राजनीति लेख छांगुर बाबा के साम्राज्य का अंत लेकिन कितने बाकी July 14, 2025 / July 14, 2025 by राजेश कुमार पासी | Leave a Comment राजेश कुमार पासी अकसर हिन्दू संगठन लव जिहाद का मुद्दा उठाते रहते हैं लेकिन सभी उनका मजाक उड़ाते हैं कि ये उनकी साम्प्रदायिक सोच है, ऐसा कुछ नहीं है । विडम्बना यह है कि बार-बार लव जिहाद के मामले सामने आते रहते हैं लेकिन उनकी अनदेखी कर दी जाती है । लव जैहाद कुछ और नहीं है बल्कि हिन्दू लड़कियों का धर्म परिवर्तन करवाने का एक तरीका है । यह भी बार-बार सुनने में आता है कि लव जैहाद के लिए मुस्लिम लड़को को पैसा दिया जाता है ताकि वो हिन्दू लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फंसाकर उनसे शादी करें और इसके बाद उन्हें इस्लाम कबूल करवायें । यूपी के बलरामपुर के उतरौला के छांगुर बाबा के मामले ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि इस देश में सुनियोजित तरीके से धर्म परिवर्तन का धंधा चल रहा है । मुस्लिम देशों से इसके लिए बेइंतहा पैसा आ रहा है इसलिए इस धंधे के लिए पैसे की कोई कमी नहीं है । मुस्लिम लड़कों के लिए ये दोगुने फायदे का काम है । एक तो उन्हें इस काम के लिए मोटी रकम मिलती है तो दूसरी तरफ उन्हें इस काम से धर्म की सेवा का मौका भी मिलता है । मौलाना उन्हें इस काम के बदले जन्नत का लालच देते हैं । उतरौला में पैदा होने वाला छांगुर बाबा कभी भीख मांग कर गुजारा करता था और इसके बाद उसने नकली अंगूठी बेचने का धंधा शुरू किया लेकिन जब उसने धर्म परिवर्तन का धंधा शुरू किया तो वो सैकड़ों करोड़ का स्वामी बन गया । आसपास के इलाकों में उसका इतना दबदबा हो गया कि उसके खिलाफ मुंह खोलना किसी के लिए संभव नहीं था । वास्तव में उसने अपने इलाके में पुलिस-प्रशासन और अदालत में इतनी पकड़ बना रखी थी कि उसके खिलाफ आवाज उठाने वाले के ऊपर फर्जी मुकदमें ठोक दिये जाते थे । हैरानी की बात है कि कई एकड़ की सरकारी भूमि पर उसने कब्जा करके बड़ी इमारत बनाकर अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था लेकिन वहां का प्रशासन आँखे बंद करके बैठा रहा । सवाल यह है कि पिछले 15-16 सालों से बलरामपुर में गैरकानूनी धंधे कर रहे छांगुर बाबा पर पुलिस और प्रशासन इतने मेहरबान क्यों थे । मैं सरकारी सेवा में 27 साल रहा हूं, अच्छी तरह जानता हूं कि अफसर सब कुछ देखकर अनदेखा क्यों करते हैं । इस सच को भी जानता हूं कि इस अनदेखी के लिए पैसा ऊपर से नीचे तक जाता है । मतलब साफ है कि स्थानीय प्रशासन में बैठे लोगों को सब कुछ पता था लेकिन उन्हें अनजान बने रहने के लिए छांगुर बाबा नियमित रूप से मोटा पैसा दे रहा होगा । मुख्यमंत्री योगी कितने भी सख्त प्रशासक हों लेकिन अभी भी पुराना इको सिस्टम काम कर रहा है । सच यह भी है कि अगर योगी मुख्यमंत्री नहीं होते तो यह बाबा कभी पकड़ में नहीं आता । ये योगी ही हैं जिनके कारण प्रशासन उसके खिलाफ कार्यवाही करने को मजबूर हुआ अन्यथा ये मामला दबा दिया जाता । आज ईडी भी उसके खिलाफ जांच कर रही है लेकिन सवाल यह है कि लगभग 300 करोड़ की फंडिंग जुटा लेने वाले बाबा पर किसी की नजर पहले क्यों नहीं पड़ी । मुझे ऐसा लगता है कि छांगुर पर कार्यवाही के साथ-साथ उन अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ भी कार्यवाही की जानी चाहिए जो उसकी मदद कर रहे थे । मेरा तो मानना है कि बाबा के खिलाफ कार्यवाही से पहले इनके खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए क्योंकि उनके लालच ने ही ऐसा बाबा पैदा किया था । सरकार से वेतन लेने वाले ये लोग देश के खिलाफ जाकर बाबा का काम कर रहे थे । घर का एक छज्जा इन्हें दिखाई दे जाता है लेकिन 70 कमरों वाला महल इन्हें दिखाई नहीं दिया । बैंक खातों में इतने बड़े लेनदेन के बावजूद आरबीआई को इसकी सूचना क्यों नहीं दी गई । उसने अपनी इमारत की दीवार बहुत ऊंची बनाई हुई थी और उन पर बिजली वाली कंटीली तारें लगाई हुई थी । किसी ने यह नहीं सोचा कि इतनी सुरक्षा क्यों की जा रही है और क्या छिपाया जा रहा है । पुलिस को कभी इस इमारत में आने-जाने वालों पर कोई शक नहीं हुआ और उसे किसी खबरी ने कभी नहीं बताया कि वहां क्या चल रहा है । लोकल पुलिस से उसके कारनामे कैसे छुपे रह गए । छांगुर बाबा ने गरीब एवं विधवा हिन्दू लड़कियों और प्रेमजाल में फंसाकर लाई गई गैर-मुस्लिम लड़कियों के धर्मपरिवर्तन और यौन शोषण की पूरी व्यवस्था तैयार की हुई थी । इसके लिए उसने कोडवर्ड बनाए हुए थे, मतांतरण को मिट्टी पलटना कहा जाता था । लड़कियों को प्रोजेक्ट कहा जाता था और उन्हें मानसिक रूप से प्रभावित करने को काजल करना कहा जाता था, दर्शन करना मतलब बाबा से मिलवाना था । बाबा आर्थिक रूप से कमजोर, विधवा और गैर-इस्लामी लड़कियों को बहला-फुसलाकर कर मतांतरण के लिए इस्तेमाल करता था । उसने मतांतरण के लिए जाति-धर्म के अनुसार एक निश्चित रकम तय की हुई थी । इसका नेटवर्क सिर्फ बलरामपुर तक नहीं था बल्कि यूपी के कई इलाकों में फैला हुआ था । यूपी से बाहर भी उसने अपना धंधा फैलाया हुआ था । शिक्षा की आड़ में उसने विदेशी फंडिंग की मदद से बड़ी संख्या में मदरसों का निर्माण किया हुआ था । वो सस्ती और सरकारी जमीनों पर मदरसों को निर्माण करवाता था और फिर उसके नाम पर विदेशी फंडिंग हासिल करता था । कितनी अजीब बात है कि गाजा में मुस्लिम बच्चे भूखे मर रहे हैं लेकिन मुस्लिम देश उनकी मदद को आगे नहीं आ रहे हैं लेकिन धर्म परिवर्तन के लिए ये देश पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं । ये मुस्लिम देश गरीब मुस्लिमों की मदद करने की जगह गैर-मुस्लिमों को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए खुले दिल से पैसा बांट रहे हैं । गरीब अफ्रीकी देशों में मुस्लिम समाज के लोग भूखे मर रहे हैं और उनकी मदद केवल यूरोपीय देशों द्वारा की जा रही है । अरबी मुस्लिम अपने सोने के महलों में अय्याशी कर रहे हैं लेकिन उनकी तरफ देखने को तैयार नहीं हैं । कितनी अजीब बात है कि जो पहले से मुस्लिम हैं, उनकी चिंता नहीं है लेकिन जो गैर-मुस्लिम हैं, उनको मुस्लिम बनाने के लिए ये लोग अरबों रुपये लुटाने के लिए तैयार हैं । ये सोचना गलत होगा कि इन लोगों के पास केवल एक छांगुर बाबा होगा बल्कि मेरा मानना है कि इन्होंने ऐसे बाबाओं की एक फौज तैयार कर रखी होगी । एक हिन्दू लड़की, जिसका मतांतरण के बाद आयत खान नाम रख दिया गया था, उसने बताया है कि ये लोग कहते थे कि 2047 में भारत को इस्लामिक मुल्क बना देंगे । उसे बताया गया कि तुम मुस्लिम बन गई हो, अब तुम्हें भी जन्नत मिल जाएगी । अभी इस मामले की बहुत पर्ते खुलनी है, लगता है कि ये मामला बहुत बड़ा है । छांगुर बाबा के कई माफिया गिरोह के साथ मिलीभगत सामने आ रही है । वैसे भी इतनी बड़ी मात्रा में सरकारी जमीनों पर कब्जा बिना माफिया की मदद के संभव नहीं लगता । हिन्दू समाज को इस मामले पर नजर रखनी होगी क्योंकि उसे धर्मनिरपेक्षता की भांग पिलाकर मूर्ख बनाया जा रहा है । कई मुस्लिम संगठन भारत को सुनियोजित तरीके से इस्लामिक देश बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं । छांगुर बाबा अकेला नहीं हो सकता और न जाने कितने छांगुर बाबा हमारे देश में छुप कर इस काम में लगे हुए होंगे । केन्द्र सरकार को विपक्ष शासित राज्यों पर विशेष नजर रखने की जरूरत है क्योंकि मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण विपक्षी दलों की सरकारें ऐसे लोगों के खिलाफ कार्यवाही कभी नहीं करेंगी । हमें समझना होगा कि लव जिहाद हमारे देश की सच्चाई है, इसे अनदेखा करना घातक साबित होगा । सब कुछ सरकार नहीं कर सकती, एक समाज के तौर पर हमें भी सतर्क रहना होगा । हिन्दू संगठनों को भी उन महिलाओं पर नजर रखने की जरूरत है, जो किसी कारण बेसहारा या गरीब हैं क्योंकि छांगुर जैसे गिद्ध मौके की तलाश में घूम रहे हैं । एक सच यह भी सामने आया है कि धर्म परिवर्तन के काम में छांगुर बाबा की मदद वो मुस्लिम कर रहे थे, जिनका धर्म परिवर्तन करवाया गया था । सरकार को उन लोगों पर नजर रखने की जरूरत है जिन्होंने नया-नया धर्म परिवर्तन किया हो । देखा गया है कि धर्म परिवर्तन के काम में ये लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं । यही लोग हैं जो अपना धर्म बदलने के बाद अन्य लोगों को धर्म बदलवाने की कोशिश ज्यादा करते हैं और कामयाब भी हो जाते हैं । वास्तव में उनकी हिन्दू समाज में रिश्तेदारी होती है तो ये दूसरों को आसानी से बहला लेते हैं । सवाल यह है कि यह तरीका सिर्फ मुस्लिम संगठनों द्वारा ही इस्तेमाल किया जा रहा है, जवाब नहीं है क्योंकि कुछ ऐसा तरीका ईसाई बनाने के लिए भी अपनाया जाता है। जब रेटलिस्ट बनाकर धर्मपरिवर्तन करवाया जा रहा हो तो बहुत सतर्क रहने की जरूरत है । हिन्दू समाज को खुद से सवाल करना होगा कि वो कब तक धर्मनिरपेक्षता के नशे में डूबा रहेगा । धर्मनिरपेक्षता का ये मतलब नहीं होता कि अपना धर्म बर्बाद होते चुपचाप देखते रहो । छांगुर बाबा मामले से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है । एक समाज के रूप में हमें अपनी जिम्मेदारी समझने की जरूरत है क्योंकि इस देश में पैसे के लिए बिकने वाले लोग शासन-प्रशासन में बैठे हुए हैं । अंत में एक भूतपूर्व कर्मचारी होने के नाते कहना चाहूंगा कि पूरी व्यवस्था भ्रष्टाचार में डूबी हुई है, उसके सहारे सब कुछ नहीं छोड़ा जा सकता । राजेश कुमार पासी Read more » The end of Changur Baba's empire but how many are left छांगुर बाबा के साम्राज्य का अंत
राजनीति भारतीय बहुलवाद संस्कृति और दाऊदी बोहरा समुदाय, आधुनिकता और धार्मिकता का उदाहरण July 14, 2025 / July 14, 2025 by गौतम चौधरी | Leave a Comment गौतम चौधरी भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता की विशाल कैनवास में दाऊदी बोहरा समुदाय एक शांत लेकिन प्रभावशाली उदाहरण के रूप में खड़ा है। कर्तव्य, व्यापारिक उद्यमिता और अन्य धार्मिक समूहों के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का उदाहरण खासकर अन्य मुस्लिम समाज में देखने को कम ही मिलता है। बोहरा, इस्माइली शिया मुस्लिमों का एक उप-संप्रदाय है जिनकी वैश्विक आबादी लगभग दस लाख है। हालांकि इस समुदाय में कुछ सुन्नी मुसलमान भी हैं लेकिन दोनों की प्रकृति लगभग एक जैसी ही होती है। भारत में ये गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में विशेष रूप से बसे हुए हैं। ये लोग अब भारतीय ही हैं लेकिन इनका दावा है कि इनके पूर्वज, इस्लाम के अंतिम नबी, हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बेटी फातिमा के परिवार से तालुकात रखते थे। इस समुदाय के लोगों का यह भी दावा है कि किसी समय अफ्रीका के उत्तरी भाग पर उनका शासन था और मिस्र के काहिरा में जो इस्लामिक विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी है वह उनके पूर्वजों के द्वारा ही की गयी। उत्तरी अफ्रीका में शासन के अंत के बाद इस समुदाय के लोग भारत के तटवर्ती क्षेत्र में आकर बसने लगे। यहां के हिन्दू राजाओं ने इनका संरक्षण और पोषण किया। इसके बाद इस समुदाय के लोग फिर भारत के ही होकर रह गए। बाद के दिनों में बोहरा समुदाय के लोग मध्य-पूर्व, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कतर आदि देश में जाकर बसे हैं। कुछ बोहरा प्रवासी संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी देशों में भी जाकर बसे हैं। बोहरा समाज के पेशेवर और व्यापारी भारत की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। यह समुदाय ऐसे विवादों से दूर रहते हैं जो भारत में नकारात्मक सुर्खियां बनते रहे हैं। इस समुदाय को भारत ही नहीं दुनिया में इसलिए जाना जाता है कि ये जहाँ कहीं भी निवास करते हैं, वहां की संस्कृति और राष्ट्र जीवन को ध्यान में रखकर अपना व्यवहार प्रदर्शित करते हैं। बोहरा समुदाय मुसलमानों के लिए ही नहीं, अन्य धार्मिक समुदायों के लिए एक उदाहरण हैं. धार्मिकता के साथ आधुनिकता भी है, यानी इस समाज का लगभग प्रत्येक व्यक्ति धार्मिक के साथ आधुनिक भी है। भारत में इनकी आमद यह दर्शाती है कि कोई व्यक्ति धार्मिक भी हो सकता है और आधुनिक भी, पारंपरिक भी हो सकता है और प्रगतिशील भी और पूरी तरह से भारतीय होते हुए भी वैश्विक चिंतन से ओतप्रोत हो सकता है। इनकी धार्मिक जड़ें फातिमी मिस्र से जुड़ी हैं और ये लोग 11वीं शताब्दी में भारत आए। इतने वर्षों में इन्होंने भारतीय समाज में न केवल खुद को समाहित किया बल्कि जिस क्षेत्रों में ये बसे, वहाँ के आर्थिक और नागरिक जीवन में भी सकारात्मक बदलाव लाने की पूरी कोशिश की। दाऊदी बोहरा समुदाय अपने मजबूत व्यापारिक नैतिक मूल्यों के लिए जाना जाता है और व्यापार, निर्माण व उद्यमिता में सफलता प्राप्त की। सूरत, उदयपुर और मुंबई जैसे शहरों में इनके व्यापारिक नेटवर्क खूब फले-फूले हैं। ये नेटवर्क ईमानदारी, पारदर्शिता और स्थिरता जैसे मूल्यों पर आधारित हैं जिससे इन्हें धार्मिक और भाषाई सीमाओं के पार जाकर सम्मान मिला है। आज जब धनार्जन को सामाजिक जिम्मेदारी से अलग समझा जाता है, तब बोहरा समुदाय यह साबित करता है कि सामुदायिक नैतिकता को अपनाकर भी समृद्ध हुआ जा सकता है। समुदाय की सामाजिक संस्थाएँ मुस्लिम दुनिया में सबसे प्रभावशाली मानी जाती हैं। मुंबई स्थित इनका केंद्रीय नेतृत्व प्रणाली, दाई अल-मुतलक के अधीन है। यह संसाधनों को संगठित करने, जनकल्याण योजनाओं को लागू करने और सामूहिक पहचान को मजबूत बनाने के लिए जाना जाता है। फैज़ अल-मवाइद अल-बुरहानिया नामक सामुदायिक रसोई योजना के तहत हर बोहरा परिवार को प्रतिदिन ताजा और पौष्टिक भोजन मिलता है। इससे खाद्य अपव्यय कम होता है, सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं और परिवारों का दैनिक बोझ घटता है। समुदाय द्वारा संचालित स्कूल और कॉलेज लड़कों व लड़कियों दोनों को धार्मिक व आधुनिक शिक्षा देते हैं और शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। विशेष रूप से बोहरा महिलाओं में साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है। इनके द्वारा शहरों की स्वच्छता, सौंदर्यीकरण और पर्यावरण संरक्षण के प्रति भी गहरी प्रतिबद्धता दिखाई देती है। स्वच्छ भारत अभियान जैसी पहलों में भागीदारी और नियमित स्वच्छता अभियान इस बात का उदाहरण हैं कि धार्मिक पहचान और राष्ट्रीय हित कैसे एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं। मुंबई की हाल ही में पुनर्निर्मित सैफी मस्जिद केवल पूजा स्थल नहीं बल्कि वास्तुशिल्प धरोहर और सामुदायिक गर्व का प्रतीक है। इसके निर्माण में पारंपरिक और पर्यावरण अनुकूल विधियों का उपयोग किया गया जो अतीत के प्रति श्रद्धा और भविष्य की चिंता दोनों को दर्शाता है। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि दाऊदी बोहरा समुदाय अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को बनाए रखते हुए भी संकीर्ण नहीं है। वे पारंपरिक पोशाक पहनते हैं, लिसान अल-दावत नामक मिश्रित भाषा बोलते हैं (जो गुजराती, अरबी और उर्दू का संयोजन है) और अपने विशिष्ट रीति-रिवाजों का पालन करते हैं। फिर भी वे देश के लोकतांत्रिक और सामाजिक जीवन में सक्रिय भागीदारी निभाते हैं। इन्हें शायद ही कभी सांप्रदायिक हिंसा या कट्टरता से जोड़ा गया। ये लोग शालीनता, संवाद की वरीयता और संघर्षों के समय शांतिपूर्ण कूटनीति के लिए जाने जाते हैं। इनके द्वारा कानून का पालन, अंतरधार्मिक सम्मान और सामाजिक सौहार्द पर बल दिया जाता है जो धार्मिक सह-अस्तित्व का एक उच्च आदर्श प्रस्तुत करता है। इस समुदाय की जीवन यात्रा में समुदाय के नेतृत्व की अहम भूमिका रही है। दिवंगत सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन और उनके उत्तराधिकारी सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन ने विभिन्न राजनीतिक दलों की सरकारों से अच्छे संबंध बनाए रखे हैं। जवाहरलाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक, सभी भारतीय नेताओं ने बोहरा नेताओं के योगदान की सराहना की है और उनके एकता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के संदेश से प्रेरणा ली है। ये रिश्ते इस बात को उजागर करते हैं कि जब कोई समुदाय राष्ट्र निर्माण में भागीदारी करता है, तो विशेषाधिकार की मांग किए बिना भी उसे विशिष्टता प्राप्त हो जाती है। वह स्थानीय लोगों का दिल जीत लेता है और कालांतर में अपने व्यवहार के बल पर आगे की पंक्ति में अपना स्थान सुरक्षित कर लेता है। धार्मिक समुदायों की आलोचना में अक्सर आंतरिक पदानुक्रम और पुरोहितवादी सत्ता का उल्लेख होता है। ये चिंताएँ विचार और विमर्श की मांग करती हैं। फिर भी यह भी सच है कि बोहरा समुदाय ने बदलाव के लिए तत्परता दिखाई है। बोहरा महिलाएँ अब शिक्षा, व्यवसाय और संवाद में बढ़-चढ़कर भाग ले रही हैं, वह भी अपने सांस्कृतिक ढाँचे के भीतर रहकर। बाहरी दबाव में झुकने की बजाय, यह समुदाय भीतर से परिवर्तन की दिशा में शांतिपूर्ण प्रयास कर रहा है। यह मॉडल पहचान संकट और सांस्कृतिक ध्रुवीकरण के समय में एक रचनात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में जहाँ मुसलमानों को या तो पीड़ित या खतरे के रूप में देखा जाता है, बोहरा समुदाय इन रूढ़ छवि को चुनौती देता दिखता है। यह सिद्ध करता है कि आस्था प्रगति में बाधा नहीं है और धार्मिक निष्ठा संविधानिक मूल्यों के साथ सामंजस्य बैठा सकती है। उनका जीवन यह दर्शाता है कि बहुलवाद केवल संविधान में दिया गया वादा नहीं है, बल्कि यह एक दैनिक अभ्यास है, जो भव्य वक्तव्यों में नहीं, बल्कि नागरिक जिम्मेदारी, पारस्परिक सम्मान और नैतिक जीवन के सामान्य कार्यों में प्रकट होता है। ऐसे समय में जब भारत नागरिकता, धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यक अधिकारों को लेकर जटिल बहसों से गुजर रहा है, बोहरा अनुभव बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, एक कठोर मॉडल के रूप में नहीं, बल्कि यह स्मरण कराने के लिए कि सांस्कृतिक विविधता राष्ट्रीय एकता को कमजोर नहीं, बल्कि मजबूत कर सकती है। दाऊदी बोहरा कोई अपवाद नहीं हैं, वे इस बात का प्रमाण हैं कि वैकल्पिक सकारात्मकता संभव हैं जो विश्वास, परिश्रम और शांत जैसे गरिमामय और उच्च मूल्य वाले व्यवहार पर आधारित हों। गौतम चौधरी Read more » an example of modernity and religiosity Indian pluralistic culture and the Dawoodi Bohra community दाऊदी बोहरा समुदाय
राजनीति क्या अब ‘डीप स्टेट’ का नया मोहरा प्रशांत किशोर होंगे? July 14, 2025 / July 14, 2025 by रामस्वरूप रावतसरे | Leave a Comment रामस्वरूप रावतसरे बिहार में प्रशांत किशोर और नॉर्वे के राजनयिक की गुप्त बैठक के बाद एक बार फिर डीप स्टेट टूलकिट की चर्चा होने लगी है। कई देशों को अस्थिर कर चुका ये टूलकिट भारत में कई बार अपना हाथ आजमा चुका है। किसान आंदोलन, पहलवान आंदोलन, अन्ना आंदोलन और उसके बाद केजरीवाल की मदद कर चुका है। सीसीए के खिलाफ […] Read more » Will Prashant Kishore now be the new pawn of the 'Deep State'? डीप स्टेट टूलकिट प्रशांत किशोर
राजनीति गिरते पुल, ढहती ज़िम्मेदारियाँ: बुनियादी ढांचे की सड़न और सुधार की ज़रूरत July 14, 2025 / July 14, 2025 by डॉ. सत्यवान सौरभ | Leave a Comment वडोदरा में पुल गिरना कोई अकेली घटना नहीं, बल्कि भारत के जर्जर होते बुनियादी ढांचे की डरावनी सच्चाई है। पुरानी संरचनाएं, घटिया सामग्री, भ्रष्टाचार और निरीक्षण की अनुपस्थिति — यह सब मौत को दावत दे रहा है। राbजनीतिक घोषणाएं तो बहुत होती हैं, लेकिन टिकाऊ निर्माण और जवाबदेही की योजनाएँ नदारद हैं। अब वक़्त है […] Read more » bridge collapse in vadodara collapsing responsibilities: Infrastructure decay and the need for reform Crumbling bridges वडोदरा में पुल गिरना
राजनीति सदानंदन मास्टर -पैर कटे पर विचारधारा नहीं बदली, अब राज्यसभा के लिए नामित July 14, 2025 / July 14, 2025 by रामस्वरूप रावतसरे | Leave a Comment रामस्वरूप रावतसरे देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 4 हस्तियों को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है। राज्यसभा के लिए मनोनीत किए जाने वालों में पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला, अजमल कसाब के खिलाफ केस लड़ने वाले वकील उज्जवल निकम, इतिहासकार मीनाक्षी जैन और सामाजिक कार्यकर्ता सी सदानंदन मास्टर हैं। राज्यसभा में 12 ऐसे सदस्य राष्ट्रपति मनोनीत करते हैं लेकिन इस […] Read more » sadanand master now nominated for Rajya Sabha Sadanandan Master - Ideology did not change even after leg was cut अब राज्यसभा के लिए नामित सदानंदन मास्टर सदानंदन मास्टर -पैर कटे पर विचारधारा नहीं बदली
राजनीति अंतरिक्ष में खेती-किसानी और हिरण्यगर्भ July 14, 2025 / July 14, 2025 by प्रमोद भार्गव | Leave a Comment स्तम्भ : विज्ञान- नूतन पुरातनसंदर्भः शुभांशु शुक्ला ने की अंतरिक्ष में खेती-किसानी प्रमोद भार्गवअंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आइएसएस) के प्रवासी भारतीय शुभांशु शुक्ला ने भविष्य की सुरक्षित खेती-किसानी के लिए अंतरिक्ष में बीज बो दिए हैं। यह सुनने में आश्चर्य होता है कि अंतरिक्ष लोक में खेती ? आखिर कैसे संभव है ? मनुष्य धरती का ऐसा प्राणी है, जिसकी विलक्षण […] Read more » शुभांशु शुक्ला शुभांशु शुक्ला ने की अंतरिक्ष में खेती-किसानी
राजनीति टैरिफ युद्ध अमेरिका पर ही भारी पड़ सकता है July 14, 2025 / July 14, 2025 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment The tariff war could backfire on the US अमेरिका में श्री डानल्ड ट्रम्प के दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के साथ ही दुनिया के लगभग समस्त देशों के साथ ट्रम्प प्रशासन द्वारा टैरिफ युद्ध की घोषणा कर दी गई है। अमेरिका में विभिन्न देशों से होने वाले आयात पर भारी भरकम टैरिफ लगाकर एवं टैरिफ की दरों में बार बार परिवर्तन कर तथा इन टैरिफ की दरों को लागू करने की तिथि में परिवर्तन कर ट्रम्प प्रशासन टैरिफ युद्ध को किस दिशा में ले जाना चाह रहा है, इस सम्बंध में अब स्पष्टता का पूर्णत: अभाव दिखाई देने लगा है। अब तो विभिन्न देशों को ऐसा आभास होने लगा है कि अमेरिकी प्रशासन विभिन्न देशों पर टैरिफ की दरों के माध्यम से अपना दबाव बनाने का प्रयास कर रहा है ताकि ये देश अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते को अमेरिकी शर्तों पर शीघ्रता के साथ सम्पन्न करें। श्री ट्रम्प द्वारा कई बार यह घोषणा की गई है कि भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौता शीघ्र ही सम्पन्न किया जा रहा है। अमेरिका एवं भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने के उद्देश्य से भारतीय प्रतिनिधि मंडल अमेरिका में गया था तथा निर्धारित समय सीमा से अधिक समय तक वहां रहा एवं ऐसा कहा जा रहा है कि द्विपक्षीय समझौते के अंतिम रूप को अमेरिकी राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जा चुका है परंतु अभी तक अमेरिका द्वारा अमेरिका एवं भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते की घोषणा नहीं की जा रही है। हालांकि, इस बीच अमेरिका द्वारा कई देशों के विरुद्ध टैरिफ की दरों को बढ़ा दिया गया है। विशेष रूप से जापान एवं दक्षिणी कोरिया से अमेरिका को आयात होने वाली वस्तुओं पर 1 अगस्त 2025 से 25 प्रतिशत की दर से टैरिफ लगाया जाएगा। इसी प्रकार, 12 अन्य देशों से अमेरिका में होने वाले आयात पर भी टैरिफ की बढ़ी हुई नई दरें लागू किये जाने का प्रस्ताव किया गया है। इस सम्बंध में अमेरिकी राष्ट्रपति ने इन 14 देशों के राष्ट्राध्यक्षों को पत्र भी लिखा है। इस सूची में भारत का नाम शामिल नहीं है। पूर्व में अमेरिका द्वारा चीन से आयात होने वाले उत्पादों पर भारी भरकम टैरिफ की घोषणा की गई थी। चीन ने भी अमेरिका से होने वाली आयातित वस्तुओं पर लगभग उसी दर पर टैरिफ लागू करने की घोषणा कर दी थी। साथ ही, चीन ने विभिन्न देशों को दुर्लभ खनिज पदार्थों (रेयर अर्थ मिनरल) के निर्यात पर रोक लगा दी थी। अमेरिका में चीन के इस निर्णय का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था। जिसके दबाव में अमेरिका ने चीन के साथ व्यापार समझौता करते हुए चीन से आयात होने वाली विभिन्न वस्तुओं पर टैरिफ की दरों को तुरंत कम कर दिया। अमेरिका द्वारा इसी प्रकार का एक द्विपक्षीय व्यापार समझौता ब्रिटेन के साथ भी सम्पन्न किया जा चुका है। पूर्व में, ट्रम्प प्रशासन ने 90 दिवस की अवधि में 90 देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते करने की बात कही थी तथा 90 दिवस की समयावधि 9 जुलाई को समाप्त होने के पश्चात भी केवल दो देशों ब्रिटेन एवं चीन के साथ ही द्विपक्षीय व्यापार समझौता सम्पन्न हो सका है। भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते को अंतिम रूप दिया जा चुका है परंतु इसकी अभी तक घोषणा नहीं की गई है। द्विपक्षीय समझौते के लिए शेष देशों पर दबाव बनाने की दृष्टि से ही इन देशों से अमेरिका को होने वाले आयात पर टैरिफ की दरों को एक बार पुनः बढ़ाये जाने का प्रस्ताव है और इन बढ़ी हुई दरों को 1 अगस्त 2025 से लागू करने की योजना बनाई गई है। वैश्विक स्तर पर अमेरिका द्वारा छेड़े गए इस टैरिफ युद्ध से निपटने के लिए भारत एक विशेष रणनीति के अंतर्गत कार्य करता हुआ दिखाई दे रहा है। भारत ने वैश्विक मंच पर न तो अमेरिका के टैरिफ की दरों में वृद्धि सम्बंधी निर्णयों की आलोचना की है और न ही भारत में अमेरिका से आयातित वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी है। बल्कि, भारत ने तो अमेरिका से आयात होने वाली कुछ विशेष वस्तुओं पर टैरिफ को कम कर दिया है। दरअसल, भारत इस समय विकास के उस चक्र में पहुंच गया है जहां पर भारत को अपना पूरा ध्यान आर्थिक क्षेत्र को आगे बढ़ाने पर केंद्रित करने की आवश्यकता है। भारत को यदि वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में शामिल करना है तो आगे आने वाले लगभग 20 वर्षों तक लगातार लगभग 8 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर को बनाए रखना अति आवश्यक है। इसलिए भारत एक विशेष रणनीति के अंतर्गत अपने आर्थिक विकास पर अपना ध्यान केंद्रित करता हुआ दिखाई दे रहा है। भारत के रूस के साथ भी अच्छे सम्बंध हैं तो अमेरिका से भी अपने सम्बन्धों को सामान्य बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील है। भारत के इजराईल के साथ भी अच्छे सम्बंध हैं तो ईरान के साथ भी भारत के व्यापारिक सम्बंध हैं। रूस एवं यूक्रेन युद्ध के बीच भी भारत ने दोनों देशों के साथ अपना संतुलित व्यवहार बनाए रखा है। इसी कड़ी में, चीन के साथ भी आवश्यकता अनुसार बातचीत का दौर जारी रखा जा रहा है, बावजूद इसके कि कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन अप्रत्यक्ष रूप से भारत के विरुद्ध कार्य करता हुआ दिखाई देता है। अभी हाल ही में चीन ने भारत को दुर्लभ खनिज पदार्थों (रेयर अर्थ मिनरल) की आपूर्ति पूर्णत: रोक दी है। साथ ही, मानसून का मौसम भारत में प्रारम्भ हो चुका है एवं भारत में कृषि क्षेत्र में गतिविधियां अपने चरम स्तर पर पहुंच गई हैं, ऐसे अत्यंत महत्वपूर्ण समय पर चीन द्वारा भारत को उर्वरकों की आपूर्ति पर परेशनियां खड़ी की जा रही हैं। चीन द्वारा समय समय पर भारत के लिए खड़ी की जा रही विभिन्न समस्याओं के हल हेतु भारत ने विश्व के पूर्वी देशों एवं विश्व के दक्षिणी भाग में स्थित देशों की ओर रूख किया है। अभी हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने घाना, नामीबिया, अर्जेंटीना, ब्राजील, त्रिनिदाद एवं टोबैगो जैसे देशों की यात्रा इस उद्देश्य से सम्पन्न की है ताकि दुर्लभ खनिज पदार्थों की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। इन देशों में दुर्लभ खनिज पदार्थ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। भारत में 140 करोड़ नागरिकों का विशाल बाजार उपलब्ध है, जिसे अमेरिका एवं चीन सहित विश्व का कोई भी देश नजर अन्दाज नहीं कर सकता है। यदि अमेरिका एवं चीन भारत के साथ अपने सम्बन्धों को किसी भी कारण से बिगाड़ने का प्रयास करते हैं तो लम्बी अवधि में इसका नुक्सान इन्हीं देशों को अधिक होने जा रहा है है क्योंकि ऐसी स्थिति में वे भारत के विशाल बाजार से वंचित हो जाने वाले हैं। भारत तो वैसे भी पिछले लम्बे समय से आत्मनिर्भर होने का लगातार प्रयास कर रहा है एवं कई क्षेत्रों में भारत आज आत्मनिर्भर बन भी गया है। अतः भारत की निर्भरता अन्य देशों पर अब कम ही होती जा रही है। भारत आज फार्मा, ऑटो, कृषि, इंजीनीयरिंग, टेक्नॉलोजी, स्पेस तकनीकी, सूचना प्रौद्योगिकी, आदि क्षेत्रों में बहुत आगे निकल चुका है। आज भारत विकास के उस पड़ाव पर पहुंच चुका है, जिसकी अनदेखी विश्व का कोई भी देश नहीं कर सकता है। भारत को हाल ही में अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में कच्चे तेल के अपार भंडार होने का भी पता लगा है। एक अनुमान के अनुसार, यह भंडार इतने विशाल हैं कि आगामी 70 वर्षों तक भारत को कच्चे तेल की आपूर्ति होती रहेगी। इसी प्रकार, भारत में कर्नाटक स्थित कोलार स्वर्ण खदानों में भी एक बार पुनः खुदाई का कार्य प्रारम्भ किया जा रहा है। आरम्भिक अनुमान के अनुसार, प्रतिवर्ष लगभग 750 किलोग्राम स्वर्ण की आपूर्ति भारत को इन खदानों से हो सकती है। पूरे विश्व में आज केवल भारत ही युवा देश की श्रेणी में गिना जा रहा है क्योंकि भारत की 65 प्रतिशत से अधिक आबादी 35 वर्ष से कम आयुवर्ग में हैं तथा लगभग 40 प्रतिशत आबादी 15 से 35 वर्ष के आयुवर्ग में शामिल हैं। अतः एक तरह से भारत आज विश्व के लिए श्रम का आपूर्ति केंद्र बन गया है। लम्बे समय से रूस एवं यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के बाद जब इन देशों में आधारभूत सुविधाओं को पुनर्विकसित करने का कार्य प्रारम्भ होगा तो इन्हें भारतीय श्रमिकों एवं इंजीनियरों की आवश्यकता पड़ने जा रही है, एक अनुमान के अनुसार अकेले रूस द्वारा में लगभग 10 लाख भारतीयों की मांग की जा सकती है। इसी प्रकार, इजराईल एवं हम्मास तथा ईरान के बीच युद्ध की समाप्ति के पश्चात इन देशों में भी बुनियादी ढांचे को पुनः मजबूत करने का कार्य जब प्रारम्भ होगा तो इन देशों को भी भारतीय नागरिकों की आवश्यकता पड़ेगी। इजराईल, जापान सिंगापुर एवं ताईवान आदि देशों द्वारा तो पूर्व में भी भारतीय इंजिनीयरों की मांग की जाती रही है। अमेरिका, ब्रिटेन एवं अन्य यूरोपीय देशों में तो डॉक्टर एवं इंजीनियरों की भारी मांग पूर्व से ही बनी हुई है। अतः आज भारत पूरे विश्व में डॉक्टर, इंजीनियर तथा श्रमिक उपलब्ध कराने के मामले बहुत आगे है। अतः भारत की इस ताकत की अनदेखी आज कोई भी देश नहीं कर सकता है। प्रहलाद सबनानी Read more » The tariff war could backfire on the US
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राजनीति मराठी बोलना गर्व की बात, लेकिन हिन्दी से घृणा क्यों ? July 11, 2025 / July 11, 2025 by अजय जैन ' विकल्प ' | Leave a Comment अजय जैन ‘विकल्प’ अपनी स्थापना से ही भारत विविधताओं का देश बना हुआ है और भाषा इसकी सबसे खूबसूरत विशेषताओं में से एक है। इसलिए यहाँ अनेकता के बावजूद एकता है, चाहे फिर कोई भी मुद्दा हो, यानी कभी अपने को श्रेष्ठ बताकर किसी अन्य को बुरा नहीं कहा गया, किन्तु इस देश के राज्य महाराष्ट्र की राजधानी मुम्बई में […] Read more » but why hate Hindi It is a matter of pride to speak Marathi हिन्दी से घृणा
राजनीति मतदाता सूची में सुधार पर सुप्रीम सहमति सराहनीय July 11, 2025 / July 11, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग-बिहार में मतदाता सूची सुधार पर सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी सिर्फ एक न्यायिक फैसला नहीं, बल्कि लोकतंत्र के मूल्य को पुष्ट करने वाला ऐतिहासिक एवं प्रासंगिक निर्णय है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को बिहार में मतदाता सूची की समीक्षा के लिए आधार, राशन और वोटर कार्ड को भी मान्यता देने का सुझाव […] Read more » Supreme Court's agreement on voter list reform is commendable मतदाता सूची में सुधार