मीडिया व्यंग्य साहित्य सोशल -मीडिया और सामाजिकता के बदलते आयाम August 15, 2016 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment अनादिकाल से ही मनुष्य सामाजिक प्राणी माना जाता रहा हैं। क्योंकि ज़िंदा रहने के लिए भले ही रोटी -कपडा -मकान की ज़रूरत होती हो लेकिन औकात में रहने के लिए शुरू से ही समाज की ज़रूरत महसूस की जाती रही है। भले ही कालांतर में असामाजिक तत्व और असामाजिक घटनाये महामारी की तरह बढ़ी हो […] Read more » Featured सामाजिकता के बदलते आयाम सोशल मीडिया
व्यंग्य देशभक्ति की ओवर डोज : व्यंग्य August 12, 2016 / August 12, 2016 by आरिफा एविस | 1 Comment on देशभक्ति की ओवर डोज : व्यंग्य आरिफा एविस नए भारत में देशभक्ति के मायने औए पैमाने बदल गये हैं. इसीलिए भारतीय संस्कृति की महान परम्परा का जितना प्रचार प्रसार भारत में किया जाता है शायद ही कोई ऐसा देश होगा जो यह सब करता हो. सालभर ईद, होली, दीवाली, न्यू ईयर पर सद्भावना सम्मेलन, मिलन समारोह इत्यादि राजनीतिक पार्टियाँ करती रहती […] Read more » देशभक्ति की ओवर डोज
व्यंग्य साहित्य शर्मसार भी तो किसके आगे August 9, 2016 by अशोक गौतम | Leave a Comment बाजार द्वारा अपने ठगे जाने की अनकही प्रसन्नता के चलते गुनगुनाता- भुनभुनाता हुआ घर की ओर आ रहा था कि घर की ओर जा रहा था राम जाने। बाजार द्वारा ठगे जाने के बाद आदमी होश खो बैठता है और मदहोशी में घर की ओर अकसर लौटता है मंद मंद मुस्कुराते कि उसे बाजार से […] Read more » शर्मसार
व्यंग्य साहित्य उम्मीद August 9, 2016 by चारु शिखा | Leave a Comment उम्मीद (क्षणिकाएं ) उम्मीद सालों की सुस्त पड़ी ज़िंदगी में , कुछ मुस्कुराहट आ है । फिर से जीने की उमंग और खुद को जानना जैसे लौटे पंछी अपने देश डूबते को तिनके का सहारा काफी होता है । प्यार शाख से टूट कर अलग हो गए हवा से भी खफा हो गए क्या […] Read more » उम्मीद
व्यंग्य साहित्य नेता बीमार, दुखी संसार August 9, 2016 by विजय कुमार | Leave a Comment शर्मा जी कल मेरे घर आये, तो उनके चेहरे से दुख ऐसे टपक रहा था, जैसे बरसात में गरीब की झोंपड़ी। मैंने कुछ पूछा, तो मुंह से आवाज की बजाय आंखों से आंसू निकलने लगे। उनके आंसू भी क्या थे, मानो सभी किनारे तोड़कर बहने वाली तूफानी नदी। यदि मैं कविहृदय होता, तो इस विषय […] Read more » दुखी संसार नेता बीमार
व्यंग्य साहित्य विवादों की बाढ़ में इंसान…!! August 4, 2016 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा मैं जिस शहर में रहता हूं वहां कोई नदी नहीं है इसलिए हम बाढ़ की विभीषिका को जानने – समझने से हमेशा बचे रहे। कहते हैं अंग्रेजों ने इस शहर में रेलवे का कारखाना बसाया ही इसलिए था कि यह हमेशा बाढ़ के खतरे से सुरक्षित रहेगा। हालांकि मेरे शहर से करीब […] Read more » बाढ़ बाढ़ में इंसान विवादों की बाढ़
व्यंग्य साहित्य बिना जूते ओलम्पिक पदक July 30, 2016 / July 30, 2016 by एम्.एम्.चंद्रा | 1 Comment on बिना जूते ओलम्पिक पदक एक फिल्मी गाना शादी-विवाह में आज तक चलाया जाता है “जूते दे दो पैसे ले लो” लगता था यह जूते वाला खेल बस घर तक ही सीमित है, लेकिन जब एक फिल्म आयी “भाग मिल्खा भाग” तो यह जूता घर से बहार निकल कर खेल के मैदान तक पहुँच गया. उसे देख कर लगता था […] Read more » बिना जूते ओलम्पिक पदक
व्यंग्य साहित्य प्रेमचंद की जरूरत थी July 30, 2016 by अशोक गौतम | 1 Comment on प्रेमचंद की जरूरत थी अधराता हो चुका था। पर आखों से नींद वैसे ही गायब थी जैसे यूपी में चुनाव के चलते हर नेताई आंख से नींद गायब है। जैसे तैसे सोने का नाटक कर सोने ही लगा था कि फोन आया तो चैंका। किसका फोन होगा? किसी दोस्त को कहीं कुछ हो तो नहीं गया होगा? ये दोस्त […] Read more » Featured प्रेमचंद प्रेमचंद की जरूरत
व्यंग्य साहित्य बाबा, उनकी नींद भली July 28, 2016 by विजय कुमार | Leave a Comment लोकजीवन में कहावतों का बड़ा महत्व है। ये होती तो छोटी हैं, पर उनमें बहुत गहरा अर्थ छिपा होता है। ‘‘जो सोता है, वो खोता है’’ और ‘‘जो जागे सो पावे’’ ऐसी ही कहावते हैं। लेकिन एक भाषा की कहावत दूसरी भाषा में कई बार अर्थ का अनर्थ भी कर देती है। एक हिन्दीभाषी संत […] Read more » उनकी नींद भली बाबा
व्यंग्य साहित्य आया सावन जल -भुन के July 25, 2016 by अशोक गौतम | Leave a Comment लीजिए साहब! जिस बेदर्दी सावन का फरवरी से ही सरकार को इंतजार था आखिर वह आ ही गया। जल -भुन के ही सही। सावन हद से अधिक झूमता- लड़खड़ाता जनता के सामने अपने को पेश करे अतैव सरकार ने उसको लड़खड़ाते हुए आने के लिए रास्ते में ही गच्च कर दिया है। हर दो कोस […] Read more » Featured आया सावन जल -भुन के सावन
व्यंग्य साहित्य राजनेता या पॉलिटिकल सेल्समैन…!! July 24, 2016 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा सचमुच मैं अवाक था। क्योंकि मंच पर अप्रत्याशित रूप से उन महानुभाव का अवतरण हुआ जो कुछ समय से परिदृश्य से गायब थे। श्रीमान कोई पेशेवर राजनेता तो नहीं लेकिन अपने क्षेत्र के एक स्थापित शख्सियत हैं। ताकतवर राजनेता की बदौलत एक बार उन्हें माननीय बनने का मौका भी मिल चुका है […] Read more » political salesman politicians पॉलिटिकल सेल्समैन राजनेता
राजनीति व्यंग्य साहित्य मानसून सत्र की गलबहियां July 20, 2016 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment (व्यंग्य ) लेखक एम.एम.चन्द्रा नेता: मंत्री जी जल्द ही संसद का मानसून सत्र शुरू हो रहा है. हम कितनी तैयारी कर के जा रहे है. तथ्य आंकड़े दुरुस्त तो है वर्ना लोग खड़े ही धुल में लट्ठ लगनने के लिए. मंत्री: हम मंत्री है, प्रत्येक संत्री को हर मोर्चे पर कैसे फिट किया जाता है […] Read more » Featured GST bill in monsoon session parliamen Monsoon session in Parliatment मानसून सत्र की गलबहियां