जन-जागरण समाज दस्तारबंदी और मुस्लिम समुदाय में नेतृत्व को लेकर कुछ सवाल December 15, 2014 / December 15, 2014 by जावेद अनीस | Leave a Comment जावेद अनीस पिछले दिनों दिल्ली हाईकोर्ट ने इमाम अहमद बुख़ारी द्वारा अपने पुत्र को नायब इमाम नामित करने के लिए किये जा रहे ‘दस्तारबंदी’ समारोह पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा था कि वे जो कुछ करने जा रहे हैं उसकी कोई कानूनी मान्यता नहीं है और इस आयोजन का मतलब नायब इमाम की नियुक्ति […] Read more » dastarbandi leadership of the Muslim community दस्तारबंदी मुस्लिम समुदाय में नेतृत्व को लेकर कुछ सवाल
जन-जागरण टॉप स्टोरी समाज धर्मांतरण पर दोहरा मापदण्ड क्यों? December 13, 2014 by सुरेश हिन्दुस्थानी | Leave a Comment सुरेश हिन्दुस्थानी भारत में धर्मांतरण के मुद्दे पर राजनीतिक दलों द्वारा हमेशा ही दोहरा मापदण्ड अपनाया जाता है। किसी मुसलमान द्वारा जब घर वापिसी की जाती है, तब देश में कोहराम मच जाता है, इसके अलावा जब हिन्दुओं को धर्मांतरित किया जाता है, तो सारे राजनीतिक दल और मीडिया आंखें बन्द करके बैठ जाता है। […] Read more » double standards on religion conversion Why the double standards on religion conversion?
समाज अबूझ है संवेदना का समाजशास्त्र….!! December 8, 2014 / December 8, 2014 by तारकेश कुमार ओझा | 1 Comment on अबूझ है संवेदना का समाजशास्त्र….!! रकेश कुमार ओझा कुछ साल पहले मेरी नजर में एक एेसे गरीब युवा का मामला आया, जो आइआइटी में दाखिला लेने जा रहाथा और उसे मदद की आवश्यकता थी। मेने अपना कर्तव्य समझ कर उसकी समस्या को प्रचार की रोशनी में लाने की सामर्थ्य भर कोशिश कर दी। क्या आश्चर्य कि दूसरे दिन उस छात्र […] Read more » संवेदना का समाजशास्त्र
समाज क्या लड़का होना गुनाह है? December 5, 2014 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment मेरे एक मित्र ने व्हाट्स अप पर एक वीडियो भेजा है जिसमें एक छोटी सी घटना के माध्यम से पुरुष और स्त्री की मानसिकता को दर्शाया गया है — एक मेट्रो शहर में एक लड़की आधुनिक परिधान में बस के इन्तज़ार में खड़ी है। उसके पीछे एक अधेड़ आदमी हाथ में छड़ी लिये धीरे-धीरे […] Read more » लड़का होना गुनाह
समाज खाप पंचायत अथवा खौफ पंचायत November 27, 2014 / November 27, 2014 by मनमोहन सिंह | Leave a Comment पिछले कुछ समय से भारत की मुख्यधारा की मीडिया में, चाहे वो प्रिंट हो अथवा इलेक्ट्रॉनिक,खाप पंचायतों की तथाकथित अतिवादी गतिविधियों के विरोध में चल रहे एक प्रभावशाली अभियान से प्रभावित होकर,सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे मेरे एक मित्र ने,जो कि हरियाणा के निवासी हैं, खाप पंचायतों पर एक कठोर टिप्पणी की। […] Read more » खाप पंचायत खौफ पंचायत
समाज मन ना रँगाए, रँगाए जोगी कपड़ा !! November 26, 2014 by शैलेन्द्र चौहान | Leave a Comment शैलेंद्र चौहान यह कतई आश्चर्यजनक नहीं है कि बाबाओं की सबसे ज्यादा शक्तियाँ और चमत्कार भारत में ही पाये जाते हैं। लेकिन मजेदार बात यह है कि इनकी इतनी शक्तियों और चमत्कारों के बावजूद भारत, विश्व में सैकड़ों सालों से गुलाम रहे देशों में तीसरा देश कहलाता है। गरीबी, गंदगी, अनुशासनहीनता, लालच, भ्रष्टाचार, अंधभक्ति जैसी […] Read more »
समाज बेमेल विवाह November 24, 2014 by बीनू भटनागर | 1 Comment on बेमेल विवाह मेरा तो मानना है कि हर विवाह ही बेमेल विवाह होता है,क्योंकि कोई भी दो व्यक्ति एक सी सोच, एक सी विचारधारा, एक सी धार्मिक आस्था, एक से रहन सहन, एक से मिज़ाज, रूपरंग मे समकक्ष, आर्थिक स्थिति मे भी समान, शिक्षा मे भी समान हों, मिल पाना लगभग असंभव ही है।जीवन साथी मिलना कपड़े […] Read more » Mismatched Marriage बेमेल विवाह विवाह
समाज अंधश्रद्धालु धर्मान्धताके पोखर में डुबकी लगाते रहेंगे November 22, 2014 / November 22, 2014 by श्रीराम तिवारी | Leave a Comment जब तक यह भृष्ट समाज व्यवस्था कायम है , अंधश्रद्धालु धर्मान्धताके पोखर में डुबकी लगाते रहेंगे ! कुछ साल पहले जब गुजरात के अक्षरधाम मंदिर सहित अन्य मजहबों के धर्म गुरुओं की रासलीलाओं की सीडी बाजार में आई तो धर्म-मजहब से जुड़े असमाजिक तत्वों की काली करतूत और अंध श्रद्धा से सम्पृक्त धर्मान्ध -मानव समूह का भेड़िया धसान […] Read more » अंधश्रद्धालु धर्मान्धताके पोखर में
समाज एेसी ही है बाबाओं की दुनिया…!! November 21, 2014 by तारकेश कुमार ओझा | 1 Comment on एेसी ही है बाबाओं की दुनिया…!! तारकेश कुमार ओझा बाबाओं की रहस्यमय दुनिया से अपना सामना बचपन में ही हो गया था। हालांकि तब का बचपन भविष्य और करियर नाम की चिड़िया को जानता तक नही था। बेटों का हाल भी बेटियों जैसा था। जो जैसे – तैसे घास – फूस की तरह बड़े हो जाते थे।मोहल्लों में बाबाओं की धूम […] Read more » बाबाओं की दुनिया
समाज धर्मांतरण का कुचक्र November 20, 2014 by प्रवीण दुबे | Leave a Comment प्रवीण दुबे रोगी की सेवा, शिक्षा का दान और गरीब बेसहारा लोगों की सहायता करना बहुत श्रेष्ठ कार्य है इस सत्य को कोई नकार नहीं सकता, लेकिन सेवा, शिक्षा और सहायता के नाम पर एक धर्म विशेष का प्रचार करना, अन्य धर्मावलंबियों का धर्मांतरण करके अपने धर्म लाना इससे ज्यादा घृणित और निकृष्ट काम दूसरा […] Read more » धर्मांतरण
समाज पीडि़तों की सेवा मनुष्य का धर्म November 18, 2014 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment ओ३म मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसके चारों ओर अपने निकट सम्बन्धी और पड़ोसियों के साथ मि़त्र व पशु-पक्षी आदि का समुदाय दृष्टिगोचर होता है। समाज में सभी मनुष्यों की शारीरिक, सामाजिक, शैक्षिक, स्वास्थ्य की स्थिति व आर्थिक स्थिति समान नहीं होती है। इनमें अन्तर हुआ करता है। यह सम्भव है कि एक व्यक्ति आर्थिक […] Read more » ‘पीडि़तों की सेवा Religion of Man serving victims
समाज ऐसे बाल दिवस के क्या मायने November 17, 2014 by अरविंद जयतिलक | Leave a Comment बच्चे भविष्य के निर्माता हैं। राष्ट्र की संपत्ति हैं। सभ्य समाज के निर्माण की पूंजी हैं। लेकिन दुर्भाग्य है कि उनका जीवन संकट में है और बचपन दांव पर। देश की सर्वोच अदालत को उनकी सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर लगातार चिंता जतानी पड़ रही है। बच्चों की सुरक्षा व स्वास्थ्य को लेकर केंद्र […] Read more » importance of bal diwas ऐसे बाल दिवस के क्या मायने