 Comment on समझ लेना युवा है… अन्यायों से लड़ता, सूर्य सा सुलगता, जो हो कर्तव्य निभाता, अपना पथ स्वयं बनाता, समझ लेना युवा है… हुँकार अपनी भरता, आँधियों को चीरता, समर को खदेड़ता, विद्रोही स्वर दिखाता, समझ लेना युवा है… प्रेम में उलझा हुआ, सपनों से झुलसा हुआ, बहुत दूर तक उड़ने को संकल्पित हुआ, पर अपनों की आशाओं से बंधा […] Read more » समझ लेना युवा है...