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भारत को पुनः विश्वगुरु बनाना ही संघ का मुख्य लक्ष्य

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक नागपुर में दिनांक 15 से 17 मार्च 2024 को सम्पन्न हुई है। इस बैठक में पूरे देश से 1500 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया और “श्रीराम मंदिर से राष्ट्रीय पुनरुत्थान की ओर” विषय पर एक प्रस्ताव भी पास किया गया।  जैसा कि सर्वविदित ही है कि गौरवशाली हिन्दू सनातन संस्कृति विश्व में सबसे पुरानी संस्कृति मानी जाती है और इसी हिंदू सनातन संस्कृति का अनुपालन करते हुए भारत का इतिहास वैभवशाली रह पाया है तथा हिंदू सनातन संस्कृति का विस्तार इंडोनेशिया तक एवं सुदूर अमेरिका तक रहा है।  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में अक्सर यह कहा जाता है कि संघ एवं इसके स्वयंसेवक करते क्या हैं? इसके उत्तर में अक्सर यह जवाब दिया जाता है कि संघ को यदि समझना है तो आपको संघ की शाखा में आना होगा। संघ, मां भारती को एक बार पुनः विश्व में गौरवशाली स्थान दिलाने के पवित्र लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए गम्भीर प्रयास कर रहा है। इस पवित्र लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लाखों की संख्या में स्वयंसेवक आज संघ के साथ जुड़ चुके हैं। आज भारत के 45,600 स्थानों पर संघ की 73,117 शाखाएं, 27,717 साप्ताहिक मिलन एवं 10,567 संघ मंडली लगाई जा रही हैं। इन शाखाओं, साप्ताहिक मिलनों एवं संघ मंडलियों में स्वयंसेवकों में राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव (राष्ट्र प्रथम) जागृत किया जाता है ताकि वे समाज में जाकर समाज की सज्जन शक्ति को साथ लेकर भारत में समाज परिवर्तन का कार्य दक्षतापूर्वक कर सकें। संघ की शाखा सामान्यतः 60 मिनट की लगती है एवं इसमें शारीरिक व्यायाम, योग, प्राणायाम, खेल, बौद्धिक एवं प्रार्थना शामिल रहती है। बौद्धिक में सनातन संस्कृति एवं भारत के गौरवशाली इतिहास की जानकारी के साथ साथ भारतीय संतो, महात्माओं एवं महापुरुषों की जानकारी प्रदान की जाती है। समय के साथ साथ संघ ने अपनी कार्यप्रणाली में परिवर्तन भी किया है एवं कई नए आयाम एवं कार्य अपने साथ जोड़े हैं। जैसे समाज के किन किन क्षेत्रों में क्या क्या काम करना है यह संघ के स्वयंसेवकों को बहुत स्पष्ट रूप से सिखाया जाता है। संगठन श्रेणी के साथ ही संघ में जागरण श्रेणी भी कार्यरत है। संगठन श्रेणी में शाखाओं के विस्तार, इसे सुचारू रूप से चलाने सम्बंधी कार्य, स्वयसेवकों का प्रशिक्षण एवं गुणवत्ता विकास आदि कार्य शामिल रहते हैं जबकि जागरण श्रेणी में समाज में जाकर किन क्षेत्रों में जागरण करना है, का निर्धारण किया जाकर इस क्षेत्र में स्वयसेवकों द्वारा कार्य किया जाता है। जैसे वर्तमान में जागरण श्रेणी में शामिल कार्य हैं – सेवा, सम्पर्क एवं प्रचार सम्बंधी कार्य। इसके अलावा 6 गतिविधियां भी हैं जो स्वयसेवकों द्वारा समाज के सहयोग से चलाई जाती हैं। इनमे शामिल हैं – धर्म जागरण समन्वय, गौ सेवा, ग्राम विकास, कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता एवं पर्यावरण संरक्षण।      22 जनवरी 2024 को अयोध्या धाम में प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर में श्रीराम लला के श्रीविग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा के पूर्व दिनांक 1 से 15 जनवरी 2024 तक श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र के आह्वान पर संघ के स्वयंसेवकों एवं समाज के विविध संस्थानों तथा संगठनों के कार्यकर्ताओं द्वारा चलाया गया गृह सम्पर्क अभियान अभूतपूर्व सफल रहा था। देश के समस्त प्रांतों के 578,778 गांवों एवं 4727 नगरों के कुल 19.38 करोड़ से अधिक परिवारों से स्वयंसेवकों सहित 44.98 लाख से अधिक व्यक्तियों ने सम्पर्क किया था। यह भारतीय समाज में संघ की गहरी पहुंच और समाज में उसकी स्वीकार्यता को दर्शाता है।  संघ के 40 से अधिक अनुशांगिक संगठन भी भारत में विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं, जो हिंदू सनातन संस्कृति एवं भारतीय परम्पराओं के आधार पर समाज में अपने कार्य को आगे बढ़ाते हैं। विश्व में वामपंथी विचारधारा के आधार पर चल रहे विभिन्न मजदूर संगठन अपने श्रमिक सदस्यों को संस्थान के केवल लाभ में हिस्सा लेने की प्रेरणा देते हैं और अपनी मजदूरी में वृद्धि के लिए अक्सर हड़ताल आदि का सहारा लेते हैं। उद्योग संस्थान में हड़ताल होने से न केवल उस विशेष उद्योग संस्थान का बल्कि देश की अर्थव्यवस्था का भी नुक्सान होता है।जबकि, भारतीय मजदूर संघ, जो कि संघ का ही एक अनुशांगिक संगठन है, अपने श्रमिक सदस्यों को हड़ताल करने के लिए निरुत्साहित करता है और उसका नारा है कि ‘संस्थान के लिए करेंगे पूरा काम और काम के लेंगे पूरे दाम’। यह अंतर है वामपंथी विचारधारा और राष्ट्रीय विचारधारा के संगठनों में। इसी प्रकार संघ के अन्य अनुशांगिक संगठनों में शामिल हैं – (1) सेवा के क्षेत्र में कार्य करने वाले संगठन – आरोग्य भारती, राष्ट्रीय सेवा भारती, भारत विकास परिषद, राष्ट्रीय चिकित्सा संस्थान, आरोग्य भारती,  सक्षम (दिव्यांग नागरिकों के लिए), दीन दयाल शोध संस्थान। (2) सामाजिक संगठन – विश्व हिंदू परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम, जनजाति सुरक्षा मंच, क्रीड़ा भारती, राष्ट्रीय सेविका समिति। (3) शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाले संगठन – विद्या भारती, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय शिक्षण मंडल, अखिल भारतीय शेक्षिक महासंघ, संस्कृत भारती, शिक्षा संस्कृत उत्थान न्यास। (4) आर्थिक क्षेत्र में कार्य करने वाले संगठन – भारतीय किसान संघ, लघु उद्योग भारती, भारतीय मजदूर संघ, स्वदेशी जागरण मंच, सहकार भारती, ग्राहक पंचायत। (5) वैचारिक समूह में कार्य करने वाले संगठन – प्रज्ञा प्रवाह, विज्ञान भारती, संस्कार भारती, इतिहास संकलन, साहित्य परिषद, अधिवक्ता परिषद। (6) सुरक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाले संगठन – सीमा जागरण मंच, हिंदू जागरण मंच, अखिल भारतीय रक्षा परिषद। उक्त समस्त संगठनों को पूर्ण स्वायत्तता प्रदत्त है एवं संघ की ओर से किसी भी प्रकार का बंधन इन संगठनों पर नहीं रहता है। हां, इन संगठनों की कार्य प्रणाली को भारतीय संस्कारों के अनुरूप ढालना आवश्यक रहता है।   अपने आचरण, आचार विचार एवं कार्य पद्धति के आधार पर भारतीय मूल के नागरिक हिंदू सनातन संस्कृति के संवाहक के रूप में अन्य कई देशों में कार्यरत हैं एवं वहां निवास कर रहे हैं और इन देशों की अर्थव्यवस्था में अपने योगदान को दिनोदिन मजबूती प्रदान कर रहे हैं। इन देशों के विभिन्न क्षेत्रों यथा सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आदि में भारतवंशियों के योगदान को इन देशों मूल नागरिकों ने पहचाना एवं स्वीकारा है। इसके चलते लाखों की संख्या में विदेशी मूल के नागरिक हिंदू सनातन संस्कृति की ओर आकर्षित हुए हैं एवं अब ऐसा माना जाने लगा है कि हिंदू सनातन संस्कृति पूरे विश्व में भविष्य का विश्व धर्म होने जा रही है। अतः आज विश्व के 53 देशों में “हिंदू स्वयंसेवक संघ” की स्थापना की जा चुकी है एवं इन देशों में 1480 शाखाएं  एवं 112 मिलन चलाए जा रहे हैं। हाल ही में आस्ट्रेलिया एवं अमेरिका के कई नगरों में संघ शिक्षा वर्ग आयोजित किए गए थे तथा इसी प्रकार विश्व के अन्य देशों को मिलाकर कुल 17 हिंदू हेरिटेज कैम्प भी आयोजित किए गए थे। अमेरिका में सेवा दीवाली बहुत धूमधाम से मनाई जाती है, इस शुभ मौके पर स्थानीय गरीब वर्ग को उपहार प्रदान किए जाते हैं।        पूरे विश्व में आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को विश्व का सबसे बड़ा संगठन माना जाता है जो पिछले 99 वर्षों से सतत रूप से हिंदू सनातन संस्कृति एवं भारतीय परम्पराओं तथा संस्कारों का अनुपालन सुनिश्चित करते हुए  मां भारती की सेवा में अपने आप को समर्पित किए हुए है। आज समाज की सज्जन शक्ति संघ की विचारधारा के अनुरूप सोचने लगी है अतः विभिन्न श्रेणी विशेष के नागरिक यथा चिकित्सक, शिक्षक, प्रोफेसर, अभिभाषक, श्रमिक, सेवा निवृत्त अधिकारी एवं कर्मचारी, युवा उद्यमी आदि बड़ी संख्या में संघ के साथ जुड़ रहे हैं एवं समाज परिवर्तन में अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं। आज भारत में विभिन्न मत पंथ को मानने वाले नागरिकों के बीच यदि आपस में भाईचारा स्थापित होता है तो निश्चित ही मां भारती को उसके पुराने वैभव को प्राप्त करने से कोई रोक नहीं सकता है। यही संघ का मुख्य लक्ष्य भी है।   

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श्रीअयोध्याधाम में नवनिर्मित प्रभु श्रीराममंदिर ने भारतीय समाज को एक किया है

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22 जनवरी 2024 का दिन भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा क्योंकि इस दिन श्री अयोध्या धाम में प्रभु श्रीरामलला के विग्रहों की एक भव्य मंदिर में समारोह पूर्वक प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी। इस प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में पूरे देश से धार्मिक, राजनैतिक एवं सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के शीर्ष नेतृत्व तथा समस्त मत, पंथ, सम्प्रदाय के पूजनीय संत महात्माओं की गरिमामय उपस्थिति रही थी। इससे निश्चित ही यह आभास हुआ है कि प्रभु श्रीराम मंदिर ने भारत में समस्त समाज को एक कर दिया है। यह भारत के पुनरुत्थान के गौरवशाली अध्याय के प्रारम्भ का संकेत माना जा सकता है।     सामान्यतः किसी भी भवन का ढांचा नीचे से ऊपर की ओर जाता दिखाई देता है परंतु प्रभु श्रीराम मंदिर के बारे में यह कहा जा रहा है कि प्रभु श्रीराम का यह मंदिर जैसे ऊपर से बनकर आया है और पृथ्वी पर स्थापित कर दिया गया है। इस भव्य मंदिर को त्रिभुवन का मंदिर भी कहा जा रहा है। तमिलनाडु के एक बड़े अधिकारी, जो कला के जानकार हैं, का तो यह भी कहना है कि इस प्रकार की नक्काशी से सज्जित मंदिर शायद पिछले 1000 वर्षों में तो बनता हुआ नहीं दिखाई दिया है। इस मंदिर में प्रभु श्रीराम के विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा के समय लगभग समस्त समाज के लोग पूजा सम्पन्न कराने के उद्देश्य से बिठाए गए थे। पूजा सम्पन्न कराने के लिए माननीय पंडितों को देश के लगभग समस्त राज्यों से लाया गया था। देश में लगभग 150 संत महात्माओं की परम्पराएं हैं जैसे गुरु परम्परा, दार्शनिक परम्परा आदि। ऐसी समस्त परम्पराओं के संत महात्माओं की भागीदारी प्राण प्रतिष्ठा समारोह में रही। साथ ही, सामाजिक जीवन के कई क्षेत्रों के प्रमुख नागरिकों की भी इस समारोह में भागीदारी रही, जैसे खेल, साहित्य, लेख, कला, मीडिया, प्रशासन, आदि। कुल 18 श्रेणियों के नागरिकों को इस समारोह में भाग लेने हेतु आमंत्रित किया गया था। जिन लगभग 4000 श्रमिकों ने इस मंदिर के निर्माण में अपना योगदान दिया था उनमें से 600 श्रमिकों, इंजीनीयरों एवं सुपर्वायजर आदि की भी इस कार्यक्रम में भागीदारी करवाई गई। 22 जनवरी 2024 के पवित्र दिन श्रीअयोध्या धाम के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर 60 चार्टर हवाई जहाज आए थे। कुल मिलाकर व्यवस्थाएं इतनी अच्छी थीं कि किसी भी नागरिक को श्री अयोध्या धाम में प्रवेश करने में किसी भी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं हुई थी। मंदिर परिसर में भी समस्त नागरिकों को अपनत्व लगा था। ऐसा लगा कि स्वर्ग में पहुंच गए हैं एवं मंदिर परिसर में दैवीय अनुभूति हुई। आज भारत एवं अन्य देशों से लगभग 2 लाख श्रद्धालु प्रभु श्रीरामलला के दर्शन हेतु श्री अयोध्या धाम प्रतिदिन पहुंच रहे हैं। दिनांक 15 से 17 मार्च 2024 को नागपुर में सम्पन्न हुई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में प्रभु श्रीराम मंदिर के निर्माण पर एक प्रस्ताव पास किया गया है। इस प्रस्ताव में यह कहा गया है कि भारत में सम्पूर्ण समाज हिंदुत्व के भाव से ओतप्रोत होकर अपने “स्व” को जानने तथा उसके आधार पर जीने के लिए तत्पर हो रहा है। अब जब प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण हो चुका है अतः अब भारत के समस्त नागरिकों के संदर्भ में अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का यह सुविचरित मत है कि सम्पूर्ण समाज अपने जीवन में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को प्रतिष्ठित करने का संकल्प ले, इससे राम मंदिर के पुनर्निर्माण का उद्देश्य सार्थक होगा। प्रभु श्रीराम के जीवन में परिलक्षित त्याग, प्रेम, न्याय, शौर्य, सद्भाव एवं निष्पक्षता आदि धर्म के शाश्वत मूल्यों को आज समाज में पुनः प्रतिष्ठित करना आवश्यक है। सभी प्रकार के परस्पर वैमनस्य और भेदों को समाप्त कर समरसता से युक्त पुरुषार्थी समाज का निर्माण करना ही प्रभु श्रीराम की वास्तविक आराधना होगी। इसी दृष्टि से, अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा समस्त भारतीयों का आह्वान करती है कि बंधुत्व भाव से युक्त, कर्तव्य निष्ठ, मूल्य आधारित और सामाजिक न्याय की सुनिश्चितता करने वाले समर्थ भारत का निर्माण करें, जिसके आधार पर वह एक सर्व कल्याणकारी वैश्विक व्यवस्था का निर्माण करने में अपनी महती भूमिका का निर्वहन कर सकेगा। यदि भारतीय समाज एक होगा तो भारत को पुनः एक बार विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठित करने में आसानी होगी।  श्री अयोध्या धाम में नव निर्मित प्रभु श्रीराम मंदिर ने न केवल भारतीय समाज को एक किया है बल्कि इससे भारत की आर्थिक प्रगति में चार चांद लग रहे हैं। देश में धार्मिक पर्यटन की जैसे बाढ़ ही आ गई है। न केवल भारतीय नागरिक बल्कि अन्य देशों में रह रहे भारतीय मूल के लोग भी प्रभु श्री राम के दर्शन करने हेतु श्री अयोध्या धाम पहुंच रहे हैं। इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के लाखों नए अवसर विकसित हो रहे हैं। भारतीय समाज में एकरसता आने से भारत में मनाए जाने वाले विभिन्न त्यौहारों को भी बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जा रहा है जिससे आपस में भाईचारा बढ़ता दिखाई दे रहा है। यदि मां भारती को विश्व गुरु बनाना है तो भारत में निवास कर रहे समस्त नागरिकों में एकजुटता स्थापित करनी ही होगी। भारत में मजबूत राजनैतिक स्थिति, मजबूत लोकतंत्र, मजबूत सामाजिक स्थिति, मजबूत सांस्कृतिक धरोहर होने के चलते विश्व के अन्य देशों का  भारतीय सनातन संस्कृति पर विश्वास बढ़ रहा है जिसे भारत के वैश्विक स्तर पर पुनरुत्थान के रूप में देखा जा सकता है।    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सर संघचालक श्री मोहन भागवत जी भी अपने एक उदबोधन में कहते हैं कि राम राज्य के सामान्य नागरिकों का जो वर्णन शास्त्रों में मिलता है, उसी का आचरण आज हमें करना चाहिए क्योंकि हम भी इस गौरवमय भारतवर्ष की संताने हैं। आज हमें राम राज्य के समय नागरिकों द्वारा किए जाने वाले आचरण को अपनाने हेतु तप करना पड़ेगा, हमको समस्त प्रकार के कलह को विदाई देनी पड़ेगी। समाज में आपस में अलग अलग मत हो सकते हैं, छोटे छोटे विवाद हो सकते हैं, इन्हें लेकर आपस में लड़ाई करने की आदत छोड़ देनी पड़ेगी। राम राज्य के समय नागरिकों में अहंकार नहीं हुआ करता था वे बगैर अहंकार के आपस में मिलजुलकर काम करते थे। श्रीमद् भागवत में बताया गया है कि जिन चार मूल्यों की चौखट पर धर्म का निवास रहता है, वे चार मूल्य हैं – सत्य, करुणा, सुचिता और तपस। राम राज्य में इन मूल्यों का अनुपालन नागरिकों द्वारा किया जाता था।   श्री भागवत जी आगे कहते हैं कि आज की परिस्थितियों के बीच नागरिकों द्वारा आपस में समन्वय रखकर व्यवहार करना यह धर्म का ही प्रथम पायदान है। दूसरा कदम माना जाता है धर्म का आचरण अर्थात सेवा और परोपकार करना। केंद्र सरकार एवं अन्य कई राज्य सरकारों द्वारा चलाई जा रही कई योजनाएं गरीबों को राहत दे रही है। आज इस संदर्भ में सब कुछ हो रहा है लेकिन भारत के नागरिक होने के नाते हमारा भी तो कुछ कर्तव्य है। इस समाज में जहां दुःख दिखाई दे, पीड़ा दिखाई दे, वहां हम दौड़ कर सेवा करने पहुंचे, यह सभी हमारे अपने बंधू ही तो हैं। हमारे शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि दोनों हाथों से कमाएं जरूर, परंतु अपने लिए न्यूनतम आवश्यक राशि रखकर शेष सारा पैसा सेवा और परोपकार के माध्यम से समाज को वापिस कर दें। सुचेता पर चलना यानी पवित्रता होनी चाहिए और पवित्रता के लिए संयम होना चाहिए। लोभ नहीं करना, संयम में रहना और शासन द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करना, अपने जीवन में अनुशासित रहना, अपने कुटुंब को अनुशासन में रखना, अपने समाज में अनुशासन में रहना तथा सामाजिक जीवन में नागरिक अनुशासन का पालन करना आदि कुछ ऐसे नियम हैं जिनके अनुपालन से भारत को वैश्विक स्तर पर एक अलग पहचान दिलाई जा सकती है।

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