जन-जागरण समाज सूचना का अधिकार व सामाजिक परिवर्तन October 12, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment आदिमकालीन मानव शनैः शनैः सभ्यता की ओर अग्रसर हुआ .भाषा व लिपि का अविष्कार होने के पश्चात् मानव समाज ने अनुशासन की आवश्यकता पूर्ति के लिये नियमों एवं रीति – रिवाजों की स्थापना की .उस समय मानव ने महसूस कर लिया था कि जंगल का कानून मानव समाज के हित में नहीं है .विश्व की […] Read more » Featured सामाजिक परिवर्तन सूचना का अधिकार
राजनीति समाज भारतीय दर्शन, इतिहास,पुराण ,मिथ या वाङ्ग्मय- सभी में गौ माँस का निषेध है ! October 12, 2015 by श्रीराम तिवारी | Leave a Comment बिहार विधान सभा चुनाव् प्रचार में व्यस्त सभी पूँजीवादी पार्टियों का ‘अभद्र’ नेतत्व लगभग अपनी नंगई पर उत्तर आया । खेद की बात है कि बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन के बदजुबान नेताओं के ‘बंदरिया नाच ‘ पर उनके अंध समर्थक तमाशबीनों की तरह फोकट में तालियाँ बजाते रहे । इन दम्भी और असत्याचरणी नेताओं का […] Read more » Featured इतिहास गौ माँस का निषेध पुराण भारतीय दर्शन मिथ या वाङ्ग्मय- सभी में गौ माँस का निषेध है !
राजनीति समाज धर्म के नाम पर युवाओं का ध्रुवीकरण घातक है October 12, 2015 by शैलेन्द्र चौहान | Leave a Comment शैलेंद्र चौहान आज हर चुनाव के पहले धर्म के नाम पर वोटों का ध्रुवीकरण किए जाने की कोशिश होती है. लेकिन अब देश में धर्म के नाम पर युवाओं का ध्रुवीकरण किया जा रहा है. राजनीति के गलियारों में चलने वाली साम्प्रदायिकता की ज़हरीली हवा समाज में इस कदर घुल रही है कि इसका प्रभाव […] Read more » Featured धर्म के नाम पर युवाओं का ध्रुवीकरण युवाओं का ध्रुवीकरण
टॉप स्टोरी समाज गोहत्या पर यह कैसी राजनीति? October 10, 2015 by डॉ. वेदप्रताप वैदिक | Leave a Comment डॉ.वेदप्रताप वैदिक गोमांस खाने के शक को लेकर मोहम्मद इखलाक की जो हत्या हुई है, उसकी भर्त्सना पूरे देश ने की है लेकिन फिर भी क्या कारण है कि इस मुद्दे पर देश में बेहद कटु और ओछी बहस चल पड़ी है? सिर्फ नेताओं ही नहीं, बुद्धिजीवियों में भी आरोपों−प्रत्यारोपों की बाढ़-सी आ गई है। […] Read more » गोहत्या गोहत्या पर यह कैसी राजनीति? यह कैसी राजनीति?
जन-जागरण समाज दादरी जैसी घटनाऐं : आत्म मंथन की जरूरत October 10, 2015 by शाहिद नकवी | Leave a Comment दादरी के बिसड़ा गांव में जो हुआ उसने दुनिया को फिर याद दिलाया कि हमारे प्रधानमंत्री चाहे नये भारत की कितनी भी बातें करें , युवा भारत के र्निमाण का सपना दिखायों लेकिन आज भी भारत की आधुनिकता सिर्फ एक कमजोर कड़ी की तरह है , जिसके पीछे छिपा है वही पुराना धार्मिक कट्टरपंथ और […] Read more » Featured आत्म मंथन की जरूरत दादरी जैसी घटनाऐं
राजनीति समाज शोहरत का ‘ शार्टकट ’ : ज़हरीले बोल ? October 10, 2015 by निर्मल रानी | 1 Comment on शोहरत का ‘ शार्टकट ’ : ज़हरीले बोल ? निर्मल रानी भारतवर्ष प्राचीन संस्कृति व सभ्यता वाला एक ऐसा देश है जिसे एक शिष्ट, संस्कारित,मेहमाननवाज़, परोपकारी तथा त्यागी व तपस्वी लोगों के विशाल देश के रूप में जाना जाता है। हमें अपने पूवर्जों से मिले तमाम ध्येय वाक्य जैसे सत्यमेव जयते,बहुजन हिताय बहुजन सुखाए,सत्यम शिवम सुंदरम,सर्वे भवंतु सुखिन:,अहिंसा परमोधर्म: व वसुधैव कुटंबकम आदि इस […] Read more » Featured ज़हरीले बोल ? शोहरत का ‘ शार्टकट ’
टॉप स्टोरी विविधा समाज देश में सभी धर्मों का सम्मान जरूरी October 10, 2015 by सुरेश हिन्दुस्थानी | Leave a Comment सुरेश हिंदुस्थानी विश्व में एक मात्र भारत ही ऐसा देश है जहां के मूल नागरिक किसी भी सम्प्रदाय के व्यक्ति के साथ कोई भेदभाव नहीं करता। यह भारत भूमि का प्रभाव है कि इस भूमि पर अनेक ऐसे महापुरुष पैदा किए, जिसमें जाति सम्प्रदाय को महत्व नही दिया। भारत की मूल अवधारणा को आत्मसात करने […] Read more » Featured देश में सभी धर्मों का सम्मान जरूरी सभी धर्मों का सम्मान
समाज नाम का काम October 3, 2015 by शंकर शरण | Leave a Comment शंकर शरण हाल में नई दिल्ली में ‘औरंगजेब रोड’ का नाम बदलने पर प्रसिद्ध अंगेजी पत्रकार करन थापर ने लेख लिखकर कड़ा प्रतिवाद किया। उन के तर्क विचारणीय, चाहे आश्चर्यजनक हैं, जो प्रकारांतर दिखाते हैं कि लंबे समय से चले आ रहे गलत या जबरिया नामकरण किस तरह हमारी मानसिकता बिगाड़ देते हैं। थापर ने […] Read more » Featured
समाज मनु बेन की डायरी October 3, 2015 / October 3, 2015 by शंकर शरण | 4 Comments on मनु बेन की डायरी शंकर शरण दो वर्ष पहले मनु बेन की डायरी प्रकाश में आई। मनु बेन महात्मा गाँधी के अंतिम वर्षों की निकट सहयोगी थीं। इस डायरी से उन कई बिन्दुओं पर प्रकाश पड़ता है, जो अभी तक कुछ धुँधलके में थीं। इस से महात्मा गाँधी की प्राकृतिक चिकित्सा, निजी जीवन या कथित ब्रह्मचर्य प्रयोग संबंधी विवादास्पद […] Read more » Featured मनु बेन की डायरी
राजनीति समाज किसान आत्महत्याओं का अर्थशास्त्र October 3, 2015 by संजय पराते | Leave a Comment भूख से होने वाली मौतें और किसान आत्महत्याएं कभी भी सत्ताधारी पार्टी और शासक वर्ग के लिए चिंता का विषय नहीं बनती, क्योंकि इससे धनकुबेरों के मुनाफों पर कोई चोट नहीं पहुंचती.लेकिन वे हमेशा इस परिघटना के एक राजनैतिक मुद्दा बनने से जरूर डरते हैं, क्योंकि इससे उनके वोट बैंक को नुकसान पहुंचता है.इसलिए उनकी […] Read more » Featured किसान आत्महत्या किसान आत्महत्याओं का अर्थशास्त्र-
राजनीति समाज समसामयिक संदर्भ में भगत सिंह के विचार September 27, 2015 by शैलेन्द्र चौहान | Leave a Comment शैलेन्द्र चौहान भगत सिंह को भारत के सभी विचारों वाले लोग बहुत श्रद्धा और सम्मान से याद करते हैं। वे उन्हें देश पर कुर्बान होने वाले एक जज़बाती हीरो और उनके बलिदान को याद करके उनके आगे विनत होते हैं। वे उन्हें देवत्व प्रदान कर तुष्ट हो जाते हैं और अपने कर्तव्य की इतिश्री मान […] Read more » Featured भगत सिंह भगत सिंह के विचार समसामयिक संदर्भ में भगत सिंह के विचार
आर्थिकी विधि-कानून समाज आर्थिक आधार पर आरक्षण से परहेज क्यों ? September 27, 2015 by पियूष द्विवेदी 'भारत' | 1 Comment on आर्थिक आधार पर आरक्षण से परहेज क्यों ? पीयूष द्विवेदी आरक्षण तो इस देश में हमेशा से ही बहस, विवाद और राजनीति का विषय रहा है । पर फ़िलहाल कुछ समय से ये विषय ठण्डा पड़ा था जिसे गुजरात में हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पटेल आरक्षण की मांग को लेकर उठे विवाद ने एकबार फिर चर्चा के केंद्र में ला दिया । […] Read more » Featured आर्थिक आधार पर आरक्षण आर्थिक आधार पर आरक्षण से परहेज