राजनीति व्यंग्य ऑपरेशन झाड़ूमार September 18, 2016 by विजय कुमार | Leave a Comment जीभ की लम्बाई, चौड़ाई या मोटाई के बारे में तो हमने अधिक बातें नहीं सुनीं, पर उसकी चंचलता के किस्से जरूर प्रसिद्ध हैं। कहते हैं एक बार दांतों ने हंसी-मजाक में जीभ को काट लिया। जीभ ने कुछ गुस्सा दिखाया; पर वह ठहरी कोमल और अकेली, जबकि दांत थे कठोर और पूरे बत्तीस। उसके गुस्से […] Read more » Featured ऑपरेशन झाड़ूमार
राजनीति व्यंग्य साहित्य क्यों भई चाचा, हां भतीजा September 17, 2016 by विजय कुमार | 1 Comment on क्यों भई चाचा, हां भतीजा बचपन में स्कूल से भागकर एक फिल्म देखी थी ‘चाचा-भतीजा।’ उसमें एक गीत था, ‘‘बुरे काम का बुरा नतीजा, क्यों भई चाचा.., हां भतीजा।’’ फिल्म के साथ यह गाना भी उन दिनों खूब लोकप्रिय हुआ था। आजकल भी ये गाना उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में जूतों की ताल पर खूब बज रहा है। इस […] Read more » Akhilesh yadav Featured Shivpal Yadav चाचा भतीजा शिवपाल
व्यंग्य साहित्य पूंजी-राजनीति एकता जिंदाबाद September 17, 2016 by एम्.एम्.चंद्रा | Leave a Comment एम. एम. चन्द्रा पूरी दुनिया के बड़े व्यापारी, पूंजीपति और वित्तीय संस्थान जी -5, जी 8, जी-20 और शक्तिशाली देशों की मीटिंग चल रही थी. विकासशील देश बाहर धरना दे रहे थे. हमें भी इन संस्थाओं में शामिल किया जाये. इन संस्थाओं ने मिलजुलकर यह तय किया कि जब तक बाहर खड़े देशों को यह […] Read more » एकता पूंजी पूंजी-राजनीति एकता राजनीति
व्यंग्य हिंदी दिवस या हिन्दी विमर्श September 15, 2016 by एम्.एम्.चंद्रा | Leave a Comment एम् एम्. चन्द्रा हिंदी दिवस पर बहस चल रही थी. एक वर्तमान समय के विख्यात लेखक और दूसरे हिंदी के अविख्यात लेखक. हम हिंदी दिवस क्यों मानते है? कोई दिवस या तो किसी के मरने पर मनाया जाता है या किसी उत्सव पर, तो ये हिंदी दिवस किस उपलक्ष में मनाया जा रहा है. अविख्यात […] Read more » हिंदी दिवस हिन्दी विमर्श
व्यंग्य साहित्य शाहबुद्दीन के नाम एक खत September 15, 2016 by संजय चाणक्य | Leave a Comment संजय चाणक्य ” लिखू कुछ आज यह वक़्त का तकाजा है ! मेरे दिल का दर्द अभी ताजा-ताजा है !! गिर पडते है मेरे आसू ,मेरे ही कागज पर ! लगता है कि कलम मे स्याही का दर्द ज्यादा है !!,, मै काफी उलझन में था सोचता हू खत की शुरूआत कहा से और कैसे […] Read more » Featured शाहबुद्दीन के नाम एक खत
राजनीति व्यंग्य साहित्य खाट का खटराग September 9, 2016 by प्रमोद भार्गव | Leave a Comment राजनीति में नए नए प्रयोगों के आदी रहे राहुल गांधी ने खाट-चर्चा के जरिए कांग्रेस को ठेठ आम लोगों के बीच चर्चा में ला दिया है। खाट-चैपाल चर्चा में आनी ही थी, क्योंकि खाट का अपना एक शास्त्रीय राग भी होता है, जो शास्त्रीय संगीत में तो शामिल नहीं है, लेकिन लोक में लोकश्रुतियों की […] Read more » Featured खाट खाट का खटराग
राजनीति व्यंग्य साहित्य खाट सभा और टाट सभा September 8, 2016 / September 8, 2016 by विजय कुमार | Leave a Comment कल शाम शर्मा जी के घर गया, तो वे माथे पर हाथ रखे ऐसे बैठे थे, जैसे सगी सास मर गयी हो। हर बार तो मेरे आने पर वे हंसते हुए मेरा स्वागत करते थे, पर आज उनमें कोई हलचल ही नहीं थी। भाभी जी भी घर पर नहीं थी। इसलिए मैंने रसोई से एक […] Read more » Featured खाट सभा टाट सभा
राजनीति व्यंग्य साहित्य खटिया लूटेरी जनता September 8, 2016 / September 8, 2016 by अश्वनी कुमार, पटना | Leave a Comment जब लोकतंत्र जनता के लिए है, चुनाव जनता के लिए हैं, रैलियों का इंतजाम जनता के लिए है तो खटिया क्यूँ नहीं? उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले से खटिया लूटने के शुरुआत बताती है की अब चुनाव के वक्त जनता को ठगने का जो टैलेंट नेताओं में पहले था वो अब जनता में आने लगी […] Read more » Featured khat sabha of Rahul Gandhi खटिया लूटेरी जनता
व्यंग्य साहित्य इतने लोग हड़ताल नहीं इन्कलाब करते है September 5, 2016 by एम्.एम्.चंद्रा | Leave a Comment एम. एम.चन्द्रा भाई! गाड़ी की सर्विस करानी है सर! अभी तो 9 भी नहीं बजे और पुलिस को देखकर आपको क्या लगता है? क्या आज कोई काम हो पायेगा ? सर यदि आप अपनी गाड़ी को बचाना चाहते हो तो आज यहाँ से गाड़ी ले जाओ और किसी ओर दिन सर्विस करा लेना. भाई! ये पुलिस वाले हड़ताल […] Read more » इन्कलाब
व्यंग्य साहित्य विपक्ष का जोश और शासक का होश …!! August 30, 2016 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा मोरली हाइ या डाउन होने का मतलब तब अपनी समझ में बिल्कुल नहीं आता था। क्योंकि जीवन की जद्दोजहद के चलते अब तक अपना मोरल हमेशा डाउन ही रहा है । लेकिन खासियत यह कि जेब में फूटी कौड़ी नहीं वाले दौर में भी यह दुनिया तब बड़ी खूबसूरत लगती थी। जी […] Read more » Featured विपक्ष का जोश शासक का होश ...!!
व्यंग्य साहित्य कांग्रेस टर्न August 28, 2016 by विजय कुमार | Leave a Comment यदि साल के बारह महीनों में सावन और भादों का महीना न हो, तो जीवन में सर्वत्र सूखापन छा जाए। ऋतुराज भले ही बसंत को कहते हैं; पर वर्षाकाल के बिना बसंत भी सूना ही है। लेकिन सावन-भादों में वर्षा यदि जरूरत से ज्यादा होने लगे, तो भी मुसीबत आ जाती है। इस बार भी […] Read more » congress turn Featured कांग्रेस टर्न
व्यंग्य साहित्य चौथ का चांद और पति की मिलीभगत August 24, 2016 by दीपक शर्मा 'आज़ाद' | Leave a Comment बात बढ़ते बढ़ते इतनी बढ़ गई थी कि शहर के शहर सड़क पर आ उतरे और अन्तत: सरकार को पूरे देश में कर्फ्यू लगाना पड़ा। दरअसल, गत दो दिवस पहले चौथ का व्रत था। जिसके चलते सभी घरों में तनाव पसरा था। शर्मा जी, गांधी जी के तीसरे बंदर की तरह अपनी पत्नी के सामने […] Read more » Featured चौथ का चांद पति की मिलीभगत