बूँद-बूँद में सीख
Updated: March 21, 2025
●●●इस धरती पर हैं बहुत, पानी के भंडार।पीने को फिर भी नहीं, बहुत बड़ी है मार॥●●●जल से जीवन है जुड़ा, बूँद-बूँद में सीख।नहीं बचा तो…
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छोड़ो व्यर्थ पानी बहाना…
Updated: March 21, 2025
बारिश को अब आने दो।तपती गर्मी जाने दो॥ छोड़ो व्यर्थ पानी बहाना,जीवन को बच जाने दो॥ ये बादल भी कुछ कह रहे।इनको मन की गाने…
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ऋषभ हैं सभ्यता और संस्कृति के पुरोधा पुरुष
Updated: March 21, 2025
भगवान ऋषभदेव जन्म जयन्ती 22 मार्च, 2025 पर विशेष-ललित गर्ग-जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ यानी भगवान ऋषभदेव विश्व संस्कृति के आदि पुरुष, आदि संस्कृति निर्माता थे।…
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29 मार्च 2025 से मीन राशि में बनेगा विनाशकारी पिशाच योग
Updated: March 20, 2025
ज्योतिर्विद मनीष भाटिया वैदिक ज्योतिष के अनुसार 29 मार्च 2025 को शनि का गोचर मीन राशि में…
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बिहार में पुरानी खोई हुई जमीन तलाशती कांग्रेस
Updated: March 20, 2025
कुमार कृष्णन बिहार विधानसभा चुनाव से पहले बिहार में कांग्रेस के प्रयोग अपने ही गठबंधन के साथियों के लिए उनकी ही चुनौतियों को बढ़ाते जा…
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एक्टर से प्रोडयूसर बने राजकुमार राव
Updated: March 20, 2025
सुभाष शिरढोनकर 31 अगस्त 1984 को हरियाणा के गुड़गांव में पैदा हुए एक्टर राजकुमार राव एक्टर बनने का सपना लिए पहली बार साल 2008 में मुंबई आए थे। स्ट्रगल के…
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वन-संस्कृति को अक्षुण्ण रखना बड़ी चुनौती
Updated: March 20, 2025
अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस 2025- 21 मार्च, 2025ललित गर्ग भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता में वनों का सर्वाधिक महत्व रहा है, वन ऑक्सीजन, भोजन, ईंधन, दवाइयां, सुगंध,…
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मन बदलती कठपुतली को याद करने का समय
Updated: March 20, 2025
21 मार्च विश्व कठपुलती दिवस पर विशेषप्रो. मनोज कुमारडोर में बंधी कठपुतली इशारों पर कभी नाचती, कभी गुस्सा करती और कभी खिलखिलाकर हमें सम्मोहित करती..यह…
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नफरत, असमानता एवं नस्लीय भेदभाव से लड़ें
Updated: March 20, 2025
ललित गर्ग नस्लवाद मानवता के माथे पर एक बदनुमा दाग है, यह सिर्फ़ उन लोगों के जीवन को ही नुकसान नहीं पहुंचाता जो इसे झेलते…
Read moreगोरैया: कहां गायब हो गई यह छोटी चिडिय़ा?
Updated: March 20, 2025
विश्व गोरैया दिवस 20 मार्च पर विशेष:अमरपाल सिंह वर्मा हमारे आसपास के परिवेश में हम जितने पक्षी देखते थे, उनमें से कई पक्षी गायब हो रहे हैं। पक्षियों का विलुप्त होना पर्यावरण के संतुलन के लिए एक गंभीर संकट है। ये नन्हे पंखों वाले जीव न केवल प्रकृति की शोभा बढ़ाते हैं बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र को भी बनाए रखते हैं। जंगलों की कटाई, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और शिकार के कारण परिंदों की कई प्रजातियां लुप्तप्राय: हो चुकी हैं। घरेलू चिडिय़ा गौरैया भी ऐसे पक्षियों मेंं शामिल है, जो हमारी आंखों से ओझल होते जा रहे हैं। यदि हमने समय रहते ध्यान नहीं दिया तो प्रकृति का यह अनमोल खजाना हमेशा के लिए खो सकता है। पक्षियों के संरक्षण के लिए उनके प्राकृतिक आवास बचाने, कीटनाशकों के उपयोग को कम करने और जन जागृति फैलाने की जरूरत है।एक समय था जब हर घर, आंगन, खेत-खलिहान और बगीचे गोरैया की चहचहाहट से गुंजायमान होते थे। यह नन्ही चिडिय़ा हमारे बचपन की यादों का अभिन्न हिस्सा थी लेकिन अब यह प्यारी चिडिय़ा लुप्त होती जा रही है। शहरों में तो यह लगभग अदृश्य हो चुकी है और गांवों में भी इसकी संख्या तेजी से घट रही है।गोरैया की संख्या में गिरावट अचानक नहीं आई, बल्कि यह आधुनिक जीवनशैली और पर्यावरणीय असंतुलन का परिणाम है। पहले लोग मिट्टी और लकड़ी के बने घरों में रहते थे, जहां गोरैया को घोंसले बनाने के लिए पर्याप्त जगह मिलती थी पर कंकरीट के आधुनिक घरों में गोरैया के घोंसला बनाने की गुंजाइश नहीं बची है।माना जाता है कि मोबाइल टावरों से निकलने वाली तरंगें छोटे पक्षियों, विशेषकर गोरैया की जैविक संरचना पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही हैं। वायु प्रदूषण और जहरीले धुएं के कारण भी इनका जीवन संकट में आ गया है। पहले खेतों और बगीचों में गोरैया को अनाज, कीड़े-मकोड़े और फसलों के अवशेष आसानी से मिल जाते थे लेकिन कीटनाशकों और रासायनिक खादों के बढ़ते प्रयोग से हालात बदल गए हैं। कंक्रीट के जंगलों के विस्तार के कारण इनके घोंसले बनाने के लिए भी जगह नहीं बची। गर्मी में पानी की कमी भी इनके अस्तित्व के लिए खतरा बन रही है।गोरैया पर संकट के बारे में अब हर कोई जानता है। हर साल 20 मार्च को दुनिया भर में विश्व गौरैया दिवस मनाए जाने से लोग इस बारे में जागरूक हुए हैं। आम लोग गोरैया के संरक्षण के लिए प्रयास कर रहे हैं मगर फिर भी भारत समे दुनिया भर में इस चिडिय़ा की तादाद घटती जा रही है। गोरैया को बचाना बहुत जरूरी है क्यों कि यह केवल एक छोटी सी चिडिय़ा नहीं बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह खेतों और बगीचों में हानिकारक कीटों को खाकर संतुलन बनाए रखती है। अगर यह विलुप्त हो गई तो कीटों की संख्या में वृद्धि होगी जिससे फसलों को नुकसान होगा और जैव विविधता पर नकारात्मक असर पड़ेगा।गोरैया को बचाने के उपायों में तेजी लाए जाने की जरूरत है। इसके लिए हमें इसे घरों में घोंसले बनाने की जगह देनी होगी। हमें लकड़ी के छोटे घर, घोंसला बॉक्स तथा मिट्टी के बर्तन छतों और बालकनी में रखकर गोरैया को लौटने का न्योता देना चाहिए। जैविक खेती को बढ़ावा देकर और कीटनाशकों के सीमित उपयोग से गोरैया को बचाने में बड़ा कदम हो सकता है। हमें छतों और बगीचों में छोटे-छोटे पानी के पात्र रखने चाहिए ताकि गर्मियों में पक्षियों को पीने का पानी मिल सके। सरकार और वैज्ञानिकों को मिलकर ऐसे उपाय करने चाहिए जिससे टावरों से निकलने वाली तरंगों का प्रभाव पक्षियों पर कम पड़े। स्कूलों, कॉलेजों और सामाजिक संगठनों को मिलकर गोरैया संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान चलाने चाहिए।गोरैया को बचाना केवल पर्यावरण की नहीं, बल्कि हमारी भावनाओं और संस्कृति की भी जरूरत है। यह चिडिय़ा हमारे बचपन की साथी रही है, हमारे आंगन की रौनक रही है। इसे वापस लाना है तो इसके लिए हमें अपने घरों, दिलों और समाज में जगह बनानी होगी। यदि हम मिलकर थोड़े से प्रयास करें तो एक दिन फिर से हमारे आंगन में गोरैया फुदकती नजर आएगी और उसकी चहचहाहट से हमारी सुबहें महक उठेंगी। अमरपाल सिंह वर्मा
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भारत में हर 4 मिनट में होती है सड़क पर एक मौत
Updated: March 20, 2025
जयसिंह रावत जीवन के सबसे बड़े सत्य का नाम मृत्यु है जिसे कोई नहीं रोक सकता। यह ऐसा सत्य है जिसकी कल्पना मात्र से मरने…
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“ग्रोक” xAI द्वारा निर्मित कृत्रिम बुद्धि
Updated: March 20, 2025
विवेक रंजन श्रीवास्तव Grok को xAI नामक कंपनी ने विकसित किया है जो संयुक्त राज्य अमेरिका में है। xAI की स्थापना एलन मस्क और अन्य…
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