लेख दयालुता मुस्कानों से भरकर ईश्वरतुल्य बनाती है

दयालुता मुस्कानों से भरकर ईश्वरतुल्य बनाती है

ईश्वरतुल्य विश्व दयालुता दिवस -13 नवम्बर, 2024-ललित गर्ग – विश्व दयालुता दिवस दुनिया के मानव समुदायों में अच्छे कार्यों को उजागर करने के लिए मनाया…

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राजनीति आदिवासियों का निर्णायक वोट तय करेगा चुनावी नतीजा

आदिवासियों का निर्णायक वोट तय करेगा चुनावी नतीजा

कुमार कृष्णन  झारखंड के विधानसभा चुनाव में आदिवासी मतदाताओं और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों का अहमियत है, यानी आदिवासी वोटर के पास सत्ता…

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राजनीति सार्क की चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकता है भारत ?

सार्क की चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकता है भारत ?

भारत अलग-अलग सार्क सदस्यों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने, विश्वास और सहयोग को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित कर सकता है जिससे अधिक…

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सार्थक पहल प्राथमिक शिक्षा के ढांचे को बेहतर बनाने की ज़रूरत

प्राथमिक शिक्षा के ढांचे को बेहतर बनाने की ज़रूरत

ममता अजमेरइसी सप्ताह राजधानी जयपुर में राइजिंग राजस्थान समिट के तहत एजुकेशन समिट का आयोजन किया गया, जहां पर शिक्षा, उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा सहित कौशल…

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लेख सनातन की अच्छाई धारण कर मानवता बचाई जा सकती

सनातन की अच्छाई धारण कर मानवता बचाई जा सकती

—विनय कुमार विनायकसनातन धर्म के सारे पंथ मत की अच्छाई को धारण करकेमानवता बचाई जा सकती विश्व में सच्चाई लाई जा सकतीहिन्दू धर्म की खासियत…

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प्रवक्ता न्यूज़ पाकिस्तान की राह पर कनाडा ?

पाकिस्तान की राह पर कनाडा ?

राकेश सैन कनाडा में जिस तरीके से खालिस्तानी अलगाववादियों व आतंकी तत्वों को खुल कर मनमानी करने का अधिकार मिलता जा रहा है और इस…

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राजनीति विशेष दर्जे की बहाली का प्रस्ताव अंधेरों की आहट

विशेष दर्जे की बहाली का प्रस्ताव अंधेरों की आहट

-ललित गर्ग – नेशनल कॉन्फ्रेंस एवं उमर अब्दुला सरकार ने सदन में अपने बहुमत का लाभ उठाते हुए बुधवार को बिना अनुच्छेद 370 की पुर्नबहाली…

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आर्थिकी जनजाति समाज के लिए चलाई जा रही आर्थिक विकास की योजनाएं

जनजाति समाज के लिए चलाई जा रही आर्थिक विकास की योजनाएं

जनजाति समाज बहुत ही कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए देश में दूर दराज इलाकों के सघन जंगलो के बीच वनों में रहता है। जनजाति समाज के सदस्य बहुत ही कठिन जीवन व्यतीत करते रहे हैं एवं देश के वनों की सुरक्षा में इस समाज का योगदान अतुलनीय रहा है। चूंकि यह समाज भारत के सुदूर इलाकों में रहता है अतः देश के आर्थिक विकास का लाभ इस समाज के सदस्यों को कम ही मिलता रहा है। इसी संदर्भ में केंद्र सरकार एवं कई राज्य सरकारों ने विशेष रूप से जनजाति समाज के लिए कई योजनाएं इस उद्देश्य से प्रारम्भ की हैं कि इस समाज के सदस्यों को राष्ट्र विकास की मुख्य धारा में शामिल किया जा सके एवं इस समाज की कठिन जीवनशैली को कुछ हद्द तक आसान बनाया जा सके। भारत में सम्पन्न हुई वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जनजातियों की कुल जनसंख्या 10.43 करोड़ है, जो भारत की कुल जनसंख्या का 8.6 प्रतिशत है।  जनजाति समाज के सदस्यों को भारतीय राजनीति की मुख्यधारा में शामिल किए जाने के प्रयास भी किए जाते रहे हैं एवं इस समाज के कई प्रतिभाशाली सदस्य तो कई बार केंद्र सरकार के मंत्री, राज्यपाल एवं प्रदेश के मुख्यमंत्री के पदों तक भी पहुंचे हैं। आज भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू भी आदिवासी समाज से ही आती हैं।   केंद्र सरकार द्वारा जनजाति समाज को केंद्र में रखकर उनके लाभार्थ चलाई जा रही विभिन योजनाओं की विस्तृत जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से एक विशेष पोर्टल का निर्माण किया है। जिसकी लिंक है – भारत सरकार का राष्ट्रीय पोर्टल https://www.इंडिया.सरकार.भारत/ – इस लिंक को क्लिक करने के बाद “खोजें” के बॉक्स में जनजाति समाज को दी जाने वाली सुविधाएं टाइप करने से, भारत सरकार द्वारा प्रदान की जा रही विभिन्न सुविधाओं की सूची निकल आएगी एवं इन योजनाओं का लाभ उठाने के लिए उपयोग किए जाने वाले प्रपत्रों की सूची भी डाउनलोड की जा सकती है।  जनजाति समाज के लिए केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं को दो प्रकार से चलाया जा रहा है। कई योजनाओं का सीधा लाभ जनजाति समाज के सदस्यों को प्रदान किया जाता है। साथ ही, कुछ योजनाओं के अंतर्गत राज्य सरकारों को विशेष केंद्रीय सहायता एवं अनुदान प्रदान किया जाता है और इन योजनाओं को राज्य सरकारों द्वारा क्रियान्वित किया जाता है। जैसे, जनजातीय उप-योजना के माध्यम से राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को जनजातीय विकास हेतु किए गए प्रयासों को पूरा करने के लिए विशेष केंद्रीय सहायता प्रदान की जाती है। इस सहायता का मूल प्रयोजन पारिवारिक आय सृजन की निम्न योजनाओं जैसे कृषि, बागवानी, लघु सिंचाई, मृदा संरक्षण, पशुपालन, वन, शिक्षा, सहकारिता, मत्स्य पालन, गांव, लघु उद्योगों तथा न्यूनतम आवश्यकता संबंधी कार्यक्रमों से है। इसी प्रकार, जनजातीय विकास हेतु परियोजनाओं की लागत को पूरा करने तथा अनुसूचित क्षेत्र के प्रशासन स्तर को राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों के बराबर लाने के लिए राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को भी अनुदान दिया जाता है। जनजातीय समाज के विद्यार्थियों को गुणवत्तापरक शिक्षा प्रदान करने के लिए आवासीय विद्यालय स्थापित करने हेतु भी उक्त निधियों के कुछ हिस्से का प्रयोग किया जाता है। राज्य सरकारों को वित्त उपलब्ध कराने सम्बंधी उक्त दो योजनाओं का केवल उदाहरण के लिए वर्णन किया गया है, अन्यथा इसी प्रकार की कई योजनाएं केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही हैं। इसी कड़ी में जनजाति समाज के सदस्यों को सीधे ही लाभ प्रदान करने के उद्देश्य से भी केंद्र सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। जिनमे मुख्य रूप से शामिल हैं – (1) आदिवासी उत्पादों और उत्पादन विपणन विकास की योजना; (2) एमएसपी योजना की मूल्य श्रृंखला के विकास के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के माध्यम से लघु वनोपज के विपणन हेतु योजना; (3) आदिवासी उत्पादों या निर्माण योजना के विकास और विपणन के लिए संस्थागत सहयोग की योजना; (4) आदिवासी क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण योजना के अंतर्गत वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने की योजना; (5) जनजातीय क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना की योजना; (6) जनजातीय अनुसंधान संस्थानों के लिए अनुदान योजना; (7) उत्कृष्ट केन्द्रों के समर्थन के लिए वित्तीय सहायता योजना जिसका लाभ जनजातीय विकास और अनुसंधान क्षेत्र में काम कर रहे विश्वविद्यालयों और संस्थानों को दिया जाता है। इस योजना का उद्देश्य विभिन्न गैर सरकारी संगठनों की संस्थागत संसाधन क्षमताओं को बढ़ाना और मजबूत बनाना है ताकि इन अनुसंधान संस्थानों और विश्वविद्यालय के विभागों द्वारा आदिवासी समुदायों पर गुणात्मक, क्रिया उन्मुख और नीति अनुसंधान का संचालन किया जा सके; (8) राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति वित्त एवं विकास निगम (एनएसटीएफडीसी) और राज्य अनुसूचित जनजाति वित्त एवं विकास निगम (एसटीएफडीसी) को न्यायसम्य (इक्विटी) सहायता प्रदान करने की योजना। यह योजना केन्द्र सरकार द्वारा वित्त पोषित है और आदिवासी मामले मंत्रालय द्वारा शुरू की गई है; (9) आदिवासी आवासीय विद्यालयों की स्थापना सम्बंधी योजना; (10) अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए केन्द्रीय क्षेत्र की छात्रवृत्ति योजना; (11) अनुसूचित जनजाति के छात्रों की योग्यता उन्नयन संबंधी योजना; (12) अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए राष्ट्रीय प्रवासी छात्रवृत्ति योजना। उक्त समस्त योजनाओं की विस्तृत जानकारी उक्त वर्णित पोर्टल पर उपलब्ध है।  इसी प्रकार केंद्र सरकार के साथ साथ कई राज्य सरकारें भी जनजाति समाज के लाभार्थ स्वतंत्र रूप से कुछ योजनाओं का संचालन करती है। मध्यप्रदेश, भारत के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में गिना जाता है एवं मध्यप्रदेश में विविध, समृद्ध एवं गौरवशाली जनजातीय विरासत है जिसका कि मध्यप्रदेश में न केवल संरक्षण एवं संवर्धन किया जा रहा है, अपितु जनजातीय क्षेत्रों के समग्र विकास तथा जनजातीय वर्ग के कल्याण के लिए निरंतर कई प्रकार के कार्य भी किए जा रहे हैं। मध्यप्रदेश में भारत की कुल जनजातीय जनसंख्या की 14.64% जनसंख्या निवास करती है। भारत में 10 करोड़ 45 लाख जनजाति जनसंख्या है, वहीं मध्यप्रदेश में 01 करोड़  53 लाख जनजाति जनसंख्या है। भारत की कुल जनसंख्या में जनजातीय जनसंख्या का प्रतिशत 8.63 है और मध्यप्रदेश में कुल जनसंख्या में जनजाति जनसंख्या का प्रतिशत 21.09 है। मध्यप्रदेश में जनजाति उपयोजना क्षेत्रफल, कुल क्षेत्रफल का 30.19% है। प्रदेश में 26 वृहद, 5 मध्यम एवं 6 लघु जनजाति विकास परियोजनाएं संचालित हैं तथा 30 माडा पॉकेट हैं। मध्यप्रदेश में कुल 52 जिलों में 21 आदिवासी जिले हैं, जिनमें 6 पूर्ण रूप से जनजाति बहुल जिले तथा 15 आंशिक जनजाति बहुल जिले हैं। मध्यप्रदेश में 89 जनजाति विकास खंड हैं। मध्यप्रदेश के 15 जिलों में विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा, भारिया एवं सहरिया के 11 विशेष पिछड़ी जाति समूह अभिकरण संचालित हैं। मध्यप्रदेश सरकार जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक विकास के साथ ही उनके स्वास्थ्य एवं जनजाति बहुल क्षेत्रों के विकास के लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं संचालित कर रही हैं। (1) मध्यप्रदेश के विशेष पिछड़ी जनजाति बहुल 15 जिलों में आहार अनुदान योजना संचालित की जा रही है, जिसके अंतर्गत विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा, भारिया और सहरिया परिवारों की महिला मुखिया के बैंक खाते में प्रतिमाह रू. 1000 की राशि जमा की जाती रही है। (2) आकांक्षा योजना के अंतर्गत अनुसूचित जनजाति वर्ग के 11वीं एवं 12वीं कक्षा के प्रतिभावान विद्यार्थियों को राष्ट्रीय प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे जईई, नीट, क्लेट की तैयारी के लिए नि:शुल्क कोचिंग एवं छात्रावास की सुविधा प्रदान की जाती है। (3) प्रतिभा योजना के अंतर्गत जनजाति वर्ग के विद्यार्थियों को उच्च शासकीय शैक्षिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए प्रोत्साहन दिया जाता है। (4) आईआईटी, एम्स, क्लेट तथा एनडीए की परीक्षा उत्तीर्ण कर उच्च शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश पर रू. 50 हजार रूपये की राशि तथा अन्य परीक्षाओं जेईई, नीट, एनआईआईटी, एफडीडीआई, एनआईएफटी, आईएचएम के माध्यम से प्रवेश लेने पर रू. 25 हजार रूपये की राशि प्रदान की जाती रही है। (5) महाविद्यालय में अध्ययन करने वाले अनुसूचित जनजाति के जो विद्यार्थी गृह नगर से बाहर अन्य शहरों में अध्ययन कर रहे हैं, उन्हें वहां आवास के लिए संभाग स्तर पर 2000 रूपये, जिला स्तर पर 1250 रूपये तथा विकास खंड एवं तहसील स्तर पर 1000 रूपये प्रतिमाह की वित्तीय सहायता, आवास सहायता योजना के अंतर्गत प्रदान की जाती रही है। (6) इसी प्रकार की सहायता अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों को विदेश स्थित उच्च शैक्षणिक संस्थानों में अध्ययन के लिए भी प्रदान की जाती है।(7) अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों के शैक्षणिक विकास के लिए प्रदेश के 89 जनजाति विकास खंडों में प्राथमिक शालाओं से लेकर उच्चतर माध्यमिक स्तर की शालाएं संचालित की जा रही हैं जिनमें विद्यार्थियों को प्री-मेट्रिक तथा पोस्ट मेट्रिक छात्रवृत्ति दी जा रही है। (8) मध्यप्रदेश के अनुसूचित जनजाति के ऐसे विद्यार्थियों, जो सिविल सेवा परीक्षा में निजी संस्थाओं द्वारा कोचिंग प्राप्त कर रहे हैं, को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है। साथ ही अनसूचित जनजाति के प्रदेश के ऐसे विद्यार्थी, जो सिविल सेवा परीक्षा की प्राथमिक परीक्षा उत्तीर्ण करते हैं, उन्हें 40 हजार रूपये, जो मुख्य परीक्षा उत्तीर्ण करते हैं उन्हें 60 हजार रूपये तथा साक्षात्कार सफल होने पर 50 हजार रुपए की राशि दी जाती रही है। (9) मध्यप्रदेश में जनजातीय लोक कलाकृतियों एवं उत्पादों को लोकप्रिय करने तथा उनसे जनजाति वर्ग को लाभ दिलाए जाने के उद्देश्य से उनकी जी आई टैगिंग कराई जा रही है। प्रथम चरण में 10 जनजाति लोक कलाकृतियों एवं उत्पादों  की जीआई ट्रैगिंग कराए जाने की प्रक्रिया प्रारंभ की गई है।  इस प्रकार, केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा जनजाति समाज के लाभार्थ अन्य कई प्रकार की विशेष योजनाएं सफलता पूर्वक चलाई जा रही हैं ताकि जनजाति समाज की कठिन जीवन शैली को कुछ आसान बनाया जा सके एवं जनजाति समाज को देश की मुख्य धारा में शामिल किया जा सके।  प्रहलाद सबनानी 

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राजनीति ट्रम्प की जीत के भारत के लिए मायने

ट्रम्प की जीत के भारत के लिए मायने

अमेरिका एक तरह से भारत की तरह है, जो इस सदी की शुरुआत में नई दिशा की तलाश में था; चीजों को हिलाने और एक…

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पर्यावरण डोनाल्ड ट्रम्प की दोबारा नियुक्ति डालेगी एनर्जी ट्रांज़िशन पर असर

डोनाल्ड ट्रम्प की दोबारा नियुक्ति डालेगी एनर्जी ट्रांज़िशन पर असर

इस सप्ताह अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर डोनाल्ड जे. ट्रम्प की दोबारा नियुक्ति के बाद, जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय की “नेट जीरो इंडस्ट्रियल पॉलिसी लैब” ने खुलासा…

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लेख अपराध और अपराधियों को बचाने में अधिकारियों की संलिप्तता

अपराध और अपराधियों को बचाने में अधिकारियों की संलिप्तता

इन दिनों हम देखते है कि देश भर में उच्च पदों पर बैठे कुछ अफसरों के भ्र्ष्टाचार और यौन अपराधों में ख़ुद के शामिल होने…

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आर्थिकी भारत की आर्थिक प्रगति में समाज से अपेक्षा

भारत की आर्थिक प्रगति में समाज से अपेक्षा

विश्व के लगभग समस्त देशों में पूंजीवादी मॉडल को अपनाकर आर्थिक विकास को गति देने का प्रयास पिछले 100 वर्षों से भी अधिक समय से हो रहा है। पूंजीवाद की यह विशेषता है कि व्यक्ति केवल अपनी प्रगति के बारे में ही विचार करता है और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी के एहसास को भूल जाता है। जिससे, विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के चलते समाज में असमानता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। विनिर्माण इकाईयों में मशीनों के अधिक उपयोग से उत्पादन में तो वृद्धि होती है परंतु रोजगार के पर्याप्त अवसर निर्मित नहीं हो पाते हैं। रोजगार की उपलब्धता में कमी के चलते समाज में कई प्रकार की बुराईयां जन्म लेने लगती  हैं क्योंकि यदि किसी नागरिक के पास रोजगार ही नहीं होगा तो वह अपनी भूख मिटाने के लिए चोरी चकारी एवं  हिंसा जैसी गतिविधियों में लिप्त होने लगता है। पूंजीवाद की नीतियों के अनुपालन के चलते वर्तमान में विश्व के कई देशों में सामाजिक तानाबाना छिन्न भिन्न हो रहा है। परंतु, प्राचीनकाल में भारत में उपयोग में लाए जा रहे आर्थिक मॉडल को अपनाए जाने के कारण भारत में प्रत्येक नागरिक को रोजगार उपलब्ध रहता था। भारत में अतिप्राचीन काल से ग्रामीण क्षेत्र ही विकास के केंद्र रहते आए हैं। भारत का कृषि क्षेत्र तो विकसित था ही, साथ में, कुटीर उद्योग भी अपने चरम पर था। पीढ़ी दर पीढ़ी व्यवसाय को आगे बढ़ाया जाता था। नौकरी शब्द तो शायद उपयोग में था ही नहीं क्योंकि परिवार के सदस्य ही अपने पुरखों के व्यवसाय को आगे बढ़ाने में रुचि लेते थे अतः भारत के प्राचीन काल में नागरिक उद्यमी थे। नौकरी को तो निकृष्ट कार्य की श्रेणी में रखा जाता था। भारत में भी आर्थिक विकास की दर में तेजी तो दृष्टिगोचर है तथा प्रति व्यक्ति आय में भी वृद्धि हो रही है और आज यह लगभग 2500 अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष हो गई है। प्रति व्यक्ति आय यदि 14000 अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष हो जाती है तो भारत विकसित राष्ट्र की श्रेणी में शामिल हो जाएगा। अतः प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाने के लिए भारत में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे नागरिकों की आय में वृद्धि करने पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। भारत में आर्थिक विकास के साथ साथ मध्यमवर्गीय परिवारों की संख्या भी बढ़ रही है। परंतु, साथ में आय की असमानता की खाई भी चौड़ी हो रही है, क्योंकि उच्चवर्गीय एवं उच्च मध्यमवर्गीय परिवारों की आय तुलनात्मक रूप से तेज गति से बढ़ रही है। हालांकि केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा गरीब वर्ग, विशेष रूप से गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे नागरिकों, के लिए कई विशेष योजनाएं चलाई जा रही हैं और इसका असर भी धरातल पर दिखाई दे रहा है। हाल ही के वर्षों में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे नागरिकों की संख्या में भारी कमी दिखाई दी है। भारत में आर्थिक प्रगति के चलते सम्पत्ति के निर्माण की गति भी तेज हुई है। वित्तीय वर्ष 2023 के अंत में आयकर विभाग में जमा की गई विवरणियों के अनुसार, 230,000 नागरिकों ने अपनी कर योग्य आय को एक  करोड़ रुपए से अधिक की बताया है। यह संख्या पिछले 10 वर्षों के दौरान 5 गुणा बढ़ी है। वित्तीय वर्ष 2012-13 में 44,078 नागरिकों ने अपनी कर योग्य आय को एक करोड़ रुपए से अधिक की घोषित किया था। उक्त आंकड़ों में वेतन पाने वाले नागरिकों का प्रतिशत वित्तीय वर्ष 2022-23 में 52 प्रतिशत रहा है, वित्तीय वर्ष 2021-22 में यह 49.2 प्रतिशत था तथा वित्तीय वर्ष 2012-13 में यह प्रतिशत 51 प्रतिशत था। इस प्रकार एक करोड़ रुपए से अधिक का वेतन पाने वाले नागरिकों की संख्या में कोई परिवर्तन नहीं आया है। जबकि व्यवसाय करने वाले नागरिकों की आय और अधिक तेज गति से बढ़ी है। 500 करोड़ रुपए से अधिक की कर योग्य आय घोषित करने वाले नागरिकों में समस्त करदाता व्यवसायी हैं। 100 करोड़ रुपए से 500 करोड़ रुपए की कर योग्य आय घोषित करने वाले नागरिकों में 262 व्यवसायी हैं एवं केवल 19 वेतन पाने वाले नागरिक हैं। भारत के एक प्रतिशत नागरिकों के पास देश की 40 प्रतिशत से अधिक की सम्पत्ति है। अतः देश में आय की असमानता स्पष्टतः दिखाई दे रही है।    एक अनुमान के अनुसार यदि उच्चवर्गीय एवं उच्च मध्यमवर्गीय परिवार की आय में 100 रुपए की वृद्धि होती है तो वह केवल 10 रुपए का खर्च करता है एवं 90 रुपए की बचत करता है जबकि एक गरीब परिवार की आय में यदि 100 रुपए की वृद्धि होती है तो वह 90 रुपए का खर्च करता है एवं केवल 10 रुपए की बचत करता है। इस प्रकार किसी भी देश को यदि उपभोक्ताओं की संख्या में वृद्धि करना है तो गरीब वर्ग के हाथों में अधिक धनराशि उपलब्ध करानी होगी। जबकि विकसित देशों एवं अन्य देशों में इसके ठीक विपरीत हो रहा है, उच्चवर्गीय एवं उच्च मध्यमवर्गीय परिवारों की आय में तेज गति से वृद्धि हो रही है जिसके चलते कई विकसित देशों में आज उत्पादों की मांग बढ़ने के स्थान पर कम हो रही है और इन देशों के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि की दर बहुत कम हो गई है तथा इन देशों की अर्थव्यवस्था में आज मंदी का खतरा मंडरा रहा है। उक्त परिस्थितियों के बीच वैश्विक पटल पर भारत आज एक दैदीप्यमान सितारे के रूप में चमक रहा है। भारत में आर्थिक विकास दर 8 प्रतिशत के आसपास आ गई है और इसे यदि 10 प्रतिशत के ऊपर ले जाना है तो भारत में ही उत्पादों की आंतरिक मांग उत्पन्न करनी होगी इसके लिए गरीब वर्ग की आय में वृद्धि करने सम्बंधी उपाय करने होंगे तथा रोजगार के अधिक से अधिक अवसर निर्मित करने होंगे। प्राचीनकाल में भारत में उपयोग किए जा रहे आर्थिक दर्शन को एक बार पुनः देश में लागू किए जाने की आवश्यकता है। आज भारत में शहरों को केंद्र में रखकर विकास की विभिन्न योजनाएं (स्मार्ट सिटी, आदि) बनाई जा रही है, जबकि, आज भी 60 प्रतिशत से अधिक आबादी ग्रामीण इलाकों में ही निवास करती है। इसलिए भारत को पुनः ग्रामों की ओर रूख करना होगा। न केवल कृषि क्षेत्र बल्कि ग्रामीण इलाकों में कुटीर एवं लघु उद्योगों की स्थापना की जानी चाहिए जिससे रोजगार के पर्याप्त अवसर ग्रामीण इलाकों में ही निर्मित हों और इन स्थानों पर उत्पादित की जा रही वस्तुओं के लिए बाजार भी ग्रामीण इलाकों में ही विकसित हो सकें। लगभग 50 गावों के क्लस्टर विकसित किए जा सकते हैं, इन इलाकों में निर्मित उत्पादों को इस क्लस्टर में ही बेचा जा सकता है और यदि इन इलाकों के स्थित कुटीर एवं लघु उद्योगों में उत्पादन बढ़ता है तो उसे आस पास के अन्य क्लस्टर एवं शहरों में बेचा जा सकता है। इससे स्थानीय स्तर पर ही उत्पादों की मांग को बढ़ावा मिलेगा एवं रोजगार के अवसर निर्मित होने से ग्रामीण इलाकों में निवास कर रहे परिवारों के शहरों की ओर पलायन को भी रोका जा सकेगा। अंततः इससे शहरों के बुनियादी ढांचे पर लगातार बढ़ रहे दबाव को भी कम किया जा सकेगा।  भारत में हिंदू सनातन संस्कृति की यह विशेषता रही है कि समाज में निवास कर रहे गरीब वर्ग के नागरिकों की सहायता के लिए सक्षम समाज हमेशा से ही आगे रहता आया है। यह सेवा कार्य विभिन्न मंदिरों, मट्ठ, सामाजिक संस्थाओं, सांस्कृतिक संस्थाओं एवं न्यासों द्वारा सफलता पूर्वक किया जाता रहा हैं। एक अनुमान के अनुसार, भारत में प्रतिदिन लगभग 10 करोड़ नागरिकों के लिए अन्न क्षेत्रों में भोजन प्रसादी उपलब्ध कराई जाती है। इसी प्रकार कई सामाजिक, सांस्कृतिक एवं न्यासों द्वारा अस्पताल चलाए जाते हैं, जहां मुफ्त  अथवा बहुत ही कम कीमत पर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। कुछ संस्थानों द्वारा स्कूल भी चलाए जाते हैं जहां गरीब वर्ग के बच्चों को शिक्षण सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है। इस प्रकार समाज के गरीब वर्ग को यदि भोजन, स्वास्थ्य एवं शिक्षा सुविधाएं मुफ्त अथवा कम कीमत पर उपलब्ध हो सकती हैं तो उनके द्वारा अर्जित की जा रही आय को अन्य उत्पादों को खरीदने में उपयोग किया जा सकता है जिससे अंततः विभिन्न उत्पादों की मांग में वृद्धि दर्ज होती है। यह मॉडल भी केवल भारत में ही दिखाई देता है। वरना, अन्य विकसित देशों में तो कुछ भी मुफ्त नहीं है। विकसित देशों में नागरिकों को केवल अपनी प्रगति की चिंता है, समाज में गरीब वर्ग के अन्य नागरिकों के लिए कोई चिंता का भाव दिखाई ही नहीं देता है। अतः भारत में समाज के नागरिकों द्वारा गरीब वर्ग के सहायतार्थ चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं को गति देने के प्रयास करने चाहिए, जिससे देश के विकास को और अधिक गति मिल सके।          प्रहलाद सबनानी

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