Category: राजनीति

राजनीति

देश मजहब-प्रेम से ऊपर है

/ | Leave a Comment

दीदी का मुस्लिम प्रेम ही था कि उन्होंने 30000 मदरसों को 2500 रुपये और 1500 मस्जिदों को 1500 रुपए प्रतिमाह देने का फैसला कर लिया था, जिसकी भविष्य में गंभीरता को देखते हुए माननीय कोलकाता हाईकोर्ट ने उस फैसले को ही खारिज कर दिया था। मां, माटी और मानुष की राजनीति के नारे की उस वक्त भी पोल खुली, जब मालदा हमले के ठीक पहले एक मदरसे के प्रधानाध्यापक काजी मसूम अख्तर पर इसलिए हमला कर दिया गया क्योंकि काजी छात्रों से राष्ट्रीय गान सुनना चाहते थे। यही नहीं सरकार ने कुछ मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा आपत्ति जताने के बाद बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन द्वारा लिखी गई पटकथा वाले नाटक सीरीज के प्रसारण पर भी रोक लगा दी और सलमान रुश्दी को कोलकाता आने पर प्रतिबंध लगा दिया।

Read more »

राजनीति

आरक्षण व्यवस्था की समीक्षा तक पर एतराज क्यों ..?

/ | 1 Comment on आरक्षण व्यवस्था की समीक्षा तक पर एतराज क्यों ..?

धीरे-धीरे ही सही लेकिन चीजें बदलनी शुरू हुई हैं। दलित और पिछड़े समाज का शहरी युवा भी राजनैतिक दलों के इस गोरखधंधे को बखूबी समझने लगा है और समझने लगा है, कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रतियोगिता से ही पार पाया जा सकेगा। यही नहीं आरक्षण के बूते दलित और पिछड़े समाज के राजनैतिक मठाधीशों को लेकर भी समाज में माहौल अब बदल रहा है। लोग मानने लगें कि आरक्षण का यह लाभ जरूरतमंदों तक न पहँुचकर कुछ लोगों की जागीर बन रहा है। दलित और पिछड़े समाज के जागरूक युवाओं में भी यह धारणा बन रही है, कि आरक्षण व्यवस्था का लाभ जातिगत न होकर जरूरतमंदों को मिले तो समाज की तस्वीर ज्यादा तेजी के साथ बदलेगी।

Read more »

राजनीति

चुनावी चंदे में पारदर्शिता का सवाल

/ | 1 Comment on चुनावी चंदे में पारदर्शिता का सवाल

जिस ब्रिटेन से हमने संसदीय सरंचना उधार ली है,उस बिट्रेन में परिपाटी है कि संसद का नया कार्यकाल शुरू होने पर सरकार मंत्री और संासदो की संपति की जानकारी और उनके व्यावसायिक हितों को सार्वजानिक करती है। अमेरिका में तो राजनेता हरेक तरह के प्रलोभन से दूर रहें, इस दृष्टि से और मजबूत कानून है। वहां सीनेटर बनने के बाद व्यक्ति को अपना व्यावसायिक हित छोड़ना बाघ्यकारी होता है। जबकि भारत में यह पारिपाटी उलटबांसी के रूप में देखने में आती है। यहां सांसद और विधायाक बनने के बाद राजनीति धंधे में तब्दील होने लगती है। ये धंधे भी प्रकृतिक संपदा के दोहन, भवन निर्माण, सरकारी ठेके, टोल टैक्स, शराब ठेके और सार्वजानिक वितरण प्रणाली के राशन का गोलमाल कर देने जैसे गोरखधंधो से जुड़े होते है।

Read more »

राजनीति

आगामी चुनाव जीतने के लिये समाजवादियों का सबसे बड़ा दांव

| Leave a Comment

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने चुनावों से ठीक पहले बसपा , भाजपा और कांग्रेस को परेशान करने के लिये 17 अति पिछड़ी जातियों कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निशाद, कुम्हार,प्रजापति,धीवर, बिंद,भर,राजभर,धीमर, बाथम, तुरहा, गोडिंया, मांझी व मछुआ को एस सी का दर्जा देने का ऐलान किया है। अब यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के विचाराधीन भेजा जायेगा। सपा सरकार ने यह फैसला करके एक तीर से कई निशाने लगाने का अनोखा प्रयास किया है।

Read more »

राजनीति

उ.प्र. चुनाव : सपा की रणनीति से विरोधी होगें चित्त !

| Leave a Comment

बसपा की बात करें तो नोटबंदी के चलते बहनजी चर्चा में रही हैं । आम जनता को नोटबंदी से हुई परेशानी के लिये मायावती ने आवाज उठाई तो भाजपा ने चुनाव में नोट लेकर टिकिट देने की छवि प्रचारित कर इस आवाज को दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ी । बसपा सपा को अराजकतावादी और भाजपा को साम्प्रदायिक घोषित करते हुये कानून व्यवस्था के मुद्दे पर चुनाव लड़ने जा रही है । विकास की नित नई योजनाओं से अखिलेश अपना पल्लू साफ करके मायावती की इस कोशिश को असफल करने में लगे हैं । कांग्रेस और लोकदल के जनसमर्थन के साथ आने से भी इस काले धब्बे को नकारने में सपा को मदद मिल जायेगी । ऐसे में बसपा का सीधा सामना इस महागठबंधन से होगा ।

Read more »