खतरनाक है घाटी में रोहिंग्या मुस्लिमों के पक्ष में एकजुटता

0
137

प्रमोद भार्गव

जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में घाटी में घुसपैठ करके आए रोहिंग्या मुस्लिमों के पक्ष में और म्यांमार में इनके विरुद्ध चल रही सैनिक दमन कार्यवाही के विरोध में अलगाववादियों का प्रदर्शन हैरानी में डालने वाला है। यह प्रदर्शन तब और आश्चर्य में डालता है, तब एसआईटी ने सात अलगाववादियों के खिलाफ कार्यवाही को अंजाम दिया है। इससे साफ होता है कि अलगाववादियों की एक बड़ी श्रृंखला घाटी में अभी भी मौजूद है, जो पाकिस्तान से आर्थिक मदद लेकर स्थानीय लोगों को प्रदर्शन के लिए उकसाने का काम कर रही है। इस प्रदर्शन में जनता और पुलिस के बीच टकराव हुआ डीएसपी मोहम्मद यूसुफ को भीड़ ने इतना पीटा कि उनका घायल अवस्था में इलाज चल रहा है। शुक्रवार 8 सितंबर को जुमे की नमाज के बाद यह उपद्रव हुआ। शरारती तत्वों ने पुलिस पर पथराव भी किया। रोहिंग्याओं के पक्ष में इस प्रदर्शन और पथराव से साबित होता है कि अलगाववादी घुसपैठिये रोहिंग्याओं के समर्थन में तो हैं, लेकिन कश्मीर मूल के विस्थापित पंडितों के वापसी के पक्ष में नहीं है। लिहाजा रोहिंग्याओं को सख्ती से खदेड़ने की जरूरत है, अन्यथा ये मुस्लिम घाटी के लिए ही नहीं, बल्कि देश जिन-जिन क्षेत्रों में भी इन घुसपैठियों ने डेरा डाला हुआ है, वहां-वहां ये भविष्य में बड़े संकट का सबब बन जाएंगे।

म्यांमार में सेना के दमनात्मक रवैये और पड़ोसी बांग्लादेश सरकार का रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ सख्त रवैये के चलते भारत में लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं। पिछले पांच साल में भारत में रोहिंग्या मुसलमानों की संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई हैं। जम्मू-कश्मीर में 15,000 और आंध्रप्रदेश में 3800 से ज्यादा रोहिंग्या मुसलमानों ने अवैध रूप से घुसपैठ करके शरण ले रखी है। ये शरणार्थी भारत छोड़ने को तैयार नहीं हैं। जबकि भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में रोहिंग्या विद्रोहियों और सेना के बीच टकराव थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस टकराव में अब तक 400 से भी ज्यादा रोहिंग्याओं की मृत्यु हो चुकी है। सेना ने इन्हें ठिकाने लगाने के लिए जबरदस्त मुहिम छेड़ रखी है। नतीजतन डेढ़ लाख से भी ज्यादा रोहिंग्या म्यांमार से पलायन कर चूके हैं। म्यांमार की बहुसंख्यक आबादी बौद्ध धर्मावलंबी है। जबकि इस देश में एक अनुमान के मुताबिक 11 लाख रोहिंग्या मुस्लिम रहते हैं। इनके बार में धारणा है कि ये मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं। इन्होंने वहां के मूल निवासियों के आवास और आजीविका के संसाधनों पर जबरन कब्जा कर लिया है। इस कारण सरकार को इन्हें देश से बाहर निकालने को मजबूर होना पड़ा है। भारत की सुरक्षा एजेंसियों ने इन शरणार्थियों पर आंतकी समूहों से संपर्क होने की आशंका जताई है। कुछ दिनों पहले गृह राज्य मंत्री किरण रिजीजू ने संसद में जानकारी दी थी, कि सभी राज्यों को रोहिंग्या समेत सभी अवैध शरणार्थियों को वापस भेजने का निर्देश दिया है। सुरक्षा खतरों को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है।

आशंका जताई गई है कि 2015 में बोधगया में हुए बम विस्फोट में पाकिस्तान स्थित आंतकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने रोहिंग्या मुस्लिमों को आर्थिक मदद व विस्फोटक सामग्री देकर इस घटना को अंजाम दिया था। जम्मू के बाद सबसे ज्यादा रोहिंग्या शरणार्थी हैदराबाद में रहते हैं। केंद्र और राज्य सरकारें जम्मू-कश्मीर में रह रहे म्यांमार के करीब 15,000 रोहिंग्या मुसलमानों की पहचान करके उन्हें अपने देश वापस भेजने के तरीके तलाश रही हैं। रोहिंग्या मुसलमान ज्यादातर जम्मू और साम्बा जिलों में रह रहे हैं। ये लोग म्यांमार से भारत-बांग्लादेश सीमा, भारत-म्यांमार सीमा या फिर बंगाल की खाड़ी पार करके अवैध तरीके से भारत आए हैं। अवैध तरीके से रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों के मुददे पर केंद्रीय गृह सचिव राजीव महर्षि ने उच्चस्तरीय बैठक बुलाई थी। इस बैठक में जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव बलराज शर्मा और पुलिस महानिदेशक एसपी वैद्य ने भी हिस्सा लिया था। आंध्र प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के अलावा असम, पष्चिम बंगाल, केरल और उत्तर प्रदेश में कुल मिलाकर लगभग 40,000 रोहिंग्या भारत में रह रहे हैं।  जम्मू-कश्मीर देश का ऐसा प्रांत है, जहां इन रोहिंग्या मुस्लिमों को वैध नागरिक बनाने के उपाय स्थानीय सरकार द्वारा किए जा रहे हैं। इसलिए अलगाववादी इनके समर्थन में उतर आए हैं। इस परिप्रेक्ष्य में अक्टूबर 2015 में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कहा था कि जम्मू में 1219 रोहिंग्या मुस्मिल परिवारों के कुल 5107 सदस्य रह रहे हैं, जिनमें से 4912 सदस्यों को संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त ने शरणार्थी का दर्जा दिया है। जून 2016 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा में मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने बताया था कि म्यांमार और बांग्लादेश से आए करीब 13,400 शरणार्थी राज्य के विभिन्न शिविरों में रह रहे हैं। यह गौर करने लायक है कि जम्मू-कश्मीर के मौजूदा हालात में विस्थापित पंडित कश्मीर में अपने घरों में वापस नहीं लौट पा रहे हैं, जबकि रोहिंग्या मुस्लिम घुसपैठिये आश्रय पाने में सफल हो रहे हैं। यह तब हो रहा है, जब जम्मू-कश्मीर में भाजपा के सहयोग से महबूबा मुफ्ती सरकार चला रही हैं। इनका यहां बसना इसलिए खतरनाक है, क्योंकि यहां इस्लाम धर्म और पाकिस्तानी षह के कारण आतंकवादी और अलगाववादी संघर्श छेड़े हुए हैं। ऐसे में धर्म के आधार पर आतंकी इन्हें भारत के खिलाफ बरगला सकते हैं। यह  आशंका इसलिए भी संभव है क्योंकि हाफिज सईद को आईएसआई का समर्थन प्राप्त है, इसलिए वह कालांतर में जम्मू-कश्मीर के शरणार्थी शिविरों में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों के युवाओं को जिहाद के लिए भड़काने का काम कर सकता है ? लिहाजा इन्हें शरणार्थी के रूप में यहां बसाना देशहित में नहीं है।

पांच साल से भी ज्यादा वर्षों से यहां रह रहे शरणार्थियों ने भारत सरकार से मानवीय आधार पर वापस भेजने की योजना को टालने का अनुरोध किया है। क्योंकि म्यांमार और बांग्लादेश इन रोहिंग्याओं को भारत सरकार के कहने पर भी  किसी भी हाल में वापस लेने को तैयार नहीं हैं। ऐसी परिस्थिति में संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठन भारत पर दबाव डाल रहे हैं कि वह इन मुसलमानों को योजनाबद्ध तरीके से भारत में बसाने का काम करें। जबकि इसके उलट मानवाधिकार समूह ह्यूमन राइट्स वाॅच ने हाल ही में उपग्रह द्वारा ली गई तस्वीरों के आधार पर दावा किया है कि म्यांमार की सेना ने रोहिंग्याबहुल करीब 3,000 गांवों में आग लगा दी हैं। जिनमें से 700 से भी ज्यादा घर जलकर तबाह हो गए हैं। इस सैन्य अभियान के कारण 40,000 रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश की सीमा पर डेरा डाले हुए हैं और 20,000 से भी ज्यादा रोहिंग्या शरणार्थी म्यांमार व बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाकों में फंसे हैं। इस हकीकत के समाचार भी टीवी और अखबारों में आ चुके हैं। इस हकीकत से रूबरू से होने के बाबजूद संयुक्त राष्ट्र और ह्यूमन राइट्स वाॅच म्यांमार पर तो कोई नकेल नहीं कस पा रहे हैं किंतु भारत पर इन घुसपैठियों पर सिलसिलेबार बसाने का दबाव बना रहे हैं। यही नहीं म्यांमार सरकार ने संयुक्त राष्ट्र के इस दावे को झुठलाते हुए कहा है कि रोहिंग्या विद्रोहियों ने सेना के 13 जवानों, दो अधिकरियों और 14 नागरिकों की हत्या की है। नतीजतन जवाबी कार्रवाई में सेना को सख्त कदम उठाना पड़ा है।

बौद्ध बहुल म्यांमार में रोहिंग्याओं पर कई तरह के प्रतिबंध हैं और रोहिंग्या म्यांमार सरकार पर नस्लीय हिंसा का आरोप भी लगा रहे हैं। बाबजूद सेना विद्राहियों का दमन करने में लगी है। हैरानी इस बात पर भी है कि हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने म्यांमार की दो दिनी यात्रा की है, लेकिन उन्होंने द्विपक्षीय वार्ता में इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रखी।  जबकि विश्व के तेरह नोबेल पुरस्कार विजेताओं और दस वैश्विक नेताओं ने एक संयुक्त बयान में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् से रोहिंग्या मुस्लिमों के खिलाफ हो रही हिंसा पर म्यांमार को सख्त संदेश देने की मांग की है। राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव और रखाइन राज्य को लेकर बने म्यांमार एडवाइजरी कमीषन के अध्यक्ष काॅफी अन्नान ने कहा है कि ‘पत्रकारों को नरसंहार का ठप्पा लगाने से बचना चाहिए। विश्व अब जान चुका है कि वहां अब क्या हो रहा ?‘ बांग्लादेश पहुँचने वाले शरणार्थियों ने वहां के भयावह हालात बयान किए हैं। विश्व के प्रतिष्ठित लोगों की मांग, एक तरह से बांग्लादेश की सरकार की मांग का ही दोहराव है। बांग्लादेश सरकार मांग करती रही है कि म्यांमार अपने नागरिकों को वापस बुला ले क्योंकि वो बांग्लादेशी नहीं हैं, जैसा कि झूठ म्यांमार बोलता रहा है। रोहिंग्याओं पर सरकार का आरोप है कि रोहिंग्याओं के कई समूह बौद्ध महिलाओं के साथ दुराचार करने के साथ पुलिस पर भी हमला कर रहे हैं। रोहिंग्याओं की इन हरकतों से साफ है कि इनकी कश्मीर और हैदराबाद जैसे मुस्लिम क्षेत्रों में बसाहट कभी भी जिहांदी प्रकृति का हिस्सा बन सकती है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,046 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress