नये पत्ते डाल पर आने लगे ।
फिर परिंदे लौटकर गाने लगे ।।
जो अंधेरे की तरह डसते रहे ।
अब उजाले की कसम खाने लगे ।।
चंद मुर्दे बैठकर श्मशान में ।
जिंदगी का अर्थ समझाने लगे ।।
उनकी ऐनक टूटकर नीचे गिरी ।
दूर तक के लोग पहिचाने लगे ।।
जब सियासत का नया नक्शा बना ।
थे जो अंधे लोग चिल्लाने लगे ।।
आईनों की साफ गोई देखकर ।
सामने जानें से कतराने लगे ।।
जब सच्चाई निर्वसन होने लगी ।
लोग उसको वस्त्र पहनाने लगे ।।
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एक भी खिड़की नहीं चारों तरफ दीवार है ।
घुट रहा है दम यहॉं , वातावरण बीमार है ।।
एक लंगड़ा आदमी जैसे घिसटकर चल रहा ।
ठीक वैसी ही हमारे , वक्त की रफ्तार है ।।
अपना चेहरा आईनें में देखकर कहनें लगे ।
हम तो ऐसे हैं नहीं यह आईना बेकार है ।।
जिंदगी के बाद रिश्ते शुरू होते हैं यहां ।
शव को कंधा लगा देना एक शिष्टाचार है ।।
उस सड़क पर भीड़ ज्यादा बढ़ गई है आजकल ।
चल रहा है जिस जगह पर मौत का व्यापार है ।।
हमने जो भी कुएं खुदवाये सभी सूखे रहे ।
लोग कहते हैं कोई चट्टान पानी दार है ।।