व्यंग्य साहित्य समय की रेत, घटनाओं के हवा महल … November 28, 2016 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा बचपन में टेलीविजन के प र्दे पर देखे गए दो रोमांचक दृश्य भूलाए नहीं भूलते। पहला क्रेकिट का एक्शन रिप्ले और दूसरा पौराणिक दृश्यों में तीरों का टकराव। एक्शन रिप्ले का तो ऐसा होता था कि क्रिकेट की मामूली समझ रखने वाला भी उन दृश्यों को देख कर खासा रोमांचित हो जाता […] Read more » घटनाओं के हवा महल समय की रेत
व्यंग्य ऊ लाला! उनका रस्म उठाला November 27, 2016 by अशोक गौतम | Leave a Comment वे जो कल तक हर किसीका सिर बड़े इतमिनान से मंूडा करते थे, मुंडे सिर जब उनको किराए की गाड़ी से सफेद कपड़ों में उतरते देखा तो पैरों तले से जमीन सरक गई। ये क्या हो गया? कब हो गया?? कैसे हो गया?? मुहल्ले में रहते हुए भी मुझे पता नहीं कि…. आखिर मैं रहता […] Read more »
राजनीति व्यंग्य आ आ पा के 50 % से अधिक विधायको ने अपने “विधायक-कोष” में से एक भी पैसा ख़र्च नहीं किया November 21, 2016 by अमित शर्मा (CA) | 3 Comments on आ आ पा के 50 3 से अधिक विधायको ने अपने “विधायक-कोष” में से एक भी पैसा ख़र्च नहीं किया सोशल मीडिया पर चल रहे ताज़ा ट्रेंड की माने तो आप विधायको ने इसलिए भी अपने कोष से कोई प्रोजेक्ट शुरू नहीं करवाया क्योंकि मार्केट में सारे नोट्स पर "सोनम गुप्ता बेवफा है "लिखा है जबकि केजरीवाल जी चाहते थे किसी भी परियोजना की शुरुवात "मोदी बेवफा है" लिखे नोट्स से होनी चाहिए। सरकार बनने के बाद से आप विधायको पर अलग अलग अपराधों में इतने आरोप लगे है और इतने विधायक तिहाड़ जेल की हवा खा चुके है की, लगता है विधायक कोष का पैसा अपने विधानसभा क्षेत्र में खर्च करने के बजाय विधायको ने ये पैसे अपना केस लड़ने के लिए और वकील की फीस के लिए बचा रखे है। Read more » Featured
व्यंग्य साहित्य #नोटबंदी पर रामभुलावन ने कहा, हम कितने ढीठ किस्म के हो गए हैं साहब ! November 20, 2016 by मयंक चतुर्वेदी | 1 Comment on #नोटबंदी पर रामभुलावन ने कहा, हम कितने ढीठ किस्म के हो गए हैं साहब ! हम कितने ढीठ किस्म के हो गए हैं, वह ऐसे ही नहीं कह रहा, उसके पीछे ओर भी कई कारण है। रामभुलावन आगे बोला..मसलन लोगों ने लाइन में लगने को ही धंधा बना डाला, सरकार ने बैंक से नोट बदलने की सुविधा एटीएम का उपयोग करने वालों की तुलना में जो लोग इस का उपयोग नहीं करते हैं, उनको ध्यान में रखकर की थी लेकिन हुआ क्या ..... लोग चंद रुपयों के लालच में लाइन में लगकर काले को सफेद करने के फेर में पड़ गए। जिसके बाद मजबूरी में सरकार को 4 हजार 500 की नगद राशि परिवर्तन किए जाने के निर्णय को वापिस लेकर उसे 2 हजार रुपए करना पड़ा। Read more » Featured नोटबंदी
व्यंग्य साहित्य पप्पू गिरी November 16, 2016 by एल. आर गान्धी | Leave a Comment खबरियों के लिए खबर थी और मनचलों के लिए सेल्फी लेने का एक मौका पप्पू महज़ ४००० हज़ार के गाँधी बैंक में बदलने जा पहुंचे ..... गाड़ियों का काफिला और अनगिनत अंग रक्षक साथ में पप्पू के पप्पियों की फौज ,ऊपर से खबरियों का झुण्ड - मधुमखियों की भांति पप्पू पर मंडरा रहा था ..... पप्पू इतरा रहे थे ....मैं इन लोगों के लिए लाइन में लगा हूँ ..... मोदी के सताए हुए हैं ये सब। Read more » पप्पू गिरी
व्यंग्य साहित्य आखिर क्यों युवराज की करीबी दूरी में बदल रही है ? November 15, 2016 by सुप्रिया सिंह | 1 Comment on आखिर क्यों युवराज की करीबी दूरी में बदल रही है ? कहते है कि युवराज को कोई चीज बिना मांगे ही मिल जाती है और जब तक युवराज उस चीज की मांग करता है तब तक वे चीज उसके सामने हाजिर हो जाती है पर यहाँ तो स्थिति उल्टी ही है युवराज बेचारा हर बार कहता है कि वे अब बड़ा हो गया है और जिम्मेदारी उठा सकता है पर महारानी का पद लोभ और युवराज का अपरिपवक्क व्यवहार महारानी को उनके पद से दूर नही जाने दे रहा है और युवराज को पद के करीब नही आने दे रहा है । Read more » Featured
व्यंग्य साहित्य इस लाइन को देख कर मुझे ‘कालिया ’ याद आ गया….!! November 14, 2016 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा बचपन में एक फिल्म देखी थी … कालिया। इस फिल्म का एक डॉयलॉग काफी दिनों तक मुंह पर चढ़ा रहा… हम जहां खड़े हो जाते हैं… लाइन वहीं से शुरू होती है। इस डॉयलॉग से रोमांचित होकर हम सोचते थे… इस नायक के तो बड़े मजे हैं। कमबख्त को लाइन में खड़े […] Read more »
व्यंग्य बेचारा गाँधी November 12, 2016 by एल. आर गान्धी | Leave a Comment एल आर गाँधी यकायक ५०० -१००० के गाँधी पर बैन लगा कर माया-मुलायमों और नकली गान्धिओं को तो मोदी ने एक ही झटके में हलाल कर दिया ! झटका तो इस बेचारे असली गाँधी को भी लगा और झटका देने वाली कोई और नहीं हमारी अर्धाङ्गिनी जी ही थीं। माचिस की डिबिया खरीदने के […] Read more » बेचारा गाँधी
व्यंग्य साहित्य अथ श्री चचा कथा ….!! November 6, 2016 by तारकेश कुमार ओझा | 1 Comment on अथ श्री चचा कथा ….!! से देखा जाए तो आम चचा भी एेसे ही होते हैं। भतीजा सामने आया नहीं कि शुरू हो गए, अरे पुत्तन... जरा इहां आओ तो बिटवा, सुनो जाओ फट से उहां चला जाओ.. अउर इ काम कर डाओ...। Read more » Featured चचा कथा
व्यंग्य साहित्य किताब तो छप गई मगर …………. October 27, 2016 by बीनू भटनागर | Leave a Comment अब हमें कुछ किताबें अपने नज़दीकी रिश्तेदारों को भेजनी थीं, साहित्य जगत के उन वरिष्ठ लोगों को उपहार में भेजनी थीं जो हमें प्रोत्सहन देते रहे थे या फिर वो जिनके लेखन से हम प्रभावित थे, जिन्हे हमने किताबें भेजी उनमें से कुछ ने अतिरिक्त किताबों की मांग की तो हमने साफ़ कह दिया कि अतिरिक्त किताब तो उन्हे हमसे ख़रीदनी होगी।अब हमे ढेरों किताबें कोरियर से भेजनी थीं उपहार वाली भी और ख़रीद वाली भी। Read more » किताब तो छप गई मगर .............
खेल जगत मनोरंजन व्यंग्य यहाँ तो घर की मुर्गी दाल बराबर ही है ! October 27, 2016 by सुप्रिया सिंह | Leave a Comment स्थिति ऐसी लगती है जैसा कबड्डी के साथ घर की मुर्गी दाल बराबर जैसा व्यवहार हो रहा है । वर्ल्ड कप , वर्ल्ड कप होता है चाहे वे किसी भी खेल का क्यों न हो पर अपने यहाँ तो वर्ल्ड कप मतलब क्रिकेट वर्ल्ड कप और कुछ नही । ये बात समझी जा सकती है कि व्यक्ति की खेल भावना मे एकाएक बड़ा बदलाव सम्भव नही है और न ही कोई क्रिकेट प्रेमी एकाएक कबड्डी प्रेमी बनकर उसकी बारिकियों का विश्लेषण कर सकता है और एकाएक इतने बड़े बदलाव की उम्मीद न तो समाज हमसे करता और न ही उस खेल के खिलाड़ी , वे तो बम इस इतनी Read more »
व्यंग्य साहित्य खान मियां का ‘हलाल -हलाला ‘ October 26, 2016 by एल. आर गान्धी | Leave a Comment मुस्लिम देशों में ऐसी वहशीता का बहुत प्रचलन है ..... और सुविधा के अनुरूप ही सज़ा या मज़ा का चलन है। अफगानिस्तान में एक सैनिक ने एक गधे के साथ पशुगमन किया। उसे महज़ चार दिन कैद की सज़ा मिली और छूट गया। हमारे पडोसी देश 'पाक ' के पश्चिमी पंजाब ,खैबर ,पख्तूनवा ,बलोचिस्तान आदि में पशुगमन का आंम प्रचलन है ........ Read more » खान मियां का 'हलाल -हलाला '