भारत को आस्तीन में सांप पालने का शौक

डा. कौशल किशोर श्रीवास्तव

भारत की आस्तीनें बहुत लम्बी और बहुत चौड़ी है। वह जहां भी सांप रेंगते देखता है, शीघ्रता से उठा कर आस्तीन के अन्दर रख लेता हैं इस आशा के साथ कि जब सांप बहुत से इकट्ठे हो जायेंगे तो एक दूसरे को काटने लगेंगे पर वे भारत को ही काटते है और एक दूसरे से मित्रता कर लेते है। अब भारत माता का चेहरा मेरे सामने है तो उनके दाहिने हाथ की तरफ पाकिस्तान है। मगर वह देश भारत का दाहिना हाथ नहीं है वरन दाहिनी आस्तीन के अन्दर काटता है। देश का विभाजन कोई दो धर्मो के प्रेम के कारण नहीं हुआ था वरन नफरत और एक दूसरे से डर के कारण हुआ था। हमारा यह बार बार कहना कि दोनो मुल्को की आवाम तो एक दूसरे से मिलना चाहती है पर नेता नहीं मिलने देते, एक हवा का किला है नेता उसी देश की जनता का ही प्रतिनिधित्व करते है। जब भारत में काश्मीर में ही दोनो धर्म के लोग साथ साथ नहीं रह पाये तो कैसे यह आशा की जाती है कि पाकिस्तान में दूसरे कौम को साथ में रहने दिया जायेगा।

ये शिगूफा कि दोनो देश के लोग तो भाई चारा चाहते है पाकिस्तान के उन कलाकारो द्वारा छोड़ा गया है जो भारत से मोटी रकम वसूलते है। पाकिस्तान के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री भारत में मित्रता का हाथ बढ़ाने नहीं आते बल्कि जियारत करने या ताजमहल देखेने आते है। यहां के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री उनके लिये रेड कारपेट की जगह पलकंे बिछाये रहते है वहां के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री उनकी बातों में हाॅ-हॅू करते हैं और मन में सोचते है कि काश अजमेर शरीफ और ताजमहल भी पाकिस्तान में होते। वे वापिस लौट कर तत्काल बाद ही उनकी सही मंशा जाहिर कर देते है। या तो कोई आतंकवादी घटना को अन्जाम देते है या छोटा मोटा (उनकी औकात के अनुसार) हमला कर देते है।

अच्छा मान भी लें कि दोनो देश की सीमायें खोल भी दी गई तो क्या गारन्टी कि दुबारा वही लूटपाट और मारकाट नहीं होगी जो सन् 1947 में हुई थी। तो एक ही भाई क्या कम था कि जवाहरलाल जी एक और भाई को जन्म दे गये। हिन्दी-चीनी भाई-भाई। हमने इन नागदेव की पूजा की नहीं कि वे भी आस्तीन में घुस गये। अब नील कण्ठ की तरह हम इन को भी आस्तीन से बाहर नहीं निकाल पाते। चीन धीरे धीरे भारत के सिर को मुन्डन कर रहा है। पहले तिब्बत को निगला फिर भारत का 33 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ही निगल गया। जो लोग श्री बद्रीधाम जी जाते है वे वहां यह जानकर दुखी हो जाते है कि चीन वहां से मात्र 15 किलोमीटर दूर है।

चीन को पाकिस्तान की मित्रता इसलिये अच्छी लगती थी कि दोनो भारत को छीन कर बांट रहे थे। आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि भारत की दो संसद की सीटे हमेशा रिक्त रहती है क्योंकि दोनो पाकिस्तान अधिकृत काश्मीर में है। चीन को पाकिस्तान की हकीकत तब उजागर हुई जब चीन में भी पाकिस्तान रचित आतंकवाद की घटनायें होने लगी।

पाकिस्तान के हुक्मरानो का आइ.क्यू. वहां की जनता की तरह 250ः से कम न होगा। उसे चीन नामक मोहरे की आवश्यकता इसलिये पड़ी कि एक तरफ तो वह अमेरिका को ब्लेक मेल कर सके और दूसरी तरफ भारत को ब्लेक मेल कर सके पर भेडि़या भेड़ की खाल में कब तक अपने को छुपा सकता है ?

पाकिस्तान को जब गेहंू की जरूरत पड़ी तो भारत (माइनस, जम्मू और कशमीर) एक “मोस्ट फेवर्ड” देश हो गया। मगर भारत को याद करना चाहिये कि सांप जब काटता है तो झुक कर ही काटता है फिर एक और चमत्कार जवाहर लाल जी की पुत्री ने किया। उन्होने एक पाकिस्तान के रक्तबीज की तरह दो पाकिस्तान कर दिये। अब तीन भाई हो गये और तीनो तरफ से भारत को काट रहे है। आपको याद होगा कि आजाद होने के तत्काल बाद बांग्लादेशी हमारे देश के पचास सैनिको को उनकी सीमा में घसीट कर ले गये थे, वहां उनकी गरदन काटी थी, और सिर भारत की सीमा में फेंक दिये थे।

दरअसल जब भारत का विभाजन ही धर्म के आधार पर हुआ था तो भारत को धर्म निरपेक्ष राष्ट्र बनाने की मूर्खता क्यों की गई। इसे भी हिन्दू राष्ट्र घोषित करना था। भारत हिन्दू राष्ट्र हो जाने पर भी यहां के अन्य धर्मालम्बी नागरिको को उससे अच्छी तरह से रखता जितना कि पाकिस्तान उसके हिन्दु नागरिको या ईसाई नागरिको को नहीं रख रहा है।

भारत नेपाल से अच्छे सम्बन्ध बना कर नहीं रख पाया। जिससे वह माओवादियों की गोद में चला गया। यानि एक और चीन आपकी मूर्खता से उत्तर में खड़ा हो गया। जहां भारत काश्मीर में मुद्रा की नदियां बहा रहा है वहां उतनी ही उदारता पूर्वोत्तर राज्यों में क्यों नहीं दिखा रहा। वहां एक लिटर पेट्रोल रू. 100 से अधिक कीमत में मिल रहा है। इन्हीं कमजोरियों के कारण अब चीन वहां खुद का दावा ठोक रहा है। मेरा फिर कहना है कि बहुत हो चुका, अब काश्मीर का एक विशेष राज्य का दर्जा खत्म होना चाहिये। या फिर जितने भी सीमा प्रान्त है उन सबको विशेष राज्य का दर्जा दिया जाना चाहिये।

भारत के सम्बन्ध म्यामार एवं श्रीलंका से भी भाई चारे के नहीं है। श्रीलंका में तो भारत के प्रधानमंत्री पिट भी चुके है। यहां भ्रष्टाचार इतना है कि मंत्रियों से लेकर चपरासी तक भ्रष्ट है और अराजकता इतनी कि विदेशियों और विधायको तक को अगुवा किया जा रहा है। कानून व्यवस्था चिन्दी चिन्दी हो गई है। सांसद मंत्री और एम.एल.ए. तक हत्याओं, बलात्कार, अपहरण संसद और विधान सभाओं में ब्लू फिल्म देखने में मशहूर है

ये सब आस्तीन के सांप है मगर नीलकण्ठ की तरह से विष उगलते नहीं बन रहा है। कारण है केन्द्र की भ्रष्ट और इसीलिये लचर सरकार। जितनी क्रूरता से अव्यौहारिक बजट और खाद्य सुरक्षा कानून लागू किये जा रहे है उतनी ही मजबूती से आन्तरिक भ्रष्टाचार से निपटा होताind तो नक्सलवाद जैसे नासूर न पननते। इस समय तो शक होता है कि संविधान की कोई उपयोगिता भी है क्या ?

 

 

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