व्यंग्य साहित्य गुरुगिरी मिटती नहीं हमारी October 7, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment हमारा देश हमेशा से ज्ञान का उपासक रहा है और इस पर कभी किसी को कोई शक नहीं रहा है। ज्ञान के मामले में हम शुरू से उदार रहे है,केवल बाँटने में यकीन रखते है। ज्ञान की आउटगोइंग कॉल्स को हमने सदा बैलेंस और रोमिंग के बंधनो से मुक्त रखा है। हमने विश्व को शून्य […] Read more » Featured गुरुगिरी
व्यंग्य साहित्य तो क्या हाथी निकलेगा ? October 6, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment दुनिया में शाकाहारी अधिक हैं या मांसाहारी; शाकाहार अच्छा है या मांसाहार; फार्म हाउस के अंडे और घरेलू तालाब की छोटी मछली शाकाहार है या मांसाहार; मांस में भी झटका ठीक है या हलाल; ताजा पका हुआ मांस अच्छा है या डिब्बाबंद; ये कुछ चिरंतन प्रश्न हैं, जिनके उत्तर मनुष्य सदियों से तलाश रहा है। […] Read more » adulterated food Featured rat in the food तो क्या हाथी निकलेगा
व्यंग्य साहित्य त्योहार और बाजार…!! September 26, 2017 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा कहते हैं बाजार में वो ताकत हैं जिसकी दूरदर्शी आंखे हर अवसर को भुना कर मोटा मुनाफा कमाने में सक्षम हैं। महंगे प्राइवेट स्कूल, क्रिकेट , शीतल पेयजल व मॉल से लेकर फ्लैट संस्कृति तक इसी बाजार की उपज है। बाजार ने इनकी उपयोगिता व संभावनाओं को बहुत पहले पहचान लिया और […] Read more » त्योहार त्योहार और बाजार बाजार
व्यंग्य साहित्य डिजीटल शौचालय, सुविधा से मुसीबत तक September 22, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment भारत की हमारी महान सरकार ने तय कर लिया है कि वो हर चीज को डिजीटल करके रहेगी। वैसे तो ये जमाना ही कम्प्यूटर का है। राशन हो या दूध, रुपये पैसे हों या कोई प्रमाण पत्र। हर चीज कम्प्यूटर के बटन दबाने से ही मिलती है। जब से मोबाइल फोन स्मार्ट हुआ है, तब […] Read more » डिजीटल शौचालय
व्यंग्य साहित्य राजनीति का कोढ़ : वंशवाद September 21, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment कल शर्मा जी मेरे घर आये, तो हाथ में मिठाई का डिब्बा था। उसका लेबल बता रहा था कि ये ‘नेहरू चौक’ वाले खानदानी ‘जवाहर हलवाई’ की दुकान से ली गयी है। डिब्बे में बस एक ही बरफी बची थी। उन्होंने वह मुझे देकर डिब्बा मेज पर रख दिया। – लो वर्मा, मुंह मीठा करो। […] Read more » Featured वंशवाद
व्यंग्य साहित्य परबुद्ध सम्मेलन September 18, 2017 by विजय कुमार | 1 Comment on परबुद्ध सम्मेलन मैं दोपहर बाद की चाय जरा फुरसत से पीता हूं। कल जब मैंने यह नेक काम शुरू किया ही था कि शर्मा जी का फोन आ गया। – वर्मा, पांच बजे जरा ठीक-ठाक कपड़े पहन कर तैयार रहना। दाढ़ी भी बना लेना। एक खास जगह चलना है। वहां से रात को खाना खाकर ही लौटेंगे। […] Read more » Featured परबुद्ध सम्मेलन
व्यंग्य शपथ ग्रहण समारोह September 7, 2017 / September 7, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment इस शीर्षक से आप भ्रमित न हों। मेरा मतलब पिछले दिनों दिल्ली में हुए शपथ ग्रहण से नहीं है। उसमें कुछ मंत्रियों की कुर्सी ऊंची हुई, तो कुछ की नीची। कुछ की बदली, तो कुछ किस्मत के मारे उससे बेदखल ही कर दिये गये। एक पुरानी और प्रखर वक्ता ने जब अपने शरीर का भार […] Read more » शपथ ग्रहण समारोह
व्यंग्य साहित्य क्यों पनपते हैं बाबाओं के डेरे ? August 30, 2017 / August 30, 2017 by जगमोहन ठाकन | 4 Comments on क्यों पनपते हैं बाबाओं के डेरे ? कार्ल मार्क्स ने कहा था- धर्म अफीम के समान है . पर कोई व्यक्ति क्यों अफीम का प्रयोग करता है , कब शुरू करता है इसका सेवन और कब तक रहता है इसके नशे का आदि ? यदि यही प्रश्न हम धर्म , सम्प्रदाय , पंथ या डेरे से जोड़कर देखें , सोचें ; तो कहीं ना […] Read more » बाबाओं के डेरे
व्यंग्य दो रोगों की एक दवाई August 30, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment बचपन में स्कूल में हमें गुरुजी ने एक सूत्र रटाया था, ‘‘सौ रोगों की एक दवाई, सफाई सफाई सफाई।’’ कुछ बड़े हुए, तो संसार और कारोबार में फंस गये। इससे परिवार और बैंक बैलेंस के साथ ही थोंद और तनाव भी बढ़ने लगा। फिर शुगर, रक्तचाप और नींद पर असर पड़ा। डॉक्टर के पास गये, […] Read more » bjp Congress Featured Indian political parties political parties unite political parties united in India अन्ना द्रमुक दवाई
व्यंग्य चुनाव की तैयारी August 25, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment चुनाव लड़ना या लड़ाना कोई बुरी बात नहीं है। राजनीतिक दल यदि चुनाव न लड़ें, तो उनका दाना-पानी ही बंद हो जाए। चुनाव से चंदा मिलता है। अखबारों में फोटो छपता है। हींग लगे न फिटकरी, और रंग चोखा। बिना किसी खर्च के ऐसी प्रसिद्धि किसे बुरी लगती है ? इसलिए हारें या जीतें, पर […] Read more » Featured preparation for election चुनाव चुनाव की तैयारी
व्यंग्य हम सीख रहे हैं….. August 25, 2017 by बीनू भटनागर | Leave a Comment कहते हैं सीखने की कोई उम्र नहीं होती।अब 70 हमारे पास मंडरा रहा है और हम सीखे जा रहे है, शायद कब्र तक पंहुचते पंहुचते भी सीखते रहे, सीखने से छुट्टी नहीं मिलने वाली, सीखे जाओ किये जाओ यही हमारी नियति है। पचास साल हो गये पढ़ाई पूरी किये पर सीखना बन्द नहीं हुआ। हिन्दी […] Read more » Featured ईमोजी हम सीख रहे हैं
व्यंग्य साहित्य नमक का ढेला और गुड़ की लेप August 23, 2017 by जगमोहन ठाकन | Leave a Comment जग मोहन ठाकन लगातार छह माह से इन्तजार करके आँखें थक चुकी थी कि शायद आज ही कोई लाइक आया जाए , कोई कमेंट आ जाए और तो और कोई पोक ही जाए तो भी सब्र कर लूँ . पर सब के सब कंजूस हैं . सैंकड़ों को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी , ज्यादातर ने तो […] Read more » गुड़ की लेप नमक का ढेला