व्यंग्य आलेख : संतन के मन रहत है… December 17, 2014 by विजय कुमार | Leave a Comment पिछले कुछ दिनों से कई साधु और संत विभिन्न कारणों से चर्चा में हैं। मीडिया के बारे में आदमी और कुत्ते की कहावत बहुत पुरानी है। अर्थात कुत्ता किसी आदमी को काट ले, तो यह खबर नहीं होती, क्योंकि यह उसका स्वभाव है; पर यदि आदमी ही कुत्ते को काट ले, तो यह मुखपृष्ठ की […] Read more »
व्यंग्य सामूहिक आत्महत्या December 13, 2014 by विजय कुमार | Leave a Comment आत्महत्या के बारे में मैंने कभी गंभीरता से नहीं सोचा। क्या बताऊं, कभी इसकी नौबत ही नहीं आयी। एक बार मेरा एक मित्र इस समस्या से पीड़ित हुआ, तो मैंने उसे एक बड़े लेखक की विश्व प्रसिद्ध पुस्तक ‘आत्महत्या से कैसे बचें ?’ दे दी। उसे पढ़कर मेरे मित्र ने यह नेक विचार सदा को […] Read more » group suicide सामूहिक आत्महत्या
कविता व्यंग्य हाथी और कुत्ते December 9, 2014 / December 9, 2014 by डॉ. सुधेश | Leave a Comment हाथी चल रहा है अपनी चाल कुत्ते भौंकते हैं पीछे पीछे भौंकते ही भौंकते बस भौंकते हैं कर न सकते कुछ मगर क्यों भौंकते क्या उस से डरते नहीं वे हैं वाग्वीर फिर क्यों भौंकते उन्हें हाथी से घृणा है उस की बेढब शक्ल से उस के तीखे बोल से उस की चाल से […] Read more » कुत्ते हाथी
व्यंग्य व्यंग्य बाण : अराउंड दि वर्ड, बैकवर्ड November 26, 2014 by विजय कुमार | Leave a Comment पाठक अंग्रेजी शीर्षक के लिए क्षमा करें; पर आज मैं मजबूर हूं। आप जानते ही हैं कि कई लोगों को कीर्तिमान (रिकार्ड) तोड़ने या नये बनाने का जुनून होता है। वे इसके लिए किसी भी सीमा तक चले जाते हैं। ये रिकार्ड काम के भी हो सकते हैं और बेकार भी। फिर भी ये […] Read more » बैकवर्ड
व्यंग्य हाजमोला खाओ, मौज मनाओ November 24, 2014 by अशोक गौतम | Leave a Comment घर में अकेला था सो दरवाजे पर दस्तक हुई तो मैंने दफ्तर न जाने का पक्का मूड बनाए सोफे पर पसरे- पसरे ही पूछा, ‘कौन?’ ’ रामबोला!‘ ‘ ताजी- ताजी टीवी पर इबोला की खबर सनसनी फैला रही थी सो सहमता पूछ बैठा,‘ इबोला??’ ‘नहीं साहब! रामबोला!’ ‘कौन रामबोला?’ ‘ रामबोला बोले तो तुलसीदास!’ […] Read more » मौज मनाओ हाजमोला खाओ
व्यंग्य मैया मोरी! गांव सहा न जायौ!! November 24, 2014 by अशोक गौतम | Leave a Comment लेओ जी ! फिर मुझ दुखियार के काने कौवे की आंख से बिटुआ का काॅल आई गवा! सच कहूं जब -जब बिटुआ का गांव से फोनवा आता है, अपना तो ये फटा कलेजा सुनने से पहले ही मुंह को आ जाता है। हे भगवान तुमने मुझे मां क्यों बनाया। अपना बिटुआ दिल्ली छोड़ जबसे गांव […] Read more »
व्यंग्य संती-महंती का ठेला, मेला ही मेला November 22, 2014 by अशोक गौतम | 1 Comment on संती-महंती का ठेला, मेला ही मेला अशोक गौतम थका हारा ठेले के डंडे में बुझी लालटेन लटकाए किलो के बदले साढ़े सात सौ ग्राम सड़ी गोभी तोल रहा था कि एकाएक कहीं से प्रगट हुए बाबा ने मुझसे पूछा, ‘ सब्जी के ठेले पर किलो के बदले सात सौ ग्राम तोल अपना ये लोक तो ये लोक,परलोक तक क्यों खराब कर […] Read more » व्यंग्य/ संती-महंती का ठेला संती-महंती संती-महंती का ठेला
व्यंग्य मेरा गुरु महान November 18, 2014 by बीनू भटनागर | 13 Comments on मेरा गुरु महान मेरे देश मे गुरु घंटालों का, मेला लगा है। कहीं बाबा निर्मल, कहीं आसाराम तो, कहीं रामपाल हैं। कहीं आनन्दमयी तो, तो कहीं निर्मला मां हैं। सबने लोगों के मन पर, झाडू लगाई हैं । साबुन से घिसा,निचोड़ा, दिमाग़ की कर दी धुलाई। अब कोरा काग़ज़, जो चाहें लिख दो, भक्त जयकारा ही करेंगे। […] Read more » मेरा गुरु महान
व्यंग्य Be practical Mama November 13, 2014 by विपिन किशोर सिन्हा | 5 Comments on Be practical Mama मेरी भांजी हैदराबाद विश्वविद्यालय में हिन्दी की प्रोफ़ेसर है। कभी-कभी बनारस आती है, मुझसे मिलने। उसे लेने और छोड़ने कभी मैं बाबतपुर हवाई अड्डे और कभी रेलवे स्टेशन जरुर जाता हूं। उसने कई बार मुझसे हैदराबाद आने का आग्रह किया, सो सेवा से अवकाश प्राप्ति के बाद पिछली ९ तारीख को मैं हैदराबाद गया। […] Read more » Be practical Mama
व्यंग्य ‘दिल्ली का चुनावी दंगल ‘फिल्मी’ स्टाइल मे’ November 13, 2014 / November 15, 2014 by रोहित श्रीवास्तव | Leave a Comment भारत की राजनीति मे जो गर्मजोशी और दिलचस्पी अब दिखाई पड़ती है वो संभवतः आज से 10 वर्ष पूर्व शायद बिलकुल नी’रस’ थी। कालांतर प्रति पाँच साल बाद चुनाव तो होते थे पर ‘चुनावी-एहसास’ का आभास तनिक भी नहीं होता था। मीडिया का बढ़ता दायरा कहो या फिर केजरी जी का ‘रायता’ भारत मे तुलनात्मक […] Read more » ‘दिल्ली का चुनावी दंगल election in delhi in filmy style
व्यंग्य गड़पने का अहिंसात्मक नुस्खा November 12, 2014 / November 15, 2014 by अशोक गौतम | 6 Comments on गड़पने का अहिंसात्मक नुस्खा शहर के बीचो- बीच भगवान का जर्जर मंदिर। भगवान का मंदिर जितना जर्जर हो रहा था उनके कारदार उतने ही अमीर। पर भगवान तब भी मस्त थे। यह जानते हुए भी कि उनके भक्तों को उनकी रत्ती भर परवाह नहीं। परवाह थी तो बस अपनी कि जो वे भगवान से रूप्या, दो रूप्या चढ़ा मांगें, […] Read more » simplest way of aquisition गड़पने का अहिंसात्मक नुस्खा
व्यंग्य व्यंग्य बाण : पार्टी उत्थान योजना November 10, 2014 / November 15, 2014 by विजय कुमार | Leave a Comment चिरदुखी शर्मा जी इन दिनों कुछ ज्यादा ही दुखी थे। अधिकांश लोगों का दुख आंखों से टपकता है; पर उनका दुख स्पंज की तरह शरीर के हर अंग से टपकता रहता था। इस चक्कर में उनका रक्तचाप सोने और चांदी के दामों की तरह लगातार गिरने लगा। दिल की धड़कन मुंबई के स्टॉक एक्सचेंज की […] Read more » party uthan yojna sattire on party uthan yojna पार्टी उत्थान योजना