राजनीति धार्मिक ‘कट्टरता’ के नाम पर राष्ट्रीय चिन्ह का ‘अपमान’ चिंताजनक

धार्मिक ‘कट्टरता’ के नाम पर राष्ट्रीय चिन्ह का ‘अपमान’ चिंताजनक

संतोष कुमार तिवारी  देश में जिस तरह आज धर्म और जाति को लेकर लोगों में कट्टर बनने का प्रचलन बढ़ता जा रहा हैं, यह बेशक़…

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खान-पान केला : खाएं भी और  फैशन  भी चमकाएं

केला : खाएं भी और  फैशन  भी चमकाएं

चंद्र मोहन केले का कई तरह से इस्तेमाल होते देखा या सुना है. केले या केले के तने का इस्तेमाल अलग-अलग तरह से किया जाता है…

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पर्यावरण प्रकृति ने हमें चेताया है, उसे सुनें और अपनी दिशा बदलें

प्रकृति ने हमें चेताया है, उसे सुनें और अपनी दिशा बदलें

राजेश जैन उत्तर भारत इन दिनों एक गहरी त्रासदी से गुजर रहा है। यहां हो रही भीषण बारिश के कारण आम जनजीवन अस्त-व्यस्त है। मौसम विभाग के अनुसार 22 अगस्त से 4 सितंबर के बीच क्षेत्र में सामान्य से तीन गुना अधिक बारिश दर्ज हुई है। यह पिछले 14 वर्षों में सबसे अधिक और 1988 के बाद सबसे बरसात वाला मानसून है। भारी बारिश, बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं ने कई राज्यों को बुरी तरह प्रभावित किया है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब और दिल्ली बाढ़ और भूस्खलन से जूझ रहे हैं। अब तक सौ से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। अकेले पंजाब में इस दशक की सबसे भीषण बाढ़ ने 50 से अधिक लोगों की जान ले ली है और लाखों लोग बेघर हो गए हैं। गांव डूब गए, सड़कें और पुल बह गए, खेत बर्बाद हो गए और शहरों का जीवन ठप हो गया है।   त्रासदी का गहरा असर जब बाढ़ का पानी उतर जाएगा तो कैमरे और प्रशासन वहां से लौट आएंगे लेकिन प्रभावित लोगों की पीड़ा बरसों तक बनी रहेगी। गिरे हुए मकान, डूबे खेत, कर्ज में दबे किसान और पढ़ाई से वंचित बच्चे हमें लगातार याद दिलाएंगे कि यह महज मौसम की सामान्य घटना नहीं बल्कि एक चेतावनी है। जलवायु परिवर्तन अब भविष्य की चिंता नहीं बल्कि वर्तमान की कठोर सच्चाई है। सवाल यह है कि क्या हम इसे गंभीरता से लेकर रोकथाम की राह पकड़ेंगे या हर साल राहत और मुआवजे की रस्म अदायगी दोहराते रहेंगे। क्यों बदल रहा है मानसून का पैटर्न दरअसल, मानसून अब पहले जैसा नहीं रहा। कहीं बेहद कम बारिश होती है तो कहीं अचानक बादल फट जाते हैं और कुछ घंटों में महीनों का पानी बरस जाता है। हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे नदियों में जलप्रवाह अचानक बढ़ जाता है। वैज्ञानिक बार-बार चेतावनी दे चुके हैं कि हिमालयी क्षेत्र जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा शिकार बनेगा और वर्तमान घटनाएं आने वाले भयावह समय की झलक मात्र हैं। मानवीय त्रासदी और प्रशासनिक विफलता इस आपदा का असर केवल भूगोल तक सीमित नहीं है बल्कि लाखों लोगों के जीवन पर पड़ा है। अपनों को खो चुके परिवारों के लिए यह आंकड़े नहीं बल्कि अधूरी कहानियां हैं। लाखों लोग राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों के किसानों की खड़ी फसलें डूब गईं। स्कूल बंद हैं, अस्पतालों में दवाओं की कमी है और महामारी का खतरा मंडरा रहा है। लेकिन यह त्रासदी जितनी भीषण है, उससे भी बड़ा सवाल है कि हमारी नीति और तैयारी बार-बार क्यों विफल हो जाती है। हर साल बाढ़ आती है और हर साल वही दृश्य दोहराए जाते हैं। दिल्ली में यमुना बार-बार खतरे के निशान से ऊपर चली जाती है क्योंकि नालों और जलनिकासी तंत्र पर अतिक्रमण हो चुका है। हिमालयी राज्यों में अंधाधुंध सड़कें, होटल और बांध बनने से पहाड़ और असुरक्षित हो गए हैं। सरकारें राहत और मुआवजे पर तो जोर देती हैं लेकिन दीर्घकालिक रोकथाम और जल प्रबंधन पर कम ध्यान देती हैं। सही है कि यह समस्या केवल भारत की नहीं है। जलवायु संकट वैश्विक है लेकिन भारत जैसे देशों पर इसका असर कहीं ज्यादा है। हम वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में तीसरे स्थान पर हैं। उद्योग और शहरी उपभोग मॉडल प्रदूषण और उत्सर्जन को बढ़ा रहे हैं लेकिन सबसे अधिक पीड़ा गरीब और कमजोर वर्ग झेल रहा है। पहाड़ी इलाकों के छोटे किसान, मजदूर और आदिवासी इसकी सबसे बड़ी कीमत चुका रहे हैं। समाधान की राह समाधान असंभव नहीं है पर इसके लिए दृष्टिकोण बदलना होगा। हिमालयी राज्यों में संवेदनशील इलाकों की पहचान कर निर्माण पर रोक लगानी होगी। नदियों के किनारे फ्लड ज़ोन मैपिंग जरूरी है ताकि वहां नई आबादी बसाने से बचा जा सके। शहरी क्षेत्रों में ड्रेनेज और वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को अनिवार्य करना होगा। मौसम पूर्वानुमान को और सटीक बनाने के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग जरूरी है। आपदा प्रबंधन में स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी ताकि राहत और बचाव केवल सरकारी मशीनरी पर निर्भर न रहे। साथ ही विकसित देशों को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण वही हैं। अब समय है कि वे कार्बन उत्सर्जन में कटौती करें और विकासशील देशों को जलवायु फंडिंग उपलब्ध कराएं। भारत को भी नवीकरणीय ऊर्जा की ओर और तेजी से बढ़ना होगा और विकास मॉडल को प्रकृति के अनुकूल बनाना होगा। उत्तर भारत की यह बाढ़ हमें आईना दिखाती है कि यदि हमने अब भी सबक नहीं सीखा तो आने वाले वर्षों में आपदाओं का यह सिलसिला और विकराल रूप लेगा। जब तक नीतियों और विकास की दिशा को बदलकर प्रकृति के साथ संतुलन नहीं साधा जाएगा, तब तक त्रासदियां हमारे जीवन का हिस्सा बनी रहेंगी। प्रकृति ने हमें चेताया है, अब जिम्मेदारी हमारी है कि हम उसे सुनें और अपनी दिशा बदलें। राजेश जैन

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राजनीति श्रीलंका से नेपाल: पड़ोसी संकट और भारत के लिए सबक

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जयसिंह रावत हाल के वर्षों में, हमारे पड़ोस में कई देशों ने राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता का सामना किया है। श्रीलंका में आर्थिक संकट के…

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राजनीति मोदी का ‘अर्थपूर्ण’ राजनैतिक बम

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क्या हैं जीएसटी दरों में कमी के असली निहितार्थ । खास समय पर चलाया गया बहुमारक ब्रह्मास्त्र है जीएसटी की दरों में कमी का कदम।  डॉ घनश्याम बादल ‘मोदी है तो मुमकिन है’ का नारा सत्तारूढ़ दल ऐसे ही नहीं देता बल्कि उसके पीछे मोदी के प्रभामंडल को रेखांकित करना तो…

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कला-संस्कृति पितर : हमारे जीवन के अदृश्य सहायक

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पितृपक्ष 2025 उमेश कुमार साहू भारतीय संस्कृति की सबसे अद्वितीय परंपरा है – पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता। पितृपक्ष वह पावन काल है जब हम अपने पितरों…

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राजनीति निवेश का नया दौर : भारत और चीन के बीच संभावनाओं की दिशा

निवेश का नया दौर : भारत और चीन के बीच संभावनाओं की दिशा

 शम्भू शरण सत्यार्थी आज की दुनिया उस मोड़ पर खड़ी है जहाँ कोई भी देश अपने दम पर लंबे समय तक आर्थिक विकास नहीं कर…

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स्‍वास्‍थ्‍य-योग बुखार में सावधानी है जरूरी

बुखार में सावधानी है जरूरी

डॉक्टर रुप कुमार बनर्जीहोम्योपैथिक चिकित्सक बुखार होने की कोई न कोई वजह अवश्य होती है। बिना वजह बुखार नहीं हो सकता। वजह जितनी बड़ी होगी…

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लेख आत्महत्या किसी भी सामान्य जीव की नैसर्गिक प्रवृत्ति है ही नहीं

आत्महत्या किसी भी सामान्य जीव की नैसर्गिक प्रवृत्ति है ही नहीं

डॉ. एच.एस. राठौर              पृथ्वी पर जीवन विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे, पशु-पक्षी एवं सूक्ष्म जीवों के रूपों में प्रकट होता है और एक समय पर इनका…

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लेख हिंदी हैं, हम वतन है, हिन्दुस्तां हमारा!

हिंदी हैं, हम वतन है, हिन्दुस्तां हमारा!

(14 सितंबर हिंदी राजभाषा दिवस पर विशेष लेख) वेदव्यास    इस बार भी 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाएगा और हिंदी भाषी राज्यों में…

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राजनीति अंतिम पंक्ति में मोदी, क्या इसे माना जाए कार्यकर्ता केंद्रित सियासत का नया सौपान!

अंतिम पंक्ति में मोदी, क्या इसे माना जाए कार्यकर्ता केंद्रित सियासत का नया सौपान!

पीएम ने लास्ट लाईन में बैठकर संदेश दिया कि कार्यकर्ता ही पार्टी के लिए होता है नींव का पत्थर . . .(लिमटी खरे)प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी…

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मनोरंजन नेपाल का ऑनलाइन लॉकडाउन: आज़ादी पर सवाल

नेपाल का ऑनलाइन लॉकडाउन: आज़ादी पर सवाल

सोशल मीडिया पर नेपाल का बड़ा ताला: लोगों की आवाज़ पर रोक या नियमों की ज़रूरत? नेपाल सरकार ने 26 बड़े सोशल मीडिया और संदेश…

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