राजस्थान को जल संकट से मुक्ति दिलाने के लिए मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे का ड्रीम प्रोजेक्ट मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान (एमजेएसए) प्रदेश के कोने-कोने में जलक्रान्ति का शंखनाद कर रहा है।
मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान राजस्थान के लिए वह महत्वाकांक्षी अभियान सिद्ध हो रहा है जो प्रदेश की सबसे बड़ी पानी की समस्या से मुक्ति दिलाने का महाभियान बनकर जनजीवन के लिए सुकून के रास्ते दिखा रहा है।यह इस अभियान का दूसरा वर्ष है।
ग्रामीण क्षेत्रों की ही तरह शहरी क्षेत्रों में भी मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान परवान पर है। प्रदेश भर के शहरी क्षेत्रों में नगर निकायों की ओर से परंपरागत जल स्रोतों के उद्धार, पुरातन जलापूर्ति प्रबन्धन को बहाल करने और बरसाती जल संग्रहण तथा दीर्घकाल तक संचय करने के तमाम उपायों को मूर्त रूप दिया जा रहा है।
जिला कलक्टर की पहल रंग लायी
राजसमन्द जिला कलक्टर श्रीमती अर्चना सिंह ने व्यक्तिगत रुचि लेेकर पहल की और मुख्यमंत्री के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को लेकर यह बीड़ा उठाया कि राजसमंद की ऎतिहासिक धरोहरों का संरक्षण करते हुए इन पुरानी बावड़ियों का गुणवत्ता, उपयोगिता और सुन्दरीकरण के साथ बहुआयामी उपयोग सुनिश्चित करने ठोस एवं अनुकरणीय काम किया जाए।
जल तीर्थ को मिली नई पहचान
मुख्यमंत्री की मंशा और जिला कलक्टर के निर्देशों के अनुसार नगर परिषद ने राजसमन्द शहर की परंपरागत और ऎतिहासिक महत्व की बावड़ियों की साफ-सफाई व विकास गतिविधियों को जिस बेहतरी से मूर्त रूप दिया है उससे न केवल पुरानी बावड़ियों का संरक्षण व विकास हुआ है बल्कि शहरवासियों के लिए दर्शनीय और आत्मीय सुकून देने वाले आधुनिक पर्यटन स्थल के रूप में भी ये बावड़ियां नई पहचान दे रही हैं।
निखर आयी राणा राजसिंह की बावड़ी
राजसमन्द जिला मुख्यालय पर राजनगर के माणक नगर स्थित राणा राजसिंह की प्राचीन बावड़ी को गुमनामी के अंधेरे से बाहर निकाल कर नगर परिषद ने इस कदर विकास कर दिया है कि आज यह बावड़ी आकर्षक जलाशय के रूप में परिवर्तित होने के साथ ही शहरवासियों के लिए सुकूनदायी मुकाम बन गई है।
झाड़-झंखाड़, सडान्ध मार रहे पानी, जीर्ण-शीर्ण दीवारों और सीढ़ियों तथा खराब हालत में पहुंच चुकी यह बावड़ी अपनी उपयोगिता ही खो चुकी थी। इस ऎतिहासिक बावड़ी का काम मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान द्वितीय चरण के अन्तर्गत 9 दिसम्बर 2016 को हाथ में लिया और छह लाख रुपए की धनराशि खर्च कर पूरी बेहतरी के साथ पाँच माह में ही पूरा कर दिखाया।
राणा राजसिंह की बावड़ी की सम्पूर्ण सफाई की गई, बरसों से जमा कचरा और गन्दा पानी बाहर निकाला गया। बावड़ी की ऎतिहासिक महत्व की काली पड़ चुकी संरचनाओं को सेण्ड वाशर से साफ किया। इससे पाषाणों का कालापन हटा और सौंदर्य निखर आया।
पूरी बावड़ी के भीतर-बाहर एरिस प्लास्टर किया गया। पानी के रोटेशन का प्रबन्ध करते हुए वाटर हाइड्रेन्ट सिस्टम फव्वारा स्थापित किया गया ताकि आक्सीजन की पर्याप्त मात्रा बनी रहे और पानी हमेशा साफ रहे। बावड़ी के आस-पास इन्टरलॉक टाईल्स लगाई गई, रैलिंग के साथ ही बैठने के लिए अनेक बैंच लगाई गई हैं। इसके पास ही प्राचीन छतरियां भी हैं और इनसे जुड़े हुए श्रद्धालुओं के लिए भी राणा राजसिंह की बावड़ी उपयोगी सिद्ध होगी।
एमजेएसए की बदौलत शहर की इस ऎतिहासिक बावड़ी का पुराना वैभव लौट आया है तथा यह सुन्दर जल तीर्थ के रूप में विकसित हो चुकी है। इसके पानी का उपयोग नगर परिषद के अग्निशमन यंत्र के लिए जलसंग्रहण कार्य में भी हो सकेगा।
एमजेएसएस की सौगात
हाल ही अम्बेड़कर जयन्ती के दिन उच्च शिक्षा मंत्री श्रीमती किरण माहेश्वरी ने बटन दबाकर इसका शुभारंभ किया और इसे शहरवासियों को एमजेएसए की सौगात बताया। इसी दिन उन्हाेंने ओड़ बावड़ी के काम का शिलान्यास भी किया। उच्च शिक्षा मंत्री ने यह संकल्प दोहराया कि मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान के अन्तर्गत ग्राम्यांचलों की ही तरह राजसमन्द शहरी क्षेत्र में विभिन्न बावड़ियों का उद्धार किया जाएगा और इनका विकास तथा सुन्दरीकरण करते हुए परंपरागत उपयोगिता को बहाल किया जाएगा।
ऎतिहासिक बावड़ियां करेंगी जयगान
इसी तरह नगर परिषद द्वारा शहर की आसोटिया गौशाला के समीप पुरानी बावड़ी के जीर्णोद्धार का काम भी हाथ में लिया गया है। इसके लिए 2 लाख रुपए की धनराशि स्वीकृत है जिससे बावड़ी की साफ-सफाई व अन्य कार्य प्रगति पर हैं।
नगर परिषद के सभापति श्री सुरेश पालीवाल के अनुसार मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान में राजसमन्द शहर को हमेशा अव्वल रखने के लिए हरसंभव प्रयास जारी हैं और नगर परिषद इन प्राचीन जल स्रोतों के पुरातन वैभव को बहाल करने के साथ ही इनके बहुआयामी उपयोग को सुनिश्चित कर रहा है।
परिषद आयुक्त श्री बृजेश राय बताते हैं कि राजसमन्द नगर परिषद सहित जिले की नगरपालिकाओं द्वारा भी एमजेएसए द्वितीय चरण में जल स्रोतों के शुद्धिकरण, सुन्दरीकरण और विकास की कई गतिविधियां हाथ में ली गई हैं और इन पुरातन जल स्रा्रेतों का आदर्श विकास किया जा रहा है।