व्यंग्य साहित्य ‘प्रभु जी! यात्रियों की आदत मत बिगाडि़ए… January 4, 2016 by अशोक मिश्र | Leave a Comment अशोक मिश्र हद हो गई यार! हमारे रेलमंत्री को लोगों ने क्या पैंट्री कार का इंचार्ज, गब्बर सिंह या सखी हातिमताई समझ रखा है? जिसे देखो, वही ट्वीट कर रहा है, ‘प्रभु जी! मैं फलां गाड़ी से सफर कर रही हूं। गाड़ी में मेरे बच्चे ने गंदगी फैला दी है। जरा अपने किसी सफाई कर्मचारी […] Read more » 'प्रभु जी! यात्रियों की आदत मत बिगाडि़ए... prabhu ji dont spoil the habits of indians प्रभु यात्रियों की आदत
राजनीति व्यंग्य मुखर – मुखिया, मजबूर मार्गदर्शक …!! January 1, 2016 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तेज – तर्रार उदीयमान नेताजी का परिवार वैसे था तो हर तरफ से खुशहाल, लेकिन गांव के पट्टीदार की नापाक हरकतें समूचे कुनबे को सांसत में डाले था। कभी गाय – बैल के खेत में घुस जाने को लेकर तो कभी सिंचाई का पानी रोक लेने आदि मुद्दे पर पटीदार तनाव पैदा करते रहते। इन […] Read more » Featured मजबूर मार्गदर्शक ...!! मुखर - मुखिया
व्यंग्य क्या वीआईपी की गाड़ी प्रदूषण नहीं फैलाती December 27, 2015 by एल. आर गान्धी | Leave a Comment सही पकड़े है। क्या वीआईपी की गाड़ी प्रदूषण नहीं फैलाती, सबसे ज़्यादा प्रदूषण तो अति -विशिष्ट बिरादरी ही फैलाती है जी ! जीजा जी से ज्यादा कौन जानता है ! उनसे ज़्यादा वीआईपी के मज़े किसने लुटे हैं जी ! जीजा जी ! बोले तो ! रॉबर्ट जी वाड्रा ने फ़रमाया है कि आड -इवन […] Read more » क्या वीआईपी की गाड़ी प्रदूषण नहीं फैलाती
व्यंग्य साहित्य नए वर्ष में व्यंग्यकारों के तारे-सितारे December 26, 2015 by अशोक मिश्र | Leave a Comment अशोक मिश्र नया साल व्यंग्यकारों के लिए बड़ा चौचक रहने वाला है। नए वर्ष में व्यंग्यकारों की कुंडली के सातवें घर में बैठा राहु पांचवें घर के बुध से राजनीतिक गठबंधन कर रहा है। अत: संभव है कि प्रधानमंत्री और देश के 66 फीसदी राज्यों के मुख्यमंत्री व्यंग्यकार हो जाएं या फिर राजनीतिक उठापटक के […] Read more » नए वर्ष में व्यंग्यकारों के तारे-सितारे
कविता व्यंग्य प्रेमिका के साइड इफेक्ट्स December 19, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment प्रशांत मिश्रा ओ मेरी प्रिय संगिनी,अष्ट भुजंगिनी,लड़ाकू दंगिनी, नमन करता हूँ तुमको अपने ह्रदय के अंतर्मन से, और खुदको समर्पित करता हूँ तुम्हे अपने तन मन से, मत मारी गयी थी मेरी जब तुम्हे प्रेम का प्रस्ताव दिया था, और किस मनहूस घडी में तुमने वो स्वीकार किया था, मेरे दोस्त मुझे जोरू का […] Read more » Featured प्रेमिका के साइड इफेक्ट्स
व्यंग्य साहित्य गम खा – खूब गा…!! December 16, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा कड़की के दिनों में मिठाई खाने की तीव्र इच्छा होने पर मैं चाय की फीकी चुस्कियां लेते हुए मिठाई की ओर निहारता रहता हूं। इससे मुझे लगता है मानो मेरे गले के नीचे चाय के घुंट नहीं बल्कि तर मिठाई उतर रही है।धन्ना सेठों के भोज में जीमने से ज्यादा आनंद […] Read more » गम खा - खूब गा...!!
व्यंग्य साहित्य क्यों रें अज्जू!!! December 15, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment क्यों रें अज्जू!!! क्या हो रिया हैं आजकल । अज्जू- कुछ नहीं हो रिया यार पीके,बस फेसबुकिया बन एक दुसरे को गरिया रहै हैं । पीके- गरिया रहै हो??किसे गरिया रहै हो बे! तुम कब से गरियाना शुरूकर दिये हो!! अरे कुछ नहीं भाई बस ऐसे ही अब जकरबर्ग ने फेसबुकिया बनाई है तो बकैती […] Read more » क्यों रें अज्जू!!!
व्यंग्य साहित्य स्वर्ग लोग में आरक्षण की आग December 15, 2015 by रवि श्रीवास्तव | Leave a Comment हे प्रभु विनती सुन लो. देश में सामान्य वर्ग के लोग अपनी अर्ज लेकर रोज मंदिर में जाते है. खूब पूजा अर्चना कर रहे हैं. कभी इस मंदिर तो कभी उस मंदिर. बात ही कुछ ऐसी है. आखिर पुत्र प्राप्ति की लालसा ही कुछ ऐसी है. जिसके लिए लोग कुछ भी करने को तैयार थे. […] Read more » स्वर्ग लोग में आरक्षण की आग
व्यंग्य साहित्य ग्लोबल वॉर्मिंग का स्थायी समाधान December 14, 2015 by अशोक मिश्र | Leave a Comment अशोक मिश्र आप लोग यह बताएं कि दुनिया भर के बुद्धिजीवियों का अपर चैंबर खाली है क्या? अगर खाली नहीं होता, तो इतनी मामूली-सी बात को लेकर पेरिस में काहे मगजमारी करते। फोकट में अपनी-अपनी सरकारों का इत्ता रुपया-पैसा और टाइम खोटा किया। पेरिस के निवासियों को परेशान किया सो अलग। वह भी ग्लोबल वॉर्मिंग […] Read more » ग्लोबल वॉर्मिंग का स्थायी समाधान
व्यंग्य साहित्य मांगे दान, करै भोज…!! December 9, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | 1 Comment on मांगे दान, करै भोज…!! तारकेश कुमार ओझा पता नहीं अमीरों में गरीब बनने या दिखने की सनक सवार होती है या नहीं, लेकिन गरीबों पर यह धुन आजीवन बनी रहती है। बचपन में आना – पाई वाली किताबें हासिल करने में भी भले ही हमारे पसीन छूट जाते थे, लेकिन बुजुर्गों को दिवंगत आत्माओं की संतुष्टि पर दिल – […] Read more » करै भोज...!! मांगे दान
राजनीति व्यंग्य भुक्खड़ नहीं होते ईमानदार December 7, 2015 / December 7, 2015 by अशोक मिश्र | 2 Comments on भुक्खड़ नहीं होते ईमानदार अशोक मिश्र केजरी भाई लाख टके की बात कहते हैं। अगर आदमी भूखा रहेगा, तो ईमानदार कैसे रहेगा? भुक्खड़ आदमी ईमानदार हो सकता है भला। हो ही नहीं सकता। आप किसी तीन दिन के भूखे आदमी को जलेबी की रखवाली करने का जिम्मा सौंप दो। फिर देखो क्या होता है? पहले तो वह ईमानदार रहने […] Read more » Featured भुक्खड़ नहीं होते ईमानदार
व्यंग्य साहित्य जाने कहाँ गये……… December 5, 2015 by बीनू भटनागर | 1 Comment on जाने कहाँ गये……… जाने कहाँ गये वो दिन, कहते थे आधी तनख़्वाह मे, विधायक काम चलयेंंगे, नीली वैगनार से वो, ख़ुद दफ्तर आयें जायेंगे।जाने कहाँ गये……… अब तो सभी के पास मे, बडी से बडी हैं गाड़ियाँ, बंगला कोठी सबको मिले, विदेश मे हों छुट्टियाँ।जाने कहाँ गये……… ग़रीब तो और भी ग़रीब हैं हो रहे, दाल चावल भी […] Read more » जाने कहाँ गये.........