लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार भारत माता की महान सपूत स्वामी विवेकानंद January 12, 2025 / January 15, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment आधुनिक विश्व को भारतीयता से परिचित कराने वाले नरेन्द्र नाथ दत्त उर्फ स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकत्ता में हुआ। वह दौर पश्चिम के अंधानुकरण और स्वसंस्कृति के प्रति हीनभावना का था। ऐसे समय में स्वामी विवेकानंद ने भारतीयों में आत्मसम्मान और गौरव का भाव भरा। 1893 में अमेरिका के शिकागो में […] Read more »
शख्सियत समाज साक्षात्कार स्वामी विवेकानंद: युवाओं के प्रेरणास्रोत January 12, 2025 / January 14, 2025 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment राष्ट्रीय युवा दिवस / स्वामी विवेकानंद जयंती (12 जनवरी) – योगेश कुमार गोयलवर्तमान परिवेश में समाज में चारों तरफ अपराधों तथा भ्रष्टाचार का जो मकड़जाल फैल चुका है, वह घुन बनकर न सिर्फ देश को अंदर ही अंदर खोखला कर रहा है बल्कि युवा वर्ग भी भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के इस दूषित माहौल में हताश […] Read more » स्वामी विवेकानंद
लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार भारतीयता के पर्याय-स्वामी विवेकानंद January 11, 2025 / January 15, 2025 by वीरेंदर परिहार | Leave a Comment वीरेन्द्र सिंह परिहार स्वामी विवेकानन्द उस समय अमेरिका और यूरोपियन देशों में हिन्दू धर्म एवं संस्कृति की ध्वजा फहराकर और भारतवर्ष का दौरा करके कलकत्ता वापस आए ही थे, और अपने देशी-विदेशी सहकारियों के साथ बेलूड़ में रामकृष्ण परमहंस मठ की योजना में संलग्न थे। इन्ही दिनों कलकत्ता नगर में महामारी प्लेग का प्रकोप फैला। […] Read more » Synonym of Indianness – Swami Vivekananda भारतीयता के पर्याय-स्वामी विवेकानंद
लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार स्वामी विवेकानंद: विकसितभारत @2047के पथप्रदर्शक व प्रेरणास्त्रोत January 11, 2025 / January 14, 2025 by डॉ. पवन सिंह मलिक | Leave a Comment स्वामी विवेकानंद: बस वही जीते हैं, जो दूसरों के लिए जीते हैं – डॉ. पवन सिंह ‘ओ मेरे बहादुरों इस सोच को अपने दिल से निकाल दो की तुम कमजोर हो। तुम्हारी आत्मा अमर,पवित्र और सनातन है। तुम केवल एक विषय नहीं हो, तुम केवल एक शरीर मात्र नहीं हो’। यह कथन है लाखों – करोड़ों दिलों की धड़कन […] Read more » स्वामी विवेकानंद
राजनीति शख्सियत समाज साक्षात्कार अटल जी का सार्वजनिक जीवन बेदाग और साफ सुथरा रहा December 27, 2024 / December 27, 2024 by ब्रह्मानंद राजपूत | Leave a Comment (युगपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी जी की 100वीं जयंती 25 दिसम्बर 2024 पर विशेष आलेख) भारत माँ के सच्चे सपूत, राष्ट्र पुरुष, राष्ट्र मार्गदर्शक, सच्चे देशभक्त ना जाने कितनी उपाधियों से पुकार जाता था भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी को वो सही मायने में भारत रत्न थे। इन सबसे भी बढ़कर पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी एक अच्छे इंसान थे। जिन्होंने जमीन से जुड़े रहकर राजनीति की और ‘‘जनता के प्रधानमंत्री’’ के रूप में लोगों के दिलों में अपनी खास जगह बनायी थी। एक ऐसे इंसान जो बच्चे, युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों सभी के बीच में लोकप्रिय थे। देश का हर युवा, बच्चा उन्हें अपना आदर्श मानता था। अटल बिहारी वाजपेयी जी ने आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लिया और जिसका उन्होंने अपने अंतिम समय तक निर्वहन किया। बेशक अटल बिहारी वाजपेयी जी कुंवारे थे लेकिन देश का हर युवा उनकी संतान की तरह था। देश के करोड़ों बच्चे और युवा उनकी संतान थे। पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी का बच्चों और युवाओं के प्रति खास लगाव था। इसी लगाव के कारण पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी बच्चों और युवाओं के दिल में खास जगह बनाते थे। भारत की राजनीति में मूल्यों और आदर्शों को स्थापित करने वाले राजनेता और प्रधानमंत्री के रूप में पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी का काम बहुत शानदार रहा। उनके कार्यों की बदौलत ही उन्हें भारत के ढांचागत विकास का दूरदृष्टा कहा जाता है। सब के चहेते और विरोधियों का भी दिल जीत लेने वाले बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी पंडित अटल बिहारी वाजपेयी का सार्वजनिक जीवन बहुत ही बेदाग और साफ सुथरा था इसी बेदाग छवि और साफ सुथरे सार्वजनिक जीवन की वजह से अटल बिहारी वाजपेयी जी का हर कोई सम्मान करता था। उनके विरोधी भी उनके प्रशंसक थे। पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी के लिए राष्ट्रहित सदा सर्वोपरि रहा। तभी उन्हें राष्ट्रपुरुष कहा जाता था। पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी की बातें और विचार सदां तर्कपूर्ण होते थे और उनके विचारों में जवान सोच झलकती थी। यही झलक उन्हें युवाओं में लोकप्रिय बनाती थी। पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी जब भी संसद में अपनी बात रखते थे तब विपक्ष भी उनकी तर्कपूर्ण वाणी के आगे कुछ नहीं बोल पाता था। अपनी कविताओं के जरिए अटल जी हमेशा सामाजिक बुराइयों पर प्रहार करते रहे। उनकी कविताएँ उनके प्रशंसकों को हमेशा सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करती रहेगी । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक से लेकर प्रधानमंत्री तक का सफर तय करने वाले युग पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म ग्वालियर में बड़े दिन के अवसर पर 25 दिसम्बर 1924 को हुआ। अटल जी के पिता का नाम पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी और माता का नाम कृष्णा वाजपेयी था। पिता पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर में अध्यापक थे। कृष्ण बिहारी वाजपेयी साथ ही साथ हिन्दी व ब्रज भाषा के सिद्धहस्त कवि भी थे। अटल बिहारी वाजपेयी मूल रूप से उत्तर प्रदेश राज्य के आगरा जिले के प्राचीन स्थान बटेश्वर के रहने वाले थे। इसलिए अटल बिहारी वाजपेयी का पूरे ब्रज सहित आगरा से खास लगाव था। अटल बिहारी वाजपेयी जी की बी०ए० की शिक्षा ग्वालियर के वर्तमान में लक्ष्मीबाई कॉलेज के नाम से जाने वाले विक्टोरिया कालेज में हुई। ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से स्नातक करने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने कानपुर के डी. ए. वी. महाविद्यालय से कला में स्नातकोत्तर उपाधि भी प्रथम श्रेणी में प्राप्त की। अटल बिहारी वाजपेयी एक प्रखर वक्ता और कवि थे। ये गुण उन्हें उनके पिता से वंशानुगत मिले। अटल बिहारी वाजपेयी जी को स्कूली समय से ही भाषण देने का शौक था और स्कूल में होने वाली वाद-विवाद, काव्य पाठ और भाषण जैसी प्रतियोगिताएं में हमेशा हिस्सा लेते थे। अटल बिहारी वाजपेयी छात्र जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बनें और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में हिस्सा लेते रहे। अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने जीवन में पत्रकार के रूप में भी काम किया और लम्बे समय तक राष्ट्र धर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। अटल बिहारी वाजपेयी जी भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य थे और उन्होंने लंबे समय तक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे प्रखर राष्ट्रवादी नेताओं के साथ काम किया। पंडित अटल बिहारी वाजपेयी सन् 1968 से 1973 तक भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे। अटल बिहारी वाजपेयी सन् 1957 के लोकसभा चुनावों में पहली बार उत्तर प्रदेश की बलरामपुर लोकसभा सीट से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा में पहुँचे। अटल जी 1957 से 1977 तक लगातार जनसंघ की और से संसदीय दल के नेता रहे। अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने ओजस्वी भाषणों से देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू तक को प्रभावित किया। एक बार अटल बिहारी वाजपेयी के संसद में दिए ओजस्वी भाषण को सुनकर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनको भविष्य का प्रधानमंत्री तक बता दिया था। और आगे चलकर पंडित जवाहर लाल नेहरू की भविष्यवाणी सच भी साबित हुई। अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व बहुत ही मिलनसार था। उनके विपक्ष के साथ भी हमेशा सम्बन्ध मधुर रहे। 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में विजय श्री के साथ बांग्लादेश को आजाद कराकर पाक के 93 हजार सैनिकों को घुटनों के बल भारत की सेना के सामने आत्मसमर्पण करवाने वाली देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी जी को अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में दुर्गा की उपमा से सम्मानित किया था। और 1975 में इंदिरा गाँधी द्वारा आपातकाल लगाने का अटल बिहारी वाजपेयी ने खुलकर विरोध किया था। आपातकाल की वजह से इंदिरा गाँधी को 1977 के लोकसभा चुनावों में करारी हार झेलनी पड़ी। और देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार जनता पार्टी के नेतृत्व में बनी जिसके मुखिया स्वर्गीय मोरारजी देसाई थे। और अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्री जैसा महत्वपूर्ण विभाग दिया गया। अटल बिहारी वाजपेयी ने विदेश मंत्री रहते हुये पूरे विश्व में भारत की छवि बनायीं। और विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देने वाले देश के पहले वक्ता बने। अटल जी 1977 से 1979 तक देश के विदेश मंत्री रहे। 1980 में जनता पार्टी के टूट जाने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने सहयोगी नेताओं के साथ भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की। अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। 1996 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। भाजपा द्वारा सर्वसम्मति से संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद अटलजी देश के प्रधानमंत्री बने। लेकिन अटल जी 13 दिन तक देश के प्रधानमंत्री रहे। उन्होंने अपनी अल्पमत सरकार का त्यागपत्र राष्ट्रपति को सौंप दिया। 1998 में भाजपा फिर दूसरी बार सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने। लेकिन 13 महीने बाद तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय जयललिता के समर्थन वापस लेने से उनकी सरकार गिर गयी। लेकिन इस बीच अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री रहते हुए दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए पोखरण में पाँच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट कर सम्पूर्ण विश्व को भारत की शक्ति का एहसास कराया। अमेरिका और यूरोपीय संघ समेत कई देशों ने भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए लेकिन उसके बाद भी भारत अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में हर तरह की चुनौतियों से सफलतापूर्वक निबटने में सफल रहा। अटल बिहारी वाजपेयी ने दूसरी बार प्रधानमंत्री रहते हुए पाकिस्तान से संबंधों में सुधार की पहल की और पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने 19 फरवरी 1999 को सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा शुरू कराई। इस सेवा का उद्घाटन करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान की यात्रा करके नवाज शरीफ से मुलाकात की और आपसी संबंधों में एक नयी शुरुआत की। लेकिन कुछ ही समय पश्चात् पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ की शह पर पाकिस्तानी सेना व पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों ने कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ करके कई पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लिया। भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान द्वारा कब्जा की गयी जगहों पर हमला किया और पाकिस्तान को सीमा पार वापिस जाने को मजबूर किया। एक बार फिर पाकिस्तान को मुँह की खानी पड़ी और भारत को विजयश्री मिली। कारगिल युध्द की विजयश्री का पूरा श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी को दिया गया। कारगिल युध्द में विजयश्री के बाद हुए 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा फिर अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बाद भाजपा ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 13 दलों से गठबंधन करके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के रूप में सरकार बनायी। और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने अपना पूरा पांच साल का कार्यकाल पूर्ण किया। इन पाँच वर्षों में अटल बिहारी वाजपेयी ने देश के अन्दर प्रगति के अनेक आयाम छुए। और राजग सरकार ने गरीबों, किसानों और युवाओं के लिए अनेक योजनाएं लागू की। अटल सरकार ने भारत के चारों कोनों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना की शुरुआत की और दिल्ली, कलकत्ता, चेन्नई व मुम्बई को राजमार्ग से जोड़ा गया। 2004 में कार्यकाल पूरा होने के बाद देश में लोकसभा चुनाव हुआ और भाजपा के नेतृत्व वाले राजग ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में शाइनिंग इंडिया का नारा देकर चुनाव लड़ा। लेकिन इन चुनावों में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला। लेकिन वामपंथी दलों के समर्थन से काँग्रेस ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व में केंद्र की सरकार बनायी और भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ा। इसके बाद लगातार अस्वस्थ्य रहने के कारण अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति से सन्यास ले लिया। अटल जी को देश-विदेश में अब तक अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 2015 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को उनके घर जाकर सम्मानित किया। भारतीय राजनीति के युगपुरुष, श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ, कोमल हृदय संवेदनशील मनुष्य, वज्रबाहु राष्ट्र प्रहरी, भारत माता के सच्चे सपूत, अजातशत्रु पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का 16 अगस्त 2018 को 93 साल की उम्र में निधन हो गया। उनका व्यक्तित्व हिमालय के समान विराट था। अटल जी भारत देश के लोगों के जीवन में अपनी महान उपलब्धियों और अपने विचारों का ऐसा उजाला डाल कर गए हैं जो कि देश के नौजवानों को सदां राह दिखाते रहेंगे। अटल जी सदा मुस्कराहट का परिधान पहने रहते थे उनकी मुस्कुराहट उनकी आत्मा के गुणों को दर्शाती थी उनकी आत्मा सच में एक पवित्र आत्मा थी जिसे दैवीय शक्ति प्राप्त थी। अटल जी की ईमानदारी, शालीनता, सादगी और सौम्यता हर किसी का दिल जीत लेती थी। उनके जीवन दर्शन और कविताओ ने भारत के युवाओं को एक नई प्रेरणा दी। करोङो लोगों के वह रोल मॉडल हैं। भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री के रूप में देश के आर्थिक विकास और गरीब वर्ग के सामाजिक कल्याण के लिए उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह को राष्ट्र हमेशा याद करेगा। उनकी अटल आवाज और उनके किये महान कार्य हमेशा राष्ट्र के बीच अमर रहेंगे। Read more » 100th birth anniversary of great man Atal Bihari Vajpayee अटल जी युगपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी जी की 100वीं जयंती
राजनीति शख्सियत समाज साक्षात्कार अटलजी का सुशासन स्वराज और सुराज का प्रतीक December 24, 2024 / December 24, 2024 by डॉ. सौरभ मालवीय | Leave a Comment -डॉ. सौरभ मालवीय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यकाल में शासन करने पर नहीं, अपितु सुशासन पर अधिक से अधिक बल दिया। वे स्वराज के साथ-साथ सुराज में विश्वास रखते थे। वह कहते थे कि देश को हमसे बड़ी आशाएं हैं। हम परिस्थिति की चुनौती को स्वीकार करें। आंखों में एक महान भारत […] Read more » Atal Bihari Vajpayee अटलजी
राजनीति शख्सियत समाज साक्षात्कार महान राष्ट्र-सपूतों में अग्रणी थे अटल बिहारी वाजपेयी December 24, 2024 / December 23, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जन्म जयन्ती-25 दिसम्बर, 2024-ललित गर्ग- भारतीय राजनीति का महानायक, भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता, भारत रत्न, प्रखर कवि, वक्ता और पत्रकार श्री अटल विहारी वाजपेयी की जन्म जयंती 25 दिसंबर को भारत सरकार प्रतिवर्ष सुशासन दिवस के रूप में मनाती है। इस वर्ष हम उनका 100वां जन्मोत्सव मना रहे […] Read more » अटल बिहारी वाजपेयी
शख्सियत समाज साक्षात्कार यशपाल का आजादी की लड़ाई और साहित्य में योगदान December 23, 2024 / December 23, 2024 by कल्पना पांडे | Leave a Comment – कल्पना पाण्डे प्रसिद्ध हिन्दी कथाकार एवं निबंधकार यशपाल का जन्म 3 दिसम्बर 1903 को फिरोजपुर (पंजाब) में हुआ था। उनके पूर्वज हिमाचल के भूम्पल गांव, हमीरपुर के रहने वाले थे। दादा गरदुराम विभिन्न स्थानों पर व्यापार करते थे और भोरंज तहसील के टिक्कर भारिया और खरवरिया के निवासी थे। पिता हीरालाल एक दुकानदार और तहसील क्लर्क थे। वह महासू जिले […] Read more » प्रसिद्ध हिन्दी कथाकार एवं निबंधकार यशपाल
लेख शख्सियत समाज साक्षात्कार स्वामी सत्यानंद ने साकार किया मानवता को योग की संस्कृति देने का स्वप्न December 23, 2024 / December 23, 2024 by कुमार कृष्णन | Leave a Comment (102वीं जयंती 25 दिसम्बर पर विशेष ) कुमार कृष्णन स्वामी सत्यानंद सरस्वती देश के ऐसे संत हुए, जिन्होंने न सिर्फ योग को पूरी दुनिया में फैलाया बल्कि सामाजिक चिंतन के जरिए विकास के मॉडल को पेश किया। वे विशुद्ध आत्मभाव से प्रेरित एवं ‘लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु’ के दिव्य भाव से संचालित थे।उनका वेदान्त शास्त्रीय अथवा किताबी नहीं , बिल्कुल व्यवहारिक, प्रयोगात्मक, उपयोगी एवं मानवतावादी है।उनका मानवतावाद आत्मभाव पर आधारित है।इसे उन्होंने आर्थिक, सामाजिक परिवर्तन की एक सशक्त विचारधारा, उत्तम साधन एवं सर्वोपयोगी उपकरण के रूप में प्रस्तुत किया।स्वामी सत्यानंद का योग जहां व्यक्तित्व के शोधन-शुद्धिकरण-परिष्कार, उन्नयन- उत्थान विकास तथा ईश्वरीकरण की दिशा निश्चित करता है,उनका क्रांति दर्शन सामाजिक- आर्थिक परिवर्तन के सिद्धांत का प्रतिपादन एवं उसके क्रियान्वयन का मार्ग प्रशस्त करता है। स्वामी सत्यानंद के अनुसार-‘ योग शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थय की एक सुव्यवस्थित प्रणाली है। योग दर्शन के अनुसार- मानव तीन आधारभूत तत्त्वों- जीवनी शक्ति, या प्राण, मानसिक चित्त शक्ति या चित्त और आध्यात्मिक शक्ति या आत्मा का सम्मिश्रण है।’ स्वामी सत्यानंदजी के जीवन प्रवाह में भी हम पाते हैं कि पढ़- लिख कर भरे-पूरे परिवार से आने वाला एक 20 वर्षीय युवक अध्यात्म की राह पर चल पड़ता है। वह गुरु सेवा में लीन होने के बाद नचिकेता का वैराग्य प्राप्त कर 12 वर्षों बाद एक परिव्राजक के रूप में देश दुनिया में योग के प्रसार में लग जाते हैं। याद करें 1960 के दशक में योग के यह भ्रामक धारणा प्रचलित थी कि यह साधु सन्यासियों का विषय है,गृहस्थों और महिलाओं को योग नहीं करना चाहिए। ऐसे समय में स्वामी सत्यानंद ने योग की उपयोगिता सिद्ध की।आज जहां मुंगेर में विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय है, वह स्थान कर्णचौरा के नाम से जाना जाता था। किंवदन्ती के अनुसार राजा कर्ण इसी चबूतरे पर बैठकर प्रतिदिन सवा मन सोना दान करता था।उसी चबूतरे पर कई बार शयनकर रातें काटीं थीं। उस चबूतरे पर स्वामी जी को कई दिब्य अनुभव हुए।उन्होंने यहीं पर बैठकर संकल्प लिया कि जहां राजा कर्ण बैठकर सोना दान करता था, वहां से मैं विश्व को शांति बांटूंगा और योग को भविष्य की संस्कृति के रूप में विकसित करूंगा। दुनिया के कई देशों में लाखों लोगों को भारत भूमि के प्राचीन योग विद्या से परिचित कराया, जिसका परिणाम है कि आज संयुक्त राष्ट्र ने योग को आधिकारिक मान्यता दी है। मुंगेर का गंगा दर्शन, पादुका दर्शन और देवघर के रिखियापीठ को देख यक्ष भाव मन में आता होगा कि परमहंस स्वामी सत्यानंद का जीवन वैभवपूर्ण रहा होगा, लेकिन स्वामी सत्यानंद ने अभावपूर्ण, कष्ट और विपन्नता का जीवन जीते हुए पुनः मानवता को योग की संस्कृति देने का स्वप्न साकार किया। पुनः 1988 में मुंगेर त्यागने के बाद रिखियापीठ में आकार 1991 से रिखिया के स्थानीय लोगों के शैक्षिक – सामाजिक -आर्थिक उत्थान के काम का बीड़ा उठाते है। एक ऐसी आर्थिक -सामाजिक व्यवस्था जो धारित विकास के मूल्यों का मॉडल विश्व के समक्ष प्रस्तुत करता हो। आत्मिक विकास के साथ -साथ आर्थिक स्बाबलंबन के उनके प्रयास को वैश्विक अर्थव्यवस्था और ग्लोबल विलेज के परिप्रेक्ष्य में समझने की आवश्यकता है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा में 25 दिसंबर 1923 को जन्मे स्वामी सत्यानंद सरस्वती इस शताब्दी के महानतम संतों में से एक हैं, जिन्होंने समाज के हर क्षेत्र में योग को समाविष्ट कर, सभी वर्गों, राष्ट्रों और धर्मों के लोगों का आध्यात्मिक उत्थान सुनिश्चित कर दिया। योग का तात्पर्य होता है जोड़ना. परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने योग का वैज्ञानिक रूप में पुनर्जीवन किया उस योग ने पूरी दुनिया को एक सूत्र में जोड़ कर रखा है।आज पूरब से लेकर पश्चिम तक जिस योगलहर में योगस्नान कर रहा है उसके मूल में स्वामी सत्यानंद सरस्वती का कर्म और उनके गुरु स्वामी शिवानंद सरस्वती का वह आदेश है जो उन्होंने सत्यानंद को दिया था। गुरु के आदेशानुसार उनके जीवन का एक ही लक्ष्य था- योगविद्या का प्रचार-प्रसार, द्वारे-द्वारे तीरे-तीरे। दरअसल इस शताब्दी में योग की कहानी 1940 के दशक से आरंभ होती है। उस समय तक लोग योग से अनजान थे। योग का अस्तित्व तो था त्यागियों वैरागियों और साधु सन्यासियों के लिए 1943 में स्वामी शिवानंद सरस्वती ने ऋषिकेश में शिवानंद आश्रम की स्थापना की।उन्होंने दिव्य जीवन का ज्ञान और अनुभव प्रदान करने के लिए दो विधियों का उपयोग किया योग और वेदांत। स्वामी शिवानंद के साथ वे निरंतर रहे। परिव्राजक के रूप में बिहार यात्रा के क्रम में छपरा के बाद 1956 में पहली बार मुंगेर आये. यहां की प्राकृतिक छटा उन्हें आकर्षित करती थी।यहां उन्होंने चातुर्मास भी व्यतीत किया। यहीं उन्हें दिव्य दृष्टि से यह पता चला कि यह स्थान योग का अधिष्ठान बनेगा और योग विश्व की भावी संस्कृति बनेगी। 1961 में अंतरराष्ट्रीय योग मित्र मंडल की स्थापना की तब तक योग निंद्रा और प्राणायाम विज्ञान पुस्तक प्रकाशित हो चुकी थी। ‘लेशन आॅन योग’ का अनुवाद योग साधना भाग-एक व दो आ चुके थे। सत्यानंद पब्लिकेशन सोसायटी नंदग्राम से- सत्यम स्पीक्स, वर्डस ऑफ सत्यम, प्रैक्टिस ऑफ त्राटक, योग चूड़ामणि उपनिषद, योगाशक्ति स्पीक्स, स्पेट्स टू योगा, योगा इनिसिएशन पेपर्स, पवनमुक्त आसन (अंगरेजी)में, अमरसंगीत, सूर्य नमस्कार, योगासन मुद्रावंध आदि पुस्तकें प्रकाशित हुईं। 1963 से अंगरेजी में योगा और योगविद्या निकालना आरंभ किया। परिव्राजक जीवन की समाप्ति के बाद वसंत पंचमी के दिन 19 जनवरी 1964 को बिहार योग विद्यालय की स्थापना की। उन्होंने पूरी दुनिया में योग को लोगों के बीच पहुंचाया। दुनिया के 48 देशों की सघन यात्राएं कीं। अमरीका के बाहर यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, ग्रीस, कुवैत, ईरान, इराक से लेकर केन्या और घाना जैसे देशों में योग की आधारशिला रखी। फ्रांस, इंटली, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया में तो सत्यानंद योग के पर्याय ही हो गये। परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा बोए गये योग बीज आज वटवृक्ष का रुप ले चुके हैं ,जिनकी छांव में समस्त विश्व का जनमानस स्वस्थ एवं शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा है ।परमहंस जी ने योगरुपी ऐसी अनुपम भेंट दी है जिससे स्वस्थ जीवन के साथ आध्यात्मिक ऊंचाईयों तक पहुंचने का मार्ग भी प्रशस्त हुआ है ।आज भारत ही नहीं समस्त विश्व में परमहंस जी की “योग-निद्रा “का डंका बज रहा है। अपने परमगुरुदेव के पदचिन्हों पर चलते हुए परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने उनकी योगविद्या को नई ऊंचाईयां प्रदान की । प्रधानमंत्री जी द्वारा प्रदान किया गया योग पुरस्कार यह सिद्ध करता है कि “सत्यानंद योग” भारतवर्ष ही नहीं विश्व में सर्वश्रेष्ठ है । योग के माध्यम से विश्व विजय प्राप्त करने के बाद जब रिखिया वाले बाबा बने तो आसपास के ग्रामीणों की दयनीय दशा ने सहज ही उनका ध्यान आकृष्ट किया।उनके अंदर के पूर्णतः जाग्रत ईश्वर ने उनसे कहा, ‘सत्यानंद,जो सुविधाएं मैंने तुम्हें प्रदान की,वे अपने पडो़सियों को भी उपलब्ध कराओ।’ इसी आदेश को पूरा करने के लिए सेवा, प्रेम और दान को व्यवहारिक रूप प्रदान करने के लिए देवघर के रिखिया में रिखियापीठ की स्थापना की। झारखंड के देवघर के निकट रिखिया नाम के इस गांव में योग गुरु सत्यानंद ने जो पर्णकुटीर बनाई थी, वह उनके तपोबल से इस पूरे क्षेत्र के कल्याण का माध्यम बन गई। सितंबर, 1989 जब सत्यानंद यहां पहुंचे तब चारों ओर घनघोर जंगल था। आस-पास थे आदिवासियों के बेहद पिछड़े गांव। न कोई सड़क थी और न बिजली। सत्यानंद दरअसल तप, साधना और सेवा के लिए इस दुर्गम स्थान में आए थे। स्वामी सत्यानंद सरस्वती के अनुग्रह, आशीर्वाद तथा परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती एवं स्वामी सत्यसंगानंद सरस्वती के मार्गदर्शन में संस्कार और मानव सेवा की तरंगों ने आश्रम के आसपास के इलाकों में बदलाव की बयार बहा दी। कभी गरीबी के कारण गांव के बच्चे पढ़ नहीं पाते थे। आज बालिकाओं को मुफ्त शिक्षा मिल रही है। परिवर्तन ऐसा हुआ कि इलाके की बच्चियां फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती हैं। शास्त्रीय संगीत और भरतनाट्यम में पारंगत हैं। 1995 में स्वामी सत्यानंद ने रिखिया में सीता कल्याणम शंतचंडी महायज्ञ आरंभ किया। यहीं से इलाके में विकास की लौ जल उठी। आश्रम के सामने बने मिडिल स्कूल के बच्चों को किताब-कॉपी, जाड़े में गर्म कपड़े व जूते देने की शुरुआत हुई। हर पर्व पर गांव के बच्चों व महिलाओं को नये वस्त्र वितरित होते हैं। बेटियों के विवाह में आर्थिक सहयोग सहित उपहार स्वरूप गृहस्थी की जरूरतों का सामान आदि आश्रम की ओर से प्रदान किया जाता है। क्षेत्र की वृद्धाओं, विधवाओं को हर माह 1200 रुपये पेंशन आश्रम से मिलती है। उनका काम यही है कि वे आश्रम के कीर्तन में शामिल हों। पंचायत के गरीबों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए आश्रम की ओर से रिक्शा, ठेला जैसे साजोसामान बांटे जाते हैं। क्षेत्र की लगभग हर बालिका के पास साइकिल है, जो आश्रम की ओर से दी जाती है जिन बच्चों, बालिकाओं को कंप्यूटर में रुचि थी, उनको कंप्यूटर व लैपटॉप दिए गए। ताकि वे बिना रुके आगे बढ़ते जाएं। सबसे बड़ी बात, यह आश्रम दान नहीं लेता बल्कि देता है। इसीलिए इसे दातव्य आश्रम कहा जाता है गरीबों के कल्याण को जो राशि खर्च की जाती है, वह योग विश्वविद्यालय जैसी संस्थाओं से प्राप्त होती है। 5 दिसंबर 2009 को शिष्यों की उपस्थिति में महासमाधि में लीन हो गए। भले ही वह आज नहीं हैं, लेकिन उनके योग आंदोलन का ही नतीजा है कि योग वैश्विक धरातल पर छाया हुआ है। कुमार कृष्णन Read more » लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु स्वामी सत्यानंद
धर्म-अध्यात्म शख्सियत समाज साक्षात्कार निमाड़ की आध्यात्मिक पहचान ‘संत सियाराम बाबा’ December 13, 2024 / December 13, 2024 by अर्पण जैन "अविचल" | Leave a Comment डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल‘ मध्यप्रदेश के खरगोन जिले की कसरावद तहसील में एक छोटा-सा गाँव है तैली भट्यांण। वैसे तो यह गाँव नर्मदा के तट पर प्राकृतिक सौंदर्य से आह्लादित है किन्तु इस गाँव की प्रसिद्धि देश-विदेश में होने का महत्त्वपूर्ण और एकमात्र कारण हैं संत सियाराम बाबा। कोई यह नहीं जानता कि बाबा आए कहाँ से और […] Read more » संत सियाराम बाबा
लेख समाज साक्षात्कार सार्थक पहल रोज़गार के कम अवसरों से भी एकल परिवारों को मिल रही है गति ! December 13, 2024 / December 13, 2024 by सुनील कुमार महला | Leave a Comment सुनील कुमार महला किसी भी व्यक्ति के विकास के लिए परिवार व समाज की भूमिका महत्वपूर्ण है। व्यक्ति समाज में रहता है और आज भारत में दो प्रकार के परिवार हैं -संयुक्त परिवार और एकल परिवार। आंकड़ों की बात करें तो 2021 के डेटा के अनुसार भारत में 30.24 करोड़ परिवार निवास करते हैं। इसके अनुसार भारत में 58.2 फीसदी एकल परिवार हैं तथा 41.8 फीसदी परिवार संयुक्त परिवार हैं। मतलब यह है इस डेटा के अनुसार भारत में संयुक्त परिवारों की संख्या एकल परिवारों की तुलना में कहीं कम है।आज भारतीय समाज में आज एकल परिवार(न्यूक्लियर फैमिली) का कंसेप्ट लगातार बढ़ता चला जा रहा है और संयुक्त परिवारों(जॉइंट फैमिलीज)की संख्या में कमी देखने को मिल रही है। कारण बहुत से हैं।आज पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति, बढ़ते शहरीकरण, बढ़ती जनसंख्या के गहरे प्रभाव के कारण आज भारतीय समाज का परिवेश, वातावरण लगातार बदल रहा है। सबसे पहला कारण तो बढ़ती जनसंख्या ही है क्योंकि जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती है, वैसे-वैसे ही रोजगार के अवसरों में कमी होती चली जाती है और एकल परिवार का कंसेप्ट जन्म लेने लगता है। जब जनसंख्या में वृद्धि होती है तो लोगों को काम के संदर्भ में अपने घर से दूर दूसरे स्थानों , दूसरे राज्यों में यहां तक कि दूसरे देशों में जाकर काम करने के लिए विवश होना पड़ता है और इसका असर यह होता है कि समाज में एकल परिवार बढ़ने लगते हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है, आज भी यह देश कृषि प्रधान ही है। पहले के जमाने में मतलब कि आज से तीस-पैंतीस या चालीस बरस पहले लोगों की जीविका का मुख्य साधन कृषि और पशुपालन हुआ करता था। मतलब यह है कि पहले के जमाने में कृषि और पशुपालन पर निर्भरता ज्यादा थी, इसलिए लोग संयुक्त परिवार में रहना पसंद करते थे। आज कृषि और पशुपालन के अतिरिक्त लोगों की आजीविका के अनेक साधन उपलब्ध हैं, इसलिए लोग आज गांवों से शहरों की ओर पलायन करने लगे हैं और एकल परिवार का कंसेप्ट समाज में बढ़ने लगा है। पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति के प्रभाव के कारण आज बुजुर्गों का परिवार में वह सम्मान नहीं रहा है जो बरसों पहले हुआ करता था। पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति के प्रभाव के कारण आज हमारे समाज में नैतिक मूल्यों, संस्कारों, संस्कृति में निरंतर गिरावट आई है। बुजुर्गों की टोका-टाकी आज के युवा सहन नहीं कर पाते। आज की युवा पीढ़ी में सहनशक्ति का अभाव हो गया है और सहनशक्ति के अभाव के कारण भी कहीं न कहीं संयुक्त परिवार आज टूटकर एकल परिवार का रूप धारण कर रहे हैं। आज की युवा पीढ़ी पर स्वार्थ, लालच, अहम् की भावना,अहंकार, क्रोध हावी हो रहा है जो संयुक्त परिवारों को लगातार तोड़ रहा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि संयुक्त परिवार को जोड़ कर रखने के लिए सेवा, त्याग, धैर्य, अनुशासन, सहनशीलता, प्यार, सम्मान, समझदारी, न्यायपूर्ण व्यवहार आदि की आवश्यकता होती है। समर्पण और त्याग की भावना बहुत ही जरूरी है। बिना समर्पण और त्याग की भावना के परिवार को जोड़ कर नहीं रखा जा सकता है। आपसी विश्वास, सहनशक्ति भी परिवार को जोड़ कर रखने के लिए एक आवश्यक शर्त है। बड़े बुजुर्ग यदि किसी बात पर दो बातें युवा पीढ़ी को कह भी दें तो युवा पीढ़ी को यह चाहिए कि वह अपने बुजुर्गों की बात को मान लें. बुजुर्गों का कहना मान लेने से युवा पीढ़ी का कुछ बिगड़ नहीं जाएगा क्योंकि कोई भी बुजुर्ग/परिवार का मुखिया कभी भी अपने बच्चों के बारे में, अपने परिवार के बारे में कभी भी बुरा नहीं सोच सकता है। युवा पीढ़ी को यह बात याद रखनी चाहिए कि बच्चे चाहे जितने बड़े हो जाएं, बड़ों के सामने वे हमेशा बच्चे ही होते हैं। संयुक्त परिवार के अपने फायदे हैं। मसलन, एक संयुक्त परिवार में बच्चों को सर्वाधिक सुरक्षित और उचित शारीरिक एवं चारित्रिक विकास के अवसर प्राप्त होते हैं। परिवार के मुखिया या सदस्यों द्वारा बच्चों की इच्छाओं और आवश्यकताओं का अधिक ध्यान रखा जा सकता है। उसे परिवार के अन्य बच्चों के साथ खेलने, घुलने-मिलने के अवसर प्राप्त होते हैं। संयुक्त परिवार में माता-पिता के साथ-साथ ही अन्य परिवारजनों (परिजनों) विशेष तौर पर दादा-दादी, चाचा-चाची का प्यार भी मिलता है। आज की युवा पीढ़ी को यह लगता है कि लगता है कि जॉइंट फैमिली में उन्हें कई तरह की रोक-टोक का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी आजादी छिन जाती है। लेकिन यह विडंबना ही है कि हमारी युवा पीढ़ी यह भूल जाती है कि जॉइंट फैमिली में रहना अकेले रहने से कहीं ज्यादा सिक्योर होता है। एक व्यक्ति संयुक्त परिवार में जितना खुश रह सकता है, उतना शायद एकल परिवार में नहीं। एकल परिवार में व्यक्ति को अक्सर तनाव और अवसाद का सामना करना पड़ता है क्योंकि किसी परेशानी और मुसीबत के समय उनके पास सहायता करने वाला, उनका दुःख, परेशानी, तकलीफ़ सुनने वाला, दुःख को बांटने वाला कोई नहीं होता है। संयुक्त परिवार में रहने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि किसी भी परेशानी या मुसीबत, दुःख और तकलीफ़ का सामना हमें अकेले नहीं करना पड़ता है। हमारे साथ हर कठिन व नाजुक परिस्थितियों में हमारे घर -परिवार के लोग हमेशा हमारी सपोर्ट के लिए हमारे साथ होते हैं। घर में अनेक लोग हमारे मार्गदर्शक होते हैं, जो हमें कठिनाइयों से आसानी से बाहर निकाल ले जाते हैं। संयुक्त परिवार में हमें फाइनेंशियल सपोर्ट भी अच्छी मिलती है क्योंकि वहां कमाने वाले अधिक होते हैं। संयुक्त परिवार में बच्चों को दादा-दादी, चाचा-चाची और अन्य सदस्यों के कारण अच्छी परवरिश मिलती है और बच्चे एकल परिवार की तुलना में कहीं अधिक संस्कारी बनते हैं, कारण यह है कि संयुक्त परिवार में बच्चों को सही-गलत,अच्छे-बुरे, नैतिक-अनैतिक, सकारात्मक-नकारात्मक की पहचान कराने के लिए कोई न कोई सदस्य अवश्य ही मौजूद होते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि संयुक्त परिवार अंतर-पीढ़ीगत अंतःक्रियाओं के माध्यम से सांस्कृतिक परंपराओं और मूल्यों को संरक्षित करने के लिए उत्कृष्ट हैं। उत्कृष्ट इसलिए क्यों कि बुजुर्ग लोग हमारे देश के विभिन्न सांस्कृतिक रीति-रिवाजों, प्रेरक नैतिक कहानियों और मूल्यों और संस्कृति -संस्कारों को युवा पीढ़ी तक पहुंचाते हैं। ज्ञान का यह हस्तांतरण सांस्कृतिक विरासत की निरंतरता सुनिश्चित करता है। संयुक्त परिवार में बच्चों को अकेलापन महसूस नहीं होता है और परिवार का कोई भी सदस्य बेखौफ कहीं भी इधर उधर जा सकता है। संयुक्त परिवार में भावनात्मक समर्थन और साहचर्य बच्चों को मिलता है जो एकल परिवार में उस रूप में नहीं मिल पाता है। संयुक्त परिवार में जिम्मेदारियां (घरेलू काम-काज, बच्चों की देखभाल और वित्तीय-प्रबंधन) साझा होने के कारण परिवार के समक्ष जल्दी से कोई परेशानियां नहीं आ पातीं हैं। संयुक्त परिवार से बच्चों में सामाजिकता का भरपूर विकास होता है और संबंध घनिष्ठ और मजबूत बनते हैं।संयुक्त परिवारों में अक्सर बच्चों की देखभाल और शिक्षा के लिए एक अंतर्निहित व्यवस्था होती है, जिसमें दादा-दादी और परिवार के अन्य सदस्य बच्चे के पालन-पोषण में योगदान देते हैं। संयुक्त परिवार का एक फायदा यह भी है कि इसमें विभिन्न संसाधनों को आपस में साझा किया जा सकता है। सोशल नेटवर्क का भी निर्माण होता है। हालांकि कुछ लोग संयुक्त परिवार के नुकसान भी मानते हैं जैसे कि ऐसे परिवार अनेक बार भावनात्मक और वित्तीय सहायता के लिए परिवार के अन्य सदस्यों पर निर्भरता की भावना को बढ़ावा देते हैं। संयुक्त परिवार से जनरेशन गैप को बढ़ावा मिलता है क्योंकि युवा सदस्यों के विचार बुजुर्गों के विचारों(पारंपरिक मान्यताओं और मूल्यों) से मेल नहीं खाते हैं। संयुक्त परिवार में निर्णय लेने की स्वतंत्रता सीमित होती है क्योंकि परिवार का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति ही ऐसे परिवारों में निर्णय लेता है। पारिवारिक सदस्यों की अधिक निकटता के कारण पारिवारिक सदस्यों में अनेक बार संघर्ष और मतभेद की स्थितियां पैदा हो सकतीं हैं। संयुक्त परिवार में गोपनीयता का भी अभाव होता है और इससे तनाव पैदा हो सकता है।कभी-कभी, परिवार के कुछ सदस्यों को पक्षपात या असमान व्यवहार का सामना करना पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप असंतोष और विभाजन पैदा होता है। संचार संबंधी चुनौतियां भी संयुक्त परिवार में देखने को मिल सकतीं हैं। सुनील कुमार महला Read more » एकल परिवार
कला-संस्कृति शख्सियत साक्षात्कार श्रीदेवरसजी अस्पृश्यता प्रथा के घोर विरोधी थे December 10, 2024 / December 10, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment 11 दिसम्बर 2024 श्रीबालासाहेब देवरस की जयंती पर विशेष लेख परम पूज्य श्री मधुकर दत्तात्रेय देवरस जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तृतीय सरसंघचालक थे। आपका जन्म 11 दिसम्बर 1915 को श्री दत्तात्रेय कृष्णराव देवरस जी और श्रीमती पार्वती बाई जी के परिवार में हुआ था। आपने वर्ष 1938 में नागपुर के मॉरिस कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के उपरांत कॉलेज आफ लॉ, नागपुर विश्व विद्यालय से एलएलबी की डिग्री प्राप्त की। वर्ष 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना डॉक्टर हेडगेवार जी द्वारा की गई थी एवं आप वर्ष 1927 में अपनी 12 वर्ष की अल्पायु में ही संघ के स्वयंसेवक बन गए थे एवं नागपुर में संघ की एक शाखा में नियमित रूप से जाने लगे तथा इस प्रकार अपना सम्पूर्ण जीवन ही मां भारती की सेवा हेतु संघ को समर्पित कर दिया था। आप अपने बाल्यकाल में कई बार दलित स्वयंसेवकों को अपने घर ले जाते थे और अपनी माता से उनका परिचय कराते हुए उन्हें अपने घर की रसोई में अपने साथ भोजन कराते थे। आपकी माता भी उनके इस कार्य में उनका उत्साह वर्धन करती थीं। कुशाग्र बुद्धि के कारण आपने शाखा की कार्य प्रणाली को बहुत शीघ्रता से आत्मसात कर लिया था। अल्पायु में ही आप क्रमशः गटनायक, गणशिक्षक, शाखा के मुख्य शिक्षक एवं कार्यवाह आदि के अनुभव प्राप्त करते गए। नागपुर की इतवारी शाखा उन दिनों सबसे कमजोर शाखा मानी जाती थी, किंतु जैसे ही आप उक्त शाखा के कार्यवाह बने, आपने एक वर्ष के अपने कार्यकाल में ही उक्त शाखा को नागपुर की सबसे अग्रणी शाखाओं में शामिल कर लिया था। शाखा में आप स्वयंसेवकों के बीच अनुशासन का पालन बहुत कड़ाई से करवाते थे। दण्ड योग अथवा संचलन में किसी स्वयंसेवक से थोड़ी सी भी गलती होने जाने पर उसे तुरंत पैरों में चपाटा लगता था। परंतु, साथ ही, आपका स्वभाव उतना ही स्नेहमयी भी था, जिसके कारण कोई भी स्वयंसेवक आपसे कभी भी रूष्ट नहीं होता था। श्री देवरस जी द्वारा वसंत व्याख्यानमाला में दिए गए एक उद्भोधन को उनके सबसे प्रभावशाली उद्बोधनों में से एक माना जाता है, मई 1974 में पुणे में दिए गए इस उद्बोधन में आपने अस्पृश्यता प्रथा की घोर निंदा की थी और संघ के स्वयंसेवकों से इस प्रथा को समाप्त करने की अपील भी की थी। संघ ने हिंदू समाज के साथ मिलकर अनुसूचित जाति के सदस्यों के उत्थान के लिए समर्पित संगठन “सेवा भारती” के माध्यम से कई कार्य किए। इस सम्बंध में संघ के स्वयंसेवकों ने स्कूल भी प्रारम्भ किए जिनमें झुग्गीवासियों, दलितों, समाज के छोटे तबके के नागरिकों एवं गरीब वर्ग को हिंदू धर्म के गुण सिखाते हुए व्यावसायिक पाठ्यक्रम चलाए जाते रहे। आपने 9 नवम्बर 1985 को अपने एक उदबोधन में कहा था कि संघ का मुख्य उद्देश्य हिंदू एकता है और संगठन का मानना है कि भारत के सभी नागरिकों में हिंदू संस्कृति होनी चाहिए। श्री देवरस जी ने इस संदर्भ में श्री सावरकर जी की बात को दोहराते हुए कहा था कि हम एक संस्कृति और एक राष्ट्र (हिंदू राष्ट्र) में विश्वास करते हैं लेकिन हिंदू की हमारी परिभाषा किसी विशेष प्रकार के विश्वास तक सीमित नहीं है। हिंदू की हमारी परिभाषा में वे लोग शामिल हैं जो एक संस्कृति में विश्वास करते हैं और इस देश को एक राष्ट्र के रूप में देखते हैं। इस प्रकार, वे समस्त हिंदू इस महान राष्ट्र का हिस्सा माने जाने चाहिए। इसलिए, हिंदू से हमारा आशय किसी विशेष प्रकार की आस्था से नहीं है। हम हिंदू शब्द का उपयोग व्यापक अर्थ में करते हैं। वर्ष 1973 में श्री देवरस जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक बने। आपने अपने कार्यकाल के दौरान संघ को समाज के साथ जोड़ने में विशेष रूचि दिखाई थी और इसमें सफलता भी प्राप्त की थी। आपने श्री जयप्रकाश नारायण जी के साथ मिलकर भारत में लगाए गए आपातकाल एवं देश से भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए चलाए गए आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। आपातकाल के दौरान देश के कई राजनैतिक नेताओं के साथ ही संघ के कई स्वयंसेवकों को भी तत्कालीन केंद्र सरकार ने जेल में डाल दिया था। श्री देवरस जी को भी पुणे की जेल में डाला गया था। लम्बे समय तक चले संघर्ष के बाद, जब श्री देवरस जी को जेल से छोड़ा गया तो आपका पूरे देश में अभूतपूर्व स्वागत हुआ था। आपातकाल के दौरान अपने ऊपर एवं अन्य विभिन्न नेताओं पर हुए अन्याय एवं अत्याचार को लेकर देश के नागरिकों एवं स्वयंसेवकों के बीच किसी भी प्रकार की कटुता नहीं फैले इस दृष्टि से आपने उस समय पर समस्त स्वयंसेवकों को आग्रह किया था कि हमें इस सम्बंध में सब कुछ भूल जाना चाहिए और भूल करने वालों को क्षमा कर देना चाहिए। आपातकाल के दौरान संघ कार्य के सम्बंध में लिखते हुए द इंडियन रिव्यू पत्रिका के सम्पादक श्री एम सी सुब्रमण्यम ने लिखा है कि “आपातकाल के विरोध में जिन्होंने संघर्ष किया, उनमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख है। इस बात का उल्लेख करना आवश्यक है कि सत्याग्रह की योजना बनाना, सम्पूर्ण भारत में सम्पर्क बनाए रखना, चुपचाप आंदोलन के लिए धन एकत्रित करना, व्यवस्थित रीति से आदोलन के पत्रक सब दूर पहुंचाना, और बिना दलीय या धार्मिक भेदभाव के कारागृह में बंद लोगों के परिवारों की आर्थिक मदद करना, इस सम्बंध में संघ ने स्वामी विवेकानंद के उदगार सत्य कर दिखाए। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि देश में सामाजिक और राजनैतिक कार्य करने के लिए सर्वसंग परित्यागि सन्यासियों की आवश्यकता होती है।” आपातकाल के दौरान संघ के कार्यकर्ताओं के साथ कार्य करने वाले विभिन्न दलों के सहयोगियों ने ही नहीं बल्कि संघ से शत्रुता रखने वाले नेताओं ने भी संघ के स्वयंसेवकों के प्रति गौरव और आदर के उद्गार व्यक्त किए हैं। भारत को राजनैतिक स्वतंत्रता वर्ष 1947 में प्राप्त हो गई थी, परंतु, दादरा नगर हवेली एवं गोवा आदि कुछ हिस्से अभी भी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे थे क्योंकि यहां पुर्तगालियों का शासन यथावत बना रहा। ऐसे समय में कुछ संगठनों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दायित्ववान स्वयंसेवकों से मुलाकात की और भारत के उक्त क्षेत्रों को भी स्वतंत्र कराने की योजना बनाई गई। संघ के हजारों स्वयंसेवक सिलवासा पहुंच गए एवं दादरा नगर हवेली को आजाद करा लिया। संघ के स्वयंसेवकों ने 1955 से गोवा मुक्ति संग्राम में भाग लेना शुरू कर दिया था।इसके बाद गोवा को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से कर्नाटक से 3000 से अधिक संघ के स्वयंसेवक गोवा पहुंच गए, इनमें कई महिलाएं भी शामिल थीं। गोवा सरकार के खिलाफ आंदोलन प्रारम्भ हो गया। सरकार ने इन सत्याग्रहियों को गिरफ़्तार कर लिया गया एवं 10 साल की कठोर सजा सुनाई गई। इसके बाद तो इन स्वयंसेवकों की रिहाई कराने एवं गोवा को स्वतंत्र कराने की मांग पूरे देश में ही उठने लगी। देश की जनता के दबाव में भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय चलाया। 18 दिसम्बर, 1961 को इस महत्वपूर्ण अभियान को प्रारम्भ किया गया, इस अभियान में भारतीय सेना के तीनों अंग शामिल हुए थे। यह अभियान 36 घंटे चला और इसके सफल होते ही गोवा को 450 वर्ष के पुर्तगाली शासन से आजादी प्राप्त हो गई। इस प्रकार संघ के स्वयंसेवकों के प्रारंभिक उद्घोष, सक्रियता, समर्पण, जज्बे और सेना के पराक्रम से अंतत: गोवा भारतीय गणराज्य का अंग बन गया। कुल मिलाकर गोवा को स्वतंत्र कराने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस पूरी प्रक्रिया में संघ की ओर से श्री देवरस जी की भी महती भूमिका रही है। श्री देवरस जी ने कई पुस्तकें भी लिखी थीं, जिनमें कुछ पुस्तकें बहुत लोकप्रिय हुईं हैं, जैसे वर्ष 1974 में “सामाजिक समानता और हिंदू सुदृढ़ीकरण” विषय पर लिखी गई पुस्तक; वर्ष 1984 में लिखित पुस्तक “पंजाब समस्या और उसका समाधान”; वर्ष 1997 में लिखित पुस्तक “हिंदू संगठन और सत्तावादी राजनीति” एवं वर्ष 1975 में अंग्रेजी भाषा में लिखी गई पुस्तक “राउज़: द पॉवर आफ गुड” ने भी बहुत ख्याति अर्जित की है। श्री देवरस जी 17 जून 1996 को इस स्थूल काया का परित्याग कर प्रभु परमात्मा में लीन हो गए थे। आपकी इच्छा अनुसार आपका अंतिम संस्कार रेशमबाग के बजाय नागपुर के सामान्य नागरिकों के श्मशान घाट में किया गया था। Read more »