विविधा समाज इस लम्हे में खुश रहिये। ये लम्हा ही ज़िंदगी है June 24, 2022 / June 24, 2022 by डॉ. सत्यवान सौरभ | 2 Comments on इस लम्हे में खुश रहिये। ये लम्हा ही ज़िंदगी है जीवन में छोटी चीजों का आनंद लें।“इस लम्हे में खुश रहिये। ये लम्हा ही ज़िंदगी है।” -सत्यवान ‘सौरभ’ जीवन में छोटी चीजों का आनंद लें क्योंकि एक दिन आप पीछे मुड़कर देखेंगे और महसूस करेंगे कि वे बड़ी चीजें थीं। छोटी चीजें जरूरी हैं क्योंकि वे हमारे जीवन के विशाल बहुमत को शामिल करती हैं। […] Read more » इस लम्हे में खुश रहिये ये लम्हा ही ज़िंदगी है
लेख समाज अब लड़कियां सपनों से समझौते नहीं करती हैं June 21, 2022 / June 21, 2022 by चरखा फिचर्स | Leave a Comment नीरज गुर्जर हांसियावास, अजमेर राजस्थान 21 वीं सदी के भारत में बहुत बदलाव आ चुका है. इसका प्रभाव देश के ग्रामीण क्षेत्रों में भी नज़र आता है. विशेषकर महिलाओं और किशोरियों के संबंध में यह बदलाव महत्वपूर्ण संकेत है. जहां पहले की अपेक्षा उनकी स्थितियों में बदलाव आ रहा है. पहले की अपेक्षा अब उन्हें अपने सपनों […] Read more »
लेख समाज चिंता का सबब बनते निरन्तर होते बोरवेल हादसे June 17, 2022 / June 17, 2022 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment – योगेश कुमार गोयल10 जून को छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले में 80 फीट गहरे बोरवेल में गिरे 11 साल के राहुल को आखिरकार 104 घंटे के अब तक के सबसे लंबे रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया है। उल्लेखनीय है कि राहुल 80 फीट की गहराई वाले बोरवेल में गिरकर 65 फीट […] Read more »
महत्वपूर्ण लेख लेख समाज पिता संस्कारदाता ही नहीं, जीवन-निर्माता भी है June 17, 2022 / June 17, 2022 by ललित गर्ग | Leave a Comment अंतर्राष्ट्रीय पिता दिवस- 19 जून, 2022– ललित गर्ग- जून महीने के तीसरे रविवार को अंतर्राष्ट्रीय पिता दिवस यानी फादर्स डे मनाया जाता है। इस साल 19 जून 2022 को भारत समेत विश्वभर में यह दिवस मनाया जायेगा। पिता दिवस की शुरुआत बीसवीं सदी के प्रारंभ में पिताधर्म तथा पुरुषों द्वारा परवरिश का सम्मान करने के […] Read more » पिता संस्कारदाता ही नहीं जीवन-निर्माता भी है पिता संस्कारदाता है
लेख शख्सियत समाज अहंकार मुक्त जननायक नरेन्द्र सिंह तोमर June 15, 2022 / June 15, 2022 by सुरेश हिन्दुस्थानी | Leave a Comment 12 जून जन्म दिवस पर विशेष….सुरेश हिन्दुस्थानीवर्तमान में देश की राजनीति का जो स्वरुप हमारे सामने है, उसमें धवल चित्र और चरित्र की पहचान करना बहुत ही कठिन कार्य है। लेकिन कुछ चेहरे ऐसे भी हैं, जो लोकतंत्र की कसौटी पर खरे उतर रहे हैं। भारतीय राजनीति के लोकपथ पर अहर्निश और अनथके योद्धा के […] Read more » Ego free Jannayak Narendra Singh Tomar Narendra Singh Tomar politician Narendra Singh Tomar जननायक नरेन्द्र सिंह तोमर
लेख शख्सियत समाज जमा करें संवेदनाओं एवं प्रेम के रिश्तों की पूंजी को June 15, 2022 / June 15, 2022 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग – आज हर इंसान दुःखी है। कुछ दुःख तो बाहर से आता है और बहुत सारा दुःख हमारे भीतर ही विद्यमान है। बाहर का दुःख पदार्थजनित है और भीतर का दुःख अपवित्र सोचजनित। लेकिन एक बात निश्चित है कि अगर भीतर से पैदा होने वाले दुःख की रोकथाम कर ली जाये यानी भीतर […] Read more » Accumulate the capital of feelings and love relationships संवेदनाओं एवं प्रेम के रिश्तों की पूंजी
राजनीति समाज अराजक आपातकाल की ओर बढ़ता देश ! June 15, 2022 / June 15, 2022 by डाॅ. कृष्णगोपाल मिश्र | Leave a Comment विदेशी शक्तियों की दासता से मुक्त हुए पिचहत्तर वर्ष बीत रहे हैं। देश आजादी का अमृत-महोत्सव मनाने में मस्त है और देश विरोधी ताकतें आजादी के नाम पर उन्माद, आगजनी, भड़काऊ बयानबाजी, हिंसा और तोड़फोड़ में व्यस्त हैं। आम नागरिक डरा सहमा है और अपराधी तत्व निरंकुश हो रहे हैं। आंदोलनों और विरोध-प्रदर्शनों के नाम पर भीड़ एकत्रित कर जनजीवन को त्रस्त और अशांत बना देना कुछ लोगों के लिए आम बात हो गई है। भीड़ को पुलिस-प्रशासन का भय नहीं रह गया है, कानून की परवाह नहीं है और दंड की चिंता नहीं है क्योंकि हिंसा, आगजनी और तोड़फोड़ पर उतारू भीड़ जानती है कि उसके इन आपराधिक कुकृत्यों पर उसे दंडित करने वाली संवैधानिक प्रक्रियाएं इतनी लंबी हैं कि उसका कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। बड़े-बड़े विपक्षी नेता उसके पक्ष में खड़े मिलते हैं और बड़े-बड़े वकील निचली अदालतों से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक उसकी सुरक्षा और उसके हितों की रक्षा के लिए कमर कसकर खडे़ हैं। जे.एन.यू. में ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’जैसे देश विरोधी नारे लगाने वालों के समर्थन में खड़े बड़े नेताओं और दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में दंगाइयों के अवैध निर्माण ढहाने की सरकारी मुहिम को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देकर विफल कर देने बाले कानून के रखवालों की कारगुजारियां इस तथ्य को दूर तक स्पष्ट करती हैं। जब शीर्ष नेतृत्व, कानून के मंजे हुए खिलाड़ी और दूर विदेशों तक सक्रिय भारत-विरोधी प्रचारतंत्र तथा गुमनाम आर्थिक शक्तियां इस उन्मादी भीड़ की पृष्ठभूमि में पूरी ताकत से सक्रिय हों तो प्रतिकूल विषम परिस्थितियों से पार पाना और भी कठिन हो जाता है। देश की चुनी हुई संवैधानिक लोकतांत्रिक केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के निर्णयों को उग्र हिंसक आंदोलनों के बल पर बदलने, वापस कराने का यह खतरनाक खेल देश की प्रगति, शांति और सुरक्षा के लिए जितना बड़ा खतरा है विपक्षी राजनेताओं के लिए भी उतना ही अशुभ और विनाशकारी है क्योंकि भविष्य के निर्वाचनों में यदि वे सत्ता में आए तो यही हिंसक उन्मादी भीड़ उनकी राजनीति का पथ भी कंटकाकीर्ण कर देगी और तब उनके लिए भी लोकतांत्रिक मानमूल्यों का संरक्षण करना कठिन होगा। अतः उग्र-हिंसक आंदोलनों को उकसाना, दंगे भड़काना किसी के भी हित में नहीं है– ना सत्तापक्ष के, ना विपक्ष के और ना जनता के। अब यह खतरनाक खेल बंद होना चाहिए। एक पुरानी फिल्म का गीत है ‘पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए’ । यही बात आज हमारे देश में उग्र-हिंसक आंदोलनों के संदर्भ में सत्य सिद्ध हो रही है। रोज किसी न किसी बहाने से उग्र-हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं। कभी किसी राजनीतिक दल की शक्ति प्रदर्शनकारी रैली के नाम पर, कभी आरक्षण अथवा अन्य किसी मांग की पूर्ति के नाम पर, कभी एनआरसी, सीएए अथवा किसान आंदोलन के नाम पर तो कभी किसी धार्मिक उत्सव के अवसर पर चल समारोह के विरुद्ध एकत्रित की गई भीड़ ध्वंस का नग्न-नृत्य करती ही रहती है। हर बार भीड़ कुछ निर्दोषों की बलि ले लेती है, कुछ पुलिसकर्मी अधिकारी हत-आहत हो जाते हैं, फिर पुलिस फ्लैग मार्च निकालती है, एफ आई आर दर्ज होती हैं, कानून की चक्की धीमी गति से चलती है और तब तक केंद्र अथवा राज्य सरकार बदल जाने पर केस वापस ले लिए जाते हैं। प्रायः अपराधी अपराध करने के बाद भी दंडित नहीं हो पाते। ऐसी स्थितियों में भीड़ को एकत्रित कर उसे अपने निहित स्वार्थों के लिए देश के विरुद्ध एक प्रभावी शस्त्र के रूप में प्रयोग करना देश-विरोधी और सत्ता की प्रतिपक्षी ताकतों के लिए और भी सहज हो जाता है। इन्हीं कारणों से ये हिंसक प्रदर्शन बराबर बढ़ रहे हैं, बढ़ते ही जा रहे हैं। यदि समय रहते कठोर कदम नहीं उठाए गए तो इन्हें नियंत्रित कर पाना और भी कठिन हो जाएगा। हमारी संवैधानिक व्यवस्था में अपनी बात रखने का सबको बराबर अधिकार है किंतु झूठी बयानबाजी करने और मनमाने कृत्यों द्वारा दूसरों की भावनाओं को आहत करने की छूट किसी को नहीं है। भाजपा की प्रवक्ता नूपुर शर्मा के जिस बयान को लेकर जुमे की नमाज के बाद देश में अनेक स्थानों पर उग्र प्रदर्शन हुए वह बयान भी इसी दृष्टि से विचारणीय है। यदि नूपुर शर्मा ने हजरत मोहम्मद साहब के विरुद्ध कोई मनगढ़ंत झूठी बात कहकर उनका अपमान करके संप्रदाय विशेष के लोगों की भावनाओं को आहत किया है तो उनके विरुद्ध भारतीय दंडविधान के अनुरूप न्यायिक कार्यवाही अवश्य होनी चाहिए किंतु यदि उन्होंने इस्लामी पवित्र ग्रंथों में कथित किन्ही तथ्यों की ही पुनप्र्रस्तुति की है तो फिर इतना बवाल क्यों ? क्या संप्रदाय विशेष अपने ही ग्रंथों में उल्लिखित तथ्यों के प्रति आस्था और विश्वास नहीं रखता ? धार्मिक महापुरुषों और कथित पैगंबरों-अवतारों के जीवन सत्य को आज बदला नहीं जा सकता। उसे उसी रूप में स्वीकार करना होगा जिस रूप में वह उनसे संबंधित मूल प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है। अतः विवेचना का विषय यह होना चाहिए कि नूपुर शर्मा के कथन के स्रोत क्या हैं और उन स्रोतों की सत्यता विश्वसनीयता कितनी है ? सच को सामने लाए बिना केवल उग्र प्रदर्शन कर जनजीवन को अशांत करना आज के इक्कीसवीं शताब्दी के सभ्य समाज के मस्तक पर कलंक के सिवा कुछ भी नहीं है। इसे प्रदर्शनकारियों का बौद्धिक दिवालियापन ही कहा जा सकता है। यह भी अत्यंत रोचक और दुखद विषय है कि जिस संप्रदाय विशेष के लोग अपनी धार्मिक भावनाएं आहत होने के कारण उग्र हिंसक प्रदर्शन पर जब-तब उतर आते हैं वे समाज के अन्य संप्रदायों की भावनाओं के साथ निरंतर खिलवाड़ करते रहते हैं ? रांची में हिंसक भीड़ से बचने के लिए मौके पर तैनात पुलिसकर्मियों, पत्रकारों और अन्य धर्मावलंबियों ने मेनरोड स्थित महावीर मंदिर में शरण लेकर अपने प्राण बचाए तो उपद्रवियों ने मंदिर के बंद द्वार और छत पर पत्थर फेंक कर महावीर मंदिर को क्षतिग्रस्त कर दिया। क्या महावीर मंदिर पर हुए इस आक्रमण के कारण इस मंदिर से जुड़े लोगों की भावनाएं आहत नहीं हुईं ? कैसी विडंबना है कि जो कट्टर मानसिकता पिछले 1000 वर्षों से भी अधिक समय से भारतवर्ष के पूजा स्थलों को नष्ट करती आ रही है, उनकी मूर्तियों को तोड़ती रही है, उनके अश्लील चित्र अंकित करके हर प्रकार से उन्हें अपमानित करने में ही स्वयं को गौरवान्वित मानती है वह अन्य धर्मावलंबियों द्वारा उनके पैगंबर के संबंध में कुछ कहे जाने मात्र से हिंसा पर उतर आती है। अपने महापुरुष, अपने पूजास्थल और अपनी संस्कृति के सम्मान के प्रति अत्यंत जागरूक इस समुदाय को अन्य धर्मों का सम्मान करना भी सीखना होगा, सीखना भी चाहिए अन्यथा अन्य पक्षों की रोषाग्नि उन्हें भी झुलसा सकती है। शिवाजी का आक्रोश औरंगजेब की सत्ता को कमजोर कर के उसे विनाश की ओर ही धकेलेगा। अनेक मीडिया चैनलों पर प्रसारित होने वाले तथाकथित डिबेट के ऐसे कार्यक्रम भी गंभीर चिंता का विषय हैं। धर्म आदि अत्यंत संवेदनशील ऐसे मुद्दे जो प्रशासनिक एवं न्यायिक स्तरों पर विचाराधीन हैं, उन पर ऐसी बहसों का आयोजन उनकी टीआरपी बढ़ाने की दृष्टि से भले ही उनके लिए लाभप्रद हो किंतु जनमानस पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं डाल पाता क्योंकि इन विमर्शों का निष्कर्षहीन अंत कुछ ज्वलंत प्रश्न ही छोड़ता है, कोई सार्थक समाधान नहीं देता। सब जानते हैं कि जो प्रवक्ता जिस धर्म अथवा राजनीतिक दल की ओर से आया है वह हर प्रकार से अपने पक्ष का ही समर्थन करेगा। सत्य-असत्य से दूर जाकर तर्कों-कुतर्कों के सहारे प्रस्तुत होने वाली ये बहसें सच को सामने लाने के स्थान पर भ्रांतियां ही अधिक निर्मित करती हैं। सामंतवादी युग में तीतर-बटेर और मुर्गों की लड़ाई के प्रदर्शन जैसे यह डिबेट आयोजन समय और श्रम की बर्बादी के साथ-साथ जनता जनार्दन के मध्य वैमनस्य भी उत्पन्न करते हैं अतः इनकी आवश्यकता भी विचार का विषय है। नूपुर शर्मा का बयान और उस से उपजा बवाल इस दिशा में गंभीरता पूर्वक विचार की अपेक्षा करता है। यदि यह डिबेट नहीं हुई होती तो यह अनावश्यक बवाल भी नहीं होता। इस प्रकार के उग्र-हिंसक प्रदर्शन भी आतंक का ही एक रूप हैं जो समाज और शासन-प्रशासन पर अनुचित दबाव डालकर अपनी बात मनवाने का प्रयत्न करते हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसे दबाव स्वीकार नहीं किए जा सकते, किए भी नहीं जाने चाहिए क्योंकि इनसे राज्य-सत्ता की दुर्बलता प्रकट होती है और दबाव डालने वाली अलोकतांत्रिक ताकतों का मनोबल बढ़ता है। कृषि-विधेयक के विरोध में गणतंत्र दिवस के दिन लालकिले पर हुए तथाकथित किसानों का उग्र खालिस्तानी अलगाववादी प्रदर्शन, शाहीन बाग का प्रदर्शन, कोविड-19 के समय कुछ विशेष बस्तियों के लोगों द्वारा चिकित्सकों और नर्सों पर की गई पत्थरबाजी तथा जब तब भड़कते दंगों में पुलिस बल पर होने वाले हमले लोकतंत्र के आकाश पर मंडराते गहराते काले बादलों की ओर इशारा कर रहे हैं। सबका साथ और सबका विकास का नारा देकर सबको समान रूप से निशुल्क अन्न बांटने वाली, आवास और अन्य सुविधाएं देने वाली सरकार सब का विश्वास जीतने में अभी भी विफल है क्योंकि हैदराबाद से ओवैसी और कश्मीर घाटी से महबूबा मुफ्ती जैसे नेता अभी भी समुदाय विशेष को बहकाने-भड़काने में लगे हैं। परिस्थितियां विषम हैं। देश एक अघोषित अराजक आपातकाल की ओर जा रहा है। राजनेता अपने-अपने दलों का हित ध्यान में रखकर निर्णय ले रहे हैं अतः हम नागरिकों का दायित्व है कि वर्ग, धर्म आदि के खांचों में विभाजित राजनीति और उसके रहनुमाओं के चंगुल से निकलकर देशहित में स्वयं निर्णय लें और आपराधिक मानसिकता वाले कथित नेताओं के हाथों में हथियार बन कर अपने ही देश की देह लहूलुहान ना करें। राष्ट्र की एकता, अखंडता और स्वायत्तता के लिए समर्पित हों। डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र Read more » अराजक आपातकाल की ओर बढ़ता देश
शख्सियत समाज जैन दर्शन भगवान महावीर और समाजवाद June 10, 2022 / June 10, 2022 by अरूण कुमार जैन | Leave a Comment सृष्टि व्यवस्था में ‘धर्म’ को प्राकृतिक सत्ता माना गया है। जैन धर्म का न तो कोई आदि है और न ही अंत इसलिए यह निरग्रंथ है और प्राकृतिक धर्म है। वेदों में भी जैन धर्म को वेदों से पूर्व का स्वीकर किया गया है और जैन दर्शन की सृष्टि संबंधी व्याख्या आधुनिक वैज्ञानिक खोजों से […] Read more » भगवान महावीर और समाजवाद
लेख शख्सियत समाज साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा : मोक्ष की मुस्कान देने वाली नयी रोशनी June 10, 2022 / June 10, 2022 by ललित गर्ग | Leave a Comment ललित गर्ग महिलाओं ने इन वर्षों में अध्यात्म के क्षेत्र में एक छलांग लगाई है और जीवन की आदर्श परिभाषाएं गढ़ी हैं। ऐसी ही अध्यात्म की उच्चतम परम्पराओं, संस्कारों और जीवनमूल्यों से प्रतिबद्ध एक महान विभूति का, चैतन्य रश्मि का, एक आध्यात्मिक गुरु का, एक ऊर्जा का नाम है- साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी। जैन धर्म […] Read more » : The new light that gives the smile of salvation Sadhvipramukha Vishrutvibha मोक्ष की मुस्कान देने वाली नयी रोशनी साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा
लेख समाज जब रक्षक बन जाये भक्षक,फिर बेटी कौन बचाये June 9, 2022 / June 9, 2022 by निर्मल रानी | Leave a Comment निर्मल रानीहमारे देश में जहां कन्याओं व महिलाओं के कल्याण व उनके संरक्षण,सुरक्षा व आत्मनिर्भरता के लिये सरकार द्वारा तरह तरह की योजनाओं के दावे किये जाते हैं। जहां हमारा समाज कन्याओं की देवी स्वरूप पूजा करता और नवरात्रों में कंजक बिठाता है। जहां धार्मिक प्रवचनों व सत्संगों में पुरुषों से अधिक महिलायें बढ़चढ़कर हिस्सा […] Read more » then who will save the daughter When the protector becomes the eater जब रक्षक बन जाये भक्षक फिर बेटी कौन बचाये
राजनीति समाज जिंदगी मै रंग भरती बिटिया, चूल्हे-चौके से सिविल सेवा के शीर्ष तक June 2, 2022 / June 2, 2022 by प्रियंका सौरभ | 1 Comment on जिंदगी मै रंग भरती बिटिया, चूल्हे-चौके से सिविल सेवा के शीर्ष तक सिविल सेवा परीक्षा के नतीजों में इस बार देश की बेटियों ने जैसी धूम मचाई है, वह न सिर्फ उनके परिवारजनों बल्कि संपूर्ण भारतीय समाज के लिए गर्व करने का विषय है. -प्रियंका ‘सौरभ’________________________________श्रुति शर्मा, अंकिता अग्रवाल तथा गामिनी सिंगला संघ लोक सेवा द्वारा घोषित सिविल सेवा परीक्षा 2021 में क्रमश: प्रथम, द्वितीय और तृतीय […] Read more » from the stove-top to the top of the civil service Life is full of colors UPSC toppers अंकिता अग्रवाल गामिनी सिंगला श्रुति शर्मा
लेख समाज सार्थक पहल बिजनेस में अपनी पहचान बनाती घरेलू महिलाएं June 1, 2022 / June 1, 2022 by चरखा फिचर्स | Leave a Comment सौम्या ज्योत्सनामुजफ्फरपुर, बिहार अक्सर यह माना जाता है कि शादी के बाद महिलाओं का करियर समाप्त हो जाता है क्योंकि घर और बच्चों से उसे फुर्सत ही नहीं मिलेगी कि वह अपने सपनों को पूरा करने के बारे में सोचे. लेकिन जैसे जैसे वक़्त बदल रहा है यह धारणा गलत साबित होती जा रही है. […] Read more » Domestic women making their mark in business बिजनेस में अपनी पहचान बनाती घरेलू महिलाएं