व्यंग्य व्यंग/गाली November 1, 2010 / December 20, 2011 by राम कृष्ण खुराना | 6 Comments on व्यंग/गाली -राम कृष्ण खुराना मुझे कुत्ता पालने का कोई शौक नहीं था। मैं कुत्ते, बिल्ली आदि जानवर पालने को अमीरों के चोंचले मानता था। सुबह शाम लोगों को कुत्ते की जंजीर हाथ में पकड कर टहलते हुए देखता तो मैं उनको फुकरा समझा करता था जो अपनी झूठी शान दिखाने के लिए आडम्बर करते हैं। पिक्चरों […] Read more » vyangya
व्यंग्य जूते भी ईमानदार हो गए… October 30, 2010 / December 20, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | 5 Comments on जूते भी ईमानदार हो गए… -आशीष तिवारी दिल्ली में गिलानी की सभा में किसी ने उनपर जूता फेंक दिया. ये जूता उनको लगा नहीं. अब इसे क्या कहेगे आप? इससे पहले भी कई लोगों को निशाना बना कर जूते फेंके जा चुके हैं. कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को भी नीरिह जूते का निशाना बनाने की कोशिश की गयी थी पर […] Read more » Honest ईमानदार
व्यंग्य अगले जनम मोहे….. October 29, 2010 / December 20, 2011 by विजय कुमार | Leave a Comment -विजय कुमार बाबा तुलसीदास लिख गये हैं – हानि लाभ जीवन मरण, यश अपयश विधि हाथ। सभी संतों ने इसे अपनी-अपनी तरह से कहा है। जहां तक पुर्नजन्म की बात है, भारतीय धर्म और पंथ तो इसे मानते हैं; पर विदेशी मजहब इसे स्वीकार नहीं करते। पिछले दिनों एक गोष्ठी में चर्चा का यही विषय […] Read more » vyangya
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य : जनाजा रिटायरात्मा का October 26, 2010 / December 20, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 3 Comments on हास्य-व्यंग्य : जनाजा रिटायरात्मा का -पंडित सुरेश नीरव नौकरी के नर्सिंगहोम में पूरे तीस साल ट्रांसफर और सीट बदल के झटकों को मुसलसल झेलने के बाद आखिरकार आज भैयाजी को रिटायरमेंट की मूर्चरी में भेज ही दिया गया। यूं भी मूर्चरी कोई अपने आप तो जाता नहीं है। कोई कितना भी भैरंट स्वावलंबी क्यों न हो मूर्चरी उसे भेजा ही […] Read more » vyangya व्यंग
व्यंग्य व्यंग्य/ महिला शौचालय का लोकार्पण October 22, 2010 / December 20, 2011 by अशोक गौतम | 4 Comments on व्यंग्य/ महिला शौचालय का लोकार्पण -अशोक गौतम शहर के मेन बस स्टैंड के पास बड़े दिनों से महिला शौचालय बनकर तैयार था पर कमेटी के प्रधान बड़ी दौड़ धूप के बाद भी उस शौचालय के लोकार्पण के लिए मंत्री जी से वक्त नहीं ले पा रहे थे और महिला यात्री थे कि पुरूष शौचालय में जाने के लिए विवश थे। […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ मैं तो कुतिया बॉस की October 12, 2010 / December 21, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/ मैं तो कुतिया बॉस की -अशोक गौतम वे आते ही मेरे गले लग फूट- फूट कर रोने लगे। ऐसे तो कभी लंबे प्रवास से लौट आने के बाद भी मेरी पत्नी जवानी के दिनों में मेरे गले लग कर भी नहीं रोई। हमेशा उसके मन में विरह को देखने के लिए मैं ही विरह में तड़पता रहा। पता नहीं उसमें […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य / सत मत छोडों शूरमा, सत छौडया पत जाय October 9, 2010 / December 21, 2011 by रामस्वरूप रावतसरे | 5 Comments on व्यंग्य / सत मत छोडों शूरमा, सत छौडया पत जाय -रामस्वरूप रावतसरे तनसुख ने घर की बिगड रही हालत को सुधारने के लिये कहां कहां की खाक नहीं छानमारी। किस किस की चौखट पर नाक नहीं रगडी, लेकिन दरिद्र नारायण उसके यहां पर इस प्रकार बिराजे है कि बाहर जाने का नाम ही नहीं ले रहे है। हां, वह इस दरिद्रनारायण से पीछा छुडाने के […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ इक्कीसवीं सदी के लेटेस्ट प्रेम October 8, 2010 / December 21, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/ इक्कीसवीं सदी के लेटेस्ट प्रेम -डॉ. अशोक गौतम वे सज धज कर यों निकले थे कि मानो किसी फैशन शो में भाग लेने जा रहे हों या फिर ससुराल। बूढ़े घोड़े को यों सजे धजे देखा तो कलेजा मुंह को आ गया। बेचारों के कंधे कोट का भार उठाने में पूरी तरह असफल थे इसीलिए वे खुद को ही कोट […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ चल वसंत घर आपणे…!!! October 8, 2010 / December 21, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/ चल वसंत घर आपणे…!!! -डॉ. अशोक गौतम वसंत पेड़ों की फुनगियों, पौधों की टहनियों पर से उतरा और लोगों के बीच आ धमका। सोचा, चलो लोगों से थोड़ी गप शप हो जाए। वे चार छोकरे मुहल्ले के मुहाने पर बैठे हुए थे। वसंत के आने पर भी उदास से। वे चारों डिग्री धारक थे। दो इंजीनियरिंग में तो दो […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य इनका दर्द भी समझें October 3, 2010 / December 22, 2011 by विजय कुमार | 2 Comments on इनका दर्द भी समझें -विजय कुमार मेरे पड़ोस में मियां फुल्लन धोबी और मियां झुल्लन भड़भूजे वर्षों से रहते हैं। लोग उन्हें फूला और झूला मियां कहते हैं। 1947 में तो वे पाकिस्तान नहीं गये; पर मंदिर विवाद ने उनके मन में भी दरार डाल दी। अब वे मिलते तो हैं; पर पहले जैसी बात नहीं रही। अब वे […] Read more » Ram Birthplace अयोध्या विवाद बाबरी मस्जिद रामजन्मभूमि
व्यंग्य फिसलन का मौसम September 25, 2010 / December 22, 2011 by विजय कुमार | 1 Comment on फिसलन का मौसम -विजय कुमार इन दिनों देश में सावन और भादों का मौसम चल रहा है। इस मौसम की बहुत सी अच्छाईयां हैं, तो कुछ कमियां भी हैं। वर्षा कम हो या अधिक, परेशानी आम जनता को ही होती है। इन दिनों वर्षा के न होने से, न तो धरती की प्यास बुझेगी और न ही खेत-खलिहान […] Read more » Season मौसम
व्यंग्य व्यंग्य/ गॉड फादर नियरे राखिए…. September 11, 2010 / December 22, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/ गॉड फादर नियरे राखिए…. -अशोक गौतम फिर एक और मोर्चे पर से असफल हो लौटे बीवी को मुंह बताने को मन ही नहीं कर रहा था। क्या मुंह बताता बीवी को! हर रोज वह भी मेरा हारा हुआ थोबड़ा देख देख कर थक चुकी थी। सो एक मन किया कि रास्ते में पड़ने वाले कमेटी के पानी के टैंक […] Read more » vyangya व्यंग्य