व्यंग्य साहित्य भूखे को भूख, खाए को खाजा…!! July 4, 2016 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा भूखे को भूख सहने की आदत धीरे – धीरे पड़ ही जाती है। वहीं पांत में बैठ जी भर कर जीमने के बाद स्वादिष्ट मिठाइयों का अपना ही मजा है। शायद सरकारें कुछ ऐसा ही सोचती है। इसीलिए तेल वाले सिरों पर और ज्यादा तेल चुपड़ते जाने का सिलसिला लगातार चलता ही […] Read more » खाए को खाजा भूख भूखे को भूख
व्यंग्य साहित्य हिंदीभाषी होने का दर्द June 27, 2016 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment भाषा वैसे तो संवाद का माध्यम मात्र है लेकिन हम चीज़ो को मल्टीपरपज बनाने में यकीन रखते है इसलिए हमारे देश में भाषा, संवाद के साथ साथ वाद -विवाद और स्टेटस सिंबल का भी माध्यम बन चुकी है। हमें बचपन में बताया गया की हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाए आपस में बहने है लेकिन सयाने […] Read more » Featured हिंदीभाषी हिंदीभाषी होने का दर्द
व्यंग्य साहित्य यह समाजसेवा, वह समाजसेवा…!! June 22, 2016 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा बचपन से मेरी बाबा भोलेनाथ के प्रति अगाध श्रद्धा व भक्ति रही है। बचपन से लेकर युवावस्था तक अनेक बार कंधे में कांवर लटका कर बाबा के धाम जल चढ़ाने भी गया। कांवर में जल भर कर बाबा के मंदिर तक जाने वाले रास्ते साधारणतः वीरान हुआ करते थे। इस सन्नाटे को […] Read more » समाजसेवा
व्यंग्य साहित्य अमित्र सभा June 19, 2016 by विजय कुमार | Leave a Comment प्रसिद्ध होने की इच्छा अर्थात ‘लोकेषणा’ भी अजीब चीज है। इसके लिए लोग तरह-तरह के काम करते हैं, जिससे उनका नाम ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड’ में आ जाए। ये काम भले भी हो सकते हैं और बुरे भी। सीधे भी हो सकते हैं और उल्टे भी। जान लेने वाले भी हो सकते हैं और […] Read more » अमित्र सभा
व्यंग्य साहित्य चिंतन शिविर June 15, 2016 by विजय कुमार | Leave a Comment सोनिया कांग्रेस के सभी बड़े लोग सिर झुकाए बैठे थे। समझ नहीं आ रहा था कि वे चिन्ता कर रहे हैं या चिंतन; वे उदास हैं या दुखी; वे शोक से ग्रस्त हैं या विषाद से; वे निद्रा में हैं या अर्धनिद्रा में; वे जड़ हैं या चेतन; वे आदमी हैं या इन्सान ? आधा […] Read more » chintan shivir chintan shivir of congress Featured चिंतन शिविर
व्यंग्य साहित्य किसका जन्म दिन , कौन मतवाला…!! June 14, 2016 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा उस रोज टेलीविजन पर मैं एक राजनेता का जन्म दिन उत्सव देख रहा था। लगा मानो किसी अवतारी पुरुष का जन्म दिन हो। नेताजी के बगल में उनका पूरा कुनबा मौजूद था। थोड़ी देर में मुख्यमंत्री से लेकर तमाम राजनेता उनके यहां पहुंचने लगे। दिखाया गया कि नेताजी ने अपने किसी शुभचिंतक […] Read more »
व्यंग्य साहित्य मौसम का हाल June 14, 2016 by विजय कुमार | Leave a Comment शर्मा जी को बचपन से ही रेडियो सुनने का बड़ा शौक था। किसी जमाने में उनके घर में एक बड़ा रेडियो हुआ करता था। अतः वे खुद को कुछ खास समझते थे और बड़ी ठसक के साथ उसके पास बैठे रहते थे। रात में पौने नौ बजे वाले समाचारों के समय आसपास के लोग वहां […] Read more » मौसम का हाल
व्यंग्य साहित्य मानसून बिना, सब सून June 14, 2016 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment आजकल हर कोई मानसून आने का इंतज़ार कर रहा हैं , लेकिन मानसून तो पेट्रोल और डीज़ल की तरह भाव खा रहा हैं। लोग तरस रहे हैं पर बादल बरस नहीं रहे हैं, लगता हैं उन्होंने भी कमेंट्री करते सिद्धू जी के मुँह से ये मुहावरा सुन लिया है की ” गुरु ,जो गरजते हैं […] Read more » sattirical article on monsoon मानसून
व्यंग्य साहित्य वाह मियां …. वाह सरदार जान मोहम्मद खिलजी June 6, 2016 by एल. आर गान्धी | Leave a Comment एल आर गांधी क्वेटा ,पकिस्तान के मियां जी ….. ४६ वर्षीय सरदार जान मोहम्मद खिलजी तीन बीवियों से ३५ बच्चे पैदा कर अपने उद्देश्य की ओर अग्रसर हैं। उनका उदेश्य १०० बच्चे बनाने का है। शीघ्र ही मियां जी चौथी बीवी लाने जा रहे हैं ताकि अल्लाह के हुकम की तामील एक सच्चे मुसलमान की […] Read more » सरदार जान मोहम्मद खिलजी
व्यंग्य साहित्य फिल्म वालों से नाराज कोटेश्वर …!! June 4, 2016 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा जिंदगी मुझे शुरू से डराती रही है। इसके थपेड़ों को सहते – सहते जब मैं निढाल होकर नींद की गोद में जाता हूं, तो डरावने सपने मुझे फिर परेशान करने लगते हैं। जन्मजात बीमारी की तरह यह समस्या मुझे बचपन से परेशान करती आई है। होश संभालने के साथ ही मैं इस […] Read more » कोटेश्वर फिल्म वालों से नाराज
व्यंग्य साहित्य हम मिले, तुम मिले…. May 29, 2016 by विजय कुमार | Leave a Comment चिरदुखी शर्मा जी प्रायः दुखी ही रहते हैं; पर जब कभी वे खुश होते हैं, तो यह खुशी ‘इश्क और मुश्क’ की तरह छिपाए नहीं छिपती। उनकी कंजूसी के बारे में पूरा मोहल्ला जानता है; पर कल वे न जाने कहां से ढेर सारी बूंदी ले आये और सबको बांटने लगे। उनके घर के पास […] Read more » satirical article on third front तुम मिले.... हम मिले
व्यंग्य साहित्य स्टाम्प पेपर वाली निष्ठा May 28, 2016 by विजय कुमार | Leave a Comment आप चाहे कुछ भी कहें साहब, पर मैं हर क्षेत्र में नये विचार और प्रयोगों का पक्षधर हूं। भले ही पुरातनपंथियों को मेरी बात पसंद न आये; पर मैं अपने विचारों पर जितना दृढ़ कल था, उतना ही आज हूं और कल भी रहूंगा। असल में कल शाम को पार्क में इसी विषय पर चर्चा […] Read more » स्टाम्प पेपर वाली निष्ठा