व्यंग्य टांग खींचने की बीमारी April 9, 2017 by अशोक गौतम | Leave a Comment तभी साहब ने सचिव को बीच में रूकने का इशारा कर गंभीर हो कहा,‘ पर हां! एक बात का जयपुर से टांगें लाते हुए विशेश ख्याल रखा जाए। जो भी वहां टांगें खरीदने जाए वह असली का आभास देने वाली टांगें ही लाए ताकि सभी असली सी टांगें खींचने का समान रूप से मजा ले सकें। और हां! इसके बाद असली टांगें खींचना गैर कानूनी माना जाएगा। फिर मत कहना मैंने किसीकी एसीआर में रेड एंट्री कर दी । शर्मा जी! आपसे और आपके सहयोगियों से तब तक खास निवेदन है कि......’कह साहब ने उनकी ओर हाथ जोड़े। Read more » Featured the disease of leg pulling टांग खींचने की बीमारी
व्यंग्य हम और अहम April 8, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment हम "अहम" के बिना अधूरे है। गुरुर का सुरूर बहुत मुश्किल से उतरता है। हम हिंदुस्तानी, "ज़िंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा" की सनातन परंपरा के वाहक है और इस परंपरा को हमने अनादिकाल से जीवित रखा है जो परंपराओ के प्रति हमारे समर्पण और बिना शोषित हुए उन्हें पोषित करने की कला को दर्शाती है। Read more » हम और अहम
व्यंग्य आईने, चेहरे और चरित्र April 7, 2017 by अशोक गौतम | Leave a Comment आखिर मन मसोस कर सरकार ने जनहित में चेतावनी जारी की,’ देश के तमाम तबके के चेहरों को सूचित किया जाता है कि वे आईने के सामने आने से बचें। आईनों ने देश के तमाम चेहरों के विरूद्ध उनका चेहरा सजाने के बदले उनके चरित्र को दिखाने की जो मुहिम छेड़ी है ,वह राष्टर विरोधी है। सरकार अखिल समाज आईना संघ के इस निर्णय की हद से अधिक निंदा करती है। Read more » आईने चरित्र चेहरे
व्यंग्य साहित्य मार्च एंडिंग की मार्च पास्ट April 3, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment मार्च का महीना बैंक और कंपनियो के लिए वार्षिक खाताबंदी का भी होता है। वर्ष की शुरुवात में जो खाते शुरू किए जाते है, वो पर्याप्त समय और दिमाग खाने के बाद बंद कर दिए जाते है। खाताबंदी करते वक़्त बंदा या बंदी में फर्क नहीं किया जाता है और समान रूप से उनके पेशेंश का एंड कर मार्च एंडिंग करवाई जाती है। डेबिट-क्रेडिट कर खातो को बंद किया जाता है लेकिन इसका क्रेडिट हमेशा बॉस को मिलता है। खाताबंदी, नोटबंदी और नसबंदी से भी ज़्यादा तकलीफ देती है और ये दिल मांगे मोर (तकलीफ) कहते हुए हर साल मार्च में आ जाती है। खाताबंदी, नोटबंदी, नसबंदी और नशाबंदी, सरकार चाहे तो इन सारी "बंदियों" को "लिंगानुपात" संतुलित करने में भी उपयोग में ला सकती है। Read more » मार्च एंडिंग
व्यंग्य साहित्य बेवकूफी का तमाशा April 3, 2017 by आरिफा एविस | 2 Comments on बेवकूफी का तमाशा अरे जमूरे ! आजकल के बुद्धिजीवी और लेखक भी तो लोगों का अप्रैल फूल बनाते हैं. ऐसे मुद्दों पर लिखते और ऐसे विषयों पर चर्चा करते हैं जिसका अवाम से कुछ भी लेना देना नहीं होता.लेकिन अपना स्वार्थ सिद्ध जरूर पूरा हो जाये अवाम पर लिखकर . अरे भाई अगर उनको अवाम के बारे में सोचना ही होता तो वो बुद्धिजीवी ही क्यों कहलाते, बुद्धिजीवी सिर्फ विमर्श करते, फर्श पर कुछ नहीं करते.' Read more » बेवकूफी का तमाशा
व्यंग्य साहित्य घर की मुर्गी लेकिन उपचार बराबर April 3, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment हर मर्ज़ का इलाज़ हम अपनी मर्ज़ी से करते है। अगर किसी बीमारी का कोई घरेलू इलाज़ हमारे पास उपलब्ध नहीं है तो मतलब वो बीमारी गैरसंवैधानिक है और वो बीमारी सभ्य समाज के लायक नहीं है। घरेलू उपचार अब घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं रह गए है वो रोज़ वाट्सएप और फेसबुक के ज़रिए लोगो के मोबाइल में अपनी जगह और पैठ बना चुके है। सोशल मीडिया पर ये उपचार "फॉरवर्ड" कर करके हम इतने ज़्यादा "फॉरवर्ड" हो चुके है अब बीमारी का आविष्कार होने से पहले ही उपचार की खोज कर लेते है ताकि बीमारी आने पर तुरंत उपचार को "केश" और "पेश" किया जा सके। Read more »
व्यंग्य सोशल मीडिया के रास्ते प्रसिद्धी के वैकल्पिक सौपान March 28, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment सिद्धी की इतनी सहज उपलब्धता ने कई लोगो को असहज बना दिया है । प्रसिद्ध लोग जब अपनी 1000-2000 लाइक वाली किसी पोस्ट पर किसी कमेंट का रिप्लाई करते है तो अपने शब्दों से ऐसा आभामंडल रचते है मानो कमेंट नहीं कर लाखो लोगो की सभा को संबोधित कर रहे हो। हालाँकि अपनी हर पोस्ट पर 1K/2K लाइक लेने वाले इन सेलिब्रिटीज के सारे पोस्ट्स चोरी "के" होते है। Read more » Featured प्रसिद्धी के वैकल्पिक सौपान
व्यंग्य साहित्य लेखक और सम्मान March 26, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment लेखक होना बड़ी ज़िम्मेदारी का काम होता है क्योंकि आपको जबान ना चलाकर अपनी कलम चलानी होती है। सामाजिक सरोकारों की गठरी कंधो पर उठाए ,ज़बान को लगाम देकर,कलम के घोड़े दौड़ना एक चुनौतीपूर्ण कार्यक्रम है जिसे उचित क्रम में फॉलो करना होता है। जिस तरह से भगवान केवल भाव के भूखे होते है उसी […] Read more » लेखक लेखक और सम्मान सम्मान
व्यंग्य साहित्य सही गलत की नौकरी ! March 26, 2017 by सुप्रिया सिंह | Leave a Comment राजनीति और चुनाव मे नेताओं की क्रियाकलाप की आलोचना करना गलत नही है या यूँ कहे कि बिल्कुल भी गलत नही है और तो और ये तो आपका अधिकार भी है लेकिन ये गलत तब गलत हो जाता है जब अधिकार – अधिकार चिल्लाकर अधिकार के शोर मे कृत्वयों को धूमिल करने का प्रयास किया जाता है । घर के बाहर सही जगह पर कचरा न फेंकने वाले गन्दगी के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराते है , ट्रैफिक पर सिंग्लन तोड़ कर जाने वाले दुर्घटना का शिकार होने पर सड़को की आड़ लेकर सरकार को कोसते है । Read more » Featured सही गलत
व्यंग्य आहत होने की चाहत March 24, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment राजनीती, खेल, बॉलीवुड,धर्म या अन्य किसी भी क्षेत्र से जुडी कोई भी घटना हो या इन से जुड़े किसी भी सेलेब्रिटी या किसी व्यक्ति का कोई भी बयान हो वो रोज़ सोशल मीडिया की भट्टी में ईंधन रूपी कच्चे माल के रूप में झोंक दिया जाता है जो "ट्रेंड"की शक्ल में बाहर निकल कर लोगो को कोमल भावनाए आहत करने का अपना क़र्ज़ और फ़र्ज़ अदा करता है। Read more » wish to get hurted आहत आहत होने की चाहत
व्यंग्य कुछ दिन तो गुजारो ; गुजरात ( माडल ) में March 23, 2017 by जगमोहन ठाकन | Leave a Comment मित्रों , अब तो अमिताभ बच्चन का कहा मानकर कुछ दिन तो गुजारो गुजरात (माडल) में । हाँ , पर चीख चीख कर यू पी चुनाव में ई वी एम मशीन पर सवाल उठाने वाली मायावती जी की बात भी सुन लो, कहीं वहाँ भी गुजराती माडल का प्रयोग तो नहीं किया गया है । क्योकि गुजराती माडल देता है परीक्षा में 100 % सफलता की गारंटी Read more »
व्यंग्य नेता वही जो वोट दिलाये March 19, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment होली आते ही मौसम सुहावना हो जाता है। हर तरफ बसंती उल्लास। नाचते-गाते लोग। मस्ती करते पशु और चहचहाते पक्षी। स्वच्छ धरती और मुक्त आकाश। डालियों पर हंसते फूल और कलियां। शीतल और गुनगुनी हवा में अठखेलियां करती गेहूं की बालियां। ऐसा लगता है मानो अल्हड़ नवयौवनाएं एक दूसरे के गले में हाथ डाले पनघट […] Read more » नेता वही जो वोट दिलाये